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आयकर आँकड़ों से कॉर्पोरेट को दी गयी रियायतों का खुलासा

कॉर्पोरेट निकायों पर कर क्यों नहीं बढ़ाए जाएँ ताकि सरकार सभी नागरिकों को विभिन्न आवश्यक सेवाएँ मुहैया करवा सके?
corporate concessions

मोदी सरकार फिर एक बार भरमाने वाले आँकड़ों के आधार पर अपनी पीठ को थपथपा रही है। इस बार यह आयकर से जुड़े आँकड़े है, जिन्हें हाल ही में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा जारी किया गया है। सरकार ने दावा किया है कि कर अनुपालन और कर वसूलियों में लगातार वृद्धि हुई है।

वास्तव में सरकार इन तथ्यों में जो छिपा रही है वह यह है कि जीडीपी के हिस्से के तौर पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर वसूलियाँ पिछले कई वर्षों में लगभग स्थिर हैं (नीचे ग्राफ देखें)।

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एकत्रित कर के इतने सारे करोड़ रुपये की पूर्ण संख्या - सरकार जिनको प्रचारित कर रही है – वे अप्रासंगिक हैं क्योंकि मुद्रास्फीति ने न केवल ऐसे आँकड़े को निगल लिया है बल्कि देश के सकल उत्पादन (सकल घरेलू उत्पाद) का मूल्य भी इसी अवधि में लगातार बढ़ा है। तो, कर वसूलियों को देखने का एक बेहतर तरीका जीडीपी के हिस्से के तौर पर देखना होगा। इस तरह से देखने से हम पाते हैं कि 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद का 5.81 प्रतिशत प्रत्यक्ष कर है जो 2017-18 में 5.98 प्रतिशत तक बढ़ गया था (जिसके लिए केवल अस्थायी अवांछित आँकड़े उपलब्ध हैं, जो ऊपर दिए गए ग्राफ में *इंगित है)। सात वर्षों में मात्र  0.18 प्रतिशत अंक की वृद्धि का ज़िक्र करना फ़िज़ूल सा लगता है। जीडीपी के हिस्से के तौर पर अप्रत्यक्ष कर इसी अवधि में 4.48 प्रतिशत से बढ़कर 5.46 प्रतिशत हो गया, जो कि केवल 0.98 प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी है।

यदि आप इन दो प्रकार के करों को जोड़ते हैं, और जीडीपी के हिस्से के तौर पर इसकी गणना करते हैं तो यह 2010-11 में 11.3 प्रतिशत की तुलना में 2017-18 में केवल 11.44 प्रतिशत तक बैठता है। यह न केवल बहुत कम बढ़ोतरी है बल्कि 11.44 प्रतिशत का कर-जीडीपी अनुपात इस आकार की अर्थव्यवस्थाओं के लिए दुनिया में सबसे कम है।

एक ओर भी चौंकाने वाली वास्तविकता है जिसका खुलासा नये आँकड़े करते है – जिस पर मोदी सरकार चुप्पी साधे हुए है। वह कि: जीडीपी के हिस्से के तौर पर कॉर्पोरेट कर में इस अवधि के दौरान गिरावट आई है। 2010 -11 में यह जीडीपी का 3.89 प्रतिशत था जो 2010-11 में घटकर सकल घरेलू उत्पाद का 3.41 प्रतिशत ही रह गया यानि कॉर्पोरेट ने पहले के मुकाबले कम कर चुकाया है।

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यह मोदी सरकार द्वारा लागू भारी व्यापार अनुकूल नीतियों का परिणाम है, जो पिछली सरकार की रियायतों का कुल योग है। कॉरपोरेट निकायों को दी गयी विशाल बोनंजा की गंगा रियायतों और कटौती और विभिन्न करों और ड्यूटी में छूट से बहती है जिसे कि जेटली के तहत वित्त मंत्रालय हर साल कोर्पोरेट के लिए उंडेल रहा है।

इस बीच, व्यक्तिगत आयकर (व्यक्तियों के साथ-साथ छोटी कंपनियों सहित अन्य गैर-कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिए लागू) 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.9 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 2.5 प्रतिशत हो गया है।

दूसरे शब्दों में, व्यक्तियों और गैर-कॉर्पोरेट संस्थाओं की अंतिम बूंद तक को निचोड़ा जा रहा है जबकि कॉर्पोरेट संस्थाओं को सभी तरह के करों में सुविधा दी जा रही हैं।

सरकार के द्वारा किए जाने वाला विलाप कि उनके पास विभिन्न आवश्यक कार्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कोई संसाधन नहीं है - जैसे बुजुर्गों को पेंशन देना या स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए अधिक धन खर्च करना - इस 'व्यापार अनुकूल' दृष्टिकोण पर विचार करने से उन्हे इसका जवाब खुद ही मिल जाएगा। कॉर्पोरेट निकायों पर कर क्यों नहीं बढ़ाए जाएँ ताकि सरकार सभी नागरिकों को विभिन्न आवश्यक सेवाएँ मुहैया करवा सके?

मोदी सरकार से आने वाले चुनावों में शायद यह सवाल पूछा जाएगा और उसे उत्तर देना होगा जब वे जनादेश मांगने के लिए मतदाताओं के पास जाएंगे।

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