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आरटीआई ने महिला कल्याण पर मोदी सरकार की लापरवाही की खोली पोल

पिछले पांच वर्षों में कई कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन की कमी पैदा हुई है, लेकिन किशोरी शक्ति योजना जैसी कुछ योजनाओं को तो पूरी तरह से बंद कर दिया गया।
आरटीआई ने महिला कल्याण पर मोदी सरकार की लापरवाही की खोली पोल
प्रतिनिधि छवि। सौजन्य: डीडी न्यूज़

नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनावों में महिला मतदाताओं से भाजपा के घोषणापत्र के माध्यम से महिलाओं के मुद्दों, उनके विकास, सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाई थी, जिसके लिए कई योजनाओं, परियोजनाओं और नारों को दिया गया। हालांकि, सरकार के तथ्यों और योजनाओं की स्थिति पर आरटीआई के खुलासे एक निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं।

किशोरी शक्ति योजना 

वर्ष 2006-07 के दौरान, "किशोरी शक्ति योजना" नामक एक योजना थी, जो किशोर लड़कियों को सशक्त बनाने की पक्षधर थी, ताकि किशोरी अपने जीवन की ख़ुदमुख़्तार हो सकें व अपने लिए सक्षम बन सकें। वास्तव में, यह योजना पहले से ही मौजूद एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना का विस्तार थी। इस योजना का लक्ष्य समूह 11 से 18 वर्ष था और शुरुआत में इसे देश भर के 6118 ब्लॉकों में पेश किया गया था। अंतिम उद्देश्य किशोरी को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाना था, उन्हें कौशल सीखने के अवसरों से जोड़ना, उन्हें स्कूल वापस जाने के लिए प्रेरित करना, उनके सामाजिक परिवेश को समझने और उत्पादक बनाने की पहल करना था।

मोदी सरकार द्वारा आरटीआई के जवाब के अनुसार, केवाईएस योजना पहले से ही परिणाम दे रही थी। वर्ष 2010-11 में, केंद्र सरकार ने 3,365 करोड़ रूपए ख़र्च किए और 24.81 लाख लड़कियों के कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया। हालांकि, 2014-15 में मोदी सरकार के पहले बजट में, इस बाबत आवंटित धनराशि काफ़ी कम 1,489 करोड़ रुपये हो गई थी, जबकि विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा केएसवाई पर किए गई धनराशी 1,602 करोड़ रुपये रही जिससे केवल 15.18 लाख लड़कियों को इसका लाभ मिला। केएसवाई को चरणबद्ध तरीक़े से हटाने से पहले, 2017-18 में, भारत सरकार ने 4.64 करोड़ रुपये ख़र्च कर केवल 6.28 लाख लड़कियों को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया, फिर 1 अप्रैल, 2018 से इस योजना को बंद कर दिया गया।

महिला शक्ति केंद्र 

नवंबर 2017 में, मोदी सरकार फिर से महिला सशक्तीकरण के लिए एक नई योजना लेकर आई, जिसका नाम महिला शक्ति केंद्र रखा गया था। इस योजना का मक़सद 2020 तक देश के 640 ज़िलों को ज़िला स्तरीय केंद्र (डीएलसीडब्ल्यू) के माध्यम से कवर करना था। इस केंद्र को महिला केंद्रित योजनाओं को लागू करवाने की सुविधा के लिए गांव, ब्लॉक और राज्य स्तर के बीच एक कड़ी के रूप में काम करने और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना को भी मज़बूत करने के लिए ज़िला स्तर पर लागू किया गया था। साथ ही इसे एक शानदार सफ़ल योजना बनाने के लिए, कॉलेज के छात्रों, स्वयंसेवकों के माध्यम से सामाजिक भागेदारी को सुनिश्चित करने के लिए ब्लॉक स्तर की पहल के हिस्से के रूप में 115 सबसे पिछड़े ज़िलों में शामिल किया गया था। पहले चरण (2017-18) के दौरान, 220 ज़िलों को कवर किया जाना था और इसी तरह, 2018-19 में 220 अन्य डीएलसीडब्ल्यू ज़िलों की स्थापना करने का प्रस्ताव था। शेष 200 ज़िलों को 2019-20 में कवर किया जाना था। इसके लिए फ़ंडिंग का फ़ोर्मुला केंद्र और राज्य के बीच 60:40 के अनुपात का रखा गया। पूर्वोत्तर राज्यों और विशेष श्रेणी राज्यों के लिए, यह 90:10 के अनुपात में प्रस्तावित किया गया था और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए यह केंद्र द्वारा 100 प्रतिशत वित्त पोषित होगा। भारत सरकार ने इस योजना के लिए 2017-18 के दौरान केवल 61.40 करोड़, और 2018 के अंत तक 52.67 करोड़ जारी किए थे।
आर.टी.आई. के जवाब के अनुसार, केवल 22 ज़िलों में अब तक DLCW को काम के योग्य बनाया गया है जिसमें भारत के 5 सबसे पिछड़े ज़िले भी शामिल हैं। बिहार में देश के 25 सबसे कम रैंकिंग वाले ज़िलों में से 10 सबसे पिछड़े ज़िले इसमें शामिल हैं और इसके लिए 12.8 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए गए लेकिन एक भी DLCW अभी कार्यशील नहीं हुआ है। इसी तरह, झारखंड के 19 ज़िले कुल 115 में से पिछड़े ज़िलों में सूचीबद्ध हैं और 18.65 करोड़ की अधिकतम राशि दी गई है लेकिन एक भी ज़िला अभी तक कार्यशील नहीं है। कुछ ऐसी ही स्थिति छत्तीसगढ़ की है, जिसे 9.86 करोड़ रुपये मिले हैं लेकिन अभी तक किसी भी ज़िले में केंद्र स्थापित नहीं किया गया है। आरटीआई जवाब ने यह भी पुष्टि की कि महिला शक्ति केंद्रों की कार्यात्मक स्थिति के बारे में किसी भी राज्य ने रिपोर्ट नहीं दी है।

मातृत्व लाभ योजना

मोदी सरकार ने इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना (IGMSY) को फिर से शुरू करने के लिए ढाई साल का समय लिया, जिसके तहत 1980 के दशक से दो किश्तों में 6,000 ग़रीब गर्भवती महिला को मिलते थे। 1 जनवरी, 2017 से प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) के नाम से एक नई योजना शुरू की गई और लाभार्थी के लिए राशि को घटाकर सिर्फ़ 5,000 रुपये कर दिया गया और उसे भी 3 किश्तों में देने को कहा गया।
15 जनवरी, 2018 को हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल 2 प्रतिशत महिलाएँ ही इस योजना के तहत लाभ ले पाईं। आरटीआई जवाब से पता चला कि 30 नवंबर, 2018 तक सरकार ने लगभग 20 लाख योग्य माताओं के बीच 1,656 करोड़ वितरित किए, लेकिन विडंबना यह है कि इस राशि को वितरित करने के लिए 6,966 करोड़ रुपये ख़र्च किए। इसलिए, प्रत्येक 100 रुपये को बाँटने के लिए, सरकार ने लगभग 4.3 गुणा अधिक पैसा प्रशासनिक ख़र्चों पर लगाया, जो आश्चार्य जनक है। ओडिशा ने केवल पांच लाभार्थियों की पहचान करने का एक संदिग्ध रिकॉर्ड बनाया है, और उन्होंने केवल नवंबर 2018 तक 25,000 रुपये ही वितरित किए हैं।

परिवार परामर्श (FCC) केंद्रों की स्थापना की योजना केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड द्वारा 1983 में महिलाओं और बच्चों के लिए परामर्श, रेफ़रल और पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी, उनके लिए जो अत्याचार, पारिवारिक दुर्व्यवहार और सामाजिक बहिष्कार के शिकार थे, और जो प्राकृतिक आपदाओं के भी शिकार होते थे उनके लिए संकट में हस्तक्षेप और आघात विपदा पड़ने पर सहायता प्रदान की जाती है। इस तरह के केंद्र महिलाओं की स्थिति को प्रभावित करने वाले सामाजिक मुद्दों पर भी जागरुकता पैदा करते हैं और जनता की राय जुटाते हैं। एफ़सीसी स्थानीय प्रशासन, पुलिस, अदालतों, मुफ़्त क़ानूनी सहायता कोशिकाओं, चिकित्सा और मानसिक संस्थानों, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों, अल्प प्रवास घरों आदि के साथ मिलकर काम करती है।
हालांकि, मोदी सरकार के तहत इस योजना को भी नुकसान उठाना पड़ा है। आरटीआई प्रतिक्रिया में चौंकाने वाले विवरण सामने आए हैं। पिछले पांच वर्षों के दौरान, 219 एफ़सीसी बंद हो गए हैं। 2014-15 के दौरान, जब 895 केंद्र चालू थे, तो कुल व्यय 1,645 करोड़ रुपये था, और उसके बाद, केंद्रों को लगातार कम किया गया, लेकिन व्यय में वृद्धि हुई।

बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ

बीपीबीबी परियोजना के बारे में बहुत सी बातें हुई हैं, जनवरी 2015 में इसे पानीपत में मोदी सरकार द्वारा शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य लिंग अनुपात में सुधार करना था और बालिका शिक्षा की उच्च दर सुनिश्चित करना था। लेकिन 2015-16 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि इस योजना के तहत प्रत्येक ज़िले को 5 लाख रुपये दिए गए थे, जिनमें से पानीपत में ही परियोजना के उद्घाटन कार्यक्रम के थीम गेट के निर्माण पर 3 लाख रुपये ख़र्च किए गए थे। सीएजी ने कहा कि महिला और बाल कल्याण विभाग ने इस एक आयोजन पर लगभग 21 लाख रुपये ख़र्च किए इससे इस परियोजना की गंभीरता के तथ्य से समझा जा सकता है कि मंत्रालय ने अब तक प्रचार के लिए 2015 से 2018 के बीच 209 करोड़ रुपये ख़र्च किए, जबकि राज्य सरकारों को केवल 40 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इसके अलावा, सत्तारूढ़ दल के सदस्यों द्वारा उन्नाव और कठुआ बलात्कार मामलों ने इस परियोजना का मज़ाक़ उड़ाया है।

संजय बासु आर.टी.आई. कार्यकर्ता हैं।
प्रो.उज्जवल के. चौधरी जाने माने मीडिया एकेडमिक और स्तम्भ्कार हैं।

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