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बाइडेन-शी जिनपिंग शिखर सम्मेलन संभावित 

इस संदर्भ में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन और चीन के पोलित ब्यूरो सदस्य यांग यिएची के बीच स्विटजरलैंड के ज्यूरिख में हुई बैठक महत्त्वपूर्ण है। 
US National Security
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन (एल) ने 6 अक्टूबर 2021 को ज्यूरिख में चीनी पोलित ब्यूरो के सदस्य यांग जिएची के साथ छह घंटे तक बातचीत की।

स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन और चीन के पोलित ब्यूरो सदस्य यांग जिएची के बीच हुई बैठक के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इससे चीन-अमेरिकी के बीच ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन का मार्ग प्रशस्त हो पाएगा? 

इस बड़े सवाल का एक बेहद छोटा-सा जवाब है-हां। हालांकि, सुलिवन और यांग के पास अमेरिका-चीन संबंधों की पालदार नाव को कुशलता से खेने का गुरुतर दायित्व है। पाल वाली नौका को संचरित करने में मुख्य समस्या यह है कि एक तरफ से हवा के थपेड़े इतना प्रचंड हैं कि वह नाव को डगमगा दे रहे हैं और जब तक पाल दूसरी तरफ की हवा को पकड़ नहीं लेता नाव के मुहाने को आगे कैसे मोड़ा जाए। 

जाहिराना तौर पर यह आसान काम नहीं है और इसके लिए न केवल ठोस तरीकों और सटीक सोच की आवश्यकता होती है, बल्कि उस तरह के सही समन्वय की दरकार भी होती है जो वाशिंगटन और पेइचिंग के बीच फिलहाल अनुपस्थित है। 

ज्यूरिख में वार्ता पर व्हाइट हाउस की विज्ञिप्ति अनावश्यक रूप से रक्षात्मक तेवर लिए हुई है, शायद देश के नागरिकों को ध्यान में रखते हुए उसकी भंगिमा ऐसी रखी गई है। इसके विपरीत चीनी विज्ञप्ति, जैसा कि शिन्हुआ द्वारा रिपोर्ट किया गया है, ने दावा किया कि दोनों उच्च पदस्थ राजनयिकों के बीच छह घंटे तक चली वार्ता बेहद "स्पष्ट तरीके से" हुई और द्विपक्षीय संबंधों एवं साझा हितों के अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मसलों पर "विचारों का एक व्यापक और गहन आदान-प्रदान" हुआ। इस बैठक को चीन की तरफ से "रचनात्मक, और आपसी समझ बढ़ाने के लिए अनुकूल" बताया गया है। 

शिन्हुआ के अनुसार, यांग और सुलिवन "चीनी और अमेरिकी राष्ट्राध्यक्षों के बीच पिछले महीने 10 सितंबर को फोन पर हुई बातचीत में उभरी मंशा के अनुरूप ही रणनीतिक संचार को मजबूत करने, मतभेदों को ठीक से निबटाने, टकराव और संघर्ष से बचने, पारस्परिक लाभ और जीत के नतीजों को तलाशने और चीन-अमेरिका संबंधों को सही स्वर देने और उसे स्थिर विकास के सही रास्ते पर वापस लाने के लिए मिलकर काम करने पर सहमत हुए हैं।” 

रिपोर्ट में कहा गया है: "यांग ने कहा कि चीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा हाल ही में चीन-अमेरिका संबंधों पर की गई सकारात्मक टिप्पणियों को अहमियत देता है, जिसमें अमेरिकी पक्ष ने कहा है कि उसका इरादा चीन के विकास को रोकने का नहीं है और वह एक "नए शीत युद्ध" की मांग नहीं कर रहा है। 

हालांकि दोनों में से कोई भी विज्ञप्ति स्पष्ट रूप से यह नहीं बताती कि अमेरिका और चीन के बीच निकट भविष्य में कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में किस तरह का सहयोग बनेगा। पेइचिंग ने कहा था कि जब तक बाइडेन प्रशासन शत्रुतापूर्ण नीतियों का पालन करना जारी रखता है और चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है, तब तक चयनात्मक सहयोग की कल्पना अवास्तविक है। यह बताने के बाद, ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, "दोनों पक्षों द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्तियां अपने-अपने संदर्भ में अधिक सकारात्मक थीं। इससे पता चलता है कि बैठक उत्पादक थी...दोनों सार्वजनिक प्रेस विज्ञप्तियों में एक दूसरे पक्ष के खिलाफ कोई नकारात्मक विवरण और आरोप नहीं लगाए गए थे। दोनों देशों के बीच मौजूदा मतभेदों को बेहद मुलायम शब्दों में बस छू भर दिया गया था।"

कहा जाता है कि अमेरिकी अधिकारियों ने मीडिया को बाद में बताया कि सुलिवन और यांग ने इस संभावना को खंगाला कि क्या इस साल के अंत तक दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच एक वीडियो बैठक हो सकती है। 

जाहिर है अमेरिका और चीन के बीच गंभीर प्रकृति के मतभेद हैं। चीन "ताकत के जोर से" बोलने के अमेरिकी ढोंग को स्वीकार नहीं करेगा। वहीं दूसरी ओर, हाल ही में यह स्पष्ट हो गया है कि बाइडेन प्रशासन की बयानबाजी नरम पड़ रही है-अब टकराव नहीं रहा है और वाशिंगटन  इस बात को बार-बार रेखांकित कर रहा है कि वह "नया शीत युद्ध" नहीं देखना चाहता है।

ज्यूरिख में बैठक की पूर्व संध्या पर ताइवान के बारे में राष्ट्रपति बाइडेन का खुला आश्वासन वास्तव में सबसे सार्थक था, जो यह दर्शाता है कि अमेरिका प्रतिस्पर्धा को टकराव में बदलने से रोकना चाहता है। यदि अमेरिका ने चीनी कंपनी हुआवेई के कार्यकारी अधिकारी हेंग वानझोउ की लगभग नजरबंदी की स्थिति को रोक कर चीन को एक निश्चित सकारात्मक संदेश दिया है, तो AUKUS, जैसा कि पेइचिंग मानता है कि अटलांटिक-पार का यह गठबंधन दोनों पक्षों के बीच एक तीखे विवाद का विषय बना हुआ है। इसी बीच, बाइडेन प्रशासन ने कोविड-19 महामारी की शुरुआत की जांच की फाइल बंद कर दी, जो चीन की तरफ खुलती थी। 

सबसे महत्वपूर्ण यह कि अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई ने सोमवार को वाशिंगटन में सीएसआइएस थिंक टैंक में दिए अपने एक भाषण में घोषणा की कि अमेरिका निकट भविष्य में चीन के साथ व्यापार पर "स्पष्ट बातचीत" करेगा। पेइचिंग ने इसे अपने प्रति एक सकारात्मक संकेत के रूप में लिया है, जो अमेरिका-चीन के बीच रचनात्मक बातचीत होने की उम्मीद बंधाता है। 

वार्ता में पहले चरण का व्यापार समझौता शामिल होगा, लेकिन ताई ने कहा कि उनका इरादा "चीन के साथ व्यापार-तनाव भड़काने" का नहीं है। (चीन 2020 एवं 2021 में अमेरिका से $200 बिलियन डॉलर्स का अतिरिक्त माल खरीदने से वंचित रह गया।) दिलचस्प बात यह है कि ताई ने ट्रम्प प्रशासन द्वारा चीनी सामान पर सीमा शुल्क के रूप में एक वर्ष में लगाए गए $370 बिलियन डॉलर की छूट के लिए "एक लक्षित टैरिफ बहिष्करण प्रक्रिया" के बारे में भी बात की। 

ट्रम्प के "टैरिफ युद्ध" विपरीत प्रभाव पड़ा है और इसने अमेरिकी उपभोक्ताओं और निर्माताओं पर भारी असर डाला है। अमेरिका न तो चीनी उत्पादों के विकल्प ढूंढ़ सका और न ही औद्योगिक श्रृंखलाओं को चीन से बाहर जाने के लिए मजबूर कर सका है। फिर ये टैरिफ मुद्रास्फीति से निपटने के लिए बाइडेन प्रशासन के प्रयासों को केवल कमजोर ही करने वाले हैं। 

गौरतलब है कि ताई ने व्यापार वार्ता शुरू होने से पहले ही उसकी बॉटम लाइन तय कर दी-कि यह बाइडेन प्रशासन का चीन को आर्थिक रूप असंबद्ध करने की मांग के इरादे से नहीं है और इसके बजाय वह व्यापार क्षेत्र में पुरानी स्थिति की "बहाली" के लिए काम करेगा, जो अमेरिका को अधिक लाभ पहुंचाएगा जिसमें चीन के विशाल बाजार तक बड़ी पहुंच शामिल है। 

राजनीतिक दृष्टि से यदि चीन अमेरिका से कृषि उत्पादों की खरीद-मात्रा को बढ़ाता है तो यह बाइडेन के लिए बेहद फलदायक होगा। रिपोर्ट के अनुसार सितंबर के मध्य में चीनी कंपनियों ने अकेले एक मद में करीब दस लाख टन अमेरिकी सोयाबीन के नए ऑर्डर दिए हैं। 

एक बार जब व्यापार और आर्थिक मुद्दों पर पुरानी रफ्तार लौट आती है तो अमेरिकी-चीनी संबंधों में अन्योन्याश्रयता और गहरी हो सकती है और वह समग्र संबंधों को एक नई गति दे सकती है। शिंजियांग, हांगकांग आदि केवल परिधीय मुद्दे हैं जो संबंधों में गहराई न होने की स्थिति में रेंगते हुए केंद्रीय हैसियत पा जाते हैं। 

निःसंदेह संबंधों में गहरे अंतर्विरोध हैं जो एक शिखर बैठक करने से दूर नहीं होंगे। इस स्तर पर बाइडेन जो हासिल करने की उम्मीद करते हैं, वह संबंधों को पहले अपने पांवों पर खड़ा करने और उसे स्थिर करने का एक महत्त्वकांक्षी लक्ष्य है और यदि संभव हो तो उसे नीचे की तरफ खतरनाक तरीके से सरकने से रोकना है। इसका मतलब आगे राजनयिक बातचीत की गुंजाइश बनाना है।

निश्चित रूप से यह अमेरिका को एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने पर जोर देता है, जिसका उद्देश्य फिजूल के तनाव से बचना है। पर रुकावट यहीं है। यह देखा जाना बाकी है कि जब तक तनाव के स्रोत बने रहेंगे तब तक सकारात्मक प्रवृत्ति कैसे बनी रह सकती है। जाहिर है कि अभी भी बहुत कुछ गलत हो सकता है।

उनका कहा हुआ एक गहरा सच भी है। वाशिंगटन चीन को अपने उद्भव के अनुकूल न होने के लिए दोषी नहीं ठहरा सकता है। नाटो के विस्तार पर 1990 के दशक से ही अत्यधिक ध्यान देने, इसके बाद के अगले दो दशकों में पश्चिम एशियाई युद्धों में महंगे हस्तक्षेप करने और इस सब के बीच, घरेलू समस्याओं को दूर करने में मिली भयावह विफलता, जिसमें बुनियादी ढाँचे और सार्वजनिक शिक्षा लड़खड़ाना आदि शामिल हैं-तो इनमें से किसी के लिए भी चीन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

बहरहाल, चीन अमेरिका का मुख्य प्रतिद्वंद्वी है और यहां तक कि उसका विरोधी भी है, यह विचार अमेरिका में इतना व्यापक हो गया है कि उसकी पैठ जनमानस में हो गई है। फिर भी जब चीन की बात आती है, तो कांग्रेस में रूस-विरोध की तरह की ठोस द्विदलीय सहमति बाइडेन के हाथ नहीं बांध सकती है, लेकिन कांग्रेस के अवांछित हस्तक्षेप से इंकार नहीं किया जा सकता।

इसमें अच्छी बात यह है कि यूरोपीय यूनियन में अमेरिका के सहयोगी देश बाइडेन का चीन के साथ जुड़ाव का समर्थन करेंगे। कई यूरोपीय संघ की सरकारें पेइचिंग के साथ संबंधों में निहित प्रणालीगत प्रतिद्वंद्विता को भी पहचानती हैं, लेकिन अधिकांश यूरोपीय देश अभी भी चीन को अपने जीवन के लिए खतरे के रूप में नहीं देखते हैं और यह तो गिने-चुने ही होंगे जो विश्वास करते होंगे कि चीन दुनिया पर शासन करता है। 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

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