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बिहार: कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में आड़े आते लोगों का डर और वैक्सीन का अभाव

जहां बिहार के ग्रामीण इलाक़ों में टीके को लेकर अफ़वाहों और अंधविश्वासों के कारण टीकाकरण दर बेहद मामूली रही है और टीकों की बर्बादी हुई है, वहीं पटना सहित बिहार के शहरी क्षेत्रों में वैक्सीन की कमी ने कई इलाक़ों में चल रहे इस अभियान में ठहराव ला दिया है।
बिहार: कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में आड़े आते लोगों का डर और वैक्सीन का अभाव
टीकाकरण में रुकावट, किशनगंज

"मोतीपुर पीएचसी में कोवैक्सिन की दूसरी खुराक़ लेने के बाद मुझे अपनी जान जाने के बुरे-बुरे सपने आते रहे।" बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के मोतीपुर प्रखंड के सेंदुआरी पंचायत निवासी जनक दास (65) की यह बात जंगल में आग की तरह फैल गयी है, जिसके बाद आसपास के गांवों के लोगों ने वैक्सीन लेना छोड़ दिया है।

ऐसा नहीं कि यह सिर्फ सेंदुआरी में हुआ है। कोविड-19 से बचने के एक उपाय होने के बजाय इन टीकों को लेकर पूरे बिहार के ग्रामीण इलाक़ों में यह सोच बहुत आम है कि टीके सेहत के लिए नुक़सानदेह हैं।

जनक दास

एक किसान जनक दास ने कोविड-19 की घातक दूसरी लहर से ख़ुद को बचाने के लिए मार्च और अप्रैल के महीनों में कोवैक्सीन की दो खुराक़ें ली थीं। 30 अप्रैल को दूसरी खुराक़ लेने के बाद उन्हें तेज़ खांसी, सर्दी और बुखार आया और उन्होंने बिस्तर पकड़ ललिया। वह एक महीने तक बिस्तर पर ही पड़े रहे और जान जाने के ख़ौफ़ में रहे। ऐसा लगता है कि जीवन रक्षक यह उपाय बुरी तरह निष्फल हो गया है। जनक दास को पेश आयी यह परेशानी पूरी पंचायत के गांवों में चर्चा का एक ज्वलंत विषय बन गयी और उसके बाद अनुमानित 553 परिवारों ने सेंदुआरी पंचायत में चल रहे टीकाकरण अभियान से अपनी दूरी बना ली।

मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) और सहायक नर्स दाइयों (ANM) के साथ-साथ ग्राम वार्ड प्रतिनिधियों को भी स्थानीय निवासियों को इस टीकाकरण को लेकर मनाने का काम सौंपा गया है, लेकिन उन्हें ग्रामीणों के कोप का भाजन बनना पड़ रहा है।

कटरा प्रखंड के पीएचसी प्रभारी डॉ. गोपाल कृष्ण ने न्यूज़क्लिक को बताया कि टीकाकरण अभियान को लेकर ग्रामीणों के विरोध का ख़ामियाज़ा टीकाकरण टीम को भुगतना पड़ा। एक मुस्तैद दौरे के बावजूद लोगों को वैक्सीन खुराक के लिए राज़ी कर पाना एक अजेय काम था। उनका कहना है कि इस सरकारी कोशिश का मक़सद खुराक की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है।

फ़ैलती अफ़वाहों के बीच खुराक को लेकर लोगों को मनाने में स्वास्थ्य अधिकारी नाकाम

बिहार में टीकाकरण अभियान में आ रहे अड़चनों में निम्न तबकों की तरफ़ से बड़े पैमाने पर हो रही झिझक के  कई उदाहरण हैं। परसा ब्लॉक के बीडीओ रजत किशोर सिंह की पत्नी की कथित तौर पर वैक्सीन की खुराक लेने के 3 घंटे बाद मौत हो जाने पर सारण में बड़े पैमाने पर लोगों के टीके लेने से डर जाने की ख़बर है। इस घटना से पूरे ज़िले में वैक्सीन का डर फैल गया है, जिससे बड़े पैमाने पर टीके लेने से लोग मुकर रहे हैं। इस प्रखंड के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता मणिलाल का कहना है कि स्वास्थ्य अधिकारी टीकाकरण को लेकर लोगों को समझाने-बुझाने में बुरी तरह विफल रहे हैं।

गया के मानपुर ब्लॉक से भी इसी तरह की ख़बरें मिलने की सूचना है, जहां स्वास्थ्य अधिकारियों को स्वास्थ्य केंद्र पर लंबे समय तक इंतज़ार करना पड़ा और कोई भी टीका लगाने के लिए वहां आया ही नहीं। 29 मई को 'टीका एक्सप्रेस' अभियान मानपुर में शुरू हुआ, जिसमें 98 लोग टीकाकरण के लिए आगे आये, लेकिन इसके बाद से इसमें भारी गिरावट देखी गयी है। हालांकि, बीडीओ अभय कुमार ने इस आंकड़े को ज़िला प्रशासन की तरफ़ से आये आंकड़ों के हिसाब से ग़लत बताते हुए सुस्त वैक्सीन अभियान की इन बातों का खंडन किया।

'टीका एक्सप्रेस' राज्य के स्वास्थ्य विभाग की तरफ़ से चलाया जा रहा एक ऐसा कार्यक्रम है,जिसमें जगह-जगह घूमती गाड़ी(मोबाइल वैन)  से स्वास्थ्य कर्मचारी दूर-दराज़ के क्षेत्रों में मुफ़्त टीकाकरण अभियान चला रहे हैं। उम्मीद की गयी थी कि बिहार के छूट गये ग्रामीण इलाक़ों को टीकाकरण में शामिल कर लिया जायेगा, लेकिन इसके वांछित परिणाम नहीं निकले। 16 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चलाये जा रहे प्रत्येक मोबाइल वैन प्रतिदिन 200 लोगों को टीका लगाने में लगा हुआ है। अस्पतालों में काम कर रहे प्रत्येक स्थायी टीम का भी यही लक्ष्य है।

किसी दोधारी तलवार की तरह अफ़वाह के फैलने से टीकाकरण की संभावनायें बाधित हुई हैं। इस दोधारी तलवार के इस्तेमाल में बड़े पैमाने में सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं,इससे ग्रामीणों में और डर पैदा हो गया है।

इस बीच, 'टीका नहीं,तो राशन नहीं' जैसे पहल ने ग्रामीणों को टीके की खुराक लेने के लिए ज़रूर प्रेरित किया है। गया स्थित सामाजिक कार्यकर्ता मिथलेश कुमार निराला, जो गया के शेरघाटी में मज़दूर किसान समिति के प्रमुख भी हैं, उन्होंने सरकारी अधिकारियों की जारी कोशिशों पर रौशनी डाली।

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि डोभी ब्लॉक पीएचसी में कुल आबादी का केवल 16% का ही टीकाकरण हो पाया है, जबकि शेरघाटी सबडिविज़न में 22% लोगों का टीकाकरण किया जा सका है, लेकिन यह सब तब हुआ है,जब राशन से वंचित करने की धमकी दी गयी है। सामाजिक कार्यकर्ता ने आरोप लगाया, “जिन राशन कार्ड धारकों ने वैक्सीन नहीं लिया है,उनमें से कई लोगों को पीडीएस डीलरों ने ख़ाली हाथ लौटा दिया है। लोगों को समझाने के बजाय, बैंक खातों को फ़्रीज़ करना और बिना टीके के ट्रेन यात्रा भत्ता नहीं दिया जाना, ज़िला अधिकारियों की तरफ़ से अपनाये गये कुछ ग़ैर-ज़रूरी हथकंडे हैं।”    

नक्सल प्रभावित जमुई ज़िले के चकाई से भी वैक्सीन से डर जाने की ख़बर है, जहां लोगों ने टीकाकरण का विरोध किया है। टीका लगवाने को लेकर झिझक को अफ़वाहों और अंधविश्वासों से हवा मिल रही है। हालात ऐसे हैं कि स्वास्थ्य कर्मी दुर्गम इलाक़ों में पैदल चलकर एक गांव से दूसरे गांव जा रहे हैं, लेकिन उन्हें बिना टीका लगाये ही वापस लौटना पड़ रहा है।

इसी तरह के हालात चकाई ब्लॉक के सिमरिया गांव में भी देखी जा रही है, जहां स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के इस इंतज़ार का कोई अंत नहीं दिखता कि कोई तो टीका लगवाये, जबकि गिधौर के रतनपुर से वैक्सीन अभियान का नेतृत्व करने वाली एक चिकित्सा टीम के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध किये जाने की ख़बर है। चंद्रमनडीह इलाक़े के किसी मिडिल स्कूल में एक टीकाकरण शिविर का आयोजन किया गया था, लेकिन उन्हें निराशा हुई, क्योंकि कोई भी टीके की खुराक लेने नहीं आया।

टीकाकरण अभियान की निगरानी कर रहे चकाई रेफ़रल अस्पताल प्रबंधक उपेंद्र चौधरी ने कहा कि आदिवासी बहुल दुलमपुर और फरिताया डीह पंचायतों में लोगों ने बांझपन, पैरालिटिक अटैक, मौत आदि का हवाला देते हुए टीकाकरण अभियान से दूरी बना ली है।

भारत सरकार के नवीनतम आंकड़ों से बिहार के टीकाकरण प्रबंधन पर सवाल उठने लगे हैं क्योंकि 71 प्रतिशत वैक्सीन अपव्यय वाली सूची में बिहार सबसे ऊपर है। 6 जुलाई को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने बिहार स्वास्थ्य विभाग द्वारा दो महीने की अवधि में कोवैक्सिन और कोविशील्ड दोनों की 2.60 लाख खुराक की बर्बादी की बात करते हुए निगरानी रिपोर्ट जारी की थी। बर्बाद हुई कोविशिल्ड वैक्सीन की इस सूची में मुज़फ़्फ़रपुर सबसे ऊपर है, उसके बाद गया, अररिया, पूर्णिया, पटना, कटिहार है, जबकि पटना कोवैक्सिन अपव्यय की सूची में पहले स्थान पर है। 

वैक्सीन की कमी

दूसरी तरफ़ इन ज़िलों में वैक्सीन की कमी की बातें भी हो रही है। बांका के चंदन ब्लॉक के निवासियों को इस अभियान को रोके रखने वाले टीके के अगले खुराक को पाने के लिए आठ दिनों तक का इंतज़ार करना पड़ा। इस ब्लॉक के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) से उप केंद्रों तक टीके भेजने का काम वैक्सीन कूरियर पुरुषोत्तम को सौंपा गया है,और उन्होंने बताया कि वैक्सीन की बेहद कमी  है और ले जाने के लिए वैक्सीन ही नहीं है,ऐसे में  वह बिना किसी काम के बैठे हुए हैं।

ऐसा नहीं कि टीकाकरण के रास्ते में आने वाली बाधायें महज़ लोगों के बीच डर से लेकर अस्पतालों में वैक्सीन की कमी तक ही सीमित हों। किशनगंज के पोठिया प्रखंड पीएचसी में वैक्सीन देने वाली टीम खुराक देने का इंतज़ार करती रही, लेकिन लोगों ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी, हालांकि लोगों ने इसे लेकर किसी तरह का कोई डर भी नहीं जताया।

सासाराम ज़िला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आरपी सिंह के मुताबिक़, 21 जुलाई से टीकाकरण अभियान की राह में किसी भी तरह की वैक्सीन की कमी के कारण कोई बाधा नहीं आयी है। लेकिन, सहरसा, गोपालगंज, पश्चिम चंपारण, आरा, किशनगंज, सीवान के अस्पतालों में भी वैक्सीन की कमी से जूझने की ख़बर है। पटना में चल रहे टीकाकरण अभियान के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि जुलाई के पहले सप्ताह तक एक लाख खुराक देने का लक्ष्य महज़ 30,000 खुराक के साथ ही ख़त्म हो गया और इसके पीछे का कारण टीके की आपूर्ति का अनिश्चत होना था।

सरकार ने अगले छह महीनों के लिए सप्ताह में चार दिन रोज़ाना 4.54 लाख खुराक देने का लक्ष्य रखा है। 25 जुलाई तक राज्य में टीकाकरण कराने वालों की कुल संख्या 2.2 करोड़ थी।

पटना में रह रेह डॉ शकील राज्य में जन स्वास्थ्य अभियान के संयोजक हैं और वह मानते हैं कि इस टीकाकरण अभियान की स्थिति संदिग्ध और गंभीर है, क्योंकि एसओपी सिर्फ़ काग़ज़ों पर हैं और ज़मीन पर लागू नहीं हो रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य की शहरी आबादी जहां वैक्सीन की कमी से जूझ रही है, वहीं बिहार की ग्रामीण आबादी वैक्सीन लेने की झिझक और कमी,दोनों से जूझ रही है।

9.2% की राष्ट्रीय औसत टीकाकरण दर के मुक़ाबले महज़ 4.2 फ़ीसदी दर के साथ बिहार जूझता हुआ दिख रहा है, जो कि एक कड़वी हक़ीक़त है। डॉ शकील कहते हैं, "ऐसे में यह दावा कि दिसंबर तक 6 करोड़ आबादी को टीकाकरण के तहत ले आया जायेगा,एक नामुमकिन दावा है।"  

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Bihar: Vaccine Scare and Scarcity Pose Hurdle in Battle Against COVID-19

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