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एक्सक्लूसिव : किस तरह गुजरात सरकार ने अडानी की पोर्ट कंपनी की मदद की

विधायकों की एक सर्वदलीय समिति ने मुंद्रा में भारत के सबसे बड़े निजी बंदरगाह का संचालन करने वाली अडानी समूह की एक कंपनी का अनुचित रूप से पक्ष लेने को लेकर गुजरात सरकार की कड़ी आलोचना की है। विधान सभा की लोक लेखा समिति ने भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा पहले प्रस्तुत की गयी रिपोर्टों पर कार्रवाई नहीं करने के लिए राज्य सरकार को  फटकार लगायी है। सीएजी की उस रिपोर्ट के दस्तावेज़ में बताया गया है कि गुजरात सरकार द्वारा अपना बकाया नहीं वसूले जाने का विकल्प चुनने से इस कंपनी को किस तरह से फ़ायदा पहुंचाया गया है।
Gujrat

गुजरात विधानसभा की लोक लेखा समिति (पीएसी) ने हाल ही में उस ऑडिट टिप्पणियों की जांच-पड़ताल करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार की है, जो 2014 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा गुजरात सरकार को सौंपी गयी थी। उस रिपोर्ट में गुजरात सरकार द्वारा भारत के सबसे बड़े निजी बंदरगाह का संचालन करने वाले अडानी समूह की एक कंपनी को लेकर "अनुचित" सहायता करने के लिए उसकी तीखी आलोचना की गयी थी।

गौतम अडानी इन अडानी समूह कंपनियों के प्रमुख हैं। एक अनुमान के अनुसार,वे देश के दूसरे सबसे अमीर आदमी हैं। इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है।

पीएसी के पास सीएजी रिपोर्टों की जांच करने और राज्य सरकार को सिफारिश किये जाने की शक्ति और जिम्मेदारी है। गुजरात विधानसभा की इस समिति की अध्यक्षता पारंपरिक रूप से विपक्ष से जुड़ा कोई विधायक करता है और इस समिति में सत्तारूढ़ दल के विधायक भी शामिल होते हैं।

गुजरात विधानसभा में 2018-19 में इस पीएसी के प्रमुख पुंजाभाई वंश थे, जो ऊना निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस विधायक हैं। इस समिति में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आठ सदस्य और कांग्रेस के सात सदस्य थे। हालांकि, कांग्रेस के विधायक अल्पेश ठाकोर और कुंवरजी बावलिया ने भाजपा के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हुए पीएसी से इस्तीफा दे दिया था। इस विशेष रिपोर्ट को पीएसी के सभी सदस्यों द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है, क्योंकि इसमें असहमति के कोई स्वर नहीं हैं।

पीएसी ने अपनी रिपोर्ट में भारत के सबसे बड़े इस निजी पोर्ट संचालक-गुजरात अडानी पोर्ट लिमिटेड, जिसे अब अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड के रूप में जाना जाता है, इसका "अनुचित" पक्ष लेने को लेकर गुजरात सरकार को फटकार लगायी है। यह कंपनी गुजरात, केरल, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे राज्यों में कई बंदरगाहों का स्वामित्व रखती है तथा उनके संचालन का प्रबंधन करती है।

गुजरात विधानसभा की वेबसाइट के अनुसार, यह पीएसी रिपोर्ट 9 दिसंबर को पेश होने वाली थी। हालांकि, ऐसा नहीं हो सका। गुजराती भाषा में इस रिपोर्ट की एक प्रति इस लेख के लेखकों को उपलब्ध करायी गयी है।

18 दिसंबर को कपिल दवे द्वारा लिखे गये टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख के अलावे मीडिया में इस पीएसी रिपोर्ट के बारे में नहीं लिखा गया है। "ख़ुद की क़ीमत पर निजी बंदरगाहों को लाभ पहुंचाने वाला गुजरात मैरिटाइम बोर्ड: पीएसी " शीर्षक से लिखे गये इस लेख के आख़िरी वाक्य में इस बात का उल्लेख है कि समिति यह बताती है कि “गुजरात अडानी पोर्ट लिमिटेड को जीएमबी (गुजरात मैरीटाइम बोर्ड) द्वारा अनुचित लाभ पहुंचाने के साथ साथ निजी कंपनियों से बंदरगाह और अन्य शुल्क नहीं लेने को लेकर जीएमबी की तरफ़ से अनियमितता भी पायी गयी है”।

पीएसी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विधायकों की इस समिति ने लगभग चार साल तक एक लम्बी क़वायद की थी। पीएसी के सदस्यों के बीच 17 अप्रैल, 2015 और 6 मार्च, 2018 के बीच कम से कम 159 बैठकें हुईं। इन बैठकों के दौरान अनेक दस्तावेजों की जांच-पड़ताल की गयी और कई सरकारी अधिकारियों के बयान दर्ज किये गये।

पीएसी की इस रिपोर्ट में कहा गया है: “ऐसा लगता है कि सरकार केवल निजी बंदरगाहों को ही विकसित करने की इच्छुक है और सरकारी बंदरगाहों की क्षमता का उपयोग बहुत कम हुआ है। रेलवे के साथ सरकारी बंदरगाहों का संपर्क और सड़कों जैसी अच्छी बुनियादी सुविधाओं पर कार्य नहीं हो पा रहे हैं। यह समिति सरकार द्वारा संचालित बंदरगाहों के लिए अच्छे बुनियादी ढांचे के विकास की सिफारिश करती है।”

सरकार द्वारा संचालित बंदरगाह का सबसे खराब उदाहरण वह वेरावल बंदरगाह है,जिसकी क्षमता का बहुत कम उपयोग किया जा सका है, उसकी अपनी स्थापित क्षमता का केवल 2.58% ही उपयोग किया जा सका है। अन्य सरकारी बंदरगाहों का क्षमता उपयोग स्तर,भावनगर में 27.32%, पोरबंदर  में 30.28%, ओखा में 36.97% और मांडवी में 40.63% था।

गुजरात मैरिटाइम बोर्ड के कार्यों ने अडानी को मदद पहुंचायी

CAG की 2012-13 की रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात अडानी पोर्ट लिमिटेड (GAPL) को गुजरात के मुंद्रा में देश के सबसे बड़े निजी बंदरगाह के निर्माण में सरकारी उपक्रम गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (GMB) की तरफ से लाभ पहुंचाया गया था। सीएजी ने जीएमबी  और जीएपीएल के बीच हस्ताक्षरित लीज़ एवं आधिपत्य समझौते (एलपीए) में गड़बड़ियां पायी थीं।

11 जनवरी, 2000 को जीएपीएल को आवंटन के लिए मौजूदा बाजार दर पर जीएमबी को 2000, 4,518 एकड़ जमीन दी गई थी। 23 मार्च, 2000 को जिला भूमि मूल्यांकन समिति द्वारा उस भूमि की कीमत 5.66 करोड़ रुपये आंकी गयी थी। हालांकि, चूंकि भूमि की क़ीमत 50 लाख रुपये से अधिक थी, इसलिए राज्य भूमि मूल्यांकन समिति (एसएलवीसी) को भूमि के मूल्य को अंतिम रूप देना पड़ा।

28 सितंबर 2000 को, जीएमबी ने जीएपीएल के साथ लीज़ एवं आधिपत्य समझौते (एलपीए) पर हस्ताक्षर किए, जिसके अंतर्गत मुंद्रा में 3,403.37 एकड़ भूमि के लिए 4.76 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। 23.80 लाख रुपये का वार्षिक किराया तय किया गया था। अनुबंध में इस बात का उल्लेख किया गया था कि इस किराये को हर तीन साल में 20% से अधिक तक बढ़ाया जाना है। हालांकि, एसएलवी द्वारा अंतिम दर को निर्धारित किये जाने के बाद एलपीए ने जीएपीएल से अतिरिक्त लीज रेंट वसूलने को लेकर कुछ भी उल्लेख नहीं किया है।

दिसंबर 2013 में, गुजरात सरकार ने सीएजी को बताया कि  एसएलवीसी या कलेक्टर ने जीएमबी को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था, बोर्ड उस एलपीए की समीक्षा कर सकता था। लेकिन सीएजी उस जवाब से संतुष्ट नहीं था, और इस पर टिप्पणी करते हुए उसने कहा था: “यह स्वीकार्य नहीं था,क्योंकि इस सम्बन्ध में किसी अलग निर्देश की आवश्यकत ही नहीं थी,क्योंकि जीएमबी को बढ़े हुए मूल्य का भुगतान करना था, जिस समय एसएलवीसी द्वारा तय किया गया था, तो उसी समय अपने स्वयं के हित की रक्षा के लिए जीएमबी द्वारा एलपीए में एक उपयुक्त खंड को डाला जाना चाहिए था। लेकिन,ऐसा नहीं हो पाने की स्थिति में जीएमबी संशोधित मूल्य निर्धारण के पांच प्रतिशत किराये के अंतर का वसूल नहीं कर पाएगी।।”

दिलचस्प बात यह है कि अपनी जांच के दौरान, पीएसी ने जीएमबी प्रतिनिधि को 31 मार्च, 2017 से पहले भूमि मूल्य के निर्धारण के लिए सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए कहा था। हालांकि, बाद में उस सम्बन्ध में समिति को कोई जानकारी नहीं दी गयी। पीएसी ने एलएसी में अपने स्वयं के हितों की रक्षा नहीं कर पाने को लेकर जीएमबी को फटकार भी लगायी। इन खामियों के कारण, पीएसी ने इस बात की सिफारिश की कि "दोषी व्यक्तियों" के खिलाफ "उचित कार्रवाई" की जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भविष्य में ऐसी "गंभीर लापरवाही" न हो।

मुंद्रा पोर्ट के विस्तार को लेकर सवाल

मुंद्रा बंदरगाह के विकास के पहले चरण की अनुमोदित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के अनुसार, इसे दो उप-चरणों में विकसित किया जाना था। उस पहले उप-चरण में, 815 मीटर की लंबाई के चार जहाजों को किनारे लगाने वाले एक स्थल के साथ-साथ एक बहुउद्देश्यीय एंड-स्टेशन का निर्माण भी किया जाना था। बाद के उप-चरणों में  एक एसबीएम (single buoy mooring) या एक नौका बांधने वाले स्थल,जिसका उपयोग पर्यावरण मंजूरी प्राप्त करने के तीन साल के भीतर भारत सरकार के उपक्रम- हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) के लिए अपतट के प्राकृतिक गैस या तेल की लदान या उतारने को लेकर टैंकरों की सहायता के लिए किया जाता है,उसके साथ-साथ1,100 मीटर लंबे जहाज को प्रबंधन क्षमता वाला एक कंटेनर एंड-स्टेशन और कच्चे तेल के लिए एक एंड-स्टेशन को विकसित किया जाना था।

गुजरात सरकार ने जनवरी 1998 में बंदरगाह की मूल योजना को मंजूरी दे दी थी और फरवरी 2001 में रियायत समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले जीएपीएल ने बहुउद्देशीय एंड-स्टेशन का निर्माण किया था। दूसरे उप-चरण में एचपीसीएल के लिए एसबीएम के निर्माण के लिए बंदरगाह की सीमा के विस्तार को लेकर तथा बंदरगाह के विकास के दूसरे चरण  में तीन नए एसबीएम के निर्माण को लेकर जीएपीएल ने 13 जनवरी 2000 को राज्य सरकार से संपर्क किया था।

21 मई, 2002 को इन अनुरोधों को निम्नलिखित शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया गया:

  1. जीएपीएल दूसरे चरण में निर्मित होने वाले एसबीएम पर संचालित किये जाने वाले कार्गो पर पूर्ण वाटरफ़्रंड रॉयल्टी का भुगतान करेगा.

  2. जीएपीएल द्वारा समन्वय के लिए रियायत समझौते के तहत प्राप्त रियायती वाटरफ़्रंड रॉयल्टी, गुजरात सरकार को बंदरगाह के हस्तांतरण के समय लागू मूल्य या ह्रासित ऐतिहासिक लागत से समायोजित किया जाएगा। जीएपीएल उपरोक्त दोनों शर्तों को स्वीकार करने को लेकर एक लिखित सहमति देगा और इस संबंध में रियायत समझौते के लिए आवश्यक बदलाव किये जायेंगे।

दिलचस्प बात यह है कि 24 मई 2002 को राज्य सरकार ने पूरक रियायत अनुबंध के हस्ताक्षर की इंतज़ार किए बिना मुंद्रा बंदरगाह की सीमाओं को बढ़ा दिया था।

ढाई साल से अधिक समय के बाद इस मुद्दे पर नजर रखने के लिए राज्य के मुख्य सचिव, वित्त, उद्योग एवं खान के विभागों के सचिवों सहित अन्य को मिलाकर गुजरात सरकार ने 28 जनवरी, 2005 को समुद्री विकास समिति (एमडीसी) का गठन किया।

अगस्त 2015 में पीएसी को एक लिखित जवाब में, एमडीसी ने बताया कि जीएमबी लंबित "चिंताओं" को हल करने और एक उप-रियायत समझौते को अंजाम देने की पूरी कोशिश कर रहा है । इसके अलावा, यह भी कहा गया कि जीएमबी गुजरात सरकार से वाटरफ्रंट रॉयल्टी अधिकारों पर परामर्श करेगा।

एमडीसी को उन ज़रूरी "चिंताओं" के समाधान के लिए जल्द से जल्द एक बैठक बुलाना चाहिए था। एक साल से अधिक समय बाद 27 दिसंबर, 2016 को एमडीसी ने पीएसी को बताया कि उसके सदस्यों ने जनवरी 2005 में अपनी स्थापना के बाद से केवल दो बार ही बैठक की थी।

अडानी को फ़ायदा पहुंचाने के लिए गुजरात सरकार को 20 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा

दिसंबर 2008 में जीएमबी ने 3,700 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर एचपीसीएल के दूसरे चरण  के तहत तीन एसबीएम के निर्माण के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी। चूंकि मूल मुंद्रा बंदरगाह सीमा के बाहर निर्माण के लिए एसबीएम को मंजूरी दी गयी थी, इसलिए अनुमोदन पूर्ण वाटरफ़्रंट रॉयल्टी की वसूली और एक पूरक समझौते पर हस्ताक्षर करने पर निर्भर था।

निर्माण शुरू करने से पहले, जीएमबी की अनुमति लेनी पड़ी थी। जीएपीएल ने एक पूरक रियायत समझौते के माध्यम से एसबीएम के निर्माण और कार्यान्वयन के लिए नवंबर 2009 में बोर्ड से मंजूरी मांगी। इसने पूरक रियायत समझौते में संयुक्त उद्यम, एचपीसीएल मित्तल पाइपलाइन लिमिटेड (एचएमपीएल) का नाम शामिल करने के अनुरोध के साथ मार्च 2010 में एक परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

हालांकि 30 जून, 2011 को जीएपीएल ने इस परियोजना के लिए बोर्ड की मंजूरी मिलने से पहले  गुजरात मैरीटाइम बोर्ड अधिनियम, 1981 का उल्लंघन करते हुए एसबीएम का निर्माण शुरू कर दिया था।

एचपीसीएल ने अगस्त 2011 से एसबीएम में कच्चे तेल का संचालन करना शुरू कर दिया। मार्च 2013 तक इसने 5.41 मिलियन मीट्रिक टन कच्चे तेल का प्रबंधन किया था। बोर्ड ने 36.4 रुपये प्रति टन की दर से 19.48 करोड़ रुपये के वाटरफ्रंट रॉयल्टी का संग्रह किया। हालांकि, जैसा कि कैग ऑडिट के दौरान कहा गया था, पोर्ट चार्जेज (SoPC) की 2003 की अनुसूची की बेस रेट पर 36 रुपये प्रति टन की रॉयल्टी दर थी। मार्च 2013 के अंत तक हर तीन साल में 20% की बढ़ोतरी के साथ वाटरफ्रंट रॉयल्टी की कुल दर 74.65 रुपये प्रति टन थी। इस प्रकार, सीएजी ने आंकलन किया कि अगस्त 2011 से मार्च 2013 तक, GMB द्वारा 20.91 करोड़ रुपये बकाये वसूली का नुकसान हुआ था।

कैग की उस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है: “सरकार (गुजरात) ने (दिसंबर 2013 में) कहा था कि एचएमपीएल एसबीएम में दर की सही व्यावहारिकता के संबंध में मामला विचाराधीन है। सवाल तो अब भी अपनी जगह बना हुआ है कि इस संदर्भ का औचित्य नहीं था,क्योंकि समझौते की शर्तें स्पष्ट थीं। 20.91 करोड़ रुपये की राशि को जल्द से जल्द ब्याज के साथ वसूला जा सकता है।”

गुजरात सरकार के एक प्रतिनिधि ने अगस्त 2015 में PAC को भेजे एक खुलासे में और 27 दिसंबर, 2016 को समिति की एक बैठक में कहा था कि मुख्य सचिव के स्तर पर और वित्त विभाग में जीएमबी के बकाया की वसूली के मुद्दे पर कई बैठकें आयोजित की गयी थीं। इस मुद्दे को तब भी राज्य सरकार के साथ "विचाराधीन" कहा गया था। उस सरकारी प्रतिनिधि ने कहा कि जब अंतिम निर्णय हो जायेगा, तभी जीबीएम, डेवलपर से किसी भी बकाये राशि को ब्याज सहित एकत्र करेगा। इस जवाब के आधार पर पीएसी को लगा कि यह जीएमबी के लिए "उचित" नहीं होगा कि वह डेवलपर से अपना बकाया वसूल करे,क्योंकि निर्माण बिना मंजूरी के किया गया था। यदि दूसरे चरण में मूल्य वृद्धि के बाद अन्य कंपनियों के लिए नई दरों का फैसला किया गया था, तो अडानी समूह की एक विशेष कंपनी को "अनुचित" लाभ क्यों दिया गया,जबकि उसने बिना अनुमोदन के निर्माण कार्य शुरू कर दिया था, समिति ने इस पर हैरानी जतायी है।

पीएसी ने पूछा है कि मुख्य सचिव और वित्त विभाग के स्तर पर कई बैठकें आयोजित करने के बावजूद बकाया राशि की वसूली अभी तक क्यों नहीं की गयी है।

पीएसी द्वारा गुजरात सरकार की कड़ी आलोचना

पीएसी ने अन्य मामलों में भी गुजरात सरकार पर गंभीर सवाल उठाये थे, जो नीचे दिए गए हैं:

1. बंदरगाह नीति में दिये गये (सरकार के) महत्वपूर्ण आश्वासन 15 साल बाद भी दोषपूर्ण नियोजन के कारण लागू नहीं किये गये, क्योंकि कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गयी थी और बिल्ट-ऑन-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओओटी) नीति के सिद्धांतों को भी लागू नहीं किया गया था।

2.    टैरिफ में देरी और भेदभावपूर्ण परिवर्तन किये गये थे।

3.    नये माल का वर्गीकरण मौजूदा निजी बंदरगाहों पर लागू नहीं हुआ और वे कुछ दरें,जिनकी वसूली की घोषणा एसओपीसी में की गई, वे परिस्थितियां "संदिग्ध" थीं।

4.    निर्माण लागतों की समय पर जांच और निजी डेवलपर्स की गतिविधि की निगरानी के लिए कोई प्रणाली नहीं थी।

5.     नियमों के उल्लंघन के लिए दंड "अप्रभावी" थे और आंतरिक अन्वेषण और निगरानी प्रणाली "त्रुटिपूर्ण" थे।

पीएसी ने गुजरात सरकार और जीएमबी को निम्नलिखित सुझाव दिए:

1.    पोर्ट प्रबंधन में बोर्ड की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए पर्याप्त नियोजन होना चाहिए। 

2.    टैरिफ का उचित और समयबद्ध संशोधन होना चाहिए।

3.    निर्माण लागतों की समय पर जांच-पड़ताल के लिए एक प्रणाली की आवश्यकता थी और निजी बंदरगाहों के डेवलपर्स की गतिविधियों पर नजर रखी जानी चाहिए।

4.    राज्य सरकार को विभिन्न संविदात्मक प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करना चाहिए, जिसके विफल होने पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए।

आंतरिक अन्वेषण, लेखा परीक्षा और निगरानी के लिए प्रणालियों में सुधार किया जाना चाहिए और उन्हें अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए।

जब सीएजी ने 7 जुलाई 2014 को गुजरात विधानसभा में अपनी रिपोर्ट में अडानी समूह को लाभ पहुंचाने वाली अनियमितताओं की ओर इशारा किया था, तो मोदी सरकार को सत्ता में रहते हुए मुश्किल से डेढ़ महीने हुए थे। कैग के इन रिपोर्ट को आए हुए अब साढ़े पांच साल से अधिक का समय गुज़र चुका है, लेकिन राज्य सरकार ने अडानी समूह द्वारा संचालित एक निजी पोर्ट को पहुंचाये गये "अनुचित" लाभ के कारण सरकारी खजाने को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कुछ भी नहीं किया है।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि गुजरात सरकार को अडानी समूह का पक्ष लेने के लिए कैग द्वारा खींचाई की गयी है। संवैधानिक निकाय कैग, जो कि सार्वजनिक वित्त की निगरानी करता है,उसने पहले भी  2011 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में बताया था कि  2006 और 2009 के बीच, अडानी एनर्जी लिमिटेड को कम कीमत पर गुजरात राज्य पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन द्वारा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की गयी थी, जिससे सरकार को लगभग 70 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

2015 में गुजरात विधानसभा में पेश की गयी एक अन्य सीएजी रिपोर्ट में पाया गया कि 2008-09 में अडानी बंदरगाह को वन भूमि के ग़लत वर्गीकरण के परिणामस्वरूप लगभग 59 करोड़ रुपये का "अनुचित" लाभ हुआ।

एक दशक से भी कम समय में गुजरात सरकार को अडानी समूह की कंपनियों को लाभ पहुंचाने को लेकर कैग द्वारा तीन मौकों पर खिंचाई की गयी है, इस अवधि के दौरान मोदी पहले तो गुजरात के मुख्यमंत्री थे और अब,भारत के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बने हुए हैं।

3 फरवरी,सोमवार की दोपहर को पीएसी रिपोर्ट में की गयी इन टिप्पणियों के जवाब और स्पष्टीकरण की मांग को लेकर गौतम अडानी और उनके समूह के कॉर्पोरेट संचार विभाग के एक कार्यकारी को एक विस्तृत प्रश्नावली वाली ईमेल भेजी गयी थी। इस लेख के प्रकाशित होने के समय तक इस पर कोई जवाब नहीं मिला था। इस सम्बन्ध में जब कोई जवाब आयेगा,तो इस लेख को अपडेट कर दिया जायेगा।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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