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क्या ओडिशा सरकार ने वेदांता के प्रोजेक्ट विस्तार के लिए जनसुनवाईयों को जल्दबाज़ी में निपटाया?

वेदांता के विस्तार प्रोजेक्ट पर महामारी के बीच में सरकार द्वारा जनसुनवाई करवाए जाने की जल्दबाज़ी से कई सारे सवाल उठ रहे हैं, इस बीच स्थानीय लोग पर्यावरणीय चिंताओं के चलते प्रोजेक्ट का विरोध भी कर रहे हैं।
ओडिशा सरकार

नई दिल्ली: ओडिशा सरकार ने झारसुगुड़ा में "वेदांता एल्यूमिनियम स्मेलटर (प्रगालक या गलन तंत्र)" विस्तार प्रोजेक्ट पर 30 सितंबर को नाटकीय घटनाक्रम के बीच एक विवादास्पद सार्वजनिक जनसुनवाई का आयोजन किया। यह सार्वजनिक जनसुनवाई ओडिशा हाईकोर्ट के एक आदेश के 10 मिनट भीतर हुई थी। सूत्रों के मुताबिक़, हाईकोर्ट ने आदेश में अपने जनसुनवाई पर पिछली अंतरिम रोक में बदलाव किया था।

खनिजों की बहुतायत वाले क्षेत्र में लगाए जा रहे इस प्रोजेक्ट का स्थानीय लोगों के साथ-साथ राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी भी पर्यावरणीय चिंताओं का हवाला देते हुए विरोध कर रही है।

झारसुगड़ा में प्रस्तावित प्रोजेक्ट वेदांता के 1.6 मिलिय टन प्रतिवर्ष (MTPA) वाले एल्यूमिनियम स्मेलटर प्लांट का विस्तार है, इस प्लांट को 1,215 मेगावॉट (MW) के कोयले से चलने वाले कैप्टिव पॉवर प्लांट (सिर्फ़ इसी प्रोजेक्ट के इस्तेमाल के लिए) से ऊर्जा मिलती है। यह पॉवर प्लांट 1.8 मिलियन टन प्रतिवर्ष उत्पादन वाले प्लांट को ऊर्जा दे सकता है। 

ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 27 अगस्त को एक नोटिस जारी कर कहा था कि प्रोजेक्ट पर 30 सितंबर को एक सार्वजनिक जनसुनवाई का आयोजन किया जाएगा।

लेकिन स्थानीय लोगों ने कोरोना महामारी के मद्देनज़र जनसुनवाई को टालने की मांग की।

कोर्ट आदेशों का व्यूह

स्थानीय लोगों को जब अपनी मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उन्होंने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और झारसुगड़ा प्रशासन के सामने मामला उठाया। इसके लिए 21 सितंबर को आवेदन दिए गए थे। उन्होंने ओडिशा हाईकोर्ट में भी एक याचिका दाखिल की।

यह याचिका सुब्रत भोई और तेजराज कुमुरा ने लगाई थी। दोनों ही ब्रूंडामल गांव के रहने वाले हैं, जो प्रोजेक्ट से प्रभावित इलाके में आता है।

याचिकाकर्ताओं के वकील प्रफुल्ल कुमार रथ कहते हैं, "ओडिशा सरकार के विशेष राहत आयुक्त ने 31 अगस्त को एक नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें कोरोना महामारी के मद्देनज़र बड़ी संख्या में लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी गई थी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भी 14 सितंबर को एक ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया, जिसमें सार्वजनिक सुनवाईयों की अनुमति दी गई, लेकिन इसमें ज़्यादा से ज़्यादा 100 लोग शामिल हो सकते थे। विशेष राहत आयुक्त द्वारा दिए गए निर्देशों के मद्देनज़र, 30 सितंबर को सार्वजनिक जनसुनवाई करना संभव नहीं था। इस जनसुनवाई में प्रोजेक्ट से प्रभावित 5 राजस्व गांवों के निवासियों को हिस्सा लेना था।"

28 सितंबर को NGO आंचलिक परिवेश सुरक्षा संघ ने एक जनहित याचिका दाखिल की। याचिका में जनसुनवाई को आगे बढ़ाए जाने की मांग की गई थी, लेकिन हाईकोर्ट की डिवीज़न बेंच ने इसे खारिज कर दिया। दिलचस्प बात यह रही कि कोर्ट में सुनवाई करते हुए विशेष राहत आयुक्त द्वारा दिए गए निर्देशों पर बात ही नहीं की गई।

खैर, 29 सितंबर को जस्टिस के आर मोहपात्रा के नेतृत्व वाली, हाईकोर्ट की एक जज की बेंच ने भोई और कुमुरा की याचिका पर संज्ञान लिया। बेंच ने तब जनसुनवाई पर अंतरिम प्रतिबंध लगा दिया।

जस्टिस महापात्रा ने कहा, "एक अंतरिम प्रबंध के तौर पर, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ओडिशा द्वारा 27.08.2020 को दिए गए विज्ञापन, जिसके ज़रिए 30.09.2020 को झारसुगड़ा के कुरेबागा में सरकारी UP स्कूल, दल्की में सुबह 11 बजे से जो जनसुनवाई होनी थी, उसे अगली तारीख तक आयोजित नहीं किया जाएगा।"

लेकिन कुछ घंटे बाद ही इस अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया गया।

वेदांता ने एक जज वाली बेंच के आदेश के खिलाफ़ डिवीज़न बेंच के सामने अपील दायर की थी, इसी बेंच ने आंचलिक परिवेश सुरक्षा संघ द्वारा दाखिल की गई याचिका रद्द की थी।

30 सितंबर को जस्टिस मोहापात्रा ने एक बदलाव युक्त आदेश जारी किया, जिसमें समयानुसार जनसुनवाई करने की अनुमति दी गई थी, साथ में प्रभावित लोगों को भी कार्यक्रम में हिस्सा लेने की अनुमति दी गई।

बदले हुए आदेश में 30 सितंबर को कहा गया, ".... जब 14.09.2020 के उल्लेखित ऑफ़िस मेमोरेंडम के हिसाब से सब प्रबंध किए जा चुके हैं, तब जनसुनवाई को टालना विपक्षी पक्ष नंबर 4 (वेदांता) और जनसुनवाई में हिस्सा लेने के लिए तैयार जनता के लिए हानिकारक होगा।"

जल्दबाजी में हुई जनसुनवाई और प्रभावित स्थानीय लोग

ओडिशा सरकार में शामिल सूत्रों के मुताबिक़, यह जनसुनवाई 30 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 30 मिनट पर आयोजित की गई। जब बदलाव वाला आदेश आया, उसके महज़ दस मिनट के भीतर ही यह जनसुनवाई आयोजिक कर दी गई! जबकि पूरे जिले में 29 सितंबर के आदेश के हिसाब से यह बात फैल चुकी थी कि जनसुनवाई का आयोजन नहीं किया जा रहा है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि जनसुनवाई प्रभावित 5 गांव के 10,000 लोगों में से सिर्फ़ 90 लोगों की हिस्सेदारी के साथ कर दी गई। जब जस्टिस मोहपात्रा ने अंतिम सुनवाई के लिए मामला उठाया, तब यह तर्क दिया गया कि सिर्फ़ 90 लोग प्रभावित संख्या के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते।

9 अक्टूबर को दिए गए फ़ैसले में जस्टिस मोहपात्रा ने कहा कि कोर्ट के सामने ऐसा कोई साक्ष्य नहीं था, जो जनसुनवाई में उपस्थित लोगों की संख्या की पुष्टि कर सके। उन्होंने उपस्थित होने वाले लोगों की संख्या तय करने का फ़ैसला झारसुगड़ा के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट पर छोड़ दिया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर जरूरत पड़े तो एक दूसरी जनसुनवाई भी आयोजित की जा सकती है।

यह उल्लेखित करना जरूरी है कि कोरोना महामारी के दौरान जनसुनवाई का उल्लेख करने वाला मेमोरेंडम, जनसुनवाई में शामिल होने वाले लोगों की संख्या 100 से ज़्यादा होने पर अंतराल के साथ जनसुनवाईयां करवाने की अनुमति देता है। 14 सितंबर को जारी किया गया यह मेमोरेंडम केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जारी किया था। 

झारसुगुड़ा में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्राधिकारी हेमेंद्र नाथ नायक ने न्यूज़क्लिक को बताया, "कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए जनसभा के लिए जो भी निर्देश जारी किए गए थे, उनके हिसाब से ही जनसुनवाई का आयोजन किया गया था। कुल भागीदारों की संख्या 221 थी, वहीं लिखित में प्रतिक्रिया देने वालों की संख्या 153 है।"

झारसुगुड़ा के जिलाधीश सरोज कुमार समल ने मंगलवार को कहा कि उन्हें याचिकाकर्ताओं के तरफ से, हाईकोर्ट द्वारा तय मियाद, तीन दिन के भीतर प्रतिक्रिया हासिल हो गई थी। 

समल ने कहा था, "जैसी याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में बात उठाई कि जनसुनवाई में सिर्फ़ 90 लोगों ने हिस्सा लिया, इन तथ्यों की जांच की जाएगी। कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए परखा जाएगा कि जनसुनवाई को ठीक ढंग से आयोजित किया गया था या नहीं। याचिकाकर्ताओं ने सुझाव प्रक्रिया के बारे में जो दूसरी बातें कहीं, उनका भी परीक्षण किया जाएगा।"

वेदातां ने राख उड़ने से उपजने वाले ख़तरे से किया इंकार

9 अक्टूबर को रिट पेटिशन पर जो अंतिम आदेश आया, उसमें हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की प्रतिनिधिक चीजों ने यह साफ़ नहीं किया है कि वेदांता के एल्यूमीनियम स्मेलटर प्लांट के विस्तार से वे किस तरह प्रभावित होंगे।

लेकिन बीजेपी की एक तथ्य-खोज समिति ने वेदांता के एल्यूमीनियम स्मेलटर और इसके कैप्टिव पॉवर प्लांट से वायु और जल प्रदूषण होने के गंभीर आरोप लगाए हैं। बीजेपी की इस तथ्य जांच समिति ने सितंबर के पहले हफ़्ते में झारसुगुड़ा की यात्रा की थी। यह यात्रा जनसुनवाई के लिए नोटिस जारी होने के कुछ दिन बाद ही की गई थी। 

दल ने अपनी खोज का मेमोरेंडम ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक समेत दूसरे लोगों को सौंपा। तथ्य-जांच दल ने वेदांता द्वारा अवैध तरीके के राख के ज़मीदोज़ किए जाने की उच्चस्तरीय जांच की मांग की।

बीजेपी के तथ्य जांच दल के सदस्य और बरगढ़ से सांसद सुरेश पुजारी ने कहा, "उड़ने वाली राख को झारसुगुड़ा के जिलाधीश और पुलिस कप्तान के कार्यालयों के पीछे तक फेंका जा रहा है। इस राख को जंगली ज़मीन, कृषि ज़मीन और पानी के स्त्रोंतों के पास भी फेंका जा रहा है। प्राकृतिक जल संसाधन बरसात के पानी और उड़ने वाली राख से बने ज़हरीले तरल पदार्थ से प्रदूषित हो चुके हैं।"

उड़ने वाली राख, तापीय ऊर्जा संयंत्रों में कोयले के जलने के बाद सहउत्पाद के रूप में पैदा होती है।

वेदांता के एक प्रवक्ता ने कहा कि विस्तार प्रोजेक्ट का मौजूदा 1,215 मेगावॉट क्षमता वाले कैप्टिव थर्मल पॉवर प्लांट से कुछ लेना देना नहीं है और अतिरिक्त उड़ने वाली राख से जुड़ा डर गैरमौजूद है।

उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, "नए प्रोजेक्ट में सिर्फ़ स्मेलटर का ही विस्तार किया जा रहा है। 1,215 मेगावॉट वाले कैप्टिव पॉवर प्लांट की सभी यूनिट पहले से ही काम कर रही हैं। उसमें कोई भी विस्तार नहीं किया जा रहा है। ना ही विस्तार करने के लिए किसी तरह की अतिरिक्त ज़मीन ली जा रही है।"

एल्यूमीनियम स्मेलटर के राख के तालाबों में से एक में अगस्त 2017 में टूट हो गई थी, जिससे उसकी ज़हरीला गाढ़ा पदार्थ बड़े इलाकों में फैल गया था और उसने पास की एक नदी को भी प्रदूषित कर दिया था। प्रवक्ता ने आगे कहा, "राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने दिशा निर्देश जारी किए थे, जिनका पूरी तरह पालन किया जा रहा है। पिछली घटना के बाद से अब तक किसी भी राख के तालाब में कोई टूट नहीं हुई है।"

नई जनसुनवाई

30 सितंबर को जिस तरह जल्दबाजी में जनसुनवाई की गई, उसके चलते स्थानीय लोगों के साथ-साथ ओडिशा के सामाजिक कार्यकर्ता एक नई जनसुनवाई की मांग कर रहे हैं। ओडिशा के ख्यात सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामानतारा ने राज्य सरकार को ख़त लिखकर सार्वजनिक जनसुनवाई को कराए जाने की प्रक्रिया में घालमेल के आरोप लगाए हैं।

सामानतार ने न्यूज़क्लिक से कहा, "जब राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और झारसुगुड़ा जिला प्रशासन को पता था कि हाईकोर्ट के 29 सितंबर के आदेश के हिसाब से 30 सितंबर को कोई जनसुनवाई नहीं होने वाली है, तो स्वाभाविक है कि उन्होंने तय तारीख़ पर जनसुनवाई को आयोजित करवाने की कोई तैयारी नहीं की थी। तो वह कैसे हाईकोर्ट द्वारा आदेश जारी करने के बाद, इतने कम समय (10 मिनट) में जनसुनवाई आयोजित करवाने के लिए तैयारी कर सकते थे?" उन्होंने आगे कहा, "राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मूल नोटिस के मुताबिक़ जनसुनवाई का आयोजन 30 सितंबर को सुबह 11 बजे किया जाना था। जब यह साफ़ हो चुका था कि कोर्ट ने जनसुनवाई करवाने पर प्रतिबंध लगा रखा है, तो बाद में दोपहर में करवाई गई मीटिंग में कुछ लोग कैसे शामिल हो गए।" 

मामले पर सुनवाई के दौरान, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जोर देते हुए कहा कि कोरोना के मद्देनज़र, जनसुनवाई के लिए तय की गई तारीख़ से लोग परेशान होने की बात करना सिर्फ़ अटकलबाजी है, क्योंकि लिखित में अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए 30 दिन से ज़्यादा का वक़्त दिया जा चुका है।

दिल्ली में स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की कांची कोहली कहती हैं, "पर्यावरण मंत्रालय और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे नियामक संस्थान जनसुनवाई के लिए तकनीकी प्रक्रिया अपना रहे हैं। यह सुनवाईयां एक विमर्श प्रक्रिया का हिस्सा हैं, जिनमें किसी प्रोजेक्ट के फायदे और फ़ैसले बताए जाते हैं। यह तर्क देना कि प्रतिक्रियाएं, लिखित में दी जा सकती हैं या फिर जनसुनवाई में कोरोना की आड़ में कांट-छांट करना, जनसुनवाईयां करवाए जाने के मूल उद्देश्य को पस्त कर देती हैं।"

वह आगे कहती हैं, "लिखित में प्रतिक्रिया देना सिर्फ़ एक तरह की प्रतिक्रिया है। जनसुनवाईयां प्रभावित लोगों को सीधे EIA सलाहकारों, प्रोजेक्ट के प्रशासन और सरकार से बात करने का मौका देती हैं। जनसुनवाईयों को जल्दबाजी में करवाने के बजाए सरकार को इनके ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि इन्हें ज़्यादा समावेशी और विचारशील बनाया जा सके।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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