दलित बुद्धिजीवी प्रो. आनंद तेलतुंबडे गिरफ़्तार, देशभर में तीखी प्रतिक्रिया
पुणे पुलिस ने शनिवार तड़के मुंबई हवाईअड्डे से दलित बुद्धिजीवी व प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे को गिरफ्तार किया है। पुलिस टीम हवाई अड्डे पर उनका इंतजार कर रही थी और उन्हें तड़के करीब 3.30 बजे छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के घरेलू टर्मिनल से गिरफ्तार किया गया।
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे सत्र न्यायलय ने शुक्रवार 1 फरवरी को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अब पुणे पुलिस उन्हें में विशेष अदालत में पेश करेगी।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने तेलतुंबडे को उचित अदालत में जमानत के लिए आवेदन करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया था | जिसके बाद, उन्होंने पुणे की सत्र न्ययालय में एक आवेदन किया था। सुनवाई 28 जनवरी को शुरू हुई, और तीन दिनों तक जारी रही। हालांकि, तेलतुंबडे के वकील रोहन नाहर ने आरोप लगाया कि पुलिस आनंद को गिरफ्तार करने के लिए सुनवाई में देरी कर रही है। जब शनिवार तड़के 3:30 बजे उनकी गिरफ्तारी हुई तो अब नाहर के आरोपों सही लग रहा हैं ।
कथित तौर पर आनंद को मुंबई के नजदीकी विले पार्ले पुलिस स्टेशन ले जाया गया। उन्हें बाद में पुणे ले जाया जाएगा।
गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में पढ़ाने वाले तेलतुंबडे पर प्रतिबंधित 'कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया' (माओवादी) और साथ ही यलगार परिषद के साथ संबंध रखने का आरोप है जिसे कथित तौर पर पुणे में कोरेगांव-भीमा में एक जनवरी, 2018 हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है।
जमानत अर्जी खारिज करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश किशोर वडाने ने मुख्य रूप से दो बातों का हवाला दिया है। उन्होंने कहा कि, "मेरे विचार में, जाँच अधिकारी द्वारा अपराध के कथित रूप से वर्तमान अभियुक्त (आनंद) की संलिप्तता के लिए पर्याप्त सबूत एकत्रित किया है।"
पुलिस ने 30 जनवरी को अदालत को एक 'सीलबंद लिफाफा’ सौंपा था, जिसे मामले में महत्वपूर्ण सबूत होने का दावा किया गया था। इस लिफाफे को प्रस्तुत करते हुए, विशेष लोक अभियोजक (स्पेशल पब्लिक प्रासीक्यूटर) उज्ज्वला पवार ने दावा किया कि इसमें आनंद टी के बारे में सबूत शामिल हैं, जो मामले में अन्य आरोपियों के कब्जे में पाए गए हैं। ये बताएंगे कि आनंद टी वास्तव में आनंद तेलतुंबडे है।' इन दलीलों के बाद, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी की हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।'
इससे पहले, इस मामले में जून के महीने में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं- शोमा सेन, महेश राउत, सुरेंद्र गडलिंग, रोना विल्सन और सुधीर धवले को गिरफ्तार किया गया था। फिर, जुलाई और अगस्त के महीनों में, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा, वर्नन गोंसाल्वेस और वरवर राव को गिरफ्तार किया गया।
प्रो. आनंद तेलतुम्बडे की गिरफ्तारी की देशभर के बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ता और कवि-लेखकों के बीच तीखी प्रतिक्रिया हुई है और सभी ने इस गिरफ्तारी की निंदा की है। सभी का कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से उनके पास 11 फरवरी तक का समय था तो ऐसी क्या जल्दी थी कि उन्हें तड़के इस तरह चोरी-छिपे गिरफ़्तार किया गया। लेखक व अन्य संगठनों को उनकी इस तरह गिरफ़्तारी की पहले ही आशंका थी, यही वजह है कि जनवादी लेखक संघ (जलेस), जन संस्कृति मंच (जसम), दलित लेखक संघ (दलेस), न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव, रमणिका फाउंडेशन, साहित्य वार्ता और प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में एक संयुक्त सभा कर आनंद तेलतुंबड़े के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए बयान जारी किया था, जिसमें कहा गया था “आनंद तेलतुंबडे और साथी आम्बेडकवादी वामपंथी लेखकों का उत्पीड़न भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के सांघातिक संकट का संकेत है। जिसका राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध जरूरी है।”
(कुछ इनपुट आईएएनएस एवं अन्य)
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