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'चित भी मेरी पट भी मेरी और सिक्का अडानी अम्बानी का !'

मोदी जी ने छोटे शहरों में उड़ान योजना के अंतर्गत हवाई सेवा के जो लाइसेंस बांटे हैं वह पवनहंस के नाम हैं, अब वह सीधे-सीधे उस कम्पनी को मिल जाएंगे जो पवनहंस खरीदने वाला है।
pawan hans
Image Courtesy: Indian Express

सरकारी हेलीकॉप्टर सेवा पवनहंस लिमिटेड के कर्मचारियों के संगठन ने कंपनी की विनिवेश प्रक्रिया में कथित अनियमितता का आरोप लगाते हुये नागर विमानन मंत्रालय से बोली के नियमों/ पात्रता की शर्तों को फिर से तय करने का आग्रह किया है।

आपको शायद याद होगा कि कुछ महीने पहले पवनहंस को किस तरह से निजी क्षेत्र को सौंपने की साजिश की जा रही है। इस पर एक पोस्ट लिखी थी। आज उस पोस्ट के निष्कर्ष पर मुहर लग गयी है।

दरअसल पवन हंस में नागर विमानन मंत्रालय के जरिये सरकार की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है। बाकी 49 प्रतिशत हिस्सेदारी ओएनजीसी की है। सरकार द्वारा लंबे समय से इसे बेचने की कोशिश की जा रही है लेकिन निजी क्षेत्र से कोई भी इस 51 फीसदी हिस्सेदारी को खरीदने को तैयार नहीं हुआ। मोदी सरकार में ONGC में संबित पात्रा जैसे आदमी निदेशक पद पर बिठाया गया और उसके बाद ONGC भी पवनहंस में अपनी हिस्सेदारी बेचने को राजी हो गया सरकार ने अगस्त में साफ किया कि पवनहंस में उसकी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए बोली लगाने वालों को कंपनी में ओएनजीसी की शेष 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने का भी विकल्प होगा।

लेकिन कल पवन हंस संयुक्त कर्मचारी फोरम ने विभाग के मंत्री को चिट्ठी लिख कर साफ कह दिया कि "हम कंपनी की विनिवेश प्रक्रिया में दोष पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं... बोली लगाने वाली जो इकाइयां कंपनी की आधी हिस्सेदारी के लिये ही पात्र हैं, उन्हें पूरी हिस्सेदारी देने का प्रस्ताव किया जा रहा है। यह सिर्फ न सिर्फ इन इकाइयों को अनुचित लाभ पहुंचाने के सामान है बल्कि कंपनी को अक्षम और अयोग्य खरीदार के हाथों में सौंपने जैसा काम होगा।"

पहले भी पवन हंस लिमिटेड कर्मचारी संघ ने सरकार से इस कंपनी निजीकरण नहीं करने का आग्रह किया था। उनका सुझाव था कि लाभ में चल रही इस कंपनी का सरकारी क्षेत्र के हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ विलय कर दिया जाना चाहिए लेकिन सरकार ने इसमे भी रुचि नही ली।

वैसे पवन हंस में सरकार जो हिस्सेदारी बेच रही है, इसकी रकम 500 करोड़ रुपये के आसपास है इसके लिए ऑल इंडिया सिविल एविएशन एंप्लॉयीज यूनियन ने ऑनरशिप ट्रांजेक्शन के लिए दुबई की मार्टिन कंसल्टिंग से सलाह ली थी और उसने यह रास्ता सुझाया कि एंप्लॉयीज किसी प्राइवेट इक्विटी या वेंचर कैपिटल फंड के साथ समझौता करेंगे जो उनकी तरफ से सरकारे के शेयर खरीदेगा। इसके लिए उन्हें 10 प्रतिशत तक का स्टॉक ऑप्शन दिया जाएगा। लेकिन यदि ऐसा हो जाता तो यह वाकई ऐतिहासिक कदम होता लेकिन मोदी सरकार को तो येन केन प्रकारेण इस सौदे को निजी क्षेत्र को ही सौंपना है। उसने ऐसी शर्ते लाद दीं कि पवनहंस कर्मचारियों के पास न जाने पाए

वैसे इस वक्त पवन हंस के बेड़े में 42 हेलीकाप्टर हैं। पवनहंस अपने तरह की सेवा में एशिया में आज भी पहले नंबर पर है। पवनहंस 1992 से लाभ अर्जित कर रही है और 2014-15 के संदर्भ में कंपनी ने 223.69 करोड़ रुपये का लाभांश भी सरकार को चुकाया है।

मोदी जी ने छोटे शहरों में उड़ान योजना के अंतर्गत हवाई सेवा के जो लाइसेंस बांटे हैं वह पवनहंस के नाम हैं, अब वह सीधे-सीधे उस कम्पनी को मिल जाएंगे जो पवनहंस खरीदने वाला है। दरअसल पवनहंस को 7 लाख घंटे की उड़ान का अनुभव प्राप्त हैं जिसका मुकाबला अन्य कोई नयी कम्पनी नहीं कर सकती।

यह सारा खेल इसीलिए रचा गया थाली पूरी तरह से भरकर अपने मित्र उद्योगपतियों को सौंप दी जाएगी और साथ ही साथ विनिवेश का लक्ष्य हासिल हो जाने पर खुद की पीठ भी ठोक ली जाएगी। इसे कहते है 'चित भी मेरी पट भी मेरी और सिक्का अडानी अम्बानी का !'

 

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं। उनका ये लेख उनके फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।)

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