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बेटी ने 75 वर्षीय किसान पिता को ढूँढने के लिए जारी की भावनात्मक अपील

संयुक्ता किसान मोर्चा के अनुसार, 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के बाद से लापता हुए कम से कम 16 किसानों का अभी तक कुछ अता-पता नहीं है।
Jorawar Singh

नई दिल्ली: 37 वर्षीय परमजीत कौर का ढांढस बंधाना कठिन है। उसके 75 वर्षीय पिता जोरावर सिंह का अभी तक कुछ अता-पता नहीं है। पंजाब के लुधियाना जिले के इकोला गाँव के रहने वाले जोरावर सिंह 26 जनवरी को दिल्ली में हुई किसानों की ट्रैक्टर रैली के बाद से लापता हैं। “मेरे पिता एक बुजुर्ग व्यक्ति हैं। वे सेलफोन का इस्तेमाल भी नहीं करते है। कृपया मुझे उन्हे ढूंढने में मदद करें, ”उन्होने ये गुजारिश तब की जब उनसे उनके पिता के लापता होने के क्रम के बारे में बताने के लिए कहा गया।

उसने आखिरी बार अपने पिता को तब देखा था जब वे 22 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी के सिंघू बार्डर जाने के लिए घे से निकले थे। मैंने उनसे घर लौटने का आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने कहा कि जब तक कानून वापस नहीं लिए जाते, तब तक वे आंदोलन नहीं छोड़ेंगे, भले ही इसके लिए बार्डर पर मारना ही क्यों न पड़े, ”उसने कहा।

सिंघू दिल्ली के उन पांच बार्डर में से एक है, जहां किसान पिछले साल 26 नवंबर से शांतिपूर्ण धरना और इन धरनों के ज़रीए केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों को खारिज करने की मांग कर रहे है।

वह जब भी बोलने का साहस करती है उसकी आँखों से आँसू में बहने लगते है। “मुझे नहीं पता कि वे कैसे हैं और कहाँ है। मुझे यह भी नहीं पता कि वे जीवित है या मर गए है। मैं अक्सर उन्हे वापस आने के लिए कहती थी, लेकिन वे हमेशा टाल जाते थे- यह कहते हुए कि वे पहले ही अपना 'जीवन साथी' (पत्नी) खो चुके है और दूसरे साथी यानि उनकी तीन एकड़ जमीन को नहीं खोना चाहते हैं। भावुक बेटी, जो पाँच साल के बच्चे की माँ भी है, यह सब बताते हुए उसकी आवाज घुट रही थी। 

सिंह तब से ही विरोध में शामिल हैं जब प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने पिछले साल सितंबर में ‘कृषि सुधारों’ के नाम पर तीन कृषि-कानूनों को लागू किया था। उनके साथियों के मुताबिक, भारतीय किसान यूनियन के राजेवाल गुट के सदस्य होने के नाते और जिसका नेतृत्व किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल कर रहे हैं, जोरावर सिंह ने पंजाब में रेल रोको आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। उन्होंने किसानों को इकट्ठा करने का काम भी किया और इसके लिए वे गाँवों में घर-घर गए और लोगों से आंदोलन में शामिल होने की अपील की। 

 उनके साथियों ने बताया कि, "उन्होंने रेल रोकी और रिलायंस (मुंबई में मुख्यालय वाली भारत की बहुराष्ट्रीय कंपनी) के स्वामित्व वाले पेट्रोल पंपों के बाहर धरने दिए, जो कि तीन क़ानूनों के सबसे बड़े प्रत्यक्ष लाभार्थियों में से एक हैं।" जब किसान यूनियनों ने ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया, तो उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी की तरफ मार्च करने के लिए अपना बैग पैक कर लिया,,” कौर ने आंदोलन के प्रति पिता के समर्पण पर प्रकाश डालते हुए बताया। 

परमजीत कौर, ज़ोरावर सिंह की बेटी 

वे 26 नवंबर, 2020 को टिकरी बॉर्डर (दिल्ली और हरियाणा के बीच की सीमा) पहुंचे और फिर सिंघू बॉर्डर चले गए। उन्हें आखिरी बार 26 जनवरी को सिंघू बार्डर पर देखा गया था जब कुछ प्रदर्शनकारी ट्रैक्टरों के साथ शहर में प्रवेश कर गए और नतीजतन बड़े पैमाने की हिंसा देखी गई थी, ये वे लोग थे जिनहोने ट्रैक्टर रैली के लिए निर्धारित रूट का उल्लंघन किया था।  आंदोलनकारियों का एक छोटा समूह लाल किले तक पहुंचने में कामयाब रहा और मुगल-काल के स्मारक के प्राचीर के खाली पोल पर ‘निशान साहब’ (सिखों का धार्मिक झंडा) फहरा दिया था।

उनकी बेटी को पिता के लापता होने कि खबर पड़ोसी गांव के एक व्यक्ति से मिली जो 27 जनवरी को किसी काम से गाँव लौटा था। “जब मैंने अपने पिता का हालचाल पूछा, तो उसने बताया कि वे तो 26 जनवरी की शाम से लापता है। उसने बताया कि कई बूढ़े लोग जिनके लिए शहर नया था रैली के साथ दिल्ली चले गए थे। मुझे बताया गया कि पुलिस ने कई लोगों को मारा उन पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया। कई अन्य लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था, “उसने कहा,“ मेरे पिता बुजुर्ग हैं और जीवन भर कभी दिल्ली नहीं गए। यदि वे दिल्ली गए भी हैं तो भी वे गैर-इरादतन गए होंगे।”

कौर ने सभी से निवेदन किया कि "मानवता की खातिर" उनके पिता के बारे में जो भी  जानकारी मिले उसे साझा करें।

उसने बताया कि जब उसे पिता को लापता होने का पता चला तो उसने यूनियन नेताओं को फोन करना शुरू किया, लेकिन उचित प्रतिक्रिया नहीं मिली, कभी-कभी यह आश्वासन दिया जाता था कि वे सुरक्षित वापस आ जाएंगे। "मैंने राजेवाल के नंबर पर कॉल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। कई प्रयासों के बाद, उनके एक आदमी ने फोन उठाया। मैंने उनसे कहा कि मेरे पिता को ढूंढना यूनियन की जिम्मेदारी है क्योंकि वह उनके साथ सिंघू बार्डर पर गए थे। उन्होने मुझे आश्वासन दिया था कि हम जल्द ही फिर मिलेंगे। लगभग एक महीना बीत चुका है, लेकिन उनके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

लेकिन, उन्होंने आगे कहा कि, लोक भलाई इंसाफ वेलफेयर सोसाइटी के प्रमुख किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा ने उन्हें फोन किया और उनकी पूरी मदद करने की पेशकश की।

वे दिल्ली की सिंधु बार्डर पर भी आई और गिरफ्तार किसानों की दिल्ली पुलिस की सूची की जाँच की, लेकिन उसके पिता का नाम उसमें नहीं था। जबकि "कहा ये जा रहा है कि हर गिरफ्तार किसान का नाम सूची में दर्ज नहीं है," उसने बताया।

भले ही बेटी ने लुधियाना के खन्ना पुलिस स्टेशन में लापता व्यक्ति की रिपोर्ट दर्ज की हो, उसने कहा कि अब तक राज्य या केंद्र सरकारों में से किसी ने भी उससे संपर्क नहीं किया है। उन्होंने कहा, "मेरी शिकायत के बाद, मेरे पिता की तस्वीर और अन्य विवरण लेने के लिए खन्ना पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारी मेरे घर आए थे, लेकिन उन्होने भी अभी तक मुझे कोई जानकारी  नहीं एफ़आरआर है।"

यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपने पिता की तलाश में दिल्ली के अस्पतालों में गई थीं, उन्होंने नकारात्मक में जवाब दिया, उन्होंने कहा, “मैं एक अकेली मां हूं। मेरे वहाँ जाने का कोई विचार नहीं है।

उसके पिता ही उसका एकमात्र सहारा थे। उसने कुछ साल पहले अपने छोटे भाई और जनवरी 2020 में अपनी माँ को खो दिया था। वह तलाक की कानूनी लड़ाई भी लड़ रही है। उसका दूसरा भाई परिवार से अलग रहता है।

पंजाब पुलिस के अधिकारियों का दावा है कि उनकी तरफ से खोज जारी है, लेकिन उनके पास अभी तक कोई जानकारी नहीं है। “हम बेहतर काम कर रहे हैं। चूंकि घटना दिल्ली और हरियाणा पुलिस के अधिकार क्षेत्र में हुई है, इसलिए हमें उनके सहयोग की जरूरत है, जो हमें मिल रही है। जिला पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, " हम बेहतर नतीजे की आशा करते हैं,"

26 जनवरी की हिंसा के सिलसिले में राजधानी के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में 22 एफआईआर दर्ज की गई हैं और कम से कम 128 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है। उन पर दंगा, मारपीट और हत्या की कोशिश जैसे गंभीर आरोपों के तहत केस दर्ज किए गए है।

जबकि संयुक्त किसान मोर्चा (40 किसान यूनियनों का एक गठबंधन) ने वकीलों की बड़ी फौज लगा कर गिरफ्तार किसानों को जमानत दिलाने और केस लड़ने में मदद की है। वे उन लोगों का पता लगाने के लिए संघर्ष कर रहा है जो बिना किसी निशान के लापता हो गए हैं।

उनके लापता होने के दस दिन बाद 4 फरवरी को, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किसान यूनियनों को आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार लापता किसानों को खोजने में मदद करेगी। लेकिन हर बीतते दिन के साथ, गुमशुदा व्यक्तियों के परिवार तेजी से व्याकुल और हताश हो रहे हैं।

‘16 किसान लापता’

जोरावर सिंह एकमात्र किसान नहीं हैं जो 26 जनवरी की घटना के बाद अव लापता हैं। किसानों के मोर्चे के अनुसार, कम से कम 16 किसान लापता हैं।

इनमें 27 वर्षीय बाजिंदर सिंह भी शामिल हैं, जो हरियाणा के जींद जिले के कंडेला गांव से हैं। “वे  26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली में भाग लेने गाँव के 1,000 ट्रैक्टरों के बेड़े के साथ 24 जनवरी को टिकरी बार्डर पर आए थे। गाँव वालो ने आखिरी बार उन्हें नांगलोई के पास कहीं देखा था। वे  लाल किले की ओर बढ़ रहे थे जब पुलिस ने उन्हें आगे जाने से रोक दिया था। जब पुलिस ने भीड़ पर लाठीचार्ज किया तो लोग इधर-उधर भागने लगे। वह उस हंगामे में खो गया। उसके बाद क्या हुआ किसी को नहीं पता। सभी उसे छोड़कर गाँव लौट आए। हम उसकी भलाई के लिए चिंतित हैं। हम नहीं जानते कि वह किस हालत में है और यहां तक कि वह सुरक्षित है भी या नहीं, ”उनके चचेरे भाई बलजीत सिंह ने बताया।

बजींदर सिंह (हरियाणा).

उन्होंने कहा कि वे और उनका पूरा परिवार पिछले एक महीने से उन्हें खोज रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। “हमने सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीर पोस्ट की है, लोगों से अपील की है कि अगर वे उसे कहीं भी देखते हैं या उसके ठिकाने के बारे में जानते हैं तो परिवार को सूचित करें। हमने नांगलोई पुलिस स्टेशन में एफआईआर और दिल्ली उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भी दायर की है (जिसने 10 फरवरी को हरियाणा पुलिस को दिल्ली पुलिस को उसका पता लगाने के लिए हर संभव सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया है)।”

दिल्ली पुलिस के इरादों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने पूछा कि अगर पुलिस ने किसी को "अवैध हिरासत" में नहीं रखा है, तो वे सभी संभावित मार्गों के सीसीटीवी फुटेज का विश्लेषण करने से क्यों हिचक रहे हैं? 

बलजीत द्वारा दायर रिट याचिका में यह कहा गया है कि बाजिंदर रैली के बाद कभी नहीं लौटे और तब से उनका कोई अता-पता नहीं है। परिवार ने यह भी आरोप लगाया कि जब उन्होने लापता व्यक्ति की शिकायत दर्ज करने के लिए नांगलोई पुलिस स्टेशन का दरवाजा खटखटाया तो संबंधित स्टेशन हाउस अधिकारी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था।

कोर्ट के समक्ष दायर रिट के हवाले से बलजीत के वकील ने कहा, "पुलिस की निष्क्रियता और लापरवाहीपूर्ण रवैये से यह आशंका पैदा होती है कि बलजीत भाई को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है और इसलिए, वे जानबूझकर किसी भी आधिकारिक शिकायत या एफआईआर लिखने और याचिकाकर्ता को कोई भी जानकारी देने से इनकार कर रहे हैं।" 

चचेरे भाई बलजीत द्वारा दर्ज एफआईआर 

बजिंदर की गुमशुदगी उसकी विधवा माँ के लिए सबसे कठिन बात थी। “मैं उसकी सुरक्षा के बारे में चिंतित हूँ। मैं पुलिस से आग्रह करती हूं कि अगर उन्होंने मेरे बेटे को गिरफ्तार किया है तो वे हमें सूचित करें। मुझे उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं है। हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे और जमानत से उसकी रिहाई कराएंगे। लेकिन कृपया मुझे बताएं कि वह कहाँ है, ”उसकी रोती हुई माँ ने न्यूज़क्लिक को बताया।

दो भाई और दो एकड़ जमीन, यानि  बाजिंदर एक छोटा किसान है।

दिल्ली पुलिस ने उच्च न्यायालय को बताया कि बजींदर का पता लगाने के लिए तीन टीमों का गठन किया गया है, और उन्होंने इस संबंध में 15 लोगों से पूछताछ की है। उन्होंने अदालत को यह भी बताया है कि पुलिस ने 26 जनवरी को हुई हिंसा के संबंध में ऐसे किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया है।

इसी तरह, हिसार जिले की नारनौंद तहसील के मोठ गाँव के 45 वर्षीय महासिंह भी गणतंत्र दिवस की घटना के बाद से लापता हैं। गेहूं और सरसों उगाने वाला किसान 18 जनवरी से टिकरी बार्डर पर डेरा डाले हुए था।

उनके मित्र सुशील ढांडा विरोध स्थल पर उनके साथ थे। “चूंकि मैं सामुदायिक रसोई (लंगर) में खाना बनाने और परोसने में व्यस्त था, मैंने ट्रैक्टर रैली में भाग नहीं लिया था। हालांकि मुझे यकीन नहीं है कि महा सिंह तब से लापता हैं क्योंकि उनका तब से कोई अता-पता नहीं हैं। वह अपना सेल फोन भी नहीं ले गया था, जिसे वह दिल्ली रवाना होते वक़्त गांव में भूल गया, उन्होंने कहा।

ढांडा के अनुसार, महा सिंह की एक पत्नी, एक बेटा और चार बेटियां हैं, जो बेहद भयभीत हैं। उन्होंने कहा, "हमने दिल्ली के अस्पतालों और अन्य संभावित स्थानों पर उसकी तलाश करने की कोशिश की, लेकिन वे उसका कहीं भी पता नहीं लगा पाए।।"

इस बीच, संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली पुलिस द्वारा "अज्ञात व्यक्तियों" के खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज करने पर चिंता व्यक्त की है। “कुल 22 एफआईआर में से 18 में आरोपी का नाम लिया आया है। लेकिन बाकी तीन एफआईआर में अज्ञात संदिग्ध व्यक्ति दिखाए गए हैं। इनमें से दो एफआईआर पंजाबी बाग पुलिस स्टेशन और एक कीर्ति नगर में दर्ज हैं। हम चिंतित हैं क्योंकि पुलिस इन एफआईआर में किसी का भी नाम ले सकती है, ”एसकेएम की कानूनी टीम के संयोजक एडवोकेट प्रेम सिंह भंगू ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा।

उन्होंने यह भी कहा कि लापता व्यक्तियों की सूची धीरे-धीरे कम हो रही है (32 से अब 17 हो गई है)। उनमें से कम से कम 15 का पता लगाया गया है, जिनमें कुछ जेल में हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Daughter Issues Emotional Appeal to Find Missing 75-year-old Farmer Amid Silence of Govt, Cops

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