चुनाव 2019: तीसरे चरण में भी नहीं रुका एनडीए का पतन

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए पहले दो चरणों के मतदान में हुए नुक़सान को जोड़ दें तो 23 अप्रैल को हुए तीसरे चरण के मतदान में सत्तारूढ़ मोर्चे का नीचे जाना जारी है जो 14 राज्यों में दिखाई दे रहा है। इस चरण में 117 सीटें थी, जो पश्चिम बंगाल और यूपी में छुटपुट हिंसा से प्रभावित हुईं, और जम्मू-कश्मीर की अनंतनाग सीट (आंशिक रूप से मतदान) में कम मतदान हुआ, लेकिन उसके अलावा ये चरण शांतिपूर्ण रहा। त्रिपुरा पूर्व भी दूसरे चरण से स्थगित होने के बाद इस चरण में चुनाव में गया था।
सात-चरण के मतदान के इस दौर का अनुमानित परिणाम यह है कि 117 सीटों में से, एनडीए की सीटें 2014 में 67 से घटकर इस बार मात्र 29 रह जाएंगी। कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) अपनी सीटों को बढ़ाते हुए पर्याप्त लाभ अर्जित करेगा। यह 2014 में 26 के मुक़ाबले 57 सीट हासिल करेगा। अन्य महत्वपूर्ण लाभार्थियों में केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा और उत्तर प्रदेश में बीएसपी-एसपी-आरएलडी गठबन्धन शामिल है।
इन अनुमानों को प्रत्येक राज्य में हाल में हुए विधानसभा चुनाव परिणामों के आधार पर लगाया गया है, राज्य के विभिन्न राजनैतिक कारकों को ध्यान में रखते हुए और राज्यों में नए गठबंधनों के आधार पर सत्ताधारी पार्टी से परे जा रही स्विंग भी इसका बड़ा आधार बना है - जैसे कि यूपी में बहुजन समाज पार्टी-समाजवादी पार्टी -राष्ट्रीय लोकदल गठबन्धन, 2017 के आख़िरी विधानसभा चुनाव के बाद बना है।
बिहार में, 2014 के आम चुनाव के अनुमानों को आधार बनाया गया है क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनावों में लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यूनाइटेड) (जेडी-यू) के साथ गठबंधन किया था, लेकिन तब नीतीश कुमार महागठबंधन से बाहर चले गए और अपने पूर्व सहयोगी भाजपा के साथ फिर से जुड़ गए। चूंकि बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव परिणामों ने दोनों दलों के संयुक्त वोटों का प्रतिनिधित्व किया था जो अब विरोधी पक्ष बन गए हैं, इसलिए दोनों दलों के वोटों को अलग करना असंभव है। इसलिए, 2014 के लोकसभा परिणाम एकमात्र विकल्प हैं जब हर कोई अलग-अलग लड़ रहा था।
विभिन्न राज्य परिणामों के लिए जो स्विंग इस्तेमाल की गई वह इस प्रकार हैं: असम (5%); बिहार (8%); छत्तीसगढ़ (3%); गोवा (2%); गुजरात (2.5%); जम्मू और कश्मीर (2%); कर्नाटक (2%); केरल (0%); महाराष्ट्र (5%); ओडिशा (5%); यूपी (3%); पश्चिम बंगाल (5%); दादरा और नगर हवेली (3%); दमन और दीव (3%); और त्रिपुरा (5%)।
जिन राज्यों में बीजेपी की भारी हार का अनुमान है उनमें गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और यूपी शामिल हैं।
एक सबसे बड़ा कारक जिसे इन चुनावों में माना जा रहा है वह है रोज़गार, किसानों की आय, श्रमिकों की मज़दूरी, भ्रष्टाचार, जीएसटी, विमुद्रीकरण, सांप्रदायिक संघर्ष और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की भावना, और 'राष्ट्रीय सुरक्षा' की मंशा सहित मोदी सरकार के विभिन्न मामलों में रहे ख़राब प्रदर्शन शामिल है। संतुलन बनाने के लिए, मतदाताओं के दिमाग़ में इन विचारों के परस्पर संबंध और अपनी राज्य सरकारों से संबंधित उनके अपने अनुभवों को भी ध्यान में रखा गया है। इन संतुलनों को लागू करते हुए विभिन्न स्विंग को लक्षित किया गया है। ग्राउंड रिपोर्ट से पता चलता है कि बेरोज़गारी और किसानों के ऋण/आय बहुत बड़े मुद्दे हैं जो मतदाताओं के दिमाग़ पर घर बनाए हुए हैं और इन मामलों में, मोदी सरकार से बड़ा अलगाव पैदा हुआ है।
यदि मामला ये है, तो यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इन अनुमानों से साफ़ संकेत मिलता है कि मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए के चुनाव हारने की संभावना बढ़ गयी है क्योंकि आर्थिक संकट जैसे सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे जो कि अखिल भारतीय मुद्दे हैं और पहले तीन चरणों के इन रुझानों को देश में दूसरी जगहों में भी दोहराया जा सकता है।
[डाटा पीयूष शर्मा और मैप्स ग्लेनिसा परेरा द्वारा]
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