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बराक घाटी में हज़ार से अधिक मुस्लिम हुए बेघर
गाँव, जिसे अब 'अतिक्रमण' कहा जाने लगा है, जो असम के वन मंत्री का पैतृक घर है और यहां के लोगों को अब तक लगभग हर तरह का सरकारी लाभ मिलता रहा है - जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड और बिजली शामिल हैं।
ताहा अमीन मज़ुमदार
11 Jun 2019
Translated by महेश कुमार
Kashmir

जब से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 2014 में केंद्र में और 2016 में असम की सत्ता में आई है, तब से राज्य में ज्यादातर मामलों में मुसलमानों की आबादी वाले वन स्थित सीमांत गांवों में देश निकाला देने की लहर दौड़ रही है। अब तक यह देश निकाला अभियान ब्रह्मपुत्र घाटी तक ही सीमित था, जिसमें काजीरंगा वन्यजीव अभयारण्य में बेदखली को लेकर घटी कुख्यात घटना के कारण 2 लोग पुलिस की गोलीबारी में मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। इस बार, हालांकि, निष्कासन (देश निकाला) अभियान, कथित रूप से एक सांप्रदायिक एजेंडा द्वारा संचालित किया जा रहा है, अब यह असम के बंगाली बहुल क्षेत्र बराक घाटी तक पहुंच गया है। 7 जून को, 82 परिवारों के 1,000 से अधिक लोग इस देश निकाले में शामिल थे - सभी मुस्लिम थे – उन्हे हैविथंग रेंज के तहत रजनीखल वन के उस गांव से निकाला गया, जो असम के वन मंत्री परिमल सुखालाबैद्य के गृह निर्वाचन क्षेत्र खोलाई के अंदर आता है। जाहिर तौर पर सुखालाबैद्य का रजनीखल बेदखली के पीछे महत्वपूर्ण योगदान था क्योंकि उसने एक स्थानीय ऑटो चालक की हत्या के बाद गांव से मुस्लिम लोगों को बेदखल करने का आश्वासन दिया था, जिसमें कुछ रजनीखल निवासी कथित रूप से शामिल थे।

लोग बेदखली की गुप्त धमकी का इंतजार कर रहे थे

जब पूरे देश के मुसलमान 5 जून को ईद मना रहे थे, तब रजनीखल के 82 परिवार जो 50 से अधिक वर्षों से वहां रह रहे थे अब वे स्थायी रूप से अपने घर छोड़ने का इंतजार कर रहे थे। 5 जून की रात, ढोलई पुलिस थाना प्रभारी (OC), भार्गव बोरबोरा ने कथित तौर पर लगभग 10 बजे गाँव का दौरा किया और लोगों से कहा कि वे अपना सामान इकट्ठा करें और अगले दिन, अपने घरों को खाली कर दें ऐसा इसलिए भी किया गया ताकि बेदखली से पहले "इस अभियान के दौरान किसी को कोई चोट नहीं पहुंचे", दिलचस्प बात यह है कि पुलिस के पास बेदखली से पहले लोगों को चेतावनी देने के लिए न तो उनकी कोई ड्यूटी थी न ही उनके पास कोई अधिकार था। अगले दिन, ग्रामीणों को गांव से बेदखल हुए, अपने घरों को तोड़ते हुए देखा गया, और जो कुछ भी वे ले सकते थे, जैसे - रजाई, तकिए, जस्ती टिन, लकड़ी के दरवाजे, खिड़कियां, बिस्तर और खाट  - वे  ले गए जिनका इस्तेमाल वे कम से कम एक अस्थायी घर बनाने के लिए कर सकते थे। यह पूछे जाने पर कि वे बेदखली से पहले ही क्यों निकल रहे हैं, तो एक ग्रामीण ने कहा, "" ओसी साहब ने खुद आकर हमसे कहा कि अपना सामान निकाल ले। वे हमें धमका रहे थे। भाजपा के लोग, जिसमें स्थानीय जिला परिषद निर्वाचन क्षेत्र (ZPC) के सदस्य, शशांक पॉल भी शामिल हैं, ने हमें एक दिन पहले (4 जून) को बुलाया और कहा कि 7तारीख को बेदखली होना निश्चित है।

Eviction 1.JPG

"ओसी साहब ने हमें यह भी कहा कि हम अपना सारा सामान लेकर गाँव से चले जाएँ क्योंकि वे कल (7 वें दिन) आएंगे और यहाँ सब कुछ को तबाह कर देंगे। इस कारण लोग चिंतित हो गए, और अब जो कुछ भी वे ले जा सकते  हैं, उसे ले जा रहे है, " एक ग्रामीण ने कहा।

हालांकि 'अतिक्रमण करने वालों' के पास वोटर आई कार्ड, पैन, राशन कार्ड, बिजली और सरकार द्वारा आवंटित घर हैं

ग्रामीणों को 21 मई को गांव से बेदखली का एक नोटिस दिया गया था, जिसे बाद में बढ़ा कर 7 जून कर दिया गया था। भारी बारिश के बीच,निष्कासन अभियान लगभग 9 घंटे तक जारी रहा, सुबह 6 बजे से दोपहर 3 बजे तक। ढोलई फारेस्ट रेंजर मुजुबीर रहमान चौधरी ने कथित तौर पर मीडिया को बताया कि 11 हाथियों और 3 उत्खनन करने वालों का इस्तेमाल गाँव को ढहाने के लिए किया गया था, जबकि उन्हें "अतिक्रमणकारियों" से किसी भी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा, जो बेदखली को दिलचस्प बनाता है - क्योंकि वे, कथित तौर पर पुलिस और स्थानीय भाजपा नेताओं की मिलीभगत से पहले ही गाँव को खाली करना सुनिश्चित कर लिया गया था जब उन्होंने अपना विध्वंस अभियान शुरू किया।

रजनीखाल बेदखली अभियान का एक और दिलचस्प पहलू यह था कि भले ही ग्रामीणों को "अतिक्रमणकारी" कहा जा रहा था, उन्हें अब तक लगभग हर सरकारी लाभ मिल रहा था - जिसमें वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड, बिजली, मकान, जो कि प्रधानमंत्री ग्राम आवास योजना के तहत मिले थे, शामिल हैं। जिसे इंदिरा आवास योजना के नाम से भी जाना जाता है। निष्कासन के बाद का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें लाउडस्पीकर के साथ एक बूढ़े व्यक्ति को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वन मंत्री ने उन्हें बीज बोने और पेड़ उगाने के लिए कहा था, जो उन्होंने किया था, और इसके बावजूद उन्हें वहाँ से निकाला जा रहा है। उस  भूमि से जहां वे पीढ़ियों से रह रहे हैं।

बेदखली अभियान और एक हिंदु व्यक्ति द्वारा मुस्लिम लोगों को शरण देना

कृष्ण प्रसाद कोइरी, जो गाँव में एक कानूनी पैतृक भूमि पट्टे पर रहने वाले एकमात्र व्यक्ति हैं, इस पूरे मामले से बहुत परेशान थे। 6 जून को, जब रजनीखल निवासी अपने घरों को खाली कर रहे थे, कोइरी ने अपने घर को ध्वस्त घरों के बगल में दिखाते हुए कहा कि यह "मेरा घर खड़ा है,और यहाँ उनके घर हैं। हम लंबे समय से एक साथ रहते रहे हैं। अब जब ये लोग मुसीबत में हैं, तो क्या मुझे इन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए?”

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बेदखली के दिन, कई लोग कोइरी के घर पर शरण लेते देखे गए, जबकि अन्य पास के घरों को एक हाथी द्वारा ध्वस्त किया जा रहा था। लोग रो रहे थे, खासकर महिलाएं और बच्चे। सलेहा बेगम, जिनके घर को इस संवाददाता के मौके पर पहुंचने से पहले ही तोड़ दिया गया था, ने रोते हुए कहा, "हमारे पास अब कोई घर नहीं बचा है। इसीलिए हम पट्टा की जमीन (कोइरी की जमीन) पर खड़े हैं। हम इस भूमि पर पिछले 50 वर्षों से रह रहे है। उन्होंने हमें कार्ड दिए, बिजली प्रदान की। सरकार ने हमें सब कुछ दिया, लेकिन अब हम सुबह से बच्चों के साथ यहां फंसे हुए हैं, खुद के लिए खाने या बच्चों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है।" बेगम का 5 साल का लड़का भी रो रहा था, जबकि बारिश में उनके आँसू भी बह गए थे।

पिछले पांच दशकों में 82 परिवारों ने जो कुछ भी हासिल किया था, उसे इस गांव के विध्वंस ने नष्ट कर दिया। कुछ वन कर्मचारियों को इलेक्ट्रिक-आरी के साथ सुपारी के पेड़ काटते देखा गया। बेदखली ने क्षेत्र की एकमात्र मस्जिद और एक प्राथमिक विद्यालय की इमारत को भी नष्ट कर दिया। लोग जोर-जोर से रो रहे थे, कह रहे थे, "उन्होंने हमारी मस्जिद को भी नहीं बख्शा। अल्लाह यह सब देख रहा है।" यह पूछने पर कि वे मस्जिद पर क्यों रो रहे थे, जबकि अब कोई भी गाँव में रहने वाला नहीं है, तो एक उत्तेजित गाँव की महिला ने कहा, "आज शुक्रवार है,हमारे लोग, बच्चे आज मस्जिद में शुक्रवार की नमाज अदा करने वाले थे। उन्हें बख्शा जा सकता था।" कम से कम मस्जिद को तो बख्श सकते थे।"

भूमिका : एक मौत के बाद बेदखली की मांग हिंदु जागरण मंच ने की थी

हालांकि वन विभाग का नोटिस स्पष्ट रूप से बेदखली अभियान से संबंधित किसी भी पूर्व घटना का उल्लेख नहीं करता है, यह इस क्षेत्र में एक ज्ञात तथ्य है कि बेदखली अभियान वास्तव में एक ऑटो-रिक्शा चालक, रूपम पॉल, की हत्या का बदला लेने के लिए किया गया था। पास के भानी भूरा क्षेत्र के निवासी पॉल का कथित तौर पर 2 अगस्त, 2018 को अपहरण कर लिया गया था, जबकि उसका शव बाद में 15 अगस्त को करीमगंज जिले के राक्कृष्णनगर शहर से सटे नाया तिलह इलाके के जंगल में मिला था। फिर ढोलई ओसी भास्करज्योति दास और उनकी टीम ने 40 साल के अकबर अली और उनकी पत्नी रेना बेगम को 4 अन्य लोगों के साथ 15 अगस्त को रजनीखल से गिरफ्तार कर लिया था। अकबर अली रजनीखल में अपने ससुर के घर पर पॉल की हत्या करने के बाद कथित तौर पर छिप गया था।

इस घटना से क्षेत्र में हड़कंप मच गया, और हिंदू जागरण मंच (HJM) नामक एक समूह ने 16 अगस्त को सिलचर-आइजॉल मार्ग को लगभग 10घंटे तक अवरुद्ध कर दिया था, जिसमें एक हजार से अधिक स्थानीय लोगों की भागीदारी थी। हिंदू जागरण मंच (HJM) ने दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की, और मृतक पॉल के परिवार के लिए सरकारी मुआवजे और रजनीखल के ग्रामीणों के दस्तावेजों के सत्यापन के साथ-साथ उनके क्षेत्र से निष्कासन की मांग की। बाद में उसी दिन, वन मंत्री-सह-ढोलई निर्वाचन क्षेत्र के विधायक सुक्लाबैद्य, कछार जिला कलेक्टर एस.  लक्ष्मणन और दक्षिणी असम पुलिस के डीआईजी देवराज उपाध्याय कथित तौर पर घटनास्थल पर पहुंचे और आंदोलनकारियों को हत्यारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आश्वासन दिया। अंत में, आंदोलनकारियों ने अपनी नाकाबंदी को खत्म कर दिया और पॉल के शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया गया। तब ढोलई पुलिस स्टेशन के ओसी दास और उनकी लगभग पूरी टीम को निलंबित कर दिया गया था और बाद में उन्हे अन्य स्टेशनों पर स्थानांतरित कर दिया गया था। दास वर्तमान में बारपेटा जिले में तैनात हैं।

रजनीखल के ग्रामीणों ने कथित तौर पर अपने गांव की छवि को साफ करने के लिए हत्यारों के घरों में आग लगा दी, लेकिन अंततः उन्हें उसी दोष का बोझ उठाना पड़ा और अपने गांव को खाली करना पड़ा। अंत में लगभग 10 महीने के बाद, वन विभाग से हरी झंडी मिलने के बाद,ढोलई रेंजर मुजीबुर रहमान चौधरी के नेतृत्व में एक टीम ने वन गांव में 82 घरों की पहचान करने के लिए ड्रोन तैनात किए और 21 मार्च, 2019को धारा 72 (C) असम वन विनियमन, 1891 के तहत उन्हें नोटिस दिए गए।

षड्यंत्र की कहानी और आगे के खतरे

जबकि व्यापक रूप से इस क्षेत्र के बारे में यह जाना जाता है कि रूपम पॉल के हत्यारे को रजनीखल वन गांव से काट दिया गया था, एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर इस संवाददाता को बताया कि पॉल के पास पहले से ही एक जमीन के मालिक को लेकर उसके चचेरे भाइयों के साथ झगड़ा था और , हालांकि अकबर अली और अपराध में साझेदारों ने पॉल को मार डाला, यह वास्तव में चचेरे भाई थे जिन्होंने पॉल को मारने के लिए अली को काम पर रखा था। जब इस संवाददाता ने पॉल के घर का पता लगाने की कोशिश की और कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं के पास पहुंचे, तो उन्होंने कहा, "आप हमसे क्यों पूछ रहे हैं? आप मामले के बारे में पुलिस से क्यों नहीं पूछते?" उल्लेखनीय बात यह है कि पॉल के शव की बरामदगी और हत्यारों को पकड़ने के तुरंत बाद ओसी भास्करज्योति दास और उनकी पूरी टीम को निलंबित कर दिया गया था। बड़ा सवाल अटका हुआ है: कि ऐसा क्यों किया गया? जबकि उन्होंने 14 दिनों के भीतर ही मामले को सुलझा लिया था। फिर उन्हें निलंबित और स्थानांतरित क्यों किया गया? इस सवाल का अभी तक किसी के पास कोई जवाब नहीं है।

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राजनिखल बेदखली का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह था कि यह एक शुद्ध रूप से मुस्लिम गांव था। पास के हातिमारा गाँव - जिसमें मुसलमानों,हिंदुओं और ईसाइयों की मिश्रित आबादी है - को कोई निष्कासन नोटिस नहीं मिला था। हालाँकि, हातिमारा वन गाँव के मुस्लिम निवासी अब लगातार डर में जी रहे हैं कि उन्हें भी किसी भी दिन बेदखली का नोटिस मिल सकता है। इन सबके बीच, एक फ़ॉरेस्ट गार्ड ने नाम न छापने की शर्त पर, इस संवाददाता से कहा कि जल्द ही कुछ समय बाद बेदखली के और अभियान चल सकते हैं। संयोग से, ढोलई निर्वाचन क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक मुस्लिम आबादी वाले वन गांव हैं, और अधिकांश ग्रामीणों को डर है कि वे अगला लक्ष्य हो सकते हैं।

इस बीच, घाटी के दूसरे हिस्से, हेलाकांडी जिले के दक्षिणी वन क्षेत्रों में अफवाह फैल गई है कि वन विभाग द्वारा दो सूची तैयार की जा रही हैं,जिसमें कुछ वनवासियों को ग्रामीणों के रूप में और कुछ को घुसपैठियों या अतिक्रमणकारियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। दक्षिणी हैलाकांडी रेंज में ज्यादातर मुस्लिम आबादी वाले वन गाँव हैं, और यही वजह है कि अफवाहों ने उन्हें एक आसान शिकार बना दिया है।

हालांकि अभी किसी भी षड्यंत्र की कहानी का कोई ठोस आधार नहीं है, केवल समय ही बताएगा कि असम के बराक घाटी क्षेत्र में वनवासियों,विशेषकर जंगलों के अंदर रहने वाले मुसलमानों के लिए क्या छिपा है। कुछ समय बाद, रजनीखल के बेदखल मुस्लिम ग्रामीणों को एक नया पता मिल सकता है, लेकिन कोई भी अब यह सत्यापित नहीं कर सकता है कि क्या उन्हें बांग्लादेशियों के रूप में भी टैग किया जाएगा, क्योंकि वे अब अपने पते खो चुके हैं और नागरिकता उर्फ एनआरसी अधिकारियों के राष्ट्रीय रजिस्टर उन्हे संदेह की स्थिति में नोटिस दे सकते हैं, लेकिन नोटिस लेने के लिए अब रजनीखल में कोई भी नही मिलेगा।

(लेखक असम में एक स्वतंत्र कन्टेन्ट मैनज्मन्ट कन्सल्टन्ट हैं।)

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