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दिल्ली चलो : किसान ,मजदूर ,महिलाओं , दलितों , और नौजवानों के बाद छात्र भी दिल्ली कूच करने को तैयार

“बहुत हुआ गौशाला पर चर्चा , अब पाठशाला की बात हो” और “नौजवान को धर्म के नाम पर तोड़ने के बजाए , रोजागर के नाम पर जोड़ा जाए” की मांग को लेकर वामपंथी छात्र संगठनों के साथ ही कई विश्विद्यालयों के छात्र संघ भी 18फरवरी को पूरे देश से दिल्ली पहुँच रहे है |

delhi CHALO

मोदी सरकार के खिलाफ देश के लाखों  किसान ,मजदूर ,दलित और महिलाओ के मार्च के बाद अब देश के हजारो की संख्या में छात्र एसएफ़आई( SFI), एआईडीएसओ (AIDSO) ,एआईएसएफ( AISF) प्रोग्रसिव स्टूडेंट यूनियन (PSU)और  एआईएसबी (AISB) जैसे वामपंथी छात्र संगठन  के साथ ही कई विश्विद्यालय के छात्र संघ भी 18 फरवरी को पूरे देश से छात्र दिल्ली पहुँच रहे है | ये छात्र मोदी सरकार की छात्र विरोधी नीतियों और उच्च शिक्षा को तबाह करने के प्रयास के खिलाफ  दिल्ली में मार्च करंगे |

छात्र संगठनो के मुताबिक ये सरकार के सीधे छात्रों पर हमले कर रही है और संवैधानिक रूप से सुनिश्चित अधिकारों को कुचल रही है, यही नहीं लगातर छात्र और शिक्षा विरोधी नीतियाँ अपना रही है.भाजपा की अगुवाई वाली सरकार सत्ता में आने के बाद से शिक्षा और शैक्षणिक संस्थानों को नष्ट करने के लिए पूरी शिद्दत से काम कर रही है.

इस को लेकर आज इन सभी छात्र संगठनो के केन्द्रीय नेताओ ने प्रेस से बात की  और कहा कि  पुरे विश्व में अशिक्षित बच्चो का सबसे बड़ा हिस्सा भारत में है इसके साथ ही भूखे बच्चे में भारत कि स्थति बहुत ही खराब है. लेकिन हमारी सरकार इन सभी मुद्दो को छोड़कर मूर्ति निर्माण में लगी हुई है  जितने में उन्होंने मूर्ति बनाई है उतने में 5 आईआई टी और आई आई एम बन सकता था |

AISF के महासचिव विक्की महेश्वरी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा की मोदी के वादे हवा हवाई थे वास्तविकता में कुछ भी नहीं हो रहा है आज भी करीब 9 करोड बच्चे स्कूल  में नही पहुँच पा रहे हैं. शिक्षा के साथ ही सरकार रोजगार भी नही दे पा रही है. इन सभी मांगों को लेकर हम दिल्ली कूच करेंगे |

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इस मार्च की मुख्य मांगे -

1. केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा प्रणाली को लागू  करना: छात्र संगठन ने कहा कि पिछले दो दशकों में सार्वजनिक क्षेत्र की शिक्षा को खत्म किया गया है.  छात्रों ने कहा कि  पिछले चार वर्षों के दौरान यह एक  घातक स्तर पतक पहुँच गया है। ये वो दुआर हैं. जहाँ शिक्षा की पहुँच चंद लोगो तक समिति की जा रही है. भाजपा सरकार द्वारा लगतार फंड कट के कारण लगातर सर्वजनिक शिक्षण संस्थानों में कमी आ रही है.इसलिए हम मांग करते हैं- केजी से पीजी तक की शिक्षा मुफ्त होनी चाहिए |

2. जीडीपी का 6% और शिक्षा पर केंद्रीय बजट का 10% खर्च : छात्र संगठनो ने कहा  कि  1966 में कोठारी आयोग ने रिपोर्ट प्रस्तावित किया था कि जीडीपी का 6% शिक्षा के लिए आवंटित किया जाना चाहिए लेकिन 50 से अधिक वर्षों बाद आज भी नहीं हुआ है। मोदी सरकार पूरे शिक्षा क्षेत्र के लिए बजट जो पहले से कम है उसे और कम करने पर तुली हुई है |

3. सभी को रोजगार सुनिश्चित करने के लिए भगत सिंह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (BNEGA) लागू करें :  AIDSO के प्रशांत ने कहा कि सरकार रोजगार नही दे रही है  बल्कि ऐसे पंखे बनाने की  बात कर  रही जिससे नौजवन फंसी न लगा सके | देश में लगातर रोजगार के अवसर घट रहे हैं. करोड़ो की संख्या में नौजवान आज डिग्री लेकर सड़क पर खाली हाथ घुम रहे हैं क्योंकि उनके पास रोजगार का कोई अवसर नही है। कई लोगो ने इस कारण आत्महत्या भी कर रहे है. इसी कारण इस कानून का लागू होना अत्यधिक आवश्यक हो गया है.

4. शिक्षा का साम्प्रदायीकरण बंद करो: सभी छात्र संगठनो का कहना था कि  हिंदुत्व आरएसएस का मार्गदर्शक सिद्धांत है, शिक्षा का सम्प्रदायीकरण बीजेपी सरकार की नीतियों का हमेशा से एक अभिन्न हिस्सा रहा है | इसका उदहारण दीनानाथ बत्रा जैसे लोगों को स्कूल पाठ्यक्रम बदलने के लिए स्वतंत्र कर दिया गया है| बीजेपी शासित राज्यों में पहले ही सांप्रदायिक ज़हर से किताबें  दूषित हो चुकी थी. पिछले साढ़े चार सालों में पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था को प्रदूषित करना चाहती है|

5. मौजूदा आरक्षण को ठीक से लागू करना और निजी संस्थानों में भी सामाजिक न्याय को लागू करना : छात्र नेताओं के मुताबिक, हम देख रहे हैं कि किस तरह सामजिक न्याय का मज़ाक बनाया जा रहा है। समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को मिलने आरक्षण पर अलग अलग तरीको से हमले कर रही है, ये साफ दिखाता है कि वे नहीं चाहते हैं कि समाज का सबसे पिछड़ा तबका जो सालो से इन मनुवादियों और ब्रह्मणवादियों के शोषण के कारण आजतक भी बहुत मुश्किल से विश्वविद्यालयो तक पहुँचा है, वो आये और इनसे सवाल करे कि क्यों सैकड़ो वर्ष तक उनका शोषण हुआ|

6. सभी छात्रवृत्ति के लिए धनराशि जारी किया जाए  और फैलोशिप कि राशी में बढ़ोतरी किया जाए :  सभी छात्रों  संगठनो का कहना था कि पिछले चार साल से मोदी सरकार के दौर में  शोध छात्रों के फेलोशिप में किसी भी तरह कि बढ़ोतरी नहीं हुई है जबकि महंगाई अपनी चरम सीमा पर है, बल्कि उसमे लगातार कटौती हुई है कई सारे फेलोशिप जो समाज के पिछड़े तबके से आने वाले छात्रों के लिए हैं उनमें लगातार ऐसे नियम बनाए जा रहे है जिससे छात्रों का एक बड़ा तबका उसके लाभ से बाहर हो जाए।  अभी भारत में छात्रों के स्क्लोर्शिप और फैलोशिप का बजट 8 हज़ार करोड़ से अधिक है, जबकी सरकार केवल 3 हज़ार ही आवंटित कर रही है |

7. शिक्षा के संघीय चरित्र की रक्षा और शिक्षा के केंद्रीकरण के खिलाफ : छात्र संगठनो ने कहा की नवउदारवाद और भाजपा शासन के तहत शक्ति का  लगातर केंद्रीकरण किया जा रहा है जो शिक्षा के लिए बहुत ही खतरनाक है. पिछले चार वर्षों में, सरकार के नीतिगत पक्षाघात ने सभी निर्णय लेने वाले निकायों को तोड़ा है, जिससे लोकतांत्रिक महौल खत्म हुआ है | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, यूजीसी और विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रशासन द्वारा अकादमिक या विशेषज्ञों के परामर्श के बिना ही नीति स्तर के निर्णय किए जा रहे हैं |

8 महिलाओ कि सुरक्षा कैंपसो में सुनिश्चित कि जाए : एसएफआई के अखिल भरतीय सुयंक्त सचिव दीपसीता धर ने कहा कि हमारी  सरकार नारा तो बेटी बचाओ  और बेटी पढ़ाओ का देती है परन्तु हम देख रहे देश के तमाम कैंपस महिलाओ के लिए खतरनाक होते जा रहे है | अभी हल में जेएनयू में छात्रों के शोषण के आरोपी  प्रोफेसर को छोड़कर पीडिता के खिलाफ ही कार्रवाई हुई ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वो सत्ताधारी दल का समर्थक था ,जो हमें और डरा रहा है.

एसएफआई के महासचिव मयूख विश्वास ने न्यूज़ क्लिक से बात करते हुए कहा कि ये सरकार मनुवादी मूल्यों को विज्ञान पर थोप रही है. इसका ताज़ा उदाहराण हमने भारतीय विज्ञान कांग्रेस में देखा, जहाँ आन्ध्र प्रदेश विश्विद्यालय के वीसी ने तो आइन्स्टाइन के सिधांत को खरिज़ कर दिया। और इस तरीके की फिजूलबयानी  कि हमारे देश साइंसटिफिक टेंपर के लिए खतरनाक है |

आगे मयूख कहते है कि हमारी सरकार लोगो को धर्म के नाम पर तोड़ रही है जबकि हम कह रहे है की लोगो को रोजगार और शिक्षा के साथ जोड़ा जाए और  बहुत हुआ गौशाला पर चर्चा, अब बात हो पाठशाला की | इन्ही सब मांगों को लेकर हम 18 फरवरी को दिल्ली मार्च करेंगे |

 

 

 

 

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