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दिल्ली और केरल में कोविड-19 के सबसे ज़्यादा रोज़ाना मामले, लेकिन बढ़ोत्तरी दर अलग-अलग

हालांकि,केरल में दिल्ली के मुक़ाबले पुष्ट मामलों की संख्या कहीं ज़्यादा है,लेकिन केरल में ठीक होने के मामले ज़्यादा हैं और होने वाली मौतें कम हैं।
दिल्ली और केरल में कोविड-19 के सबसे ज़्यादा रोज़ाना मामले, लेकिन बढ़ोत्तरी दर अलग-अलग

इस समय दिल्ली और केरल उन राज्यों में हैं,जहां कोविड-19 के नये रोज़ाना मामले सबसे ज़्यादा हैं। 7 दिसंबर को जहां दिल्ली में 1,674 मामले दर्ज किये गये थे,वहीं केरल में दर्ज मामलों की संख्या 3,272 थी। इस समय पुष्ट मामले और परीक्षण जैसे कुछ मापदंडों के लिहाज़ से दिल्ली और केरल एक दूसरे के आस-पास चल रहे हैं,मगर बारीक़ नज़र से पता चलता है कि दोनों राज्यों में कोविड -19 के अनुभव काफ़ी अलग-अलग रहे हैं।

दिल्ली और केरल में सक्रिय मामलों का रुझान (चित्र 1) से पता चलता है कि इस दक्षिणी राज्य में सक्रिय मामले अक्टूबर के मध्य में चरम पर थे और तब से इसमें गिरावट आ रही है। दूसरी तरफ़, दिल्ली में चरम सक्रिय मामलों के तीन दौर अलग-अलग महीनों में आये हैं- जून का आख़िर, मध्य सितंबर और मध्य नवंबर। जैसा कि पहले के एक लेख में चर्चा की जा चुकी है कि दिल्ली के वास्तविक आंकड़े विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा विकसित कोविड-19 महामारी को लेकर भारतीय सुपरमॉडल (या राष्ट्रीय सुपर मॉडल) की अनुमानों से बहुत अलग हैं। इन अनुमानों के मुताबिक़ दिल्ली में सितंबर के मध्य में महामारी के चरम और उसके बाद लगातार गिरावट आने की भविष्यवाणी की गयी थी। हालांकि, वास्तविक सक्रिय मामलों में अक्टूबर के मध्य के बाद से बढ़ोत्तरी देखी गयी, जो कि अप्रैल के मध्य के बाद से यह तीसरी बढ़ोत्तरी है, यह नवंबर के मध्य तक बढ़ती रही और तब से घट रही है। हालांकि,केरल के लिए इस मॉडल ने जो भविष्यवाणी की थी,वह वास्तविक सक्रिय मामलों के साथ मेल खाती है, हालांकि वास्तविक मामले अक्टूबर के मध्य में चरम पर थे, जबकि मॉडल की भविष्यवाणी थी कि केरल में यह नवंबर के पहले सप्ताह में आयेगा।

स्रोतwww.covid19india.org से संकलित डेटा

दोनों राज्यों (तालिका 1) की इस मौजूदा तस्वीर से पता चलता है कि हालांकि केरल में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में पुष्ट मामले हैं, लेकिन यहां कहीं ज़्यादा संख्या में रिकवरी के मामले भी हैं। इसके अलावा,कोविड-19 के चलते हुई मौतों की संख्या दिल्ली के मुक़ाबले केरल में कहीं कम है।

तालिका 1: कोविड-19 के कुछ तुलनात्मक मापदंड-दिल्ली और केरल (दिसंबर, 2020 तक)

स्रोतwww.covid19india.org से संकलित डेटा

केरल में कोविड-19 के हर 1,000 पुष्ट मामलों पर औसतन चार मौतें देखी जा रही हैं,जबकि दिल्ली में हर 1,000 पुष्ट मामलों में तक़रीबन 16 मौतें होती हैं। केरल में कोविड-19 से होने वाली मौत की इस बहुत कम संख्या के पीछे की वजह राज्य में महामारी के बेहतर प्रबंधन और सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर बेहतर प्रतिक्रिया हो सकती है।

हालांकि केरल और दिल्ली में किये जाने वाले परीक्षणों की संख्या तुलनीय है, केरल ने लगातार दिल्ली  के मुक़ाबले ज़्यादा संख्या में आरटी-पीसीआर परीक्षण किये हैं (तालिका 2)। ये परीक्षण,कोविड-19 के पोज़िटिव मामलों को शिनाख़्त करने में ज़्यादा सटीक हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की ऐडवाइज़री में कहा गया है कि "वास्तविक समय के दरम्यान कोविड-19 के निदान के लिए आरटी-पीसीआर सबसे बेहतर मानक वाला उन्नत परीक्षण है" और यह बताता है कि सभी निगेटिव आरएटी को आरटी-पीसीआर के साथ क्रॉस-चेक किया जाना चाहिए। एक अनुसंधान के सिलसिले में सूचना के अधिकार (RTI) के तहत सरकारी अधिकारियों द्वारा हाल ही में दिये गये जवाब में यह पाया गया है कि दिल्ली में 1 सितंबर से 7 नवंबर के बीच कोविड-19 के लिए हुए आरएटी परीक्षण में जो लोग निगेटिव पाये गये थे,उनमें से 11% लोग आरटी-पीसीआर परीक्षणों में पोज़िटिव पाये गये।

तालिका 2: दिल्ली और केरल में कुल हुए परीक्षण में आरटी-पीसीआर टेस्ट का अनुपात (% में)

स्रोतwww.covid19india.org से संकलित डेटा

हालांकि, इस बात के आकलन की ज़रूरत है कि पिछले कुछ हफ्तों में दोनों राज्यों में आरटी-पीसीआर परीक्षणों के अनुपात में गिरावट क्यों देखी गयी है।

इन दो राज्यों में कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए कुछ चिकित्सा सुविधाओं को लेकर अन्य तुलनात्मक आंकड़ों को देखते हुए हम पाते हैं कि कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिहाज़ से केरल,दिल्ली से बेहतर है। केरल ने कोविड-19 मामलों के अलग-अलग स्तर से निपटने के लिए एक तीन स्तरीय संरचना विकसित की है,ये तीन स्तर हैं- कोविड फर्स्ट लाइन ट्रीटमेंट सेंटर (CFLTC), कोविड सेकंड लाइन ट्रीटमेंट सेंटर (CSLTC) और विशिष्ट अस्पताल। केरल में विकेंद्रीकृत सरकारी ढांचे और मज़बूत सामुदायिक जुड़ाव ने इस महामारी से निपटने में बेहद रचनात्मक भूमिका निभायी है। आपातकालीन तैयारी और आपातकाल को लेकर की जानी वाली पहल को लेकर केरल का जो पिछला अनुभव रहा है,वह कोविड-19 संकट को लेकर त्वरित क़दम उठाने के सिलसिले में काम आया है। शासन के प्रत्येक स्तर पर समुदाय के साथ काम करने वाले एक समर्पित कार्यकर्ताओं का निर्माण बहुत असरदार रहा है। केरल भी उन राज्यों में से एक है,जिन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने में ऐतिहासिक रूप से ज़्यादा निवेश किया है।

दूसरी ओर,दिल्ली को चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने और संपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मशीनरी को लामबंद करने को लेकर जूझना पड़ा है। पहले कुछ महीनों में प्रशासन ने अनुमानित ज़रूरतों के लिहाज़ से अपनी क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया,जैसे-होटल को आइसोलेशन सेंटर के तौर पर इस्तेमाल करना, अतिरिक्त बेड के लिए निजी अस्पतालों के साथ इन्हें जोड़ना (हालांकि यह 29 जुलाई से बंद कर दिया गया था), केंद्र सरकार की मदद से नयी सुविधाओं का निर्माण करना और बाद में चिकित्सा सम्बन्धी बुनियादी ढांचे पर दबाव को कम करने के लिए होम क्वारंटाइन के लिए आदेश जारी करना।

कोविड-19 के सिलसिले में बुनियादी ढांचे के बढ़ाये जाने के कई उपाय करने के बाद इस समय केरल के 21,387 (केरल सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़ों से संकलित) के मुक़ाबले दिल्ली में तक़रीबन 18,813 कोविद-19 बेड हैं। केरल के इस आंकड़े में तीन श्रेणियों में बेड शामिल हैं – ‘कोविड अस्पताल, सीएसएलटीसी, अन्य कोविड अस्पताल’; ग़ौरतलब है कि इसमें दो राज्यों के डेटा में तुलना को सुनिश्चित करने के लिए सीएफ़एलटीसी शामिल नहीं है।

कोविड-19 महामारी के अनुभव ने साफ़ तौर पर बेहतर कार्यप्रणाली वाले विकेन्द्रीकृत सरकारी ढांचे, मज़बूत सामुदायिक भागीदारी और मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के निर्माण में सरकार की तरफ़ से किये जाने वाले पर्याप्त निवेश की अहमियत को सामने ला दिया है। ये ऐसे तत्व हैं,जो किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के समय एक व्यापक क़दम उठाने में मदद करते हैं और लंबे समय में समाज के सभी वर्गों के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाते हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Delhi and Kerala Have Highest Daily Covid-19 Cases But Widely Different Trajectories

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