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अयोध्या केस : गैर-विवादित भूमि के बहाने एक नए विवाद की कोशिश!

चुनावी साल में मंदिर के लिए ‘गंभीर’ दिखने की एक और कोशिश करते हुए मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर राम जन्मभूमि न्यास व अन्य को गैर-विवादित जमीन देने की अनुमति मांगी है।
सांकेतिक तस्वीर

केंद्र सरकार ने राम जन्मभूमि न्यास और अन्य मूल मालिकों को 67 एकड़ गैर-विवादित भूमि का हिस्सा देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। केंद्र सरकार ने अधिग्रहित 67 एकड़ गैर-विवादित भूमि पर यथास्थिति बरकरार रखने के 31 मार्च, 2003 के आदेश में संशोधन की मांग के साथ शीर्ष अदालत का रुख किया है। 

राम जन्मभूमि न्यास का 67 एकड़ में से 42 एकड़ भूमि पर अधिकार है, जिसे 1993 में वापस अधिग्रहित कर लिया गया था। 

न्यास ने सरकार से उस 42 एकड़ जमीन वापस करने का अनुरोध किया था, जिसे केंद्र ने मंगलवार को अपने आवेदन में 'अतिरिक्त' बताया है। 

केंद्र ने कहा कि केवल 0.312 एकड़ भूमि विवादित है। केंद्र सरकार को राम जन्मभूमि न्यास के साथ ही अन्य मूल स्वामियों को अतिरिक्त जमीन लौटाने में सैद्धांतिक रूप से कोई आपत्ति नहीं है। 

केंद्र ने 31 मार्च, 2003 की यथास्थिति में उपयुक्त संशोधन की मांग की, ताकि वह अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सके और राम जन्मभूमि न्यास और अन्य मूल मालिकों को निर्विवादित भूमि को बहाल कर सके। 

आपको बता दें कि 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद 1993 में 67 एकड़ जमीन का सरकार ने अधिग्रहण किया था। विवादित जमीन के आसपास की जमीन का अधिग्रहण इसलिए किया गया था ताकि विवाद के निपटारे के बाद उस विवादित जमीन पर कब्जे या उपयोग में कोई बाधा नहीं हो। इसमे करीब 42 एकड़ की जमीन रामजन्म भूमि न्यास की बताई जाती है।

1994 में इस्माइल फारूकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि विवादित जमीन पर कोर्ट का फैसला आने के बाद गैर विवादित जमीन को उनके मूल मालिकों को वापस लौटाने पर विचार कर सकती है।

1996 में सरकार ने रामजन्म भूमि न्यास की मांग ठुकरा दी। इसके बाद न्यास ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे कोर्ट ने 1997 में खारिज कर दिया।

2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर पूजा शुरू हो गई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस याचिका पर सुनवाई के बाद 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने 67 एकड़ पूरी जमीन पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया।

2003 में असलम भूरे फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता। कोर्ट ने अधिग्रहित जमीन वापसी पर पक्षकारों से अर्जी मांगी। राम जन्मभूमि न्यास ने अपनी गैरविवादित जमीन 42 एकड़ पर अपना मालिकाना हक हासिल करने के लिए सरकार से गुहार लगाई।

इसी को लेकर अब 2019 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में कहा है कि राम जन्मभूमि न्यास ने अपने हिस्से की गैर विवादित जमीन की मांग की है।

मोदी सरकार के इस कदम को एक राजनीतिक खेल और चुनावी प्लान के तहत देखा जा रहा है। दरअसल बाबरी मामले में ज़मीन पर मालिकाना हक के लिए अभी नियमित सुनवाई शुरू नहीं हो पाई है। इस बीच राष्ट्रीय स्वयं संघ से जुड़े विश्व हिन्दू परिषद और अन्य सहयोगी संगठनों ने मंदिर के दबाव तेज़ कर दिया है। जानकार मानते हैं कि मोदी सरकार ये दिखाना चाहती है कि वो मंदिर को लेकर काफी गंभीर है और इसके लिए हर तरह की कोशिश कर रही है। इसी के तहत ये अर्जी दायर की गई है। लेकिन यहां यह ध्यान रखना होगा कि 2003 में असलम भूरे फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता। इसलिए जब तक विवादित ज़मीन पर फैसला नहीं हो जाता तब तक केवल एक पक्षकार की मांग या अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट कोई संज्ञान लेगा, ये शायद मुश्किल ही है।   

(कुछ इनपुट आईएएनएस)

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