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चुनाव आयोग में मतभेद, सीईसी की सफाई- आयोग के सदस्य एक दूसरे के क्लोन नहीं 

लोकसभा चुनाव के बीच ही चुनाव आयोग में अंदरूनी मतभेद की खबरों के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बयान जारी किया है। 
फाइल फोटो
(फोटो साभार: द हिंदू)

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) लागू करने के मुद्दे पर आयोग के आंतरिक संचालन में किसी भी प्रकार के विवाद से इंकार किया है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आयोग के तीन सदस्यों से एक-दूसरे का क्लोन या टेम्पलेट होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

आपको बता दें कि इससे पहले पीएम मोदी और अमित शाह को आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में आयोग से क्लीन चिट दिए जाने पर मतभेद की खबर आई थी। 

अरोड़ा के बयान में कहा गया है कि मीडिया के कुछ हिस्सों में आचार संहिता के संदर्भ में चुनाव आयोग के अंदरूनी कामकाज को लेकर एक ऐसे विवाद का जिक्र किया गया है, जिसे टाला जा सकता था। मुख्य चुनाव आयुक्त अरोड़ा ने यह भी कहा कि उन्हें सार्वजनिक बहस से कभी गुरेज नहीं रहा लेकिन हर चीज का एक समय होता है। 

उल्लेखनीय है कि चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने अरोड़ा को पत्र लिख कर कहा है कि चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण से जुड़ी बैठकों से वह खुद को तब तक अलग रखेंगे जब तक कि उनकी असहमति को फैसले में दर्ज कराने की अनुमति नहीं दी जायेगी। 

अरोड़ा ने अपने स्पष्टीकरण में कहा कि आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों से खुद को अलग करने का फैसला लवासा ने ऐसे समय में किया है जबकि आयोग में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान और मतगणना की तैयारियां युद्धस्तर पर चल रही हैं। 

मुख्य चुनाव आयुक्त ने बयान में कहा, 'मीडिया के एक धड़े में आज भारतीय चुनाव आयोग के एमसीसी नियमन संबंधी बेकार और गैर जरूरी विवाद की खबर आ रही है।'

बयान के अनुसार, 'यह तब है जब सीईओ (मुख्य चुनाव अधिकारी) और उनकी टीमें देश भर में कल होने वाले सातवें चरण के चुनाव और उसके बाद 23 मई की मतगणना जैसे विशाल कार्य के लिए तैयार हैं।'

बयान में कहा गया है, 'चुनाव आयोग के तीनों सदस्यों से एक-दूसरे का क्लोन या टेम्पलेट होने की उम्मीद नहीं है। पहले भी कई बार मतभेद रहा है, जो हो सकता है और होना चाहिए।'

तीन सदस्यों वाले पूर्ण आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और दो अन्य आयुक्त- अशोक लवासा और सुशील चंद्र शामिल हैं।

फिलहाल चु​नाव आयुक्त अशोक लवासा की नाराजगी को दूर करने के लिये अगले सप्ताह मंगलवार को आयोग की पूर्ण बैठक आहूत की गयी है। आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शनिवार को बताया, ‘मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि लवासा की ‘असहमति’ को कुछ मीडिया रिपोर्टों में गैरजरूरी रूप से तूल दिया गया है। यह विशुद्ध रूप से आयोग का आंतरिक मामला है और ‘असहमति’ को दूर करने के लिये 21 मई (मंगलवार) को आयोग की पूर्ण बैठक आहूत की गयी है।’


क्या है पूरा मामला?


चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को क्लीन चिट देने पर अपनी असहमति के कारण के आदर्श आचार संहिता से संबंधित बैठकों से खुद को दूर रखने का निर्णय लिया है। 

सूत्रों से पता चला है कि चुनाव आयुक्त लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि अल्पसंख्यक निर्णयों को रिकॉर्ड नहीं किया जा रहा है इसलिए वे पूर्ण आयोग की बैठकों से दूर रहने के लिए मजबूर हैं।

उन्होंने इसी महीने के पहले सप्ताह से आदर्श आचार संहिता से संबंधित सभी बैठकों से खुद को दूर रख लिया है।  लवासा ने अपने पत्र में जोर देकर कहा कि वे बैठकों में तभी शामिल होंगे जब उनके अल्पसंख्यक निर्णयों को आयोग के निर्णयों में शामिल किया जाए।

सूत्रों ने कहा कि लवासा ने प्रधानमंत्री के चार भाषणों और अमित शाह के एक भाषण को क्लीन चिट दिए जाने के निर्णय पर असहमति जताई थी। 2:1 के बहुमत वाले पूर्ण आयोग ने भाषणों में आचार संहिता का उल्लंघन नहीं पाया था।

चुनाव आयोग ने चार मई को कहा कि मोदी ने गुजरात के पाटन में 21 अप्रैल को दिए अपने भाषण में आचार संहिता का उल्लंघन नहीं किया था। प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनकी सरकार ने भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित करने के लिए पाकिस्तान को मजबूर कर दिया था।

यह उनका छठा भाषण था जिसे चुनाव आयोग द्वारा क्लीन चिट दी गई। आयोग ने महाराष्ट्र के नांदेड़ में मोदी के उस भाषण में भी कुछ गलत नहीं पाया जिसमें उन्होंने कथित रूप से कांग्रेस को डूबता जहाज बताया था।

इससे पहले चुनाव आयोग ने वर्धा में एक अप्रैल को मोदी के उस भाषण को भी क्लीन चिट दे दी थी जिसमें उन्होंने केरल की अल्पसंख्यकों की बहुलता वाली सीट से चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर हमला बोला था।

चुनाव आयोग ने 9 अप्रैल को लातूर में पहली बार वोट डालने जा रहे मतदाताओं से पुलवामा के शहीदों के नाम अपना वोट समर्पित करने की उनकी अपील पर भी उन्हें क्लीन चिट दे दी थी।


मोदी सरकार के हाथों की कठपुतली बना चुनाव आयोग: कांग्रेस

इस पूरे मामले को लेकर शनिवार को आरोप लगाया कि यह संवैधानिक संस्था मोदी सरकार के हाथों की कठपुतली बन गई है।

पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक बयान में कहा, 'लोकतंत्र के लिए एक और काला दिन। चुनाव आयोग के सदस्य ने बैठकों में शामिल होने से इनकार कर दिया है क्योंकि आयोग ने उनकी असहमति को रिकॉर्ड नहीं किया।'

उन्होंने दावा किया, 'जब चुनाव आयोग मोदी-शाह जोड़ी को क्लीनचिट देने में व्यस्त था तब लवासा ने कई मौकों पर असहमति जताई। अब उनकी असहमति को रिकॉर्ड नहीं किया जा रहा। यह संवैधानिक नियमों की दिन दहाड़े हत्या है।'

सुरजेवाला ने कहा, 'चुनाव आयोग के नियमों में सर्वसम्मति पर जोर दिया गया है लेकिन सर्वसम्मति नहीं होने पर बहुमत के निर्णय की व्यवस्था भी है।'

उन्होंने आरोप लगाया, 'संवैधानिक संस्था होने की वजह से अल्पमत को भी रिकॉर्ड में लेना होता है, लेकिन मोदी-शाह जोड़ी को बचाने के लिए इस नियम की अहवेलना की जा रही है।'

उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग मोदी सरकार के हाथों की कठपुतली बन गया है। उन्होंने कहा कि मोदी और अमित शाह के खिलाफ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की कम से कम 11 शिकायतें दी गईं लेकिन इनको कूड़ेदान में फेंक दिया गया।

कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया, 'संस्थागत गरिमा धूमिल करना मोदी सरकार की विशेषता है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश संवाददाता सम्मेलन करते हैं, रिजर्व बैंक के गवर्नर इस्तीफा देते हैं, सीबीआई निदेशक को हटा दिया जाता है। सीवीसी खोखली रिपोर्ट देता है। अब चुनाव आयोग बंट रहा है।'

सुरजेवाला ने सवाल किया कि क्या चुनाव आयोग लवासा जी की असहमति को रिकॉर्ड करके शर्मिंदगी से बचेगा?

(समाचार एजेंसी आईएएनएस और भाषा के इनपुट के साथ)

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