कैसे राष्ट्रीय बैंकों के समर्थन से रुचि सोया के ज़रिये अमीर बनी पतंजलि
बैंगलोर/नई दिल्ली: 28 मार्च को रुचि सोया इंडस्ट्री FPO (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफ़रिंग) के चार दिन पूरे हो गए। इसका मक़सद 4300 करोड़ रुपये जुटाना था। रुचि सोया देश की सबसे बड़ी खाने का तेल उत्पादित करने वाली कंपनी है।
FPO के बंद होने के दिन तक, इसके 3.6 गुना ज़्यादा इक्विटी शेयर बिके। शुरुआत में FPO में 4.89 करोड़ इक्विटी शेयरों का प्रस्ताव रखा गया था। लेकिन FPO ख़त्म होने तक इसके 17.56 करोड़ इक्विटी शेयर बिक गए। खुदरा व्यक्तिगत निवेशकों (रिटेल इंडिविज़ुअल इंवेस्टर) के लिए शुरुआत में रखे गए 35 फ़ीसदी कोटे का 0.88 गुना ही बिक पाया, मतलब यह 12 फ़ीसदी कम बिका। दूसरी तरफ, "योग्यता प्राप्त सांस्थानिक खरीददार (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बॉयर्स)" की हिस्सेदारी शुरुआत में 50 फ़ीसदी रखी गई थी, यह 2.2 गुना ज़्यादा बिकी। जबकि गैर-संस्थागत खरीददार (ऐसे निवेशक जो दो लाख रुपये से ज़्यादा का निवेश करते हैं, लेकिन उन्होंने खुद को संस्थागत निवेशकों के तौर पर दर्ज नहीं कराया है) कोटा, जो शुरुआत में, जारी किए गए शेयरों का 15 फ़ीसदी रखा गया था, उसकी खरीददारी 11.75 गुना हुई।
कंपनी के सीईओ संजीव कुमार अस्थाना ने मीडिया को बताया कि कंपनी की योजना, जुटाए गए पैसों में से 3300 करोड़ रुपये से 80-85 फ़ीसदी कर्ज चुकाने की है। जब FPO पूरा हो जाएगा और कर्ज़ चुका दिया जाएगा, तो रुचि सोया की प्रायोजक, बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद समूह की इसमें 81 फ़ीसदी हिस्सेदारी होने की संभावना है। कंपनी का मार्केट कैपिटलाइज़ेशन (बाज़ार पूंजीकरण) 22,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। बता दें तीन साल पहले, 2019 में पतंजलि ने रुचि सोया को 4,350 करोड़ रुपये में खरीदा था। यह खरीद, रुचि सोया द्वारा आईबीसी कोड (इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्टसी कोड) के तहत दिवालिया प्रक्रिया में हिस्सा लेने के बाद की गई थी।
योग गुरु बाबा रामदेव के व्यापारिक समूह द्वारा जिस प्रक्रिया के तहत रुचि सोया का अधिग्रहण किया गया था, वह अच्छा उदाहरण है, जो बताता है कि कैसे राष्ट्रीयकृत सरकारी बैंक, नियामक संस्थाएं और प्राधिकरण बड़ी संपदा हासिल करने में सहयोगी बनते हैं। पतंजलि 2019 में कंपनी की नीलामी में सबसे ज़्यादा बोली लगाने वाला समूह था, (पतंजलि से ज़्यादा बोली लगाने वाली अडानी विलमर ने अपनी बोली हटा ली थी और गोदरेज़ एग्रोवर्ट व इमामि एग्रोटेक की बोली पतंजलि से कम थी)। तबसे सरकारी बैंकों के समूह द्वारा कंपनी को फायदा पहुंचाने वाले फ़ैसले लिए गए हैं, जिन पर सवाल उठते रहे हैं। इसके अलावा नियामक संस्थाओं ने भी इस प्रक्रिया के दौरान कड़ा रुख नहीं अपनाया, जैसा इस लेख में बताया भी जाएगा।
कैसे सरकारी बैंकों ने पतंजलि के अधिग्रहण में पैसा लगाया
अब हम उन घटनाओं के क्रम पर नज़र डालते हैं, जो रुचि सोया के पतंजलि द्वारा अधिग्रहण तक घटीं। जब 2017 के मध्य में रुचि सोया ने दिवालिया प्रक्रिया के तहत कार्रवाई शुरू की, तब तक उसका कर्ज़ 12,146 करोड़ रुपये पहुंच चुका था, जिसमें से 9,385 करोड़ रुपये बैंक और वित्तीय कर्ज़दाताओं का था, जिसमें से ज़्यादातर सरकारी बैंक थे।
जब सीओसी (कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स- देनदारों की समिति) ने पतंजलि की नीलामी बोली- 4350 करोड़ रुपये को मंजूरी दी, तब इन्हीं में से कुछ सरकारी बैंकों ने नीलामी को पूरा करने के लिए पतंजलि को कर्ज़ दिया। इन्हीं कर्ज़ों के बारे में अब कंपनी कह रही है कि वो FPO के पूरा होने के बाद इन्हें चुकाने की इच्छुक है।
आउटलुक बिज़नेस ने बताया कि एसबीआई ने रुचि सोया 933 करोड़ रुपये के कर्ज़ को एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) मानकर हटा दिया और पतंजलि को 1300 करोड़ रुपये का नया कर्ज़ दिया, ताकि वह रुचि सोया का अधिग्रहण कर सके। इस बीच पंजाब नेशनल बैंक ने 346 करोड़ रुपये कर्ज एनपीए मानकर हटाया और अधिग्रहण के लिए पतंजलि को 700 करोड़ रुपये दिए। इसी तरह यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने 149 करोड़ रुपये एनपीए मानकर हटा दिए और पतंजलि को 600 करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया। सिंडिकेट बैंक ने 147 करोड़ रुपये का कर्ज़ एनपीए में डालकर हटाया और 400 करोड़ का कर्ज़ दिया। जबकि बैंक ऑफ़ बड़ौदा ने 121 करोड़ रुपये का कर्ज़ एनपीए में डालकर हटाया और 300 करोड़ का कर्ज पतंजलि को दिया।
सब मिलाकर राष्ट्रीय बैंकों ने पतंजलि की 4350 करोड़ रुपये की बोली में 3300 करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया। जबकि यही बैंक रुचि सोया को दिए गए अपने पुराने कर्ज़ में बड़ा हिस्सा बिना वसूली के हटाने को मजबूर हुए थे। जिस प्रस्ताव योज़ना को मंजूरी दी गई थी, उसके मुताबिक़, बैंक और वित्तीय देनदारों को 4053 करोड़ रुपये मिलने थे, जबकि उनका रुचि सोया पर 9,385 करोड़ रुपये का कर्ज़ था। पतंजलि की नीलामी बोली (4350 करोड़ रुपये) के बाकी हिस्से में से 182 करोड़ रुपये ऑपरेशनल क्रेडिटर्स और 115 करोड़ रुपये रुचि सोया में इक्विटी के तौर पर उपयोग होने थे। मतलब कि बैंक अपने कुल कर्ज़ में से 57 फ़ीसदी का "हेयरकट" (कुल कर्ज़ में से कटौती) ले रहे थे।
दिलचस्प तो यह रहा कि पतंजलि को जो 3300 करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया गया, उनके लिए उसी रुचि सोया के शेयरों को गारंटी बनाया गया, जिसके शेयरों का अधिग्रहण के वक़्त स्टॉक बाजार में लेनदेन नहीं हो सका था और उनका कुल मूल्य 66 करोड़ रुपये ही था (जब ट्रेडिंग रुकी)। यह निश्चित है कि देशभर में फैली रुचि सोया की संपत्तियां, जैसे रिफाइनरी और दूसरे सुविधा केंद्र, उनका मूल्य शेयरों से कहीं ज्यादा है, यहां तक कि पतंजलि की संपदा से भी ज़्यादा है, इसलिए पतंजलि जब कर्ज़ ले रही थी, तो शेयरों के बजाए इन्हें गारंटी के तौर पर रख सकती थी? एक दूसरी संभावना यह हो सकती थी कि बैंक रुचि सोया के कर्ज़ को कंपनी में हिस्सेदारी के तौर पर बदल सकते थे।
यहां तक कि अधिग्रहण का बाकी हिस्सा, जो करीब़ 1700 करोड़ रुपये के आसपास बैठता है, जिसे पतंजलि द्वारा सीधे रुचि सोया में लगाया जाना था, उसे भी राष्ट्रीय बैंकों से कर्ज़ लेकर लगाया गया। आउटलुक बिज़नेस की रिपोर्ट बताती है कि 11 बैंकों एक कंसोर्टियम ने पतंजलि को कार्य पूंजी के तौर पर 1700 करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया, इस कंसोर्टियम की अध्यक्षता पंजाब नेशनल बैंक कर रहा था। इसके लिए पतंजलि के "चेयरमैन आचार्य बालकृष्ण ने अपनी शेयर हिस्सेदारी के 50 फ़ीसदी शेयर गारंटी के तौर पर रखे और कंपनी ने अपने पूरे कच्चे माल, आधे बने माल, अंतिम उत्पाद के माल, गोदाम, ट्रांजिट स्टोर और किताबी कर्ज़ों- जिनमें कंपनी को मिलने वाला पैसा शामिल था, शहद और च्यवनप्राश संयंत्रों और सोनीपत, नेवासा और तेजपुर में इसकी ईकाईयों को बंधक रखा।"
रुचि सोया के देनदारों में शामिल भारतीय सरकारी बैंकों के रवैये की आप सिंगापुर आधारित डीबीएस बैंक (जिसे पहले डिवल्पमेंट बैंक ऑफ सिंगापुर के नाम से जाना जाता था) से करिए, जो भी रुचि सोया के देनदारों में शामिल है। डीबीएस बैंक ने रुचि सोया की सीओसी (कंपनी ऑफ़ क्रेडिटर्स- देनदारों की समिति) द्वारा अनुमति प्राप्त प्रस्ताव योजना पर आपत्ति जताई थी और एनसीएलटी में गुहार लगाई। लेकिन एनसीएलटी ने डीबीएस की आपत्तियों को खारिज करते हुए प्रस्ताव योजना को मंजूरी दे दी। इसके बाद डीबीएस ने एनसीएलएटी (राष्ट्रीय कंपनी अधिनियम अपील प्राधिकरण) और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील लगाई, दोनों जगह ही जगह यह अपीलें असफल रहीं।
डीबीएस की आपत्ति यह थी कि एक सुरक्षित देनदार के तौर उसे अपने कर्ज़ का 90 फ़ीसदी मिल गया होता, अगर पतंजलि की बोली को मंजूरी देने के बजाए, रुचि सोया के बैंको के पास बंधक रखी संपदाओं का विमुद्रीकरण किया जाता। लेकिन एनसीएलएटी और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने डीबीएस बैंक के तर्कों को नहीं माना और आईबीसी कोड में दर्ज उस धारा को भी नज़रंदाज कर दिया, जो कहती है कि अगर कोई कर्ज़ देनदार, प्रस्ताव योजना पर आपत्ति जताता है, तो उसे कम से कम उतनी मात्रा में पैसा दिया जाना चाहिए, जो उसे दिवालिया कंपनी के विमुद्रीकरण की स्थिति में प्राप्त होता। कोर्ट में केस हारने के बाद डीबीएस को एसबीआई के नेतृत्व वाली देनदारों की समिति की बात माननी पड़ी और उसे अपने कर्ज़ का सिर्फ़ 49 फ़ीसदी ही हासिल हो पाया।
फिर जब रुचि सोया के लिए पतंजलि को कर्ज़ दिया जा रहा था, तब उसकी साख भी देखिए। आउटलुक बिज़नेस ने बताया कि दिसंबर 2019 में कर्ज़ों को मंजूरी दी गई, जबकि कुछ महीने बाद ही कई रेटिंग एजेंसियों ने पतंजलि की क्रेडिट रेटिंग गिरा दी थी। अक्टूबर, 2019 में आईसीआरए (जिसे पहले इंवेस्टमेंट एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया कहा जाता था) और केयर (CARE-क्रेडिट एनालिसिस एंड रिसर्च लिमिटेड) ने पतंजलि की रेटिंग A+ से गिराकर "BBB" कर दी थी। आईसीआरए ने इसके लिए "पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रदर्शन की जानकारी के आभाव को वज़ह बताया था, जिसकी वज़ह से इसे कर्ज़ दिए जाने के आसपास अनिश्चित्ता बनी थी," संस्था ने कहा था कि लगातार अपील के बावजूद पतंजलि का प्रबंधन जरूरी जानकारी उपलब्द कराने के क्रम में "असहयोगी" बना रहा। इस बीच CARE ने चिंता जताते हुए कहा कि "31 मार्च 2019 तक की स्थिति में रुचि सोया के अधिग्रहण का आकार पतंजलि की कुल संपदा का 151 फ़ीसदी था।" फिर नवंबर में ब्रिकवर्क रेटिंग्स ने पतंजलि समूह की कंपनी- पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क नागपुर की रेटिंग गिराकर BBB+ कर दी। क्रेडिट एजेंसी को महसूस हुआ कि "पतंजलि द्वारा कर्ज़ के ज़रिए पूंजीगत खर्च करने से उसके कर्ज़ का भार सहने और उन्हें चुकाने का पैमानों पर बुरा असर पड़ेगा, कर्ज द्वारा किए गए इन पूंजीगत खर्च में रुचि सोया का अधिग्रहण भी शामिल था।" क्रेडिट एजेंसी ने आगे रेटिंग गिराने के कारण बताते हुए कहा कि पतंजलि की इस कंपनी में शेयर धारण संकेंद्रित हो रहा है और इसमें विविधतापूर्ण मंडल की कमी है, इस मंडल में रामभारत (रामदेव के भाई) और उनकी पत्नी ही शामिल हैं।"
बल्कि अक्टूबर, 2019 में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि बैंकों को स्व सहायता समूहों और धर्म गुरुओं के नेतृत्व वाली कंपनियों को कर्ज़ देने में हिचकिचाहट को ख़त्म करना चाहिए। इस टिप्पणी का इशारा पतंजलि को कर्ज़ देने वालों के लिए माना गया था।
क्या बैंकों को अपने निवेशकों और जमाकर्ताओं (आम जनता) की कीमत पर पतंजलि के पक्ष में बेतहाशा झुका हुआ समझौता करने पर मजबूर किया गया? यह वह सवाल हैं, जिनके कोई साफ़ जवाब नहीं हैं।
रुचि सोया FPO के पहले स्टॉक का प्रदर्शन
कहानी की दूसरी तरफ का पहलू बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में दोबारा दर्ज होने के बाद रुचि सोया के प्रदर्शन से जुड़ा है। मध्य नवंबर, 2019 में जब स्टॉक एक्सचेंज में रुचि सोया के शेयरों की खरीद-फरोख़्त रोक दी गई थी, और जनवरी, 2020 में इसके दोबारा शुरू होने के बीच, पतंजलि ने रुचि सोया में मौजूद छोटे निवेशकों को ख़त्म कर दिया और पतंजलि द्वारा अधिगृहित होने वाली कंपनी में अपनी हिस्सेदारी 98.9 फ़ीसदी कर ली। इसके साथ, अनोखे कदमों के जरिए पतंजलि कंपनी के मूल्य को बेतहाशा बढ़ाने में भी कामयाब रही।
19 दिसंबर, 2019 को जब प्रस्ताव योजना प्रभाव में आई, तब रुचि सोया का 98.9 फ़ीसदी मूल्य ख़त्म हो चुका था। इसका मतलब हुआ कि 14 नवंबर, 2019 को शेयरों के लेन-देन रुकने के वक़्त जिस कंपनी का मूल्य 66 करोड़ रुपये था, वह 20 दिसंबर, 2019 को सिर्फ़ 66 लाख रह गया।
अब एक अनोखा मोड़ आता है। एक महीने बाद 17 जनवरी 2020 को जब कंपनी के नए प्रयोजक पतंजलि ने रुचि सोया को 18.67 मिलियन प्राथमिक शेयर आवंटित करने का ऐलान किया, तब इसके हर एक शेयर की कीमत 7 रुपये रखी गई। उन्होंने यह आंकड़ा रुचि सोया के 26 हफ़्तों के औसत लेनदेन की कीमत के आधार पर निकाला; जबकि इस अवधि के बीच में एक वक़्त ऐसा आया, जब रुचि सोया के शेयरों का स्टॉक बाज़ार में लेनदेन पूरी तरह रुक गया था। इसका मतलब हुआ कि 20 दिसंबर 2019 को जिस कंपनी की कीमत 66 लाख मानी गई थी, अब वह बढ़कर 1300 करोड़ रुपये हो गई।
अब जब पतंजलि के पास रुचि सोया के 98.9 फ़ीसदी शेयर थे और सिर्फ़ 1.1 फ़ीसदी शेयर ही आमजन के बीच जारी किए गए थे, तब इसे स्टॉक बाज़ार में दोबारा सूचीबद्ध करवाया गया। इस बीच रुचि सोया की कीमतों में बहुत उछाल आया। 27 जनवरी को जब प्रति शेयर की कीमत 16.10 रुपये कीमत पर खोली गई, उसके बाद 9 जून 2021 को यह बढ़कर 1,377 रुपये हो गई।
FPO शुरू होने के एक दिन पहले रुचि सोया के स्टॉक की कीमत 897.45 रुपये पर ख़त्म हुई थी और 28 मार्च को जब FPO ख़त्म हुआ, तब यह कीमत प्रति शेयर 815.05 रुपये थी। इसका मतलब हुआ कि 9 जून, 2021 के बाद से स्टॉक की कीमत में 40.8 फ़ीसदी कमी आई है।
इस कीमत को कितना न्यायोचित ठहराएंगे? पिछली तिमाही में कंपनी द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक़, इसके प्रति शेयर की किताबी कीमत 148.82 रुपये है। इसका मतलब हुआ कि शेयरों की कीमत को बहुत ज़्यादा बढ़ी-चढ़ी थी, यह इस उद्योग और इसमें काम करने वाली कंपनियों की तुलना में बहुत ज़्यादा थी। क्या ऐसा बेहग तरल स्टॉक में शेयरों की कम आपूर्ति के चलते हुआ?
लेकिन इन्हीं कीमतों के दम पर रुचि सोया अपने FPO के लिए उच्च स्तर पर कीमत दर निश्चित कर पाई, जो 615-650 रुपये था। जब FPO आवंटन ख़त्म हो गया, तभी करीब़ 19 फ़ीसदी शेयर बाज़ार में आए, और इसके बाज़ार तंत्र के चलते इनकी असली कीमत सामने आई।
लेकिन तब तक जो पूंजी इकट्ठी की गई, उससे पतंजलि उस कर्ज़ को चुका देगी, जो उसने रुचि सोया के अधिग्रहण के लिए हासिल किया था। ढाई साल के छोटे से वक़्त में रामदेव की पतंजलि के हाथ में एक ऐसी कंपनी होगी, जिसका बाज़ार पूंजीकरण 25000 करोड़ रुपये से भी ज़्यादा है, जबकि इसके लिए पतंजलि ने व्यवहारिक तौर पर कोई निवेश नहीं किया और उसे राष्ट्रीय बैंकों से सहायता मिली, जिन्होंने इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अपने कर्ज़ों में बहुत घाटा उठाया। क्या यह "क्रॉनी कैपिटलिज़्म" का मामला नहीं है? हम यह पाठकों पर छोड़ते हैं।
SEBI का एक आदेश और कहानी में नया मोड
इस लेख को लिखते वक़्त, इस कहानी में नया मोड़ आ गया है। शुरुआत में ज़्यादा खरीदी के बाद, रुचि सोया FPO को लेने वालों की संख्या में बड़ी गिरावट आना शुरू हो गई है। ऐसा FPO के अंतिम दिन, 28 मार्च को SEBI द्वारा दिए गए एक आदेश के चलते हुआ है।
सेबी का आदेश कहता है, "FPO के संबंध में, विज्ञापन करने वाले अनचाहे एसएमएस, जो प्राथमिक तौर पर गलत बयानी/फर्जी दिखाई देते हैं," उनका प्रवाह किया गया। इसलिए सेबी ने आदेश देकर 28 मार्च से लेकर 30 मार्च तक तीन दिन की मियाद तय करवाई, जिसमें शेयर आवंटन के लिए बोलियों को वापिस किया जा सकेगा। सेबी ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि 29 और 30 मार्च को अख़बारों मे विज्ञापन निकलवाकर निवेशकों को अनचाहे और भ्रामक मोबाइल संदेशों के फैलाव के बारे में बताया जाए और अपनी बोली वापस लेने की प्रक्रिया समझाई जाए, साथ ही बोली हासिल करने वाले सभी आवेदकों के पास सीधे संदेश भेजकर उन्हें इस मियाद के बारे में सूचित किया जाए।
मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट बताती है कि "यह पहली बार नहीं है जब पतंजलि, सेबी के सामने समस्या में पड़ी है। अक्टूबर 2021 में योग गुरू और उनकी कंपनी को सेबी ने अस्पष्ट निवेश वायदों के खिलाफ़ चेतावनी दी थी। एक वायरल वीडियो में बाबा रामदेव अपने समर्थकों से कह रहे हैं कि अगर वे करोड़पति बनना चाहते हैं, तो रुचि सोया उद्योग के शेयर खरीदें।"
हालांकि रुचि सोया ने एक वक्तव्य जारी कर कहा है कि यह संदेश कंपनी या इसके किसी प्रायोजक या निदेशक ने जारी नहीं किए हैं। लेकिन सेबी के इस आदेश के चलते FPO वापसी शुरू हो गई है। मनी कंट्रोल के मुताबिक़, 29 मार्च को सुबह 11 बजकर 15 मिनट तक, खुदरा व्यक्तिगत निवेश कोटा की बोलियां, FPO की शुरुआत में इस वर्ग के लिए आवंटित संख्या की तुलना में गिरकर 0.4 गुना के स्तर पर आ गई हैं। इस बीच 1.23 करोड़ बोलियां वापस ले ली गई हैं। जबकि सेबी के आदेश के बाद हुई इस वापसी के पहले 28 मार्च को यह आंकड़ा 0.88 गुना था। वहीं योग्यता प्राप्त संस्थागत निवेशकों की संख्या, जो FPO के खात्मे के बाद शुरुआती प्रस्ताव की तुलना में 2.2 गुना पहुंच गई थी, वह घटकर 1.6 गुना के स्तर पर आ गई है। FPO की कुल खरीद दर 3.6 गुना से गिरकर 2.58 गुना पर आ गई है (यह आंकड़े शुरुआत में प्रस्तावित कोटा की तुलना में है, जैसा ऊपर भी बताया गया है।)
सीएनबीसी-टीवी-18 ने बताया कि कुल 4.95 करोड़ बोलियां वापस ले ली गई हैं। बाद में बीएसई की वेबसाइट ने FPO के लाइव अपडेट की संख्या को दिखाना बंद कर दिया, जबकि पिछले चार दिनों से हर तीन मिनट पर वेबसाइट आने वाली नई बोलियों की संख्या प्रसारित कर रही थी। 29 मार्च को व्यापार बंद होने के बाद, बीएसई की वेबसाइट पर सिर्फ़ 28 मार्च के आंकड़े ही दिखा रहा है।
यह देखा जाना बाकी है कि कितनी बोलियों को वापस लिया जाता है और किस दर पर आखिरकार FPO की खरीदी आकर ठहरती है।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
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