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बुंदेलखंड सूखा: तालाबों, कुओं को पुनर्जीवित करने के लिए बांदा के ग्रामीण कर रहे कड़ी मेहनत

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाक़े के बांदा ज़िले में कुआं तालाब जियाओ अभियान के तहत भूजल स्तर को बेहतर करने और जल संरक्षण के लिए लोग निरंतर जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित कर रहे हैं।
बुंदेलखंड सूखा

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाक़े के सूखाग्रस्त बांदा ज़िले के निवासी उमा शंकर सिंह न सिर्फ अपने खेतों की सिंचाई के लिए बल्कि बुरे वक़्त के लिए जल को संरक्षित करने के लिए बारिश का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं।

बांदा के नरैनी गांव के निवासी उमा शंकर और इनके पड़ोसियों ने अपने इलाक़े में तालाबों और कुओं की मरम्मत करने और खोदने का काम शुरू कर दिया है ताकि गर्मी के दिनों में भूजल का स्तर बेहतर रह सके और पानी के संकट को दूर किया जा सके।

शंकर का कहना है कि वह अपने इलाक़े में तालाबों और कुओं को खोदने के लिए हर रोज़ सुबह 4 से 4.30 बजे के बीच उठते हैं और अपने दोस्तोंपड़ोसियों और बच्चों के साथ खुदाई के काम में लग जाते हैं।

बांदा के लगभग सभी गांवों में कुदाल और अन्य कृषि उपकरणों से लोगों को सुबह और शाम के वक़्त खुदाई करते हुए देखना एक आम बात हो गई हैं क्योंकि ये लोग ज़िला प्रशासन द्वारा शुरू की गई मुहिम 'कुआं तालाब जियाओ अभियानद्वारा प्रेरित हुए हैं।

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इस मुहिम का उद्देश्य खुदाईसफ़ाई और अन्य प्रयासों से इलाक़े के कुआंतालाब जैसे जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करना है। अब सरकार भी कुछ गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओके साथ इस मुहिम में शामिल हो गई है। लेकिन 471 ग्राम पंचायतों के ग्रामीण इस मुहिम के लिए दिन-रात काम करके कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

Well trenching in Banda. by Saurabh Sharma.jpeg

बुंदेलखंड क्षेत्र के अंतर्गत बांदा ज़िला सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों में से एक रहा है। यहाँ पिछले कई दशकों में गंभीर स्तर पर सूखे या सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हुई है और निरंतर तापमान में वृद्धि का साक्षी रहा है।

हालांकि विशेष बुंदेलखंड पैकेज के हिस्से के रूप में इस ज़िले को कई करोड़ रुपये मिलते रहे हैं। ये पैकेज 2009 में तत्कालीन कैबिनेट द्वारा पारित किया गया था लेकिन इस सूखे क्षेत्र के लोगों को राहत देने के लिए शायद ही कुछ किया गया हो।

वर्तमान वित्तीय वर्ष में बांदा ज़िले को बुंदेलखंड पैकेज से 130.20 करोड़ रुपये का पैकेज मिला है और 313 बांधों के निर्माण के लिए 21.73 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। इस ज़िले को राज्य कोष से 100.55 करोड़ रुपये भी मिले हैंजिसमें से 22.42 करोड़ रुपये ज़िला प्रशासन द्वारा विभिन्न कार्यों पर ख़र्च किए गए।

जल संरक्षण को लेकर सक्रिय एक्टिविस्ट राजेंद्र सिंह, जिन्हें "भारत के जलपुरूषके रूप में जाना जाता हैवे कहते हैं, "जल संरक्षण समय की आवश्यकता है और पुराने जल स्त्रोतों का जिर्णोद्धार करना सबसे अच्छी बात है जो प्राथमिक स्तर पर किया जा सकता है। इसे वर्षों पहले शुरू किया जाना चाहिए था लेकिन अभी भी देर नहीं हुई। ग्रामीणों के इस तरह के प्रयासों से भूजल के स्तर को बरक़रार रखने में मदद मिलेगी और बुंदेलखंड के खोए हुए गौरव को वापस लाने में भी मदद मिलेगी।”

बुंदेलखंड के रहने वाले एक्टिविस्ट आशीष सागर कहते हैं, "इस मुहिम में बड़ी संख्या में लोगों को भाग लेते देखना अच्छा लगता है लेकिन अवैध रेत खननउद्योगों और अन्य तंत्रों द्वारा भूजल के बेजा इस्तेमाल पर रोक लगाने की आवश्यकता है। प्रशासन को उन तालाबों को भी वापस लेने के लिए काम करना चाहिए जिन पर माफ़ियाओं द्वारा क़ब्ज़ा कर लिया गया है।"

ज़िला प्रशासन के अनुमान के अनुसार बांदा कम से कम 3.9 किलोलीटर पानी बचाने में सक्षम होगाजबकि ज़मीन में 11,001 लीटर पानी रिसने की भी उम्मीद है जो पृथ्वी के क्रस्ट के नीचे जलीय चट्टानी परत में पानी का स्तर बरक़रार रखने में मदद करेगा और मिट्टी की नमी बनाए रखने में भी मदद करेगा।

बांदा में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसारएक समय में चट्टानी उपजाऊ मैदान कुओं और तालाबों के मामले में काफ़ी समृद्ध था और यहाँ 7,508 कुएं हैं जिनमें से 3,223 अभी भी मौजूद हैं जबकि बाक़ी या तो सूख चुके हैं या कचरा डालने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं। 2,292 तालाब भी थे लेकिन अब केवल 1,193ही बचे हैं क्योंकि इनमें से ज़्यादातर तालाब पर माफ़ियाओं ने क़ब्ज़ा कर लिया है।

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बांदा के भूजल संसाधन विभाग के आंकड़ों के अनुसारवर्ष 2016 में बांदा में औसत वर्षा 1,236 मिमी थी जबकि भूजल स्तर औसतन 7.45 से 8.85 मिमी तक नीचे चला गया।

इस मुहिम के अगुआ बांदा के ज़िला मजिस्ट्रेट हीरा लाल का कहना है कि जल स्त्रोतों के पुनरुद्धार के लिए सभी 471 ग्राम पंचायत तक पहुंचने का लक्ष्य 15 जुलाई निर्धारित किया गया है और इस लक्ष्य को काफ़ी हद तक हासिल कर लिया जाएगा।

ज़िला मजिस्ट्रेट ने कहा, ''मैंने केवल यही किया है कि आने वाली पीढ़ियों में काम करने का जोश पैदा कर दिया जाए। सूखे की स्थिति आने वाले दिनों में बढ़ सकती है या नहीं बढ़ सकती है और हमें कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए संसाधनों के साथ तैयार रहना चाहिए। जो काम ग्रामीण कर रहे हैं उससे उन्हें भविष्य में मदद मिलेगी। उनकी ज़्यादा मदद करने के लिए मैंने हर एक गांव में कम से कम एक तालाब खोदने का आदेश दिया है और इसके लिए नरेगा से राशि का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे ग्रामीणों और प्रशासन दोनों के लिए बेहतर परिणाम होंगे।"

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