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चुनाव 2019 ; दिल्ली : लड़ाई तीन पार्टियों के बीच नहीं ‘दो दिल्ली’ के बीच है

‘आप’ को गरीब वर्गों और निम्न मध्यम वर्ग का बड़ा समर्थन हासिल है, जबकि भाजपा और कांग्रेस मध्यम वर्ग के वोटों को पाने के लिए जूझ रहे हैं।
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: NDTV

दिल्ली वास्तव में एक नहीं बल्कि दो शहर हैं। एक कामकाजी लोगों से बना है – जिसमें औद्योगिक मज़दूर, असंगठित क्षेत्र के मज़दूर, छोटे दुकानदार और व्यापारी, दफ्तरों और दुकान के कर्मचारी, सभी प्रकार के सेवा प्रदाता और मैनुअल मज़दूर शामिल हैं। इस आबादी का विशाल हिस्सा ज्यादातर उन कॉलोनियों की परिधि मे रहता हैं जो अधिकृत या नियमित नहीं हो सकती हैं। वे हमेशा पीने के पानी और बिजली के लिए संघर्ष करते रहते हैं, वे काम पर जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल या साइकिल पर लंबी दूरी तय करते हैं; वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजते हैं और चरमराती हुई सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में शरण लेते हैं। यह दिल्ली का विशाल लेकिन 'छिपा हुआ पेट' है, जो पर्यटकों या यहां तक कि अधिक समृद्ध निवासियों के लिए हमेशा उनकी आँखों से झल रहता है।

फिर दिल्ली में एक आकांक्षी मध्यम और उच्च वर्ग भी मौजूद हैं, जो अधिकृत कॉलोनियों में रहते हैं, इनका बड़ा हिस्सा सेवा क्षेत्र में काम करता है, ये अपने बच्चों को निजी स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई के लिए भेजते हैं, उनके पास अपने वाहन हैं, और स्वास्थ्य के लिए निजी अस्पतालों का उपयोग करते हैं और मौज मस्ती के लिए रेस्तरां, मल्टीप्लेक्स और मॉल का इस्तेमाल करते हैं। यह साफ़ तौर पर नज़र आने वाला, जोर से सुनाई देने वाला तबका है जिसे गलती से पूरी दिल्ली मान लिया जाता है।

दिल्ली की सात संसदीय सीटों पर चुनावी लड़ाई में, शहर में इस विभाजन के साथ राजनीतिक लड़ाई की रेखाएँ खींची जाती हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) राज्य सरकार चलाती है, हालांकि कानूनी विलक्षणता के कारण उसकी ताकत गंभीर रूप से सीमित है, इसने सार्वजनिक क्षेत्र में पानी और बिजली की लागत को कम करने, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार करने के लिए तथा बेहतर सुविधाएं प्रदान करने जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। ऐसा नहीं है कि इसने हर समस्या को संबोधित किया है। लेकिन इसने इस ‘अदृश्य’ शहर के साथ स्पष्ट रूप से गठबंधन कर लिया है।

बंटा हुआ महानगर

2011 में, लगभग 1.7 करोड़ की अनुमानित आबादी में से, करीब 60 प्रतिशत लोग 2011-12 की राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार 13,500 रुपये की अल्प आय पर गुजर बसर करते थे। उसके बाद इस बाबत कोई सर्वे नहीं हुआ है। वर्तमान जनसंख्या लगभग 2 करोड़ (मतदाता 1.43 करोड़) है और उनका 60 प्रतिशत यानी लगभग 1.2 करोड़ (और इनमें लगभग 85 लाख मतदाता होंगे) होंगे।

2013 में की गई 6वीं आर्थिक जनगणना से पता चलता है कि दिल्ली में, विनिर्माण और अन्य गैर-सेवा क्षेत्रों में लगभग 10.68 लाख कर्मचारी और सेवा क्षेत्र में लगभग 19.34 लाख कर्मचारी काम करते हैं। चूंकि वर्तमान में दिल्ली में न्यूनतम मज़दूरी 1,3,000 रुपये प्रति माह है, और इन सभी 30 लाख श्रमिकों/कर्मचारियों को कम या ज्यादा मिल रहा है, ऐसा लगता है कि एनएसएसओ द्वारा पहले वर्णित तथ्य का अनुपात आज भी वैध है।

इसी रिपोर्ट से पता चलता है कि दिल्ली की लगभग 30 प्रतिशत आबादी प्रति माह 15,000 से 30,000 रुपये तक कमाती हैं और केवल 7 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो प्रति माह 30,000 से 1.2 लाख रुपये के बीच कमाते हैं। पिछले आठ वर्षों में आय की राशि में वृद्धि हुई होगी, लेकिन मुद्रास्फीति को समायोजित करने से आय का स्तर स्थिर है और ये अनुपात मोटे तौर पर 2011 की तरह ही होगा।

ध्यान दें कि यहां सेवा क्षेत्र का मतलब सिर्फ बिक्री अधिकारी और कंप्यूटर प्रोग्रामर नहीं है। वास्तव में, इस क्षेत्र के दुकानों और मॉल, या स्कूलों और अस्पतालों में काम कर रहे कर्मचारी हैं, या बहुत से लोग घर में नौकरानियों, सुरक्षा गार्ड, रसोइया और वॉशरमैन/कपड़े प्रेस वाला आदि के रूप में काम कर रहे हैं, फिर निर्माण श्रमिक हैं, रिक्शा चालक और ऑटो चालक आदि भी इसमें शामिल हैं।

यह वह जन समुदाय है जो न्यूनतम मजदूरी को लेकर संघर्ष करता है, तंग घरों/झोड़ी में रहता है, पानी और बिजली के लिए संघर्ष करता है और नौकरशाही और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है, यह वह तबका है जिसे ‘आप’ पार्टी को समर्थन मिलने की उम्मीद है।

भाजपा और कांग्रेस दिल्ली के दूसरे हिस्से यानी सभ्रांत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी दृष्टि विभिन्न घोषणापत्रों में प्रकट होती है, और जब वे सत्ता में आते हैं, तो अधिक फ्लाईओवर का निर्माण होता है, मुफ्त वाई-फाई प्रदान किया जाता है, अधिक कॉलेज खोलना और देश के ग्रामीण हिस्सों से महानगर में गरीब प्रवासियों की बाढ़ को रोकना है।

एक समय था जब कांग्रेस इन दोनों शहरों में राज करती थी, उसे अमीर और गरीब दोनों का समर्थन प्राप्त प्राप्त था। वह युग अब समाप्त हो गया है। 2015 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस केवल 10 प्रतिशत वोट शेयर के साथ समाप्त हो गई थी, यह उसका अब तक का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन है। भाजपा ने कुछ उतार-चढ़ाव के साथ औसतन लगभग 33-36 प्रतिशत मत हासिल किए थे। 2014 की मोदी लहर में भी, वह करीब 33 प्रतिशत वोट पाने में सफल रही थी, लेकिन कांग्रेस और ‘आप’ के बीच वोटों के बंटवारे के कारण उसने सभी सात सीटें जीत ली थीं

2019 की दिशा

‘आप’ संभवतः 2015 के विधानसभा चुनावों के अपने अभूतपूर्व 54 प्रतिशत वोट शेयर को दोहरा नहीं सकती है। जैसा कि पिछले चुनावों में दिखाई दिया था, कि दिल्ली के मतदाता स्थानीय निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अंतर करते हैं। यह इस वास्तविकता को स्वीकार करना है कि ‘आप’ पूर्ण राज्य की मांग को लेकर आगे बढ़ रही है जो एक संसदीय मुद्दा है, जिसमें कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इस पर रक्षात्मक हैं क्योंकि दोनों का कई दशकों तक इस पर फ़्लॉप होने का रिकॉर्ड है। जबकि ‘आप’ उक्त मुद्दों पर लोकसभा उम्मीदवारों के समर्थन के लिए गरीब वर्गों से समर्थन और सद्भावना हासिल करने की उम्मीद कर रही है।

भाजपा केवल एक चीज पर भरोसा करके चल रही है – केवल मोदी। उनका अभियान मुख्य रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा आदि - के साथ-साथ विभिन्न नीतियों और योजनाओं पर उनकी उपलब्धियों के बारे में है। हालांकि, कुछ प्रमुख मुद्दे हैं, भाजपा जिन्हे लोगों को समझा नहीं पाएगी। इनमें दो चीजें शामिल हैं जिनका व्यापारिक समुदाय की पूंजी पर हानिकारक प्रभाव पड़ा, जो संख्या में कम नहीं है। ये मुद्दे हैं: मास्टर प्लान कोड का उल्लंघन करने वाले वाणिज्यिक परिसरों को सील करना, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किया गया और जीएसटी को लागू करना। दोनों ने व्यापारियों में बहुत गुस्सा पैदा किया है और भाजपा के समर्थन इनमें पहले के मुकाबले घटा हो सकता है।

यह कांग्रेस ही है जो शायद नतीजों को प्रभावित कर सकती है, हालांकि इसके किसी भी सीट पर जीतने की संभावना नहीं है। यदि यह ‘आप’ के आधार में सफलतापूर्वक कटौती करती है, तो भाजपा सभी सीटों पर आसानी से जीत जाएगी। दूसरी ओर, जहाँ भी इसके उम्मीदवार लोगों को आकर्षित करने में असमर्थ हैं, ‘आप’  भाजपा के साथ कडी टक्कर में रहेगी। अंततः, यह चुनाव बीजेपी और ‘आप’ के बीच की करीबी दौड़ है।

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