बंगाल के लिए भाजपा के तीन सबसे बड़े एजेंडे: सांप्रदायिकता, ध्रुवीकरण और लामबंदी
कोलकाता : “ आप उन दरों के बारे में जानते हैं, जिनसे रोहिंग्या गुणा-भाग करते हैं। यह हिंदुओं की दर से 80 गुनी ज्यादा है,” एक अधेड़ आदमी कोलकाता के दक्षिण में बसे तालपुकुर क्षेत्र में बाघाजतिन स्टेशन रोड पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की एक नुक्कड़ सभा में भाषण कर रहा था। यह 20 दिसंबर की बात है।
उस आदमी ने आगे कहा, “ ममता बनर्जी सरकार रोहिंग्यों का खुले हाथों से स्वागत कर रही है। ये रोहिंग्या पूरे पश्चिम बंगाल में फैल गए हैं-मालदा, मुर्शिदाबाद उत्तर दिनाजपुर, 24 नार्थ परगना और 24 साउथ परगना, नाडिया जिलों तक, और कहां-कहां नहीं फैले हैं ये! यह पश्चिम बंगाल की आबादी संरचना को बदलने की साजिश है। और एक बार मुसलमान यहां बहुमत में आ गए, तो यहां के हिंदुओं को उसी तरह से उत्पीडत किया जाएगा जैसा कि बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ होता है।”
जो आदमी भाषण कर रहा था, वह भाजपा के जादवपुर उत्तरी मंडल का पूर्व अध्यक्ष संदीप बागची था। इस नुक्कड़ सभा का आयोजन पार्टी की संगठनात्मक इकाई शक्ति केंद्र ने किया था। भाषण का कंटेंट किसी मतिभ्रम का मामला नहीं था। यह पश्चिम बंगाल के भाजपा के, राज्य स्तर से लेकर जिला स्तर और जिला से प्रखंड स्तर तक के नेताओं की यह केंद्रीय थीम है।
30 नवंबर को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, “पश्चिम बंगाल को पश्चिमी बांग्लादेश में बदल देने की साजिश रची गई है। दीदीमोनी ( प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आमतौर पर दीदी कहा जाता है) तमाम घुसपैठियों को वोटर में बदल दिया है, इस्लामिक आतंकवादी पश्चिम बंगाल से भारत में घुसपैठ कर रहे हैं और फिर भी पूरे देश में फैल जा रहे हैं। बांग्लादेश से भगाए गए लाखों हिंदू यहां शरणार्थी के रूप में रहे हैं। अगर आप ( यानी हिंदू) इन्हें फिर यहां से भगाना चाहते हैं तो टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) को वोट देँ”।
इसके पहले बंगाल में पार्टी के प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ममता बनर्जी को “30% की सरकार” कहा था, स्पष्टता है कि यह बात राज्य की मुस्लिम आबादी को इंगित कर कही गई थी, जो 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की कुल आबादी का 27 फीसद है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भी ममता बनर्जी सरकार पर “तुष्टीकरण की राजनीति” करने का आरोप बार-बार लगाया है।
अभी हाल ही में ममता बनर्जी के इस आरोप का कि कुछ बाहरी राज्यों के लोग बंगाल की संस्कृति और राजनीति को प्रभावित करने आ रहे हैं, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष घोष ने एक हफ्ते पहले कहा : “वह मोदी जी और अमित शाह को बाहरी व्यक्ति बताती हैं लेकिन रोहिंग्या उनके लाडले हैं।”
रोहिंग्या के इर्द-गिर्द भाजपा का नैरेटिव अगर असत्य नहीं तो अतिरंजित अवश्य है, क्योंकि रोहिंग्या मुसलमानों का केवल एक ही सेटलमेंट है, दक्षिणी 24 परगना जिले के बरूईपुर इलाके में। यह सेटलमेंट बांग्लादेश से नहीं, म्यांमार से आए हुए रोहिंग्या मुसलमानों का है, जो पूरे विश्व में सबसे ज्यादा उत्पीड़ित समुदाय है।
इस सेटलमेंट हाउस में 100 से थोड़े ही ज्यादा रोहिंग्या हैं, जो सीधे बांग्लादेश की सीमा पार कर यहां नहीं घुस आए हैं, बल्कि यहां आने के पहले हरियाणा में वे महीनों से रह रहे थे और टूटी-फूटी हिंदी भी बोल लेते हैं। यद्यपि वे उत्तरी भारत में 2019 के मध्य में आए। चूंकि रोहिंग्या बंगाली नहीं बोल सकते, जो पश्चिम बंगाल की मुख्य भाषा है, इसलिए उनके लिए अपनी पहचान छिपाकर रहना आसान नहीं है।
फिर भी, तथाकथित मुसलमानों के तुष्टीकरण के विरुद्ध हिंदू ध्रुवीकरण करना बंगाल के लिए भाजपा के तीन एजेंडों में टॉप पर है। बाकी दो अन्य हैं, भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों और केंद्रीय मंत्रियों का बंगाल सरकार के विरुद्ध ध्रुवीकरण करना; और यहां की जनता की लामबंदी के लिए राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व-संसाधनों को नियोजित करना।
संक्षेप में, भाजपा के बंगाल एजेंडा को तीन शब्दों में विवेचित किया जा सकता है : सांप्रदायिककरण, ध्रुवीकरण और लामबंदी।
इस सूची में पहले एजेंडे को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार द्वारा औपचारिक रूप से ‘हिंदू जागरण’, ‘हिंदुओं के सरोकारों के बारे में आवाज उठाना’, ‘बंगाल के इस्लामीकरण के खिलाफ हिंदू एकता’ और ‘पश्चिम बंगाल की मौलिक संस्कृति, विरासत और जनसांख्यिकी को संरक्षित करना’ बताया जाता है।
राम मंदिर आंदोलन से जुड़े ‘जय श्री राम’ नारा 2017 से ही राज्य के राजनीतिक नारों में सबसे तेज उभरा है क्योंकि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विभिन्न संगठनों के सभी अवसरों पर दिये जाने वाले भाषणों का समापन ही ‘जय श्रीराम” के नारे के साथ होता है।
संगठनों की पूरी श्रृंखला इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। इसमें आरएसएस और उसकी आनुषंगिक इकाइयां, जैसे विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), बजरंग दल, हिंदू जागरण मंच(एचजेएम), एकल अभियान, वनवासी कल्याण आश्रम, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) और अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षण महासंघ शामिल हैं।
उदाहरण के लिए, वीएचपी, बजरंग दल और एचजेएम ‘जिहादी मुक्त बांग्ला’, की मांग करते हुए मुहिमें चलाते रहे हैं। इस मांग को भाजपा के बहुस्तरीय नेता भी उठाते रहे। वहीं दूसरी ओर, बीएमएस कामगारों के बीच यह अभियान चलाते रहे हैं कि बांग्लादेशी घुसपैठिए स्थानीय लोगों की नौकरियां खा रहे हैं।
भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसके लिए घुसपैठिए का मतलब सिर्फ मुसलमान हैं, जबकि वह यहां आए हिंदूवादी समेत दूसरे धार्मिक समुदायों के लोगों को शरणार्थी कहती है और उन्हें बांग्लादेश में होने वाले धार्मिक उत्पीड़न के शिकार करार देती है।
भाजपा का दूसरा एजेंडा तृणमूल कांग्रेस सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के पर अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करते हुए तीसरी पार्टी- वामदलों और कांग्रेस में संभावित गठबंधन- को दरकिनार करना है।
इस मकसद के लिए, ममता बनर्जी प्रशासन की अक्षमताओं-विफलताओं को ‘उजागर’ करने में केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तरह की अवधारणा बनाई जाएगी कि केवल भाजपा ही, केंद्र में सरकार के साथ, टीएमसी का सामना करने में सक्षम है। अप्रैल मई-जून के दौरान राज्य सरकार का विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के साथ पंगा हुआ है, जो कोविड-19 से संबंधित संकट का हल करने में ममता सरकार पर अक्षमता के आरोप लगाते रहे हैं।
पिछले कुछ महीनों में, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय एजेंसियों ने पश्चिम बंगाल में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं।
एनआईए ने इस साल पश्चिम बंगाल में संदिग्ध आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े छह मामले दर्ज किए हैं जबकि 2016, 2015 और 2014 में एक-एक मामला ही दर्ज किया गया था। इस साल सितंबर में, एनआईए द्वारा भारत की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाला जिला मुर्शिदाबाद से छह संदिग्ध अलकायदा आतंकवादियों के गिरफ्तार किए जाने के बाद से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष घोष ने आरोप लगाया कि यह मामला गवाह है कि राज्य सरकार अपने राजनीतिक फायदों के लिए आतंकवादियों को जानबूझकर शरण दी हुई है।
विगत दो महीनों से सीबीआई मवेशी तस्करों और कोल माफिया के खिलाफ अभियान तेज की हुई है।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने नारद न्यूज़ स्टिंग ऑपरेशन में नगदी लेते देखे गए टीएमसी नेताओं को नोटिस भेजना शुरू कर दिया है। नारद स्टिंग ऑपरेशन 2016 में प्रकाशित हुआ था। ईडी की नोटिस में नेताओं को 2008 से अपनी आय और परिसंपत्तियों के ब्योरे मांगा गया है।
इन कवायदों पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम का कहना है,“अगर भाजपा नारद स्टिंग ऑपरेशन के खुलासे पर जरा भी गंभीर होती तो वह फुटेज में दिखाए गए टीएमसी नेताओं के खिलाफ संसद में विशेषाधिकार का प्रस्ताव ला सकती थी। लेकिन टीएमसी और बीजेपी दोनों में गुपचुप तालमेल है। इसीलिए, 2021 में संभावित विधानसभा चुनाव के पहले नोटिस भेजने का यह ड्रामा है। वे केवल टीएमसी बनाम भाजपा का ध्रुवीकरण करना चाहते हैं और कुछ नहीं।”
सीबीआई भी नारद घोटाले की जांच कर रही है। इस मामले में टीएमसी के अनेक वरिष्ठ नेताओं, जिनमें सांसद और राज्य के मंत्री भी शामिल हैं, ने अपनी आवाजों के नमूने दो साल पहले ही सीबीआई को सौंप दिए थे।
भाजपा के अभियान में अकेले एजेंसियां ही शामिल नहीं हैं। बिल्कुल अभी-अभी, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य में तैनात भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के तीन ऑफिसर को अपने यहां बुलाने की कवायद की है, इसका मतलब आईपीएस और आईएएस अफसरों को यह संदेश देना था कि वे अंततः केंद्र सरकार के मातहत हैं और उन्हें भाजपा के खिलाफ राज्य प्रशासन के पक्ष में खड़े होने के पहले दो बार सोचना चाहिए।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन तीनों आईपीएस अफसरों को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की सुरक्षा में चूक के लिए जवाबदेह ठहराया था। पश्चिम बंगाल दौरे पर आये नड्डा के काफिले पर डायमंड हारबर इलाके में टीएमसी समर्थकों ने कथित रूप से उन पर हमला कर दिया था। इसकी चपेट में कई वाहन आ गए थे।
ममता बनर्जी सरकार ने अपने यहां तैनात अफसरों के केंद्र में तबादला किए जाने पर कड़ा एक्शन लिया था और उन्होंने केंद्र सरकार के इस फरमान को मानने से इनकार कर दिया था। इस मामले को अदालत में भी ले जाया जा सकता है। ममता की सरकार ने केंद्र पर भारत के संघीय ढांचे को तहस-नहस करने का आरोप लगाया। इस पर उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के सुप्रीमो एम के स्टालिन और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भी समर्थन मिला।
भाजपा का बंगाल में तीसरा एजेंडा, राज्यों एवं केंद्र सरकार के मंत्रियों, तथा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों के पार्टी नेताओं को प्रत्येक जिले की चुनावी तैयारी को देखने का जिम्मा सौंपा गया है। इन नेताओं ने पश्चिम बंगाल का दौरा भी शुरू कर दिया है।
इनमें उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पश्चिम बंगाल के कई जिलों के दौरे कर लौट गए हैं। इनके अलावा, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, (पूर्व मंत्री) संजीव बलियान, गजेंद्र सिंह शेखावत, मनसुख मांडवीय, प्रहलाद सिंह पटेल और मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित अनेक नेता शामिल हैं।
भाजपा की राज्य इकाई के एक नेता, जो अपना नाम उजागर करना नहीं चाहते हैं, ने बताया, “इन नेताओं को खास-खास क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है। जैसे, मौर्य हावड़ा और हुगली जिले पर अपना ध्यान लगाएंगे, मिश्रा पूर्वी और पश्चिमी वर्धमान जिले, मुंडा पुरुलिया और झाड़ग्राम जिले, तथा बलिया उत्तरी बंगाल को देखेंगे.” इस नेता ने बताया “ और नेता आने वाले हैं। विभिन्न स्तरों और कदों के इन बाहरी नेताओं को राज्य की 294 विधानसभा सीटों पर नियुक्त किया गया है।”
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष घोष के मुताबिक, लोक-समर्थन और मोदी जी की आम लोगों के बीच विशिष्ट अपील तथा अमित शाह की संगठनात्मक कुशलता उनकी पार्टी की मुख्य शक्ति है।
घोष पूछते हैं“ अब अगर दूसरे राज्यों से हमारे प्रतिबद्ध नेता-गण और कार्यकर्ता यहां आते हैं तो इनसे भला टीएमसी को क्या परेशानी है? क्या पश्चिम बंगाल भारत का हिस्सा नहीं है? इसके अलावा टीएमसी भी तो प्रशांत किशोर जैसे पेशेवर से मदद ले रही है। तो क्या प्रशांत किशोर बाहरी नहीं हैं?”
टीएमसी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद सुखेन्दु रॉय कहते हैं, “भाजपा केंद्रीय एजेंसियों और बाहरी राज्यों के नेताओं को चुनाव में इसलिए इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है क्योंकि पश्चिम बंगाल में उसकी संगठनात्मक शक्ति नहीं है।” सुखेन्दु कहते हैं,“ वे धर्म के आधार पर लोगों को बांटने का प्रयास कर रहे हैं। बाहरी लोगों, जिन्हें बंगाल की संस्कृति और विरासत का कोई ज्ञान नहीं है, राज्य में डेरा डाल कर कानून-व्यवस्था के लिए दिक्कतें पैदा करने लगे हैं ताकि बाद में भाजपा राष्ट्रपति शासन थोपने की मांग कर सकें। हमारे नेताओं को डराने-धमकाने और इस तरह उन्हें भाजपा में ले जाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर रहे हैं।”
बंगवासी कॉलेज, कोलकाता में राजनीतिक विज्ञान पढ़ाने वाले और राजनीतिक विश्लेषक उदयन बंधोपाध्याय के अनुसार, “भाजपा को उत्तरी और दक्षिण-पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से में हिंदुत्व एजेंडे का कुछ लाभ मिल सकता है। यद्यपि उन्हें महसूस होता है कि भाजपा को केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल और केंद्रीय नेतृत्व का लाभ 2021 के विधानसभा चुनाव में उस तरह से नहीं मिलेगा, जैसा उसे 2019 के लोक सभा चुनाव में मिला था।”
बंधोपाध्याय कहते हैं,“विगत आम चुनाव में भाजपा को अभूतपूर्व सफलता इसलिए मिल गई थी कि वामदलों का बड़ा वोट टैक्टिकली उसकी तरफ शिफ्ट हो गया था। उसके पहले, वाम समर्थक टीएमसी के अत्याचारों से पीड़ित थे, उन्हें कई पुलिस केसों में फंसा दिया गया था और इस तरह से उन्हें अपनी जगह से बाहर कर दिया गया था। यहां तक कि अमिय पात्रा और निरंजन सिही जैसे उसके नेता भी टीएमसी के अत्याचार से नहीं बच सके थे। इसके विपरीत, भाजपा का अपने राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को भेजना जारी रखना, केंद्रीय जांच एजेंसियों की पहरेदारी, और प्रतिबद्ध कार्यकर्ता; इस स्थिति ने कई वामपंथी समर्थकों को यह सोचने पर विवश किया था कि केंद्र की सत्ता में काबिज भाजपा राज्य में टीएमसी के उत्पीड़न से उन्हें बचा सकती है।” उन्होंने आगे कहा, “ अब जबकि वामदल काफी मेहनत कर रहा है तो मैं यह उम्मीद कर रहा हूं कि वाम मोर्चे के वोट का जो हिस्सा बीजेपी मैं चला गया था, वह उसके पास लौट सकता है।”
कोलकाता की रवीन्द्र भारती यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि टीएमसी के मुकाबले भाजपा के सबसे बड़े हथियारों में उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त अपील के साथ मानव संसाधन( राष्ट्रीय नेतृत्व के मामले में) और वित्तीय संसाधनों की प्रचुरता है। चक्रवर्ती कहते हैं, “ हालांकि मेरे दृष्टिकोण में भाजपा का सबसे बड़ा लाभ बंगाल की राजनीति में उसका नया खिलाड़ी होना है और जिसे अभी परखा नहीं गया है।”
पश्चिम बंगाल में भाजपा परंपरागत रूप से हाशिये की ताकत रही है और केंद्र की सत्ता में मोदी के उद्भव के बाद ही उसमें उल्लेखनीय उभार आया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में, भाजपा को प्रदेश की कुल 42 सीटों में से 18 सीटें मिली थीं। टीएमसी को सर्वाधिक 22 सीटें मिली थीं।
(स्निग्धेन्दु एक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक और शोधार्थी हैं।)
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
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