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चंद्रशेखर आज़ाद 'रावण’ जेल में बंद, भीम आर्मी द्वार लोगों को संगठित करने का प्रयास जारी

योगी आदित्यनाथ के अगुवाई वाली बीजेपी सरकार खुले तौर पर उच्च जातियों के गुंडों को प्रश्रय दे रही है और एनएसए के तहत जेल में बंद अपने नेता के बावजूद भीम आर्मी उत्तर प्रदेश के बाहर भी लोगों को संगठित करने का प्रयास कर रही है।
भीम आर्मी

भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आज़ाद 'रावण' के छोटे भाई कमल किशोर ने कहा कि "ये अफवाह है कि वे हमें तीनों भाईयों को मारना चाहते हैं।" किशोर ने ये बात पश्चिमी उत्तर प्रदेश के देहरादून रोड पर सहारनपुर के नज़दीक छुतमलपुर में हरिजन बस्ती में चलते हुए कही।

31 वर्षीय चंद्रशेखर आजाद 'रावण' अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक मशहूर व्यक्ति बन चुके हैं। पिछले क़रीब एक साल से वे सहारनपुर जेल में क़ैद हैं, उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है, उनके समर्थकों का कहना है कि "पूरी तरह से गढ़े गए आरोप हैं।"

इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके ख़िलाफ़ सभी आरोपों को रद्द करने के बाद, उन पर सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया, इसके तहत किसी को भी अनिश्चित अवधि के लिए जेल भेजा जा सकता है।

उनके भूमिगत हो जाने के बाद पिछले साल 9 जून को हिमाचल प्रदेश के डलहौजी से चंद्रशेखर को उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। एक साल बाद भी सहारनपुर में और इसके आसपास स्थिति तनावपूर्ण है। उच्चजाति के ठाकुर समुदाय के लोगों द्वारा 9 मई 2017 को शब्बीरपुर गाँव में दलितों पर हमला किया गया और उनके घरों को जलाया गया। दलितों पर हमला सिर्फ इसलिए किया गया क्योंकि वे डॉ बी.आर. अम्बेडकर की मूर्ति स्थापित करना चाहते थे।

 

सहारनपुर

शब्बीरपुर गांव में मई 2017 को जलाए गए दलितों के घरों का अवशेष।

अब स्थानीय परिदृश्य एक बार फिर अस्थिर हो गया है क्योंकि भीम आर्मी के ज़िला अध्यक्ष कमल वालिया के छोटे भाई सचिन वालिया को इस साल 9 मई को रामनगर में गोली मार दी गई। उग्र उच्च जाति समूहों मुख्य रूप से ठाकुर महाराणा प्रताप जयंती मनाने की तैयारी कर रहे थे। यहाँ तक कि पुलिस के वक्तव्य के अनुसार स्थिति शांतिपूर्ण थी और रामनगर में दलितों की तरफ से कोई विरोध नहीं था, जहाँ उनकी काफी संख्या है। शव परीक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक़ .315 मिमी पिस्तौल की एक गोली सचिन के निचले होंठ में लगी जो उसके दिमाग में प्रवेश कर गई जिससे मौत हो गई।

सचिन विज्ञान से स्नातक किए हुए था और भीम आर्मी का मीडिया संयोजक था। स्थानीय लोग कहते हैं कि वह बिल्कुल अपने भाई कमल की तरह दिखता था और यह उसकी हत्या के पीछे का एक संभावित कारण हो सकता है। सचिन के अंतिम संस्कार के तीन दिन बाद तक पूरा रामनगर शोक में डूबा था। सचिन की माँ निरंतर रो रही थी। वह और उनके परिवार के सदस्य संवाददाता से बात करने की स्थिति में नहीं थे।

सहारनपुर

रामनगर में सचिन वालिया की शोक सभा की तैयारी करते लोग

12 मई को रामनगर इलाके को सशस्त्र रैपिड एक्शन फोर्स और बख्तरबंद वाहनों के साथ यूपी पुलिस द्वारा अवरुद्ध कर दिया गया था। लेकिन युवा- ज्यादातर छात्र और स्नातक, कई लोग जींस, टी-शर्ट, स्नीकर्स और नीला स्कार्फ पहने हुए दलित आंदोलन का प्रतिनिधित्व करते हुए - रामनगर के अम्बेडकर भवन में पूरे सहारनपुर ज़िले से इकट्ठा हुए थें। ये लोग इस चिलचिलाती गर्मी में एक सफेद तम्बू में डॉ बीआर अम्बेडकर की एक छोटी प्रतिमा के साथ इकट्ठा हुए थें।

एक युवा स्नातक राजन गौतम ने कहा, "पुलिस हमारे लोगों को शोक मनाने के लिए इकट्ठा होने से रोक रही है। जब वे हमें गोली मारते हैं तो क्या हम शोक भी नहीं मना सकते? उन्होंने हमारे भाई को गोली मार दी है, और पुलिस ने हमलोगों को घेर लिया है जैसे कि हम हत्यारे हैं! उन्होंने हमें इस तरह क्यों घेर रखा है? क्या हम शोक के लिए बैठक भी नहीं कर सकते हैं।"

शब्बीरपुर में दलितों के घरों के जलने का विरोध करने के बाद पिछले साल अन्य लड़कों के साथ राजन को भी पुलिस ने उठाया था। उन्हें हिरासत में पीटा गया था और अन्य लोगों की तरह, "यातना दी गई और तीसरे डिग्री का व्यवहार किया गया"। "तीसरी डिग्री" आमतौर पर युवा, यहां पर शिक्षित दलितों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। दलितों पर पुलिस द्वारा अत्याचार ठाकुरों के आजाद घूमने को लेकर वे इसका इस्तेमाल करते हैं।

गौतम ने कहा, "हम अपना जन्मदिन भी मना सकते हैं क्योंकि पुलिस हमें अनुमति नहीं देती है।" "हमें गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस पर बाइक रैलियां निकालने की अनुमति नहीं दी जाती है। लेकिन उच्च जाति जिन्हें बीजेपी और पुलिस की सहायता मिलती है उन्हें नग्न तलवारों और हथियारों के प्रदर्शन की अनुमति होती है। उन्हें अम्बेडकर के ख़िलाफ़ दुर्व्यवहार करने सहित नफरत वाले नारे लगाने की अनुमति होती है। वे उन पर धारा144 नहीं लगाते हैं।"

रामनगर में क़रीब 1,500 दलित परिवार हैं। नंदगांव के नज़दीक में लगभग 400 से 500 मुस्लिम परिवार हैं, इनमें से कुछ ने खबर सुनने के बाद सचिन की मदद करने को पहुंचे थें। वे भीम आर्मी के सहयोगी हैं जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैले हैं - खासकर सहारनपुर और आसपास के क्षेत्रों जैसे थाना भवन, नकुर, शामली, मुज़फ्फरनगर, छुतमलपुर, बागपत, बरौत, खतौली और मुजफ्फरनगर में फैले हैं।

विशेष रूप से वर्तमान परिस्थितियों में जेल में चंद्रशेखर से मिलना असंभव है। उनकी माँ और भाइयों के यदा-कदा मिलने को छोड़कर जेल अधिकारियों ने मिलने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। पिछले एक साल में उनकी माँ ने उनसे केवल 15 बार ही मुलाकात की है। किसी तरह घर से बना भोजन देने की अनुमति नहीं है। केवल एक बार चंद्रशेखर ने घर की बनी सब्जियां और चपाती के लिए कहा था - लेकिन उसकी भी अनुमति नहीं दी गई थी।

भीम आर्मी

चंद्रशेखर का मां कमलेश देवी (बीच में), अपने बेटे भगत सिंह (बाएंऔर कमल किशोर (दाहिनेके साथ छुतमलपुर में।

इस साल 14 अप्रैल को अम्बेडकर की जयंती पर उनकी माँ ने अपने बेटे के लिए 'खीर' बनाया था लेकिन जेल अधिकारियों ने इसे जेल में ले जाने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने ये पकवान बनाया क्योंकि चंद्रशेखर जेल में अपना उपवास तोड़ रहे थें और इस तरह उन्होंने आठ दिनों तक पानी नहीं पीया और दस दिनों तक भोजन नहीं खाया। वह एससी / एसटी अधिनियम को कमज़ोर करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे थें, जिसके चलते पूरे भारत में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ। चंद्रशेखर को अधिकारियों ने उपवास तोड़ने के लिए मजबूर किया गया, उन्हें ट्यूब के ज़रिए पानी दिया गया; उन्हें कहा गया कि यदि उनका समुदाय सामूहिक व्रत में उनके साथ शामिल होता है तो इससे सामूहिक हिंसा हो सकती है।

उन्होंने अपनी माँ और भाइयों को स्पष्ट रूप से बताया कि वह जेल में मरने को तैयार हैं - वह समझौता नहीं करेंगे। "अगर मैं बाहर निकला से इनकी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाएगी, मैं इनको नाको चने चबवा दूंगा"। चंद्रशेखर का मानना है कि यही कारण है कि 201 9 के अगले लोकसभा चुनाव तक एनएसए को उनके ख़िलाफ़ बढ़ा दिया गया है।

उनकी माँ कहती हैं कि उन्होंने उनसे कहा, "मेरे बारे में चिंतित क्यों हो जब पूरा बहुजन समाज को कुचल दिया गया है और वे पीड़ित हैं। जब बाबासाहेब और उनके परिवार को इतनी पीड़ा हो सकती थी, जब उन्हें अपने बहुत से बच्चों को खोना पड़ा तो आप अपने बेटों में से किसी एक के खोने से डरते क्यों हैं? अगर आप जेल में आते हैं, तो बहादुर बनिए। रोइए मत। मैं भयभीत नहीं हूँ। मैं अंत तक न्याय के लिए लड़ूंगा।"

चंद्रशेखर पेशे से वकील है। उन्होंने देहरादून में डीएवी पीजी कॉलेज में क़ानून की पढ़ाई की है, और वहां अदालतों में प्रैक्टिस किया। जब उन्होंने पाया कि दलित छात्रों के ख़िलाफ़ छुतमलपुर के स्थानीय इंटर कॉलेज में भेदभाव किया गया और उनसे दुर्व्यवहार किया गया तो उन्होंने भीम आर्मी बनाई। उन्होंने बच्चों को एकजुट होने और वापस लड़ने के लिए कहा - और उच्च जातियों के बीच भय पैदा करने के लिए कहा। तब उच्च जातियों ने 'चमार' की शक्ति समझा। 'ग्रेट चमार' की अवधारणा जो कि भीम सेना का नारा है, दीवारों, मील के पत्थरों और नीली टोपी पर लिखे गए। ये नारा 27 मई, 2014 को वहां से शुरू हुई।

उन्होंने दलित बच्चों को शिक्षित करने के लिए एक अभियान शुरू किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों, मुसलमानों और अन्य उत्पीड़ित समुदायों के बच्चों के साथ 350 से अधिक मुफ्त स्कूल हैं जिसे भीम आर्मी द्वारा संचालित किया जाता है। छुआछूत को समाप्त करने के लिए उन्होंने रक्तदान शिविर शुरू किया। आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए उन्होंने प्रत्येक परिवार से 10 रुपए इकट्ठा करने का अभियान शुरू किया, जिसे प्रत्येक रवि दास मंदिर के दान बॉक्स में रखा जाएगा। (रवि दास भारत में दलितों के 'गुरुजनों' में से एक हैं।) इस पैसे का इस्तेमाल सामाजिक हितों के लिए किया जाएगा जिसमें ग़रीब दलित युवतियों का विवाह भी शामिल हैं।

अपने ज़मीनी रणनीति के रूप में भीम आर्मी चुनाव राजनीति में विश्वास नहीं करती है। वे दृढ़ता से मुखर हैं लेकिन अहिंसक हैं, शिक्षा पर काम कर रहे हैं, बाइक रैलियां निकालते हैं, और युवाओं और ज़मीनी स्तर पर समुदायों को संगठित कर रहे हैं - उन्हें रोजमर्रा के अत्याचारों और जातिगत लड़ाई के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए नैतिक और सामाजिक शक्ति देते हैं। ज़ाहिर है, राहुल गांधी, राज बब्बर, हरीश रावत और जिग्नेश मेवानी जैसे कई नेताओं ने उनसे मिलना चाहते थें लेकिन चंद्रशेखर ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया।

यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी शासन में मौजूदा दमनकारी माहौल में जो खुले तौर पर उच्च जाति के लोगों का समर्थन कर रही है ऐसे में भीम आर्मी के युवा सदस्य जेल में बंद अपने नेता के चलते लगता है कि वे कुछ खो गए हैं। राजन ने कहा, "201 9 के चुनाव तक हम एक मज़बूत समूह बने रहेंगे, और यूपी के बाहर भी लोगों को संगठित करना जारी रखेंगे।"

कमल किशोर ने कहा, "हमारा 26 राज्यों में नेटवर्क है।" उन्होंने कहा "यूपी और महाराष्ट्र हमारे लिए सबसे मज़बूत जगह हैं, बिहार में अब एक इकाई भी स्थापित कर रहे हैं। महाराष्ट्र में 500 नए भीम आर्मी स्कूल स्थापित किए गए हैं। हम सोशल मीडिया के माध्यम से भी काम करते हैं, जैसा हमने हाल ही में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम के कमजोर करने के ख़िलाफ़ भारत बंद के दौरान किया था। मुज़फ्फरनगर के हमारे नेता उपकर बाबरा अन्य नेता के साथ जेल में बंद हैं। हमने बड़ी संख्या में मुस्लिम भागीदारों के साथ पश्चिमी यूपी में कठुआ और उन्नाव बलात्कार के ख़िलाफ़ कैंडल मार्च का आयोजन किया।"

 

 

सहारनपुर

 रामनगर में एक दीवार पर लिखा बीआर अम्बेडकर का आदर्श वाक्य। तस्वीरः अमित सेनगुप्ताराजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि चंद्रशेखर पारिवारिक नाम है जो पूरे भारत में दलित समुदाय रखते हैं। जितना दिन वे जेल में बंद रहेंगे उतना ही वे प्रभावी व्यक्ति होंगे।

राजन ने कहा, "यूपी और दिल्ली में बीजेपी सरकार ने अत्याचारों की सभी हदों को पार कर दिया है।" "न केवल दलितों, बल्कि वे जेएनयू, एचसीयू और एएमयू और अल्पसंख्यकों के लिए क्या कर रहे हैं। हम रोहित वेमुला की आत्महत्या कभी नहीं भूल पाएंगे। हमारा एकमात्र उद्देश्य अब 2019 में बीजेपी को हराना है।"

तो 2019 में उनको कौन वोट देंगे? भीम आर्मी के सभी नेता सर्वसम्मत हैं कि वे जेल में बंद अपने नेता चंद्रशेखर की "राय" को मानेंगे, उनकी राय है: "अपने मत और विवेक के अनुसार वोट दें। आप एक स्वतंत्र नागरिक हैं। पूर्ण स्वतंत्रता के साथ वोट दें।"

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