छत्तीसगढ़: अधूरी, अक्षम रणनीति सिकल सेल रोग के निदान को कठिन बना रही है
मालती देवी (50) जब खून की कमी (एनिमिक) का इलाज कराने रायपुर के सिकल सेल इंस्टीट्यूट छत्तीसगढ़ (एससीआईसी) पहुंची तो उन्हें एक पैर से लंगड़ाती हुई देखा गया। वे यहां बेहतर इलाज की बड़ी उम्मीदें लेकर आई थीं। मालती को एक नए टेस्ट के लिए आज बुलाया गया था, जब वे पिछली बार यहां आई थीं। लेकिन आज इंस्टीट्यूट का हाई-परफार्मेंस लिक्वड क्रोमैटोग्राफी (एचपीएलसी) उपकरण ही खराब पड़ा था, जिसके जरिए उनकी जांच होनी थी। इस यंत्र के जरिए शरीर में हेमोग्लोबिन की स्थिति की जांच कर उसका विश्लेषण किया जाता है और उसके आधार पर व्यक्ति के मर्ज का इलाज किया जाता है।
पर मालती को खाली हाथ ही लौटना पड़ा था। उनका यह दौरा बेकार हो गया था। यहां आने के बारे में पूछे जाने पर, मालती ने कहा, "मैं बिलासपुर से भी सैकड़ों किलोमीटर दूर से 'सिकलिन पीलिया' (स्थानीय बोली में इस रोग का नाम है। इस रोग में शरीर कमजोर और पीला पड़ जाता है।) के इलाज के लिए रायपुर आई हूं। लेकिन मेरी कुछ जांच न होने से इलाज के लिए अभी कुछ और दिनों तक इंतजार करना पड़ेगा।"
नतीजतन, संस्थान के काम न करने वाले उपकरणों ने उसके असुविधाजनक तथ्यों को उजागर कर दिया है। उस संस्थान में काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारी इस बेहद अहम एचपीएलसी जांच करने वाले उपकरण में आई खराबी से कैसे बेखबर रहे। उन्होंने उसकी तत्काल मरम्मत नहीं कराई, जिसके चलते मालती की तरह दूर-दराज से आए अनेक लोगों को अनिश्चितता में लौटना पड़ता है।
सिकल सेल डिजीज (एससीडी) में, हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कोशिकाओं में एक प्रोटीन) नष्ट हो जाता है, ऑक्सीजन ले जाने की उसकी क्षमता को बाधित करता है, और इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति एनीमिया, पीलिया, शरीर में दर्द, निमोनिया और बार-बार संक्रमण से पीड़ित हो सकते हैं। इनके चलते व्यक्ति को लकवा भी मार सकता है।
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) के एक शोधपत्र में कहा गया है कि मध्य भारत में जनजातीय आबादी विशेष रूप से इस एससीडी के लिए अतिसंवेदनशील है, क्योंकि उनके लिए कुछ आनुवंशिक स्थितियां आम हैं। गरीबी, दूरदराज के क्षेत्रों में आजीविका के संकट और उन्नत वैज्ञानिक तरीकों तक पहुंच नहीं होने से एससीडी रोग ज्यादातर आदिवासियों को अपना शिकार बनाता है, और इसका इलाज न होने से आदिवासी आबादी को कमजोर और बेसहारा बना देता है।
अधूरा और अक्षम बुनियादी ढांचा
सिकल सेल इंस्टीट्यूट की वेबसाइट, एक चमकीले, सक्रिय दृष्टिकोण के साथ, उन व्यक्तियों के सकारात्मक उदाहरण का बखान करती है, जिन्होंने सरकारी घोषणाओं एवं सहायता के बलबूते इस घातक बीमारी को हराने में कामयाबी हासिल की है। लेकिन जमीनी हकीकत इसके निराशाजनक पहलुओं को दिखाती है।
सिकल सेल इंस्टीट्यूट के इनपुट के अनुसार, छत्तीसगढ़ की 10 फीसदी आबादी यानी लगभग 25 लाख लोग इस घातक बीमारी से पीड़ित हैं। इस संस्थान में रोजाना औसतन 100 रोगी आते हैं, जिनका मुफ्त इलाज, उनका परीक्षण और दवाएं दी जाती हैं। जब परीक्षण उपकरण ही बेकार हैं तो जाहिर है कि इससे मरीजों के इलाज में देरी हो जाती है। इस संस्थान ने मांगने पर भी सिकल सेल रोगियों का जिला-वार डेटा नहीं दे सका, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने 2013 में, सिकल सेल के खतरे का मुकाबला करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया और इसी के परिणामस्वरूप 'सिकल सेल इंस्टीट्यूट' की स्थापना की गई थी। मुख्यमंत्री के रूप में इस सूबे की सत्ता संभालने के एक साल बाद भूपेश बघेल ने विश्व सिकल दिवस पर 19 जून 2019 को आयोजित कार्यक्रम में घोषणा की कि स्वास्थ्य विभाग के सिकल सेल संस्थान को स्टेम सेल रिसर्च, ब्लड ट्रांसफ्यूजन और हीमोग्लोबिनोपैथी (यह एक वंशानुगत बीमारी है, जिसमें व्यक्ति के हीमोग्लोबिन की संरचना में विकार आ जाता है) की सुविधाओं के साथ 'उत्कृष्टता के एक केंद्र' के रूप में विकसित किया जाएगा।
इसके बाद, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस देव सिंह ने इस परियोजना का दिसंबर 2020 में विस्तार करते हुए कहा कि “रायपुर को जल्द ही भारत का पहला सिकल सेल का इलाज करने वाला अस्पताल मिलेगा। उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना के लिए सरकारी स्तर पर अनुमोदन कर दिया गया है, और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी प्रक्रियाएं शुरू भी हो गई हैं। रायपुर के अलावा, राज्य के सभी जिला सरकारी अस्पतालों में सिकल सेल के रोगियों के लिए एक अलग इकाई की स्थापना की जाएगी।"
सिकल सेल को समर्पित अस्पताल के लिए 52.23 करोड़ रुपये की अनुमति दी गई थी। 3 एकड़ में स्थापित किए जाने वाले अस्पताल में 30 बेड के साथ अनुसंधान और प्रयोगों के लिए उन्नत अनुसंधान केंद्र खोला जाना है। रायपुर के अलावा, अन्य जिले के साथ अच्छी तरह से सुसज्जित सिकल सेल इकाई बनाने का लक्ष्य रखा गया था। छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती राज्य मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड आदि में इसी तरह के अस्पताल खोले जाने थे लेकिन ये प्रस्ताव ठंडे बस्ते में ही पड़े रहे।
2017 में स्वास्थ्य विभाग छत्तीसगढ़ में सिकल सेल के प्रसार का एक विस्तृत नक्शा तैयार किया था, लेकिन इस दिशा में भी क्रियान्वयन नहीं किया गया है।
सिकल सेल संस्थान में भ्रष्टाचार का ग्रहण
छत्तीसगढ़ माओवादियों से आंतरिक सुरक्षा पर उत्पन्न खतरे का मुकाबला कर रहा है। इसके अलावा वह सिकल सेल यानी रक्ताल्पता (एनीमिया) की घातक बीमारी से भी जूझ रहा है। रायपुर में बना यह सिकल सेल इंस्टीट्यूट भ्रष्ट गतिविधियों से परेशान है। हाल के महीनों में करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितताएं कथित तौर पर सामने आई हैं। एक स्थानीय अखबार नई दुनिया की रिपोर्ट के मुताबिक करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ है।
एससीआईसी के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि फरवरी 2022 में मल्टीविटामिन और ओमप्राजोल जैसी गोलियों की खरीद कथित रूप से बाजार मूल्य से अधिक दर पर की गई थी। इसके खुलासे के बाद, टैबलेट ब्लैक किए गए एमआरपी के साथ बेचे गए थे। संस्थान के निदेशक डॉ.पीके पात्रा ने इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद मई महीने में एक बार फिर 1.15 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता सामने आई। इस बार, चिकित्सा उपकरण, फर्नीचर, प्रयोगशाला उपकरण, कंप्यूटर, और संस्थान भवन, बगीचे और एसी जैसे इलेक्ट्रिक गैजेट्स के रखरखाव आदि की खरीद भी शामिल हैं।
इस बारे में संस्थान का पक्ष जानने के लिए इसके निदेशक डॉ.पीके पात्रा से बार-बार आग्रह किया गया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
अधिकारी ने आगे कहा, “शुरुआत से, इसे एक शोध आधार (ताकि बीमारी की निगरानी हो) और अस्पताल (गुणवत्तापूर्ण उपचार प्रदान करने के लिए) बनाने के लक्ष्य को कभी हासिल नहीं किया गया। रोगी यहां एक स्थायी इलाज की उम्मीद के साथ आते हैं, लेकिन इसकी बीमार-सुसज्जित क्षमता उसमें सबसे बड़ी बाधा है।”
सिकल सेल इंस्टीट्यूट, रायपुर, छत्तीसगढ़
सिकल सेल रोग प्रायः एक उपेक्षित स्वास्थ्य समस्या रहा है। इस नाते इस रोग पर समग्र शोध भी भारत में दुर्लभ रहा है। इसलिए माना जाता है कि छत्तीसगढ़ ने एक स्वास्थ्य खतरे से निबटने के लिए एक रचनात्मक भूमिका निभाई है, लेकिन राज्य के कई लोग इस स्थानीय रोग के समूल विनाश की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जाने से नाराज रहते हैं।
रायगढ़ जिले में सिकल सेल रोगियों के लिए काम करने वाले 52 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी सिकल सेल एनीमिया से लाखों लोगों को बचाने के सरकार के इरादे पर बहुत संदेह करते हैं। राजेश ने न्यूजक्लिक को बताया, "रायगढ़ में सैकड़ों सिकल सेल से पीड़ित मरीज हैं, जो इलाज की सुविधाओं से वंचित हैं। उन्हें इसके इलाज के लिए अपने घर से 250 किमी की दूरी तय कर रायपुर आना पड़ता है। सिर्फ परियोजनाओं और अस्पतालों की घोषणा कर देना और जरूरतमंद आबादी के लिए कुछ भी लागू करने का सरकार का रवैया बड़ा क्रूर है। सूबे में बस सत्ता बदली है; जहालत पहले की तरह ही बनी हुई है।"
सरकार द्वारा संचालित राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र, रायपुर की 2017 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सूबे की गोंड जनजाति की 20 फीसदी आबादी सिकल सेल रोग से ग्रस्त है। इसके विशेषज्ञ डॉ.एआर डल्ला के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 10,000 बच्चे सिकल सेल की बीमारी से मर गए हैं। उन्होंने कहा,"प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पतालों तक के अब तक के प्रयास जमीनी स्तर पर इस रोग का निदान करने की बजाय उसके शोध-अनुसंधान और अकादमिक खोज तक ही सीमित रहे हैं।”
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें
Chhattisgarh: Incomplete, Incompetent Strategy is Making Tackling Sickle Cell Disease Difficult
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