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दिल्ली मास्टर प्लान : पीपल्स कलेक्टिव ने सुनिश्चित किया कि झुग्गी-झोपड़ी निवासियों और मजदूरों के सुझाव सुने जाए 

गुरुवार को इन समूहों के छोटे से प्रतिनिधिमंडल ने डीडीए के दफ़्तर आईएनए-विकास सदन में आवास विभाग कार्यालय में मुलाक़ात की और अपने सुझाव पेश किए; यह सब 'मैं भी दिल्ली' अभियान की एक पहल पर किया गया है। 
दिल्ली मास्टर प्लान : पीपल्स कलेक्टिव ने सुनिश्चित किया कि झुग्गी-झोपड़ी निवासियों और मजदूरों के सुझाव सुने जाए 

गुरुवार को दिल्ली विकास प्राधिकरण को दिल्ली के मास्टर प्लान-2041 के मसौदे पर सुझाव देते हुए करीब 40,000 टिप्पणियां सौंपी गईं यह एक ऐसा है, अभियान है, जिसे पीपल्स कलेक्टिव द्वारा चलाया जा रहा है। ये सारे सबमिशन ऑफ़लाइन किए गए हैं। खास तौर पर शहर-आधारित स्लम कॉलोनी समूहों और अनौपचारिक क्षेत्र की मज़दूर एसोसिएशन द्वारा ऐसा किया गया। दोनों समूह उन लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हे अक्सर परंपरागत रूप से "शहरी योजना प्रक्रिया के बाहर छोड़ दिया जाता हैं"।

इन समूहों का एक छोटा प्रतिनिधिमंडल गुरुवार को डीडीए दफ़्तर आईएनए-विकास सदन पहुंचा जहां उन्होने आवास विभाग कार्यालय में मुलाक़ात की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पिछले महीने उनके द्वारा एकत्र की गई सभी टिप्पणियां शहरी नियोजन निकाय को मिल गई हैं। कुछ समूहों ने अपने मुद्दों को आवाज़ देने के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी किया, जिन मुद्दों का वे राष्ट्रीय राजधानी में सामना कर रहे हैं, जैसा कि सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में दिखाया गया है।

सुझावों को सुव्यवस्थित करने का काम ‘मैं भी दिल्ली' अभियान की पहल पर किया गया था, यह एक ऐसा कलेक्टिव है, जिसका उद्देश्य दिल्ली में योजना को "अधिक समावेशी और सहभागी" बनाना है। 2018 में गठित इस कलेक्टिव में, शोधकर्ता, शहरी योजनाकार और श्रमिकों की यूनियनें/एसोसिएशन्स/समूह और अन्य लोग एक साथ आए है।

मास्टर प्लान का मसौदा, एक वैधानिक दस्तावेज़ है, जिसमें दिल्ली में शहरी विकास को नियंत्रित करने की क़ानूनी शक्ति है, जिसे डीडीए ने 6 जुलाई को सार्वजनिक किया था। राष्ट्रीय राजधानी में विकास को बढ़ावा देने और उसे सुरक्षित बनाने का दायित्व डीडीए का है। डीडीए, केंद्र सरकार के आवास और शहरी विकास मामलों के मंत्रालय (MoHUA) के प्रशासनिक नियंत्रण में आती है। दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) डीडीए के अध्यक्ष हैं और प्राधिकरण में कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल करते हैं।

राष्ट्रीय राजधानी में 1962 के बाद बने चौथे मास्टर प्लान के मसौदे पर सार्वजनिक टिप्पणियां 23 अगस्त तक आमंत्रित की गई हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं से प्रतिक्रिया हासिल करने के लिए मात्र 45 दिनों का समय दिया गया था लेकिन बाद में डीडीए ने इस अवधि को एक महीने के लिए बढ़ा दिया था।

अभियान से जुड़े कार्यकर्ताओं ने पिछले महीने शहर के विभिन्न क्षेत्रों में कई सामुदायिक बैठकें आयोजित की थी। "इस अभियान में शहरी शोधकर्ता, कार्यकर्ता और जनता के विभिन्न वर्ग शामिल हैं – अभियान की स्थापना जारी किए गए मसौदे को समझने के लिए की गई है। अभियान के समन्वयकों में से एक, मालविका नारायण ने शुक्रवार को न्यूज़क्लिक को बताया कि हमने लोगों को अपनी आपत्तियों और सुझावों को दर्ज़ करने के लिए और मार्गदर्शन देने के लिए एक प्रारूप तैयार किया था।"

मालविका नारायण, जो विमेन इन इन्फ़ारमल इम्प्लोयमेंट: ग्लोबलाईजिंग एंड ऑरगनाईजिंग (WIEGO), जोकि एक गैर-लाभकारी पॉलिसी नेटवर्क है में काम करती है, ने कहा कि हमारा अभियान करीब 40,000 टिप्पणियां इकट्ठी करने में कामयाब रहा, उनमें से अधिकांश विभिन्न झुग्गी-झोपड़ी एसोसिएशन्स के माध्यम से इकट्ठी की गई थी, ऐसी कॉलोनियां जिनमें महसूस किया जा रहा था कि मास्टर प्लान के मसविदे में, सड़क पर वस्तु विक्रेताओं, कचरा बीनने वालों, निर्माण श्रमिकों और घरेलू कामगारों को बाहर रखा गया है।

नारायण ने कहा कि, शहर में अनौपचारिक श्रमिकों के इन विभिन्न वर्गों ने अपनी आजीविका से संबंधित मांगों के आधार पर टिप्पणी की है। वे परंपरागत रूप से सिटी प्लानिंग प्रक्रिया से बाहर हैं, लेकिन इस बार वे बाहर नहीं रहेंगे - कम से कम कुछ हद तक तो ऐसा सुनिश्चित करेंगे।

जुलाई में, 'मैं भी दिल्ली' अभियान द्वारा आयोजित किए एक संवाददाता सम्मेलन में, शोधकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उन प्राथमिक मांगों पर बात की जिन्हें जन-संपर्क कार्यक्रमों के माध्यम से उठाया जाना था। इन मांगों में झुग्गी बस्तियों को नियमित करना और उनके लिए  योजनाओं का विस्तार करना, अनौपचारिक श्रमिकों के काम के स्थानों को सुरक्षित करना, और घरेलू कामगारों और घर-आधारित श्रमिकों को मान्यता देने के प्रावधान देने की बातें शामिल हैं।

राशी मेहरा, जो अभियान की एक अन्य समन्वयक हैं ने बताया कि अभियान को लगभग तीन साल पहले लॉन्च किया गया था, लगभग उसी समय जब मास्टर प्लान-2041 पर चर्चा शुरू हुई थी। उस समय, हमारा उद्देश्य इस बात पर सार्वजनिक चर्चा शुरू करना था कि दिल्ली के लोग किस तरह का शहर चाहते हैं और योजना प्रक्रिया में जितना हो सके हम उनमें से कितने वर्गों को शामिल कर सकते हैं।“

उन्होंने कहा कि अभियान ने बैठके आयोजित की, डेटा इकट्ठा किया और लोगों के विचारों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की। मेहरा के अनुसार, "योजना प्रक्रिया में व्यापक भागीदारी" हासिल करने की मुख्य चुनौती का काम था जिसके माध्यम से डीडीए द्वारा सार्वजनिक टिप्पणियों को स्वीकार किया जा रहा था।

इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स (IIHS) में काम करने वाली मेहरा ने बताया कि पसंदीदा तरीका ऑनलाइन सबमिशन था। जहां तक भौतिक तरीके का संबंध है, मास्टर प्लान पर आपत्तियां और सुझाव केवल आईएनए के विकास सदन में प्रस्तुत किए जा सकते थे, जहां  केवल एक व्यक्ति को एकल खिड़की के द्वारा सुझाव स्वीकार करने का काम सौंपा गया था। 

सबमिशन के लिए सिंगल डेस्क "बहुत ही अपर्याप्त" है, इससे भी ज्यादा मुसीबत तब खड़ी होती है जब डीडीए द्वारा प्रकाशित हेल्पलाइन नंबर "अप्रभावी" रहते हैं, ‘मैं भी दिल्ली अभियान ने इस महीने की शुरुआत जारी एक प्रेस बयान में उक्त बातें कही थी। 

अभियान की भविष्य की योजनाओं पर, मेहरा ने कहा: हम नागरिकों के साथ जुड़ने का काम जारी रखेंगे। हम अब अंतिम मास्टर प्लान का भी इंतजार करेंगे और देखेंगे कि हमारी टिप्पणियों पर विचार किया गया या नहीं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Delhi Master Plan: People’s Collective Ensures Suggestions by Slum Residents, Informal Workers Submitted

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