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जीएन साईबाबा की रक्षा समिति ने उनकी रिहाई पर पुनर्विचार करने का एससी से किया आग्रह, पत्नी ने कहा 'न्याय का इंतज़ार करेंगे'

समिति ने यह कहा कि भारतीय जेलों की स्थिति के कारण फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु हुई, जिसे जीएन साईबाबा के मामले में दोहराया नहीं जाना चाहिए।
जीएन साईबाबा की रक्षा समिति ने उनकी रिहाई पर पुनर्विचार करने का एससी से किया आग्रह, पत्नी ने कहा 'न्याय का इंतज़ार करेंगे'

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा के समर्थकों, दोस्तों, सहयोगियों और परिवार के लिए शुक्रवार का दिन ख़ुशी का दिन था जब व्हील चेयर के सहारे चलने वाले प्रोफेसर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरी करने का फ़ैसला सुनाया था लेकिन उनकी ये ख़ुशी एक दिन भी नहीं रही। अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के रिहाई के आदेश को पलट दिया।

साईबाबा की रक्षा और रिहाई के लिए काम कर रही समिति ने महसूस किया कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया, जिसने आख़िरकार साईबाबा और अन्य लोगों को न्याय दिया। सभी लोग लगभग सात साल से जेल में बंद हैं।

समिति ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले को जल्दबाज़ी में पलटना भारत की न्याय व्यवस्था को प्रदर्शित करता है।

साईबाबा और अन्य लोगों को 2017 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की विभिन्न धाराओं के तहत आतंकवाद और आपराधिक साजिश के आरोपों में दोषी ठहराया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान प्रक्रियात्मक चूक के आधार पर साईबाबा और अन्य लोगों की सज़ा को रद्द कर दिया था।

इस बीच, साईबाबा की पत्नी और कार्यकर्ता वसंता ने न्यूज़क्लिक को बताया, “हमें न्यायपालिका पर भरोसा है। हम न्याय का इंतज़ार करेंगे।”

समिति ने साईबाबा की खराब सेहत और उनकी 90% विकलांगता के और बढ़ने के बारे में गहरी चिंता व्यक्त करते हुए जारी एक बयान में कहा, "हम देश के सर्वोच्च न्यायिक संस्था से उनके मामले की समीक्षा और पुनर्विचार करने और बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले को बरक़रार रखने की अपील करते हैं। साथ ही उन्हें और अन्य लोगों को इस मामले में बरी करने की अपील करते हैं। इससे हमारे देश की न्याय प्रणाली में जनता का भरोसा क़ायम होगा।”

इसने कहा कि भारतीय जेलों की स्थिति और उसकी दयनीय प्रकृति के कारण स्टेन स्वामी और पांडु नरोटे की मृत्यु हुई है। इसने कहा कि, "साईबाबा के मामले में यह दोहराया नहीं जाना चाहिए, जो समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों की पीड़ा पर अपनी चिंता ज़ाहिर करते रहे हैं।"

इस बयान में आगे कहा गया है, "जे.एस. मिल ने "स्वतंत्रता" पर अपनी पुस्तक में लिखा है कि "विचार की अनियंत्रित स्वतंत्रता लोकतंत्र की पहचान है।" जैसा कि न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ का मानना है कि असहमति की आवाजें कार्यकारी प्राधिकरण द्वारा सत्ता के मनमाने प्रयोग के ख़िलाफ़ एक नियंत्रण के रूप में है; अनियंत्रित शक्ति प्रेशर कुकर की तरह होती है, जो असहमति की अनुमति न देने पर किसी भी समय फट सकती है।”

रक्षा समिति ने कहा कि न्यायपालिका को नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा अवश्य करनी चाहिए और इसे राज्य की शक्ति के ख़िलाफ़ संतुलन बनाए रखना चाहिए। इसने कहा कि "अगर उन्हें विचलित होना है तो यह स्वतंत्रता के पक्ष में होना चाहिए।"

कार्यकर्ताओं और वामपंथी संगठनों के एक वर्ग ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर निराशा व्यक्त की। समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय में प्रदर्शन किया, जिसमें साईबाबा को एससी द्वारा रिहाई रद्द किए जाने के कुछ घंटों बाद उनकी रिहाई की मांग की गई।

पुलिस ने डीयू कला संकाय में विरोध कर रहे लगभग 40 छात्रों और शिक्षकों को हिरासत में लिया। हालांकि, वाम समर्थित आइसा ने दावा किया कि हिरासत में लिए गए लोगों की संख्या अधिक है और यह भी आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारी छात्रों और शिक्षकों को पुलिस ने "पीटा" है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Defence Committee for GN Saibaba Urges SC to Reconsider Case, Wife Says ‘Will Wait for Justice’

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