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बिहार: लालू की सक्रिय राजनीति में वापसी से सत्तारूढ़ एनडीए में खलबली का माहौल

ज़मानत पर बाहर आते ही लालू विपक्षी नेताओं को एकजुट करने और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के नेतृत्त्व वाले एनडीए से दो-दो हाथ करने के लिए एक नए मोर्चे के साथ सामने आने में गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
बिहार: लालू की सक्रिय राजनीति में वापसी से सत्तारूढ़ एनडीए में खलबली का माहौल
चित्र साभार: एनडीटीवी

पटना: बिहार के सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव की सक्रिय राजनीति में वापसी को लेकर असहज महूसस कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने हाल ही में 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक संयुक्त विपक्षी मोर्चे के गठन के लिए शीर्ष विपक्षी नेताओं से मुलाक़ात की है।

विपक्षी दलों को एक मंच पर एकजुट करने में लालू की भूमिका से एक राजनीतिक चुनौती को भांपते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सुशील कुमार मोदी ने जमानत पर बाहर आये लालू के सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेने पर आपत्ति जताई है। बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री, सुशील कुमार मोदी ने दो दिन पहले कहा था “चारा घोटाले में दोषी ठहराए गए और फिलहाल स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर चल रहे लालू, राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सेदारी कर रहे हैं। सीबीआई को इस बात का संज्ञान में लेना चाहिए।”

सुशील कुमार भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं और 90 के दशक के मध्य से ही उन्हें लालू का सबसे कड़ा आलोचक माना जाता रहा है। उन्होंने लालू की राजनीतिक गतिविधि पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि सीबीआई अदालत एक अन्य चारा घोटाला मामले में फैसला सुनाएगी, जिसमें लालू एक आरोपी हैं और उन्हें एक बार फिर से जेल की सजा काटनी पड़ सकती है।

सुशील कुमार ही थे जिन्होंने इस साल अप्रैल में लालू को रांची उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दिए जाने के फौरन बाद केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने की मांग की थी।

जनता दल-यूनाइटेड के बिहार के अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने बुधवार को कहा कि लालू यादव को राजनीति करने और विभिन्न नेताओं से मुलाक़ात करने के बजाय पहले अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। उनका कहना था “उनकी प्रथमिकता स्वास्थ्य होनी चाहिए न कि राजनीति, क्योंकि लालू स्वस्थ्य नहीं हैं और कई पुरानी बीमारियों से पीड़ित हैं। राजनीति में लालू और उनकी पार्टी को लोगों द्वारा काफी पहले ही ख़ारिज किया जा चुका था।”

इससे पूर्व, जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार, जिन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है उन्होंने लालू पर सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेने को लेकर लगातार निशाना साधा था।

सुशील कुमार और उमेश सिंह दोनों ही न सिर्फ लालू की राजनीति में वापसी से चिंतित हैं बल्कि इस दिग्गज राजनीतिज्ञ की मौजूदगी के कारण उन्होंने अपनी बेचैनी को भी उजागर कर दिया है।

इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि लालू लगातार विपक्षी नेताओं को एकजुट करने और भाजपा के नेतृत्त्व वाले एनडीए का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक नए मोर्चे के साथ सामने आने में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इसलिए, लालू ने दिल्ली में समाजवादी पार्टी के नेताओं मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव से मुलाक़ात करने के एक दिन बाद मंगलवार को अपने पुराने समाजवादी मित्र, लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी) के नेता शरद यादव के साथ मुलाक़ात की।

पिछले हफ्ते, एनसीपी के प्रमुख नेता शरद पवार, सपा नेता रामगोपाल यादव और कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह के साथ लालू से मुलाकात की और उम्मीद है कि उन्होंने एक कप चाय के साथ-साथ राजनीति पर भी आपस में चर्चा की।

बिहार में आरजेडी के सूत्रों ने बताया है कि लालू आने वाले दिनों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी, डीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी मुलाक़ात करेंगे। “जल्द ही, लालू जी कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाक़ात कर सकते हैं, ताकि एनडीए के खिलाफ एकजुट विपक्ष को सुनिश्चित किया जा सके।”

बिहार में एनडीए नेताओं के अनुसार, लालू विपक्ष को एकजुट करने में सक्षम हैं और यह बात राज्य में भाजपा के नेतृत्त्व वाले गठबंधन के साथ-साथ केंद्र के लिए भी बड़ी चुनौती साबित होने जा रही है।

एक भाजपा नेता का कहना था “राजनीति में एक आजाद और सक्रिय लालू एनडीए के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि हमारे काम को मुश्किल कैसे बनाया जाए, इसे वे बखूबी समझते हैं। जब लालू सलाखों के पीछे थे तब हमने आसानी से 2019 लोकसभा का चुनाव और 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव जीत लिया था।”

राज्य में एनडीए के नेताओं को लालू का खौफ लगातार सता रहा है। एक वरिष्ठ जेडीयू नेता ने स्वीकार किया “सत्ताधारी एनडीए में बड़े पैमाने पर भय व्याप्त है कि लालू जी के दिल्ली से पटना आने पर बिहार में राजनीतिक सत्ता समीकरण में बदलाव देखने को मिल सकता है। उन्हें पूरा अंदेशा है कि एनडीए के दो छोटे सहयोगी दल, एचएएम के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और वीआईपी के मुकेश सहनी राजद के साथ हाथ मिला सकते हैं। यह नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के अस्तित्व को गंभीर रूप से खतरे में डाल देगा।”

पिछले नवंबर में, राज्य विधानसभा चुनावों के परिणाम के फ़ौरन बाद, सुशील कुमार ने आरोप लगाया था कि जेल में रहते हुए लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार सरकार को गिराने के प्रयास में एनडीए के विधायकों को अपने पाले में लाने की कोशिश की थी।

इससे पूर्व, सुशील कुमार ने लालू पर राजद प्रमुख के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से की गई राजनीतिक टिप्पणियों के मद्देनजर जेल से राजनीति करने का आरोप लगाया था और केन्द्रीय जांच ब्यूरो से इस मामले का संज्ञान लेने और उनकी गतिविधियों से अदालत को अवगत कराने का आग्रह किया था।

वरिष्ठ राजद नेता भाई वीरेंद्र ने दावा किया कि न सिर्फ सुशील कुमार मोदी ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लालू और उनकी सामाजिक न्याय की राजनीति से भय खाते हैं। राजद नेता का कहना था “भाजपा नहीं भूली है कि कैसे लालू जी ने राम-रथ को रोक दिया था और एल के अडवाणी को संप्रयादिक सद्भाव और शांति बनाये रखने के लिए गिरफ्तार किया था। वे लालू जी से डरते हैं क्योंकि वे एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने सीधे तौर पर सांप्रदायिक ताकतों का मुकाबला किया है और कभी भी धर्मनिरपेक्ष राजनीति से समझौता नहीं किया है।”

लालू ने खुद ही घंटी बजाई है। जमानत मिल जाने के बाद अपने पहले वर्चुअल भाषण में, 5 जुलाई 2021 को राजद प्रमुख ने हजारों पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों को एक दमदार राजनीतिक संदेश यह कहते हुए भेजा था कि “मिट जायेंगे लेकिन झुकेंगे नहीं।”

करीब साढ़े तीन साल के अंतराल के बाद रांची की जेल में बंद लालू प्रसाद को बिहार भर में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं, सर्मथकों और अनुयायियों के लिए एक वर्चुअल भाषण देने का मौका मिला था। वे अपने समर्थकों को यह याद दिलाने से नहीं चूके कि उन्हें संभवतः एक साजिश के तहत जेल में डाला गया था और जबरन राज्य से दूर रखा गया था।

पहले की तरह जब राजद सुप्रीमो कहा करते थे कि वह भाजपा के साथ समझौता करने के बजाय मर जाना पसंद करेंगे, जिसे उन्होंने “फासिस्ट और सांप्रदायिक” ताकत के रूप में वर्णित किया (यह उन्होंने अगस्त 2017 में पटना में हुई ‘भाजपा भगाओ देश बचाओ’ रैली में कहा था), उन्होंने दोहराया कि ऐसी ताकतों के सामने झुकने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है।

लालू, जो कि जमीनी राजनीति के मामले में अपने दुर्लभ कौशल के लिए जाने जाते हैं, जमानत मिलने के बाद से दिल्ली में हैं, लेकिन उन्होंने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से जल्द ही बिहार का दौरा करने का वादा किया है। इसने सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन को सचेत कर दिया है।

लालू के जल्द ही बिहार आने की खबर से राजद के हजारों नेता, कार्यकर्त्ता और समर्थक उत्साहित हैं। उनकी ख़ुशी इस बात में छिपी है कि राजद नेता तेजस्वी यादव ने बार बार उन्हें याद दिलाया है कि राजद सहित कांग्रेस और वाम दलों का विपक्षी महागठबंधन पिछले साल राज्य में सरकार बनाने से बेहद कम अंतर से चूक गया था। एनडीए ने राज्य विधानसभा चुनावों के परिणामों में “हेराफेरी” की थी और राजद के कुछ उम्मीदवारों को 13 से 17 मतों के अंतर से हराने को सुनिश्चित कराया था।

राज्य विधानसभा में, राजद पिछले साल बिहार में हुए चुनावों में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी; लेकिन महागठबंधन कुछ सीटों की कमी से सरकार बना पाने से चूक गया क्योंकि उसे 100 सीटें हासिल हुई थीं। जबकि सत्तारूढ़ एनडीए ने चुनावों में 125 सीटें जीती थीं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Bihar: Ruling NDA Shows Discomfort over Lalu’s Return to Active Politics

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