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भारत गंभीर जल संकट की श्रेणी में, 189 देशों में 13वां स्थान

एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक भारत और पाकिस्तान समेत 17 देश अत्यधिक जलसंकट वाली श्रेणी में पहुंच चुके हैं। भारत में भी चेन्नई और दिल्ली पर बहुत अधिक ख़तरा है।
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Image Courtesy: Firstpost

जहां एक ओर देश के कई इलाके भारी बारिश के कारण बाढ़ से त्रस्त हैं, तो वहीं दूसरी ओर देश विकराल सूखे की समस्या से भी ग्रस्त है। दुनिया में गहराते जा रहे जल संकट पर जारी एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक भारत और पाकिस्तान समेत 17 देश अत्यधिक जल संकट वाली श्रेणी में पहुंच चुके हैं। विश्व संसाधन संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट एक्वेडक्ट वॉटर रिस्क एटलस में जलसंकट, सूखा और नदियों में बाढ़ के खतरे के आधार पर 189 देशों और उनके प्रांतों-राज्यों की रैंकिंग बनाई गई है। इसमें भारत 13वें पायदान पर है। इसके अनुसार भारत समेत 17 देश खतरनाक स्थिति में खड़े हैं, जिनमें दुनिया की एक चौथाई आबादी रहती है। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर भारत में भूजल स्तर में अत्यंत कमी आई है।

बता दें कि भारत में कुछ स्थानों पर आपदा पहले ही आ चुकी है। देश के छठे सबसे बड़े शहर चेन्नई में पैदा हुए जल सकंट ने आने वाले समय की गंभीर चुनौती से पहले ही आगाह कर दिया है। लेकिन अभी देश के कई हिस्सों में ऐसी ही स्थिति है। रिपोर्ट में भारत के पूर्व जल संसाधन सचिव शशि शेखर के हवाले से कहा गया है कि वर्षा, सतह और भूजल के विश्वसनीय आंकड़ों की मदद से भारत भविष्य के लिए रणनीति बना सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 17 अधिक संकट वाले देशों में कृषि, उद्योग और नगरीय निकायों में सालाना औसतन 80 फीसदी सतही और भूजल का दोहन हो रहा है। विश्व संसाधन संस्था के अध्यक्ष एंड्रू स्टीर का कहना है कि जल संकट सबसे बड़ा खतरा है। इसके परिणाम खाद्य सुरक्षा, मानवीय संघर्ष, पलायन और वित्तीय अस्थिरता के रूप में हम देख सकते हैं।

एक्वेडक्ट वॉटर रिस्क एटलस -इन देशों में स्थिति बेहद चिंताजनक

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जिन शहरों पर खतरा मंडरा रहा है...

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नीति आयोग ने भी चेताया

गौरतलब है कि नीति आयोग की 2018 की रिपोर्ट में भी 2020 तक कई शहरों में पानी के संकट को लेकर चेताया गया है। अगले एक साल में देश के 21 प्रमुख शहरों में ज़मीन के नीचे का पानी ख़त्म हो जाएगा।

देश में अधिकतर जलाशय सूख चुके हैं, गांवों के तलाब-पोखर खत्म हो गए हैं। जल रिसाव की जगहें विकास कार्य की भेंट चढ़ चुकी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जल संकट को दूर करने के लिए सिर्फ़ मानसून पर ही निर्भर रहना काफ़ी होगा? जल प्रबंधन के लिए सरकारी और निजी प्रयास कितने कारगर रहे हैं?

सरकार इस खतरे को जानती है, शायद इसलिए आनन-फानन में मीशन मोड में काम करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय का गठन भी किया गया है। नीति आयोग ने हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में बताया है कि क़रीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। क़रीब दो लाख लोग साफ़ पानी न मिलने के कारण हर साल जान गँवा देते हैं। यानी 2050 तक की स्थिति की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

देश के बड़े शहरों में संकट

भारत में पानी की समस्या  दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। बुनियादी ढाँचा अपर्याप्त है, ऐसे में तेज़ी से शहरीकरण का मतलब है कि अधिकांश शहर अतिरिक्त आबादी के भार को झेलने के लिए तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि कई शहरों में स्थिति बदतर होने वाली है। नीति आयोग ने जिन शहरों में पानी का जल स्तर ख़त्म होने की ओर इशारा किया है उनमें शामिल हैं- नई दिल्ली, गुरुग्राम, अमृतसर, जालंधर, पटियाला, मोहाली,लुधियाना, यमुना नगर, गाज़ियाबाद, आगरा, जयपुर, रतलाम, इंदौर, गाँधीनगर, अजमेर, जोधपुर, बिकानेर, हैदराबाद, वेल्लोर, बेंगलुरु और चेन्नई।

बता दें कि, नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह संकट आगे और गंभीर होने जा रहा है और 2030 तक देश में पानी की माँग दोगुनी हो जाएगी। यानी इस हिसाब से तो 2050 तक स्थिति बद से बदतर ही होगी। भारत एक दशक से भी कम समय में दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन से आगे निकल जाएगा और संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2050 तक इसमें 41.6 करोड़ लोग नये शहरी निवासी बन जाएँगे।

नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया कि देश की जल आपूर्ति 40 फ़ीसदी ज़मीन के नीचे के पानी पर निर्भर है। ज़मीन के नीचे का पानी वर्षों से लगातार घटता जा रहा है। ऐसी ही सूखे की स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में जल संसाधन प्रबंधन के लिए जल शक्ति मंत्रालय बनाया और चुनावी अभियान में इस बात पर ज़ोर दिया कि 2024 तक हर ग्रामीण परिवार तक नल का पानी पहुँचा दिया जाएगा। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि ये मिशन पूरा कैसे होगा।

स्वच्छ यानी साफ़ पानी की तो बात ही छोड़िए, पूरे देश के ग्रामीण इलाक़ों में 80 फ़ीसदी से ज़्यादा परिवारों के लिए नल का कनेक्शन ही नहीं है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में तो सिर्फ़ एक और दो फ़ीसदी परिवारों में ही नल कनेक्शन हैं। हैं। अंग्रेज़ी अख़बार इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने नल कनेक्शन के लिए अप्रैल 2009 में एनआरडीडब्ल्यूपी लॉन्च किया था। एनआरडीडब्ल्यूपी पर सीएजी की रिपोर्ट थी कि 2017 तक 35% ग्रामीण परिवारों को नल कनेक्शन देना था, लेकिन वास्तव में 2018-19 में अभी तक मुश्किल से 18.3% ग्रामीण परिवारों को ही नल कनेक्शन दिया जा सका है। रिपोर्ट में बताया गया है कि हर साल नए कनेक्शनों की संख्या में गिरावट आई है। 2014-15 में 17 लाख से अधिक नए कनेक्शन दिए गए थे। 2017-18 में यह कम होकर सिर्फ़ 6.3 लाख नए कनेक्शन तक पहुँच गया और 2018-19 में 9.7 लाख नये कनेक्शन दिये गये।

सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2012 से 2017 के बीच इस कार्यक्रम पर 81,168 करोड़ रुपये ख़र्च किए गए थे और फिर भी यह मुश्किल से आधा लक्ष्य हासिल कर सका। आज़ादी के बाद से ग्रामीण भारत को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत 2.4 लाख करोड़ रुपये ख़र्च किये गये। फिर भी 80% से अधिक ग्रामीण घरों में नल का कनेक्शन नहीं है।

जलाशयों में पानी कम

देश के केंद्रीय जल आयोग ने पिछले महीने ही कहा था कि पानी सप्लाई के दूसरे स्रोत भी सूखते चले जा रहे हैं और देश के क़रीब दो-तिहाई जलाशयों में पानी सामान्य जल स्तर से नीचे चला गया है।

देश में वर्षा के पानी का हम केवल 8 प्रतिशत हिस्सा ही संचय कर पाते हैं। हमारी मांग और आपूर्ति में भी एक बड़ा अंतर है। ऐसे में केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट है कि राष्ट्रीय स्तर पर जिन 91 बेसिन और जलाशयों की निगरानी की जाती है उसमें इतना पानी भी नहीं बचा है कि खेती,बिजली उत्पादन या पीने के लिए उपयोग में लिया जा सके। फ़िलहाल पूरे देश में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में काफ़ी कम पानी बचा है और यह इसी दौरान पिछले 10 वर्षों के औसत भंडारण से भी कम है। आयोग ने 20 जून तक के आँकड़े दिए हैं। इसमें तेलंगाना में जलाशय सामान्य से 36% नीचे थे, आंध्र प्रदेश में 83%, कर्नाटक में 23%, तमिलनाडु में 43% और केरल में 38% नीचे थे।

देश में यदि जल संकट पर सरकारी रिपोर्टों पर ही नज़र डालें तो ये बात साफ हो जाती है कि पानी के संकट और सरकार की तैयारी पर स्थिति सुधरती नहीं दिखती है। इन रिपोर्टों से तो यही लगता है कि 2030 तक तो पूरे देश में स्थिति संभले नहीं संभलेगी, 2050 की तो बात ही छोड़िए, बदुत जल्द ये समस्या पूरे देश को जकड़ने वाली है।

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