बोल | दानिश हुसैन की आवाज़ में राहत इंदौरी की ग़ज़ल
इस हफ़्ते हम साझा कर रहे हैं राहत इंदौरी की एक ग़ज़ल। राहत साब 11 अगस्त को हम सब को अलविदा कह गए मगर उनके लफ़्ज़ आज भी ज़िंदा हैं जिनसे प्रतिरोध की ख़ुशबू आती है। अपने नायाब लबो लहजे की वजह से राहत साब सामईन के दिलों पर एक अलग छाप छोड़ते थे। उनकी मशहूर ग़ज़ल "अगर ख़िलाफ़ है...." एंटी सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के दौरान बेहद दोहराई गई, ख़ास तौर पर उसके आख़िरी शेर को लोगों ने कई-कई बार तमाम नारों-भाषणों में शामिल किया।
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है...
दानिश हुसैन पढ़ रहे हैं राहत इंदौरी की इस ग़ज़ल को और दानिश की भाषा पर मज़बूत पकड़, लबो लहजा और शायरी की शानदार समझ से इस ग़ज़ल में नए नए म'आनी जुड़ गए हैं।
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