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चुनाव 2019 : लखनऊ में किसी की लहर नहीं

लखनऊ में बीजेपी 1991 से कब्ज़ा बनाए हुए है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इस सीट पर हमेशा नज़र बनाये रखते हैं। क्योंकि यहाँ के चुनाव से भारत के सबसे बड़े प्रदेश के राजनीतिक तापमान को मापा जाता है।
लखनऊ चुनाव
Image Courtesy : BBC.com

लखनऊ एक  प्रतिष्ठापूर्ण सांसदीय क्षेत्र है, और इसे भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाने लगा है। बीजेपी 1991 से यहाँ कब्ज़ा बनाए हुए है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इस सीट पर हमेशा नज़र बनाये रखते हैं। क्योंकि यहाँ के चुनाव से  भारत के सबसे बड़े प्रदेश के राजनीतिक तापमान को मापा जाता है। 

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मौजूदा गृहमंत्री राजनाथ सिंह तक लखनऊ का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि बीजेपी को यहाँ चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा है। समाजवादी पार्टी के राज बब्बर ने अटल बिहारी को 1996 में कड़ी चुनौती दी थी। इसके अलावा कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी ने मोदी लहर में भी राजनाथ सिंह को 2014 में  कड़ी चुनौती दी। 

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फोटो साभार : गूगल

लखनऊ : 19 लाख मतदाता

लखनऊ संसदीय क्षेत्र में कुल पाँच विधानसभा क्षेत्र है- लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ कैंट और लखनऊ मध्य।  जिसमें कुल मिलाकर क़रीब 19 लाख मतदाता हैं। इनमें उच्च जाति के  33% हैं जिसमें 14 % ब्राह्मण हैं। अन्य पिछड़ी जाति 19%, मुस्लिम 17%, अनुसूचित जाति 13% और अति पिछड़ी जातियां लगभग 10% हैं। 

इस बार  यहाँ किसी पार्टी की कोई लहर देखने को नहीं मिल रही  है। लेकिन समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन  चुनाव और कांग्रेस दोनों के उमीदवार मैदान में होने से सीधा लाभ बीजेपी उमीदवार राजनाथ सिंह को होने की उम्मीद है। इसलिए भी क्योंकि चुनाव मुद्दों पर नहीं हो रहा है, धर्म-जाति की समीकरण पर ही जीत-हार का फैसला होना है। 

लेकिन लखनऊ में कांग्रेस से ज़्यादा गठबंधन चुनाव को लेकर गंभीर है। गठबंधन की उम्मीदवार फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा हैं। कांग्रेस ने संभल के रहने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम को टिकट दिया है। शत्रुघ्न सिन्हा स्वयं कांग्रेस के उमीदवार हैं पटना साहिब से लेकिन वह खुलकर अपनी पत्नी के लिए प्रचार कर रहे हैं। इसके अलावा अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिम्पल यादव भी पूनम का प्रचार कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस उमीदवार के पक्ष में प्रचार करने राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी वाड्रा में से कोई नहीं आया है। वह अकेले ही कांग्रेस के स्थानीय नेताओं  के साथ अपना प्रचार कर रहे हैं। 

शत्रुघ्न सिन्हा का गठबंधन के लिए प्रचार और कांग्रेस का उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करना साफ़ सन्देश देता है कि कांग्रेस लखनऊ को लेकर कितना गंभीर हैं। कांग्रेस के आचार्य प्रमोद कृष्णम को अगर ब्राह्मण समाज का समर्थन मिला तो वह राजनाथ का नुक़सान होगा। आचार्य प्रमोद कृष्णम की छवि मुस्लिम समाज में अच्छी है लेकिन मुसलमानों का वोट उसी उम्मीदवार को मिलने की उम्मीद है जो बीजेपी को टक्कर देगा। ऐसे में अगर मुस्लिम समाज का जो भी वोट आचार्य प्रमोद कृष्णम को मिलेगा वह गठबंधन का  नुक़सान होगा। 

गठबंधन की नज़र मुस्लिम समाज, अन्य पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति  के साथ  के साथ "सिंधी और कायस्थ" वोटों पर है। पूनम कायस्थ समाज से हैं और लखनऊ मध्य और उत्तर में कायस्थ समाज की बड़ी आबादी है, जो कुल मतदाताओं का 5 प्रतिशत है। लखनऊ में सिंधी समाज के मतदाता  भी करीब 70 हज़ार हैं। हालाँकि "सिंधी और कायस्थ" भाजपा के पक्ष में रहता है। लेकिन जैसा की अनुमान लगाया जा रहा है, की  पूनम "सिंधी और कायस्थ" वोटो में सेंध लगा सकती हैं अगर ऐसा हुआ तो इसका नुकसान भाजपा को होगा। 

राजनीति के जानकर मानते हैं की आचार्य प्रमोद कृष्णम एक अच्छे उम्मीदवार होते अगर कांग्रेस उनको गंभीरता से और समय पर चुनाव में लेकर आती। लेकिन क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन के बाद प्रदेश में चुनाव में जाति के आधार पर चुनाव हो रहा है ऐसे में भाजपा का मुकाबला गठबंधन से होने की ज़्यादा उम्मीद है। 

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अतुल चंद्रा  कहते हैं कि कांग्रेस लखनऊ चुनाव को लेकर गंभीर नहीं है, पार्टी का कोई बड़ा नेता भी आचार्य प्रमोद कृष्णम का  प्रचार करने नहीं आया। अतुल चंद्रा  मानते हैं कि अगर लखनऊ में जाति समीकरण गठबंधन के पक्ष में रहा तो राजनाथ को पूनम मज़बूत टक्कर दे सकती हैं।  

मोहनलालगंज

मोहनलालगंज  लखनऊ ज़िले की (आरक्षित) सीट है। यहाँ से 2014 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट से कौशल किशोर चुनाव जीते थे। इस बार यहाँ त्रिकोणीय मुक़ाबला है। कांग्रेस से बसपा के संस्थापक कांशीराम के पुराने साथी आर के चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं।  गठबंधन के उम्मीदवार बसपा प्रमुख मायावती के क़रीबी माने जाने वाले सी एल वर्मा हैं। 

मोहनलालगंज में पाँच विधानसभा क्षेत्र- बक्शी का तालाब, सरोजनीनगर, मोहनलालगंज, सिधौली और मलिहाबाद हैं। यहाँ दलित पासी क़रीब 19 प्रतिशत हैं इसके अलावा ओबीसी यादव 13.5 प्रतिशत  और दलित जाटव 10.3 प्रतिशत हैं।

मुक़ाबला त्रिकोणीय होने की सम्भावना है। इस सीट पर दलित समुदाय के वोट की अहम भूमिका होती थी लेकिन  इस बार महत्वपूर्ण माने जाने वाला दलित वोट गठबंधन, कांग्रेस और भाजपा में बराबर से बंटने की संभावना है। कहा जा रहा है कि यहाँ के सांसद और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कौशल किशोर की दलित समाज में अच्छी पकड़ है। इसके अलावा उनकी पत्नी जय देवी मोहनलालगंज क्षेत्र से बीजेपी विधायक भी हैं। लेकिन दलित वोट बंटने से उनको नुकसान भी हो सकता है। 

कई दशक से  उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नज़र रखने वाले भी मानते हैं की इस बार मुक़ाबला त्रिकोणीय होगा। राजनीतिक समीक्षक प्रांशु मिश्रा कहते है कि मोहनलालगंज में तीनों प्रमुख उम्मीदवार मज़बूत हैं और दलित वोट तीनों को मिलेगा। प्रांशु मानते हैं कि इस बार दलित से ज़्यादा अहम भूमिका उच्च जाति की होगी। अगर कांग्रेस उच्च जाति का वोट हासिल करने में कामयाब होती है तो यह भाजपा का नुकसान होगा। इसलिए अगर दलित वोट के कुछ प्रतिशत के साथ ओबीसी वोट गठबंधन को मिलता है तो भाजपा का सीधा मुक़ाबला गठबंधन से होगा। 

लखनऊ और मोहनलालगंज दोनों सीटों पर पांचवें चरण में सोमवार, 6 मई को वोट डाले जाएंगे।  

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