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कुछ के लिए रंग-कोड, तो कुछ के लिए ‘फूलों की सेज’: पत्रकारों की मदद से मीडिया नैरेटिव तय करने की योजना

इस रिपोर्ट की ख़बर ऐसे समय में आयी है,जब सरकार उन आईटी नियमों, 2021 को ले आयी है,जो पत्रकार यूनियनों की इस ज़बरदस्त आलोचना के निशाने पर है कि ये नियम कुछ स्थानों पर तो “ख़बरों के मूल सिद्धांत और लोकतंत्र में ख़बरों की भूमिका के ख़िलाफ़” जाते दिख रहे हैं। 
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Image Courtesy: The Hans India

कारवां ने अपने हाथ लगी मंत्रियों के एक समूह (केंद्र) की तरफ़ से तैयार की गयी केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के सिलसिले में उन सरकारी कोशिशों का विस्तृत ब्योरा दिया है,जिसके तहत सरकार  "नैरेटिव" निर्धारित करना चाहती है और मीडिया में जो कुछ भी उसे अपने ख़िलाफ़ जाता दिखता है, उस पर अंकुश लगाना चाहती है। पांच कैबिनेट मंत्रियों और चार राज्य मंत्रियों की तरफ़ से तैयार की गयी यह रिपोर्ट ऐसे समय में लायी जा रही थी, जब कोविड-19 महामारी अपने चरम पर थी और इस रिपोर्ट की तैयार करने से पहले "मीडिया क्षेत्र के प्रमुख लोगों", "उद्योग / व्यापार मंडलों के सदस्यों" और दूसरे "प्रमुख हस्तियों" से विचार-विमर्श किया गया था।

इस रिपोर्ट की ख़बर ऐसे समय में आयी है,जब सरकार उन (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमों, 2021 को ले आयी है,जो पत्रकार यूनियनों की इस ज़बरदस्त आलोचना के निशाने पर है कि ये नियम कुछ स्थानों पर तो “ख़बरों के मूल सिद्धांत और लोकतंत्र में ख़बरों की भूमिका के ख़िलाफ़” जाते दिख रहे हैं।

जीओएम (मंत्रियों के एक समूह) की इस रिपोर्ट में उन पत्रकारों पर नज़र रखने की योजना है, जो सरकार को ‘नकारात्मक’ तौर पर चित्रित करते हैं और इसमें उन लोगों को "बढ़ावा" देने और "पोषित" करने की इच्छा जतायी गयी दिखती है, जिनके बारे में ‘सत्ता’मानती है कि वे जो कुछ भी रख रहे हैं, वही ख़बर है।

केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने कहा,"हमारे पास उन लोगों को बेअसर करने की रणनीति होनी चाहिए, जो बिना तथ्यों के सरकार के ख़िलाफ़ लिख रहे हैं और झूठी ख़बरें फैला रहे हैं या फ़र्ज़ी ख़बरें फैला रहे हैं।" नक़वी के अलावा इस प्रक्रिया में विधि और न्याय और संचार मंत्री-रविशंकर प्रसाद, कपड़ा और महिला और बाल विकास मंत्री- स्मृति ईरानी, सूचना और प्रसारण मंत्री-प्रकाश जावड़ेकर और विदेश मंत्री एस जयशंकर जैसे कैबिनेट मंत्री भी शामिल थे। इन मंत्रियों के इस समूह में हरदीप सिंह पुरी, अनुराग ठाकुर, बाबुल सुप्रियो और किरेन रिजिजू जैसे अन्य कैबिनेट मंत्री भी शामिल थे।

इस रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि इस रिपोर्ट में "उन अहम नैरेटिव पर रौशनी डाली गयी है, जिन्हें बताये-दिखाने जाने की ज़रूरत है। यह आगे की उन रणनीतियों की भी तलाश करती है, जो कि इसी मक़सद के लिए अपनायी जा सके। अपने हिसाब से नतीजा पाने के लिए ख़ास-ख़ास कार्रवाई बिंदुओं को सूचीबद्ध किया गया है।”

इसमे आगे कहा गया है,''ज़िम्मेदारियों को मुद्दा-वार,मंत्रालयवार और सचिवों के समूहवार भी तय किया गया है।''

नतीजतन, इस रिपोर्ट में "सकारात्मक ख़बरों के बड़े पैमाने पर प्रसार" की ज़िम्मेदारियां सौंपी गयी हैं, इसके साथ ही इस रिपोर्ट में "50 ऐसे लोगों पर नियमित नज़र रखने” की बात की गयी है,जो नकारात्मक तरीक़े से असर  डालते हैं और दूसरी तरफ़, “50 ऐसे लोगों के साथ जुड़े रहने” की बात की गयी है,जो सकारात्मक तरीक़े से असर डालने वाले हैं, दूसरी श्रेणी के लोग “सरकार के काम-काज को सकारात्मक और सही परिप्रेक्ष्य में रखते हैं और ऐसे लोगों को ज़रूरी जानकारी देते हुए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे सरकार के नज़रिये को सही परिप्रेक्ष्य में रखने में मदद मिलेगी।”

इस रिपोर्ट में इस समय प्रसार भारती के प्रमुख और पत्रकार सूर्य प्रकाश को उद्धृत करते हुए कहा गया है, “छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी पहले से ही हाशिए पर थे। समस्या तो शुरू से ही उनके साथ रही है।” पत्रकार,नितिन गोखले कुछ और आगे बढ़कर मीडियाकर्मियों को “ग्रीन- तटस्थ और मुद्दों को लेकर अप्रतिबद्ध पत्रकार; ब्लैक-विरोधी पत्रकार; और व्हाइट- समर्थक पत्रकार श्रेणियों में बांटने की मांग करते हुए उद्धृत किये गये हैं कि “हमें अपने अनुकूल पत्रकारों की मदद करनी चाहिए और उन्हें प्रोत्साहित देना चाहिए।”

गोखले ने इस बात के सामने आने के बाद इस रिपोर्ट को "सरासर झूठ" बताया है और इस पत्रिका के ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है। वह ख़ास तौर पर इस सिलसिले में ट्विटर पर टैग नहीं किये जाने से नाराज़ हैं।

सरासर झूठ। बस। कृपया क़ानूनी नतीजों का सामना करने के लिए तैयार रहें। बहरहाल,आप एक ऐसे कायर शख़्स हैं, हरतोष, जिसमें मुझे टैग करने की हिम्मत नहीं है।  https://t.co/NTPryqJDcQ

— नितिन ए.गोखले (@nitingokhale), 4 मार्च, 2021

डिजिटल समाचार माध्यमों पर अंकुश लगाने की सरकार की वह इच्छा, जो पहले ही बताये गये आईटी नियमों से दिखायी देती है, वह इस रिपोर्ट में भी दिखायी देती है। क़ानून मंत्री- प्रसाद ने कहा,"हालांकि हमें पैनी नज़र रखने वाले सुझाव मिलते हैं, मगर यह नहीं बताया जाता है कि आख़िर सरकार में होने के बावजूद वायर, स्क्रॉल और कुछ क्षेत्रीय मीडिया जैसे ऑनलाइन मीडिया अब भी अलग कैसे है।"

यह देखते हुए कि सरकार डिजिटल स्पेस में नैरेटिव को नियंत्रित करते हुए तो नहीं दिखती है, लेकिन प्रसाद और अन्य लोग 'पोखरण प्रभाव' के विचार से उत्साहित नज़र आते हैं। असल में शब्द, “पोखरण प्रभाव” पूर्व प्रधानमंत्री,एटल बिहारी वाजपेयी के समय में हुए परमाणु परीक्षण के सिलसिले में आरएसएस के विचारक एस.गुरुमूर्ति ने गढ़ा था। "प्रमुख हस्तियों" में से एक, गुरुमूर्ति ने बिहार के मुख्यमंत्री-नीतीश कुमार और ओडिशा के मुख्यमंत्री-नवीन पटनायक की उस टिप्पणी से मिलती जुलती टिप्पणी करने का सुझाव दिया,जिसमें कहा गया कि 'गणतंत्र' को "ख़ारिज" किये जाने के तौर पर देखा जाता है।

गुरुमूर्ति ने कहा,“नियोजित संचार सामान्य समय के लिए तो अच्छा है,लेकिन “पोखरण प्रभाव” पैदा करने के लिए श्री नीतीश कुमार या श्री नवीन पटनायक को इस बारे में कुछ कहने दें। ऐसा गणतंत्र के ज़रिये किया जा रहा है, लेकिन गणतंत्र को एक खारिज अवधारणा के तौर पर देखा जाता है। इसलिए,हमें इस नैरेटिव को मोड़ने के लिए किसी पोखरण की ज़रूरत है।”

पूर्व स्तंभकार और अब एक सरकारी सलाहकार के तौर पर काम कर रहे अशोक मलिक के मुताबिक़ इस रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि एक ऐसी धारणा बनती दिख रही थी कि समाचार पत्रों के लिए मंत्रियों के तरफ़ से लिखे जा रहे विचार सम्बन्धी आलेख नहीं पढ़े जा रहे थे, इसके  बजाय ये विचार "फ़ायदा पहुंचाने की जगह नुकसान पहुंचाने वाले" साबित हो रहे थे।

इस रिपोर्ट में एक ऐस खंड भी है,जो किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं करता है,बल्कि उसमें मौजूदा कामकाजी पत्रकारों ने अपनी-अपनी राय दी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है,"श्री मुख़्तार अब्बास नक़वी के साथ श्री किरन रिजिजू के आवास पर 26 जून 2020 को एक बैठक आयोजित की गयी थी, जिसमें मीडिया से जुड़े कई लोगों ने भाग लिया था।" इन लोगों में जिन पत्रकारों के नाम लिये जा रहे हैं, उनमें आलोक मेहता, जयंत घोषाल, शिशिर गुप्ता, प्रफुल केतकर, महुआ चटर्जी, निस्तुला हेब्बार, अमिताभ सिन्हा, आशुतोष, राम नारायण, रवीश तिवारी, हिमांशु मिश्रा और रवींद्र हैं।

इस बैठक में “भाग लेने वालों” ने निम्नलिखित "सुझाव" दिये थे:

• तक़रीबन 75% मीडियाकर्मी श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से प्रभावित हैं और पार्टी के साथ वैचारिक रूप से जुड़े हुए हैं।

• हमें इन लोगों के अलग-अलग समूह बनाने चाहिए और नियमित रूप से उनसे संवाद करना चाहिए।

• संवाद की कमी का ही नतीजा है कि सकारात्मक चीज़ों को असरदार तरीक़े से नहीं रखा जा सका है।

•सरकार को किसी भी बड़े कार्यक्रम को शुरू करने से पहले सहायक मीडिया को इस कार्यक्रम से जुड़ी पृष्ठभूमि वाली लेख सामग्री मुहैया करानी चाहिए और इसका बेहतर प्रचार-प्रसार हो, इसके लिए आगे भी नज़र रखी जानी चाहिए।

• सरकार के मंत्री (मंत्रियों) और पार्टी से मीडिया फ्रेंडली प्रतिनिधियों के एक समूह का गठन सरकारी कार्यक्रमों की नियमित जानकारी देने के लिए किया जाना चाहिए।

• सरकार के संदेशों में किसी भी तरह का विरोधाभास नहीं होना चाहिए। सभी मंत्रालयों को एक स्वर में बोलना चाहिए।

• सरकार और पार्टी की प्रेस विज्ञप्ति सभी प्रमुख क्षेत्रीय भाषाओं में भी होनी चाहिए। पीआईबी सोशल मीडिया, ऑनलाइन मीडिया इत्यादि को उन्हीं कर्मचारियों के साथ संभाल रहा है, जो उनके पास पहले से हैं।

• सहायक संपादकों, स्तंभकारों, पत्रकारों और टिप्पणीकारों से मिलाकर इन समूहों का गठन किया जाना चाहिए और उन्हें नियमित रूप से लगाये रखना चाहिए।

• जानकारी आख़िरी व्यक्ति तक पहुंच पाये, इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकारी संसाधनों का असरदार तरीक़े से इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

• सरकार और मीडिया के बीच दूरियां बढ़ गयी हैं और इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।

• विदेशी मीडिया के साथ संवाद बंद होना चाहिए, क्योंकि यह फ़ायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचाने वाला है।

 अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

Colour-Code Some, ‘Nurture’ Others: Government Plans to Set Media Narrative 'Using' Journalists

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