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कुंभ स्नान के समय कोरोना की दूसरी लहर लाई संक्रमितों की बाढ़, कोविड डाटा पर भी सवाल

1-15 अप्रैल के बीच हरिद्वार और देहरादून के पॉज़िटिविटी रेट में 477 % का फर्क था। देहरादून में इस दौरान 77,795 टेस्ट/ 1.48% पॉज़िटिविटी रेट था। वहीं हरिद्वार में 303,493 टेस्ट/1.48% पॉज़िटिविटी रेट रहा। 
कुंभ के समय गंगा घाटों पर उमड़ी भीड़ में सोशल डिस्टेन्सिंग असंभव हो गई
कुंभ के समय गंगा घाटों पर उमड़ी भीड़ में सोशल डिस्टेन्सिंग असंभव हो गई

कुंभ नगरी हरिद्वार इस समय कोविड मरीजों से कराह रही है। स्थिति बेहद गंभीर बनी हुई है। हरिद्वार के अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी और कोविड-19 के नोडल अधिकारी डॉ एचडी शाक्य कहते हैं “सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन बेड मिल जाएंगे लेकिन वेंटिलेटर खाली नहीं हैं। निजी अस्पतालों में मरीजों को भर्ती करने की जगह नहीं है। सरकारी अस्पतालों में मेला अस्पताल और बाबा बर्फ़ानी अस्पताल में कुछ बेड खाली हैं। गंभीर मरीजों को हम एम्स ऋषिकेश या देहरादून रेफ़र कर रहे हैं। हरिद्वार में मेडिकल कॉलेज स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं”।

“कुंभ में गंगा स्नान के लिए दूसरे राज्यों से आए लोगों का शहर पर असर पड़ा है। ये जो अखाड़ों की भारी-भरकम पेशवाई सड़कों पर निकली, फिर लोग गंगा घाटों पर गए। कुंभ का असर तो पड़ा ही है। इसके चलते कोरोना संक्रमण बढ़ा है”। ये डॉ शाक्य का मानना है। वह कहते हैं कि कुंभ में बाहरी राज्यों से आए लोगों से हुए संक्रमण से उत्तराखंड में कोरोना की दूसरी लहर तेज़ हुई है।  

कुंभ के दिनों के साथ बढ़ा राज्य में कोरोना का ग्राफ

27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा के प्रतीकात्मक शाही स्नान के साथ हरिद्वार कुंभ का समापन हो गया। इस दिन तक हरिद्वार में कुल पॉज़िटिव केस की संख्या 29,255 पहुंच गई। कुल एक्टिव केस 11,892 हो गए। एक अप्रैल से कुंभ की आधिकारिक तौर पर शुरुआत हुई थी। इस दिन तक हरिद्वार में कुल पॉजिटिव केस 15,226 थे। कुल एक्टिव केस 626 थे। 

यानी एक अप्रैल से 27 अप्रैल के बीच हरिद्वार में 14,029 कोविड-19 संक्रमित केस पाए गए। 27 दिनों में एक्टिव केस भी बढ़कर 11,266 हो गये। 
  
एक अप्रैल तक उत्तराखंड में पॉज़िटिव केस की कुल संख्या 100,911 थी। जबकि 27 अप्रैल तक ये आंकड़ा 162,562 तक पहुंच गया। यानी एक से 27 अप्रैल के बीच राज्य में 61,651 केस दर्ज हुए।

28 अप्रैल को हरिद्वार में 1178 और उत्तराखंड में 6054 कोविड पॉज़िटिव केस आए। हरिद्वार से अधिक देहरादून में 2329 केस आए। जबकि 29 अप्रैल को हरिद्वार में 1163, देहरादून में 2207 और उत्तराखंड में 6251 केस आए। 
एक अप्रैल से 25 अप्रैल के बीच उत्तराखंड के एक्टिव केस में 1800% का इजाफा हुआ।

कुंभ के चलते उत्तराखंड में कोविड लहर हुई मज़बूत?

सामान्य तौर पर ये माना जा रहा है कि उत्तराखंड में कोविड की दूसरी लहर के तूफ़ान बनने की बड़ी वजह कुंभ है। जिसमें देशभर से लोग शामिल हुए। 11 मार्च को महाशिवरात्रि पर 32 लाख से अधिक लोगों ने गंगा स्नान किया। दूसरी बड़ी संख्या 12 अप्रैल को पहले आधिकारिक शाही स्नान पर 21 लाख लोगों ने स्नान किया। 14 अप्रैल को दूसरे शाही स्नान पर करीब 13.5 लाख लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई। 

कुंभ में स्थानीय लोगों के साथ ही महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब समेत 13 अखाड़ों से जुड़े राज्यों से बड़ी संख्या में लोग जुटे। ये सभी राज्य कोरोना की दूसरी लहर से बुरी तरह प्रभावित थे। 

हरिद्वार कुंभ मेला प्रशासन का तर्क है कि वर्ष 2010 में हुए कुंभ में 12 अप्रैल- सोमवती अमावस्या पर करीब 70 लाख लोगों ने स्नान किया था। वहीं 14 अप्रैल- मेष संक्रांति पर 180 लाख लोगों ने स्नान किया था। ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योंकि कुंभ में आने को लेकर प्रशासन ने सख्त नियम बनाए।

हरिद्वार के अपर ज़िलाधिकारी हरवीर सिंह भी मानते हैं अन्य राज्यों से आ रहे लोगों को कोविड नेगेटिव रिपोर्ट देखकर ही प्रवेश देना संभव नहीं था। ऐसा 100 प्रतिशत हो ही नहीं सकता था।

क्या नेगेटिव आरटी-पीसीआर रिपोर्ट लाने वालों को ही शहर में मिला प्रवेश?

हरिद्वार के निवासी पत्रकार धर्मेंद्र चौधरी लगातार कुंभ कवर कर रहे थे। उनसे मैंने कुंभ के दौरान ज़िले में प्रवेश करने वालों की चेकिंग के बारे में बात की। वह बताते हैं कि यह संभव ही नहीं था। लाखों की संख्या में लोग हरिद्वार आए। जबकि जो कोरोना टेस्टिंग हुई वो कुछ हज़ार की ही हुई। उनके “मुताबिक ज़िले की सभी सीमाओं पर चेकिंग की औपचारिकता निभाई गई। रस्म अदायगी के तौर पर कुछ लोगों को वापस लौटाया भी गया। लेकिन ये रिपोर्ट बनाने और दिखाने भर को था। काफी लोगों ने बिना नेगेटिव रिपोर्ट के शहर में प्रवेश किया। कुछ की प्रवेश के दौरान जांच भी की गई”। वह कहते हैं कि अधिकारी भी दबी जुबान में मानते हैं कि ऐसा व्यवहारिक नहीं हो नहीं सकता। संसाधन कम रहे, भीड़ ज्यादा रही।

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद का भार ग्रहण करने के बाद तीरथ सिंह रावत ने भी यह कहा था कि कुंभ के लिए लोग बिना रोक-टोक के आएंगे। उन्होंने माना था कि इतने लोगों की आरटीपीसीआर नेटेगिव रिपोर्ट चेक कर प्रवेश देना संभव नहीं है। 

धर्मेंद्र चौधरी कहते हैं कि इस समय स्थानीय निवासियों की स्थिति भयावह बन गई है। अस्पतालों में कहीं बेड नहीं है। हरिद्वार में दावे तो बहुत हैं लेकिन यहां के कोविड अस्पताल रेफरल सेंटर हैं। इनमें वेंटिलेटर नहीं है। सुविधाएं नहीं है। गंभीर मरीजों का हरिद्वार में कोई इलाज नहीं है। अगर स्थिति गंभीर हुई तो मरीज को ऋषिकेश एम्स या देहरादून के जौलीग्रांट अस्पताल रेफर किया जाता है।

हरिद्वार के अपर ज़िलाधिकारी हरवीर सिंह भी मानते हैं “अन्य राज्यों से आ रहे लोगों को कोविड नेगेटिव रिपोर्ट देखकर ही प्रवेश देना संभव नहीं था। ऐसा 100 प्रतिशत हो ही नहीं सकता था। हमने बहुत से लोगों को वापस भी भेजा। 27 अप्रैल को भी बहुत से लोग बिना नेगेटिव रिपोर्ट लिए आए। हमने कई गाड़ियां वापस लौटाईं“।

हरिद्वार के मेला अधिकारी दीपक रावत कहते हैं “शहर में प्रवेश को लेकर नेगेटिव आरटी-पीसीआर रिपोर्ट के लिए नियम नहीं था। ये नियम कुंभ मेला क्षेत्र के लिए था। मेला क्षेत्र में हमने नेगेटिव आरटी-पीसीआर रिपोर्ट के बिना किसो को प्रवेश नहीं करने दिया। बिना रिपोर्ट के आए बहुत से लोगों को वापस लौटा गया। हरिद्वार में प्रवेश के लिए 9 बॉर्डर चेक पोस्ट हैं। हालांकि अस्थि विसर्जन के लिए आने वालों को हमने नहीं रोका। उनसे सहानुभूति दिखाते हुए मौके पर ही टेस्ट किया गया। इसके अलावा रेल से आए जिन यात्रियों के पास नेगेटिव रिपोर्ट नहीं थी, उनकी भी हमने टेस्टिंग की। इसीलिए हरिद्वार में कोविड केस नियंत्रण में रहे”।
 
हरिद्वार कुंभ में शामिल होने के लिए मेला प्रशासन ने वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य किया था। दीपक रावत कहते हैं “वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन बेहद कम हुए। जो लोग कोविड नेगेटिव रिपोर्ट के साथ आ रहे थे उन्हें हमने आने दिया”।

डाटा का चक्कर- हरिद्वार में अन्य राज्यों से कितने लोग आए

वर्ष 2011 के जनगणना आंकड़ों के मुताबिक हरिद्वार की आबादी 18.90 लाख है। वर्ष 2018 में इसके 22.73 लाख होने का अनुमान जताया गया। 

मेला प्रशासन ने 12 अप्रैल को यहां कुंभ का शाही स्नान करने वालों का आंकड़ा तकरीबन 21 लाख दिया। मेला अधिकारी दीपक रावत कहते हैं “अन्य राज्यों से हरिद्वार आने वालों की संख्या तकरीबन 5 लाख के आसपास रही। इनमें दो लाख के आसपास साधु-संत थे। हरिद्वार और ऋषिकेश के आश्रमों और होटलों की क्षमता 5 लाख तक ही है। इस बार कुंभ के दौरान अप्रैल के महीने में होटलों-आश्रमों में करीब 50 प्रतिशत ही कमरे भरे थे। शिवरात्रि पर इससे ज्यादा भीड़ रही। स्नान करने वालों को जो आंकड़ा दिया गया उनमें ज्यादातर स्थानीय लोग ही थे। इस लिहाज से करीब तीन लाख लोग ही अन्य राज्यों से आए”।   

मेला अधिकारी का दावा कुंभ 10-14 अप्रैल के बीच 50 हज़ार से अधिक कोविड टेस्ट

स्वास्थ्य बुलेटिन में क्यों नहीं दर्शाए गए कुंभ के आंकड़े

नैनीताल हाईकोर्ट ने हरिद्वार कुंभ को देखते हुए ज़िला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से रोज़ाना 50 हज़ार तक कोविड टेस्ट करने के निर्देश दिए थे। मौजूदा व्यवस्था में इतने कोविड टेस्ट को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने हाथ खड़े कर दिए थे। स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने अदालत में हलफनामा दायर कर कहा था कि श्रद्धालुओं की भीड़ बाहर से आती है और इतने आरटीपीसीआर टेस्ट कराना संभव नहीं है। इनकी रिपोर्ट कुछ दिनों में आती है।

स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक अप्रैल महीने में हरिद्वार में ज्यादातर 15-20 हज़ार के आसपास टेस्ट किए गए। इसके मुताबिक 10 अप्रैल को 14,217 टेस्ट किए गए। 11 अप्रैल को 24357 टेस्ट, 12 अप्रैल के शाही स्नान के दिन ये संख्या 28,583 रही। 13 अप्रैल को 21905 और 14 अप्रैल को 32,257 टेस्ट किए गए।  

मेला अधिकारी दीपक रावत के मुताबिक हेल्थ बुलेटिन के आंकड़े हरिद्वार ज़िले के थे। कुंभ मेला क्षेत्र के लिए हेल्थ बुलेटिन में अलग से डीटेल नहीं दी गई। उन्होंने जो डाटा साझा किया उसके मुताबिक 10 अप्रैल को हरिद्वार में कुल 30,618 टेस्ट किए गए। 11 अप्रैल को 55430, 12 अप्रैल को 66203, 13 अप्रैल को 48270, और 14 अप्रैल को 40,185 टेस्ट किए गए। इनमें ज्यादातर एंटीजन टेस्ट हुए। 14 अप्रैल को 57 ट्रुनेट टेस्ट हुए। शेष सभी आरटीपीसीआर टेस्ट थे। 

मेला प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक इन तारीखों में कुंभ क्षेत्र के जो पॉजिटिव नतीजे आए। उसकी संख्या काफी कम रही। 10 अप्रैल को कुल 197, 11 अप्रैल को कुल 357, 12 अप्रैल को 378, 13 अप्रैल को 496 और 14 अप्रैल को 437 पॉज़िटिव नतीजे आए। पॉज़िटिविटी रेट 0.77 प्रतिशत रही। 

जबकि स्वास्थ्य विभाग के बुलेटिन के मुताबिक 10 अप्रैल को हरिद्वार में कुल 254 पॉजिटिव केस, 11 अप्रैल को 386, 12 अप्रैल को 408 केस, 13 अप्रैल को 594 केस और 14 अप्रैल को 525 पॉज़िटिव केस आए। 


मेला अधिकारी दीपक रावत कहते हैं कि हमने कोविड को लेकर अच्छी तैयारी की। उन्हीं लोगों के आरटी-पीसीआर टेस्ट किए गए जो होटलों या आश्रमों में रुके। वह नहीं मानते कि कुंभ के चलते उत्तराखंड में कोविड केस बढ़े हैं। 

लेकिन कुंभ के दौरान मेला प्रशासन ने ये डाटा सार्वजनिक नहीं किया। ये डाटा न सिर्फ चौंकाता है बल्कि सवाल भी खड़े करता है। क्या हरिद्वार में स्वास्थ्य विभाग की ओर से अलग टेस्ट किए गए और मेला प्रशासन की ओर से अलग टेस्ट। इसकी जानकारी स्वास्थ्य बुलेटिन में क्यों नहीं साझा की गई।  स्थानीय लोगों और बाहर से आए लोगों के टेस्ट को अलग-अलग क्यों नहीं बताया गया। 

देहरादून-हरिद्वार के पॉज़िटिविटी रेट में 477 % का फर्क

दरअसल हरिद्वार में टेस्ट की संख्या और पॉज़िटिव केस के आंकड़े चौंकाने वाले रहे। पूरे अप्रैल में हरिद्वार से ज्यादा पॉज़िटिव केस देहरादून में दर्ज किए गए। जबकि यहां टेस्ट की संख्या हरिद्वार की तुलना में करीब एक चौथाई रही। देहरादून राजधानी है और बाहर से लोग यहां आते हैं लेकिन कुंभ में आने वालों की संख्या से इसकी तुलना नहीं की जा सकती।

सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्यूनिटीज़ फाउंडेशन के अनूप नौटियाल उत्तराखंड हेल्थ बुलेटिन से मिले डाटा का विश्लेषण कर रहे हैं। वह कहते हैं कि 1 से 19 अप्रैल के बीच हरिद्वार में कोविड पॉज़ीटिविटी रेट 1.70 % रही। जबकि उत्तराखंड के अन्य 12 ज़िलों में ये आंकड़ा 8.33%  था। इस दौरान राष्ट्रीय संक्रमण दर 13% रही। यानी हरिद्वार की तुलना में राज्य के अन्य ज़िलों में करीब 5 गुना अधिक संक्रमण रहा। 

हेल्थ बुलेटिन के आंकड़ों का विश्लेषण कर अनूप नौटियाल कहते हैं कि 1-15 अप्रैल के बीच हरिद्वार और देहरादून के पॉज़िटिविटी रेट में 477% का फर्क था। देहरादून में इस दौरान 77795 टेस्ट/ 1.48% पॉज़िटिविटी रेट था। वहीं हरिद्वार में 303493 टेस्ट/1.48% पॉज़िटिविटी रेट रहा। अनूप ने थर्ड पार्टी से हरिद्वार का कोविड डाटा ऑडिट करने की बात कही।  वह चिंता जताते हैं कि उत्तराखंड का कोविड मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से 28% अधिक है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग के लिए ये सत्यता एक बहुत बड़ी चुनौती है।

कुंभ वेबसाइट पर श्रद्धालुओं के पंजीकरण का डाटा उपलब्ध नहीं था। 12 और 14 अप्रैल के शाही स्नान तक राज्य में कोविड की दूसरी लहर बेकाबू हो चुकी थी। प्रतीकात्मक स्नान की मांग की जा रही थी। लेकिन साधु-संत ऐसा नहीं चाहते थे। महामारी पर भारी आस्था को देखते हुए 17 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ़ोन पर स्वामी अविमुक्तेश्वरा नंद से बात की। जिसके बाद अगला स्नान 27 अप्रैल, सांकेतिक रखने का फ़ैसला लिया गया।

इस दौरान तक कई साधु-संत भी कोविड पॉज़िटिव आ चुके। 16 अप्रैल को निरंजनी अखाड़े के 17 संत संक्रमित पाए गए। कुंभ के लिए आए तीन संतों की मृत्यु भी हुई। मेला अधिकारी दीपक रावत कहते हैं कि ये संत पहले से कोरोना संक्रमित थे और कुंभ क्षेत्र में नहीं आए बल्कि सीधे अस्पताल में भर्ती हुए।

‘कुंभ प्रतीकात्मक रखते तो ही ठीक था’

कोरोना विस्फोट की नहीं थी उम्मीद

हरिद्वार के स्थानीय निवासी और वकील प्रियांश कुमार कहते हैं “कुंभ प्रतीकात्मक रखते तो ही ठीक थी। सरकार को भी नहीं लगा था कि इस तरह से कोरोना का विस्फोट होगा। कुंभ में लोगों को जागरुक करने के लिए तो जरूरी इंतजाम किए गए। 14-15 अप्रैल के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदली है। तब तक बहुत ध्यान नहीं दिया गया। लापरवाही हुई है। सरकार भी लापरवाह हुई और लोग भी हुए। लेकिन जहां कुंभ नहीं था वहां भी कोरोना तेजी से फैला। दिल्ली-यूपी में कौन सा कुंभ था”।

11-12 अप्रैल को हरिद्वार की सड़कों पर गुज़रते हुए मेरा अनुभव भी यही था कि लोगों ने मास्क तो पहने थे लेकिन नाक के नीचे। महिलाएं छोटे बच्चों को बिना मास्क के सड़क पर घुमाती हुई मिलीं। ये हैरान करने वाला था। लेकिन तब तक कोविड की दूसरी खतरनाक लहर का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सका था। ठीक उसी तरह, जब वर्ष 2020 में मार्च के तीसरे हफ्ते में अचानक लॉकडाउन घोषित कर दिया गया और दूसरे हफ्ते में हम स्थिति का ठीक-ठीक अंदाज़ा नहीं लगा सके थे। कुंभ में उमड़ी भीड़ को देखते हुए मेला आईजी संजय गुंज्याल ने भी सोशल डिस्टेन्सिंग को बरकरार रखने से हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि इस भीड़ में यह संभव ही नहीं है।

हरिद्वार कुंभ के अधिकारी इस बात पर संतुष्ट हैं कि इस बार के कुंभ में कोई हादसा नहीं हुआ। कोई दुर्घटना नहीं हुई। लेकिन कुंभ के समय कोरोना की दूसरी लहर अपने साथ संक्रमितों की ऐसी बाढ़ लेकर आई है कि अस्पतालों में बिस्तर नहीं मिल रहे। ऑक्सीजन के लिए मुश्किल स्थिति बनी हुई है। हम एक वर्ष पहले भी कुछ नहीं समझ सके थे और बेबस थे। एक वर्ष बाद भी हमारी वही स्थिति है। 27 अप्रैल के शाही स्नान के साथ कुंभ का समापन हो गया और इसके तुरंत बाद ज़िले में कर्फ्यू लगा दिया गया है। गंगा द्वार से प्रवेश कर कोरोना का नया म्यूटेंट अब पहाड़ों तक पहुंच गया है। जिसके बाद चारधाम यात्रा आम लोगों के लिए स्थगित कर दी गई है। 

देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह

(This research/reporting was supported by a grant from the Thakur Family Foundation. Thakur Family Foundation has not exercised any editorial control over the contents of this reportage.)

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