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भारत में आईएलओ की 'उच्च वेतन बढ़ोतरी' वास्तविक आंकड़ों पर नहीं, बल्कि अनुमान पर आधारित है

यह दावा कि भारतीय वास्तविक मजदूरी प्रति वर्ष 5.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, वह पुराने एनएसएसओ डेटा, फैक्ट्री डेटा और काफी सारी "मॉडलिंग" के घाल-मेल पर आधारित है।
unorganised sector workers

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की प्रमुख रिपोर्टों में से एक – वैश्विक वेतन रपट 2018-19 – को हाल ही में जारी किया गया है उसमें कहा गया है कि मुद्रास्फीति के समायोजन के बाद भारतीय श्रमिकों की मजदूरी प्रति वर्ष 5.5 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी की तरफ गई है। यह इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा मजदूरी में वृद्धि थी, और चीन को छोड़कर प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा। मुख्यधारा का मीडिया इस अच्छी खबर पर पीठ थपथपाने  और इसके लिए उत्सव मनाने में शामिल हो गया।

ट्रेड यूनियन और उसके कार्यकर्ता - और निश्चित रूप से, मज़दूर खुद - इस झूठे दावे से परेशान और हैरान हैं। मज़दूरों का रोजमर्रा का अनुभव निरंतर इसके विपरीत है क्योंकि मुद्रास्फीति के दबाव से उनके वेतन लगभग स्थिर हो गए हैं। वे मजदूरी बढ़ाने की लड़़ाई सरकार के साथ लड़ रहे हैं, सरकार ने इसे मानने से इंकार कर दिया था। तो, आईएलओ कैसे कह रहा है कि मजदूरी  इतनी जोरदार दर से बढ़ रही है?

सबसे पहले, आइए वैश्विक वेतन रपट क्या कहती है इस पर गौर करें-

1. परिशिष्ट II, तालिका ए 1 (पृष्ठ 113) में दिए गए इससे संबंधित नाममात्र मजदूरी (मुद्रास्फीति में समायोजित मजदूरी) वाले देशों की एक सूची में, भारत की मासिक मजदूरी 2013 में 9,194 रुपये, 2014 के लिए 10,093 रुपये, 2015 के लिए 10,885 और 2016 के लिए 11,674 रुपये है।

ये उच्च स्तर के वेतन जैसे प्रतीत होते हैं, क्योंकि ज्यादातर राज्यों में अनुसूचित रोजगार के लिए न्यूनतम मजदूरी 10,000 रुपये से भी कम है। आप परेशान इसलिए हो रहे हैं कि ये आंकड़े सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा किए गए वार्षिक सर्वेक्षण उद्योग (एएसआई) से हैं। एएसआई केवल कारखाने के क्षेत्र को कवर करता है, यानी कारखाना अधिनियम के तहत कवर इकाइयां। यह सभी संगठित क्षेत्र है, ज्यादातर बड़ी औद्योगिक इकाइयां हैं। कृषि श्रमिकों और अन्य सभी असंगठित क्षेत्र के श्रमिक इसमें शामिल नहीं हैं, जो भारत की श्रम शक्ति का 90 प्रतिशत से अधिक हैं।

इस तथ्य की पुष्टि आईएलओ में वेतन विशेषज्ञ, जेवियर एस्टुपियन ने की थी, जिनसे न्यूज़क्लिक ने रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद संपर्क किया था।

2. इसके बाद, उसी तालिका में अपने वास्तविक मजदूरी अनुभाग में वैश्विक वेतन रपट 2013 में 5.2 प्रतिशत के रूप में भारत के लिए वास्तविक मजदूरी की विकास की दर, 2014 में 5.7 प्रतिशत और 2015 में 5.4 प्रतिशत (पृष्ठ 118 देखें) दर्ज़ करता है। कुछ पेज बाद (पी.122) में, एक चार्ट दिया जाता है जो 2008 से 2017 तक वास्तविक मजदूरी वृद्धि दर दिखाता है जहां इस अवधि में भारत की असली मजदूरी वृद्धि 5.5 प्रतिशत  औसत के रूप में दिखायी गयी है।

यह वह जगह है जहां आईएलओ ने आँकड़ों में कुछ रचनात्मक प्रोसेसिंग की है।

न्यूजक्लिक ने आईएलओ से पूछा कि यह आंकड़ा कहां से आया और उन्होंने वर्षों में वास्तविक मजदूरी के विकास को कैसे विकसित किया।

एस्टुपियन ने इस तरह से जवाब दिया: "2015 तक तालिका ए 1 पी.118 में दिखाया ग असली मजदूरी वृद्धि मॉडलिंग के माध्यम से अनुमानित है, जिसे हम पहले से ही हमारी पिछली वैश्विक मजदूरी रिपोर्ट में प्रकाशित कर चुके हैं"

इसलिए, यह श्रम ब्यूरो या केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) जैसी किसी एजेंसी की सर्वेक्षण या रिपोर्ट द्वारा एकत्रित डेटा नहीं है। यह गणितीय मॉडलिंग है जिसने प्रशंसनीय विकास दर को पैदा किया है।

विभिन्न वर्षों के लिए डेटा प्रोजेक्ट करने के लिए वे 'मॉडल' का उपयोग कैसे करते हैं? एस्टुपियन बताते हैं कि, "श्रम मंत्रालय के साथ हमारी चर्चा के अनुसार, पृष्ठ 122 पर चार्ट में दिखाए गए वास्तविक मजदूरी वृद्धि एनएसएसओ के मौजूद डेटा का उपयोग करते है, और एक मॉडल जो एएसआई सूचना का उपयोग करता है, की सहायता से छूटे हुए वर्षों में आँकड़ों को भरते हैं।"

इसलिए यह अब आपके सामने साफ है। भारत के श्रम मंत्रालय के परामर्श से, आईएलओ ने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) डेटा का उपयोग किया है - जो कि 2011-12 के लिए आखिरी बार उपलब्ध था - और एक अज्ञात 'मॉडल' का उपयोग करके उसे वहां से निकाला गया है जो एएसआई सूचना का उपयोग करता है। याद रखें - एएसआई केवल संगठित विनिर्माण क्षेत्र को कवर करता है, जबकि एनएसएसओ में हर तरह के सभी श्रमिक शामिल होते हैं। एएसआई उद्यमों में किया गया एक सर्वेक्षण है जबकि एनएसएसओ घरेलू सर्वेक्षण है। श्रम मंत्रालय के रचनात्मक मार्गदर्शन के तहत, आईएलओ ने इसका उपयोग समय-श्रृंखला (और एक ग्राफ) बनाने के लिए किया है जो मजदूरी में 5.5 प्रतिशत की स्वस्थ वास्तविक वृद्धि दर दिखाता है।

ध्यान दें कि अपनी रपट में, इनमें से कोई भी स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। जब आईएलओ से पूछा गया तो उन्हें न्यूज़क्लिक को बताया।

भारत के आँकड़ों पर आईएलओ की चेतावनी

लेकिन, निष्पक्ष रुप से, आईएलओ ने पहले ही भारतीय मजदूरी आँकड़ों से सम्बंधित कुछ मुद्दों को उठाया था। इस वर्ष अगस्त में जारी भारत की मजदूरी रपट में, पृष्ठ xvii पर, इस चेतावनी को बाकायदा लिखा गया है, "न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए, सामूहिक सौदा करने और पर्याप्त श्रम बाजार नीतियों के विकास के लिए साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण के लिए अच्छे और भरोसेमंद राष्ट्रीय आँकड़े के नियमित उत्पादन की आवश्यकता होती है रोज़गार, मजदूरी, उत्पादकता और घंटों पर काम किया जाता है, जिसके आधार पर नीति निर्माता सही निर्णय ले सकते हैं। भारत में, इस तरह के आँकड़े नियमित आधार पर एकत्र नहीं किए जाते हैं; इस वजह से, इस रपट में भी विश्लेषण के लिए नवीनतम आँकड़े 2011-12 को ही संदर्भित करता है। इस रपट में, हम नीति निर्माताओं और सामाजिक भागीदारों को प्रभावी ढंग से सूचित करने के लिए, अधिक समय के साथ और गहन आनुभविक विश्लेषण से कवरेज और आँकड़े संग्रह में सुधार करने के लिए कुछ सिफारिशों पर विचार करने के लिए मुद्दे उठाते हैं। स्तरों, असमानता और मजदूरी में वृद्धि में क्षेत्रीय भिन्नता को देखते हुए राज्य स्तर पर श्रम बाजारों के कामकाज की अधिक विस्तृत समझ की आवश्यकता है। यह मजदूरी पर राज्य-विशिष्ट और तुलनात्मक अध्ययन और सरकारी एजेंसियों, अकादमिक संस्थानों और विशेषज्ञ संगठनों के बीच सहयोगी काम के महत्व से सम्भव हैं। " (इसे जोर देकर कहा गया है)

प्रश्नों का जवाब देते हुए एस्टुपियन ने न्यूजक्लिक को इस चेतावनी को इंगित करने के लिए शुक्रिया अदा किया।

असली बात यह है कि भारत में मजदूरी के विकास में रुझानों को समझने के लिए आईएलओ की वैश्विक मजदूरी रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। रिपोर्ट में उन देशों में मजदूरी पर कुछ महत्वपूर्ण और वैध टिप्पणियां हैं जहां आँकड़े संग्रह की मजबूत प्रणाली मौजूद है। यह पुरुषों और महिलाओं के बीच मजदूरी के अंतर और लगातार मजदूरी में स्थिरता के महत्वपूर्ण रुझानों को इंगित करता है। लेकिन भारत में मजदूरी बढ़ने की उनकी बात पर भरोसा न करें।

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