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राजनीति
दलित कार्यकर्ताओं ने भूमि अधिकारों को लेकर बेंगलुरु में डीसी कार्यालय की घेराबंदी की
दलित संघर्ष समिति ने विशेष भूमि हस्तांतरण निषेध अधिनियम में संशोधन की मांग की है।
निखिल करिअप्पा
27 Jun 2022
dalit activists

दलित संघर्ष समिति (अंबेडकर वडा) के 100 से अधिक कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार को बेंगलुरु के डिप्टी कमिश्नर (डीसी) कार्यालय की घेराबंदी कर अपने समाज के लिए भूमि अधिकार और कर्नाटक अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (विशेष भूमि के हस्तांतरण का निषेध) अधिनियम, 1978 में संशोधन की मांग की।

समिति अध्यक्ष मवल्ली शंकर के नेतृत्व में कार्यकर्ता अपनी मांगों की सूची डीसी को पेश करना चाहते थे। चूंकि डीसी मौजूद नहीं थे इसलिए अतिरिक्त उपायुक्त (एडीसी) ने यह सूची ली और उनकी मांगों पर विचार करने के लिए सहमत हुए।

दलित भूमि अनुदानकर्ताओं को उनकी भूमि से ऊंची जातियों द्वारा ठगे जाने से रोकने वाले पीटीसीएल अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति नॉन-एलायनेशन पीरियड के दौरान या सरकार की अनुमति के बिना 'अनुदानित भूमि' को हस्तांतरित नहीं कर सकता है। धारा 5 में कहा गया है कि यदि नियमों का उल्लंघन करके ये भूमि किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित की गई है तो डीसी भूमि का कब्जा ले सकता है और इसे मूल अनुदानकर्ता या उसके उत्तराधिकारियों को वापस दे सकता है।

नेक्कंती रामा लक्ष्मी बनाम कर्नाटक राज्य मामले में 2017 के सुप्रीम कोर्ट (एससी) के फैसले का आज व्यापक आशय है। इस मामले में, करियप्पा नामक एक दलित भूमि अनुदेयी को 1965 में एक भूखंड मिला था। उसने पीटीसीएल अधिनियम लागू होने से एक साल पहले 1977 में इसे बेच दिया था। बाद में खरीदार ने इसे 1984 में नेक्कंती रामा लक्ष्मी को बेच दिया था।

साल 2004 में, मूल भूमि अनुदेयी के कानूनी उत्तराधिकारियों ने इस भूमि को पुनः हासिल करने के लिए सहायक आयुक्त (एसी) के पास एक आवेदन दिया। एसी ने अर्जी खारिज कर दी। हालांकि, इस अपील पर अपीलीय प्राधिकारी ने इस बिक्री को अमान्य करार दिया और उत्तराधिकारियों को भूमि वापस करने का आदेश दे दिया। हाईकोर्ट ने अपीलीय अधिकारी के इस फैसले को बरकरार रखा।

पीड़ित पक्ष लक्ष्मी ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 2017 में, एससी ने फैसला सुनाया कि भूमि (उत्तराधिकारियों द्वारा) की वापसी के लिए आवेदन अनुचित रूप से लंबे समय के बाद किया गया था, यानी अधिनियम के लागू होने के लगभग 25 साल बाद। इन कानूनी सीमाओं का हवाला देते हुए अदालत ने फैसला सुनाया कि उक्त संपत्ति को मूल अनुदानकर्ता या उसके उत्तराधिकारियों को वापस नहीं किया जा सकता है।

कार्यकर्ता अब आरोप लगाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने इस अधिनियम को प्रभावी रूप से रद्द कर दिया है क्योंकि 25 साल पहले बड़ी संख्या में स्वीकृत भूखंड मि स्थानांतरित किए गए थे। वे कहते हैं, वर्ष 2017 के बाद से कम से कम 6,500 मामलों को कानूनी सीमाओं का हवाला देते हुए निपटाया गया है जबकि 18,000 मामले अभी भी लंबित हैं। दिलचस्प बात यह है कि धारा 5 अधिनियम के लागू होने से पहले हस्तांतरित की गई भूमि की वापसी की अनुमति देती है। हालांकि, क़ानूनी सीमाओं का कोई उल्लेख नहीं है।

पीटीसीएल होराता समिति के मंजूनाथ एमएच ने न्यूज़क्लिक को बताया, "विशेष अधिनियमों के कारण ये कानूनी सीमाएं लागू नहीं होती है। पीटीसीएल अधिनियम की धारा 11 स्पष्ट रूप से कहती है कि अन्य सभी अधिनियम (जो पीटीसीएल अधिनियम के प्रावधानों के साथ असंगत हो सकते हैं) को खारिज कर दिया जाता है। पीटीसीएल कानून सामाजिक न्याय के आधार पर बनाया गया था। हालांकि, कानूनी सीमाओं का हवाला देते हुए, सभी अदालतें और एसी / डीसी अब दलितों के खिलाफ फैसला सुना रहे हैं। हम चाहते हैं कि इस कानून को विधान या अध्यादेश द्वारा संशोधन किया जाए।"

ये कार्यकर्ता पिछले चार वर्षों से इस अधिनियम में संशोधन के लिए विरोध कर रहे हैं। दिसंबर 2021 में उन्होंने बेलगावी में सुवर्ण विधान सौध के सामने विरोध करने के लिए बेलगावी चलो रैली का आयोजन किया।

मंजूनाथ ने आगे कहा, “नॉन-एलायनेशन पीरियड से पहले जमीन की बिक्री नहीं हो सकती है। इसके अलावा, 1979 के बाद से सरकार की अनुमति के बिना दलित भूमि को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। हम केवल उन जमीनों को वापस करने के लिए कह रहे हैं जहां कानून का उल्लंघन हुआ है।”

डीएसएस कार्यकर्ताओं ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों की भी पहचान की है जहां सरकार का दलितों की भूमि पर कब्जा है और उन्हें समुदाय के भूमिहीन सदस्यों को आवंटित करने की मांग की है।

डीएसएस सदस्य लक्ष्मण ने कहा, “बेंगलुरु में स्लम बोर्डों द्वारा निर्मित कई आवास परियोजनाएं हैं। उदाहरण के लिए, जयनगर 9वें ब्लॉक में बने 2,000 घर स्थानीय लोगों के लिए हैं। हालांकि, हर घर को तमिलों और तेलुगु लोगों ने अपने कब्जे में ले लिया है, जिन्होंने उन्हें अपने समुदाय के सदस्यों को किराए पर दिया है।” वे आगे कहते हैं, “यहां बहुत सारे भूमिहीन दलित अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। डीएसएस ने इन दलितों के लिए आवास की मांग की है।”

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Dalit Activists Storm DC Office in Bengaluru Over Land Rights

DSS
Dalitha Sangharsha Samiti
Ambedkar Vada
Mavalli Shankar
Dalits
PTCL Act
Bengaluru
karnataka
Supreme Court

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