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भूख का खेल: नीति आयोग का मानना है कि भारत में भुखमरी बहुत गंभीर संकट नहीं है

मोदी सरकार के आधिकारिक चिन्तक वैश्विक भूख तालिका (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में 119 देशों में भारत के 100वें स्थान पर होने का विरोध कर रहे हैं.
NITI Aayog

निति आयोग के सदस्य वर्ष 2017 में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स की लिस्ट में भारत का 119 देशों में से 100वें स्थान पर आने को भ्रामक बता रहे हैं, लगता है निति आयोग के सदस्य देश में भुखमरी की गंभीरता को भूल रहे हैं और या फिर यह उनकी सरकार को खुश करने की कोशिश है.

वैश्विक भूख सूचकांक (जी.एच.आई.) का मुख्य उद्देश्य, जिसे अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा डिजाइन किया गया है वह एक उपकरण है जो वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को मापने और भूख को दूर करने और भूख को कम करने की दीर्घकालिक प्रगति को दिखाता है. वैश्विक स्तर पर जी.एच.आई. 2017 ने चार मुख्या संकेतकों के आधार पर औसत निकाला है, इनमें कुपोषण, कमज़ोर बच्चे, अविकसित बच्चे और बाल मृत्यु दर, इन चार संकेतों में से तीन संकेतो के आधार पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों की स्थिति को दर्शाते हैं. इन संकेतों पर सवाल उठाते हुए, नीति आयोग के सदस्यों ने निष्कर्ष निकाला कि भूख सूचकांक बच्चों के पोषणरहित के प्रति "अत्यधिक पक्षपाती" है और दावा किया है कि वैश्विक भूख सूचकांक (जी.एच.आई.) "समग्र आबादी में भूख की स्थिति का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता" है.

यह निराशाजनक है कि नीति आयोग के बुद्धिजीवियों ने जी.एच.आई. की गणना में इस्तेमाल विशिष्ट पद्धति को अपनाने के कई फायदे को भी नहीं माना है. सबसे पहले तो जी.एच.आई. में  कमज़ोर बच्चे और अविकसित बच्चे के संकेतकों को शामिल करना तीव्र रूप से पुरानी पोषणरहित बच्चों को प्रतिबिंबित करता है. दूसरे, चूंकि कमजोर बच्चे आबादी के सबसेट का निर्माण करते हैं, जिनके लिए आहार ऊर्जा, प्रोटीन, या सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से बीमारी का खतरा अब्धता है और  गरीब तबके का शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास रुक जाता हिया जिससे उनकी मृत्यु होने की स्थिति में इजाफा हो जाता है. या पद्धति न केवल बच्चों की पोषण स्थिति को दर्शाती है बल्कि पूरी आबादी की स्थिति को भी दर्शाती है. और तीसरा, स्वतंत्र रूप से मापक संकेतकों और सूचकांक के लिए एक से अधिक संयोजन से माप में होने वाली त्रुटियों के प्रभाव को कम करता है.

भारत में बाल स्वास्थ्य के संकेतकों के संदर्भ में भारत का स्थान खराब रहा है, खासकर कमज़ोर बच्चे के सम्बन्ध में, 119 देशों में से 117 वां स्थान, जो कि उन देशों से भी नीचे है जो, अकाल और युद्ध की वजह से पीछे है और बाल मृत्यु दर और बाल स्टंटिंग के मामले में, भारत क्रमशः 106 और 117 में स्थान पर है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, अविकसित, कम वजन और कमज़ोर पांच साल से कम उम्र के बच्चों का प्रतिशत क्रमशः कम है, और वह क्रमश 38.4, 21.0 और वजन 35.7 है.

उन्होंने गणना में इस्तेमाल की गई बच्चे के लिए न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता के लिए के तैयार कट-ऑफ को भी  "अनिर्णायक बहस" का दावा करते हुए सूचकांक की गणना में इस्तेमाल भुखमरी की घटनाओं सही नहीं माना. हालांकि उन्होंने कहा कि खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के औसत से भारत के लिए (कट ऑफ) न्यूनतम ऊर्जा के पैमाने की आवश्यकता अलग है. उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वैश्विक औसत से भारतीय औसत से अधिक है, और इसलिए उनके अनुसार भारत के खराब रैंक के लिए यह भी एक कारण है. लेकिन, वे इस तर्क का उल्लेख करना भूल गए कि प्रत्येक देश की अपनी गणना का पैमाना है, जो कि सभी देशों की जी.एच.आई. गणना का आधार है, और वह सब पर लागू होता है. आई.सी.एम.आर. और एन.आई.एन. की सिफारिशों के मुताबिक भारत में न्यूनतम आवश्यकता के अनुसार 2400 किलोग्राम केलोरी प्रति दिन (ग्रामीण निवासियों के लिए) और 2100 (शहरी निवासियों के लिए) के लिए उपयोग जरूरी है. यह एफ.ए.ओ. की वैश्विक औसत 1800 किलो केलोरी  से अधिक है. इसका कारण यह है कि भारत में, लोग पश्चिमी यूरोप या उत्तरी अमेरिका के लोगों की तुलना में ज्यादा कठिन शारीरिक श्रम करटे हैं. इसलिए कैलोरी की आवश्यकता अधिक है.

कई अन्य इंडेक्स हैं जहां भारत सबसे निचले पायदान पर आता हैं: जैसे शिशु मृत्यु दर सूचकांक (175/223), शिक्षा सूचकांक (145/197), वर्ल्ड ख़ुशी इंडेक्स (122/155) और सबसे व्यापक और विशाल के मामले में भारत, मानव विकास सूचकांक में (131 /188) है. इनके बारे में नीती आइए क्या करेंगा?

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