Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

एल्गार मामला : सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या गोंसाल्वेस, फ़रेरा की रिहाई का 'फॉर्मूला' ज्योति जगताप पर लागू किया जा सकता है?

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को जमानत देने के मामले में अपनाया गया "फॉर्मूला" जाति विरोधी कार्यकर्ता और संगीत कलाकार ज्योति जगताप की ज़मानत याचिका पर लागू किया जा सकता है।
SC

वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आपत्तिजनक साक्ष्य के हिस्से के रूप में गायब की गई सामग्री उनकी निरंतर हिरासत को उचित नहीं ठहरा सकती है।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को जमानत देने में अपनाया गया "फॉर्मूला" जाति विरोधी कार्यकर्ता और संगीत कलाकार ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर लागू किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ जिसमें जस्टिस अनिरुद्ध बोस और संजय कुमार शामिल हैं, ज्योति जगताप को नियमित जमानत देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

जगताप, गोंसाल्वेस और फरेरा भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में आरोपी हैं और उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए हैं।

जगताप को 8 सितंबर, 2020 से एक विचाराधीन कैदी के रूप में कैद किया हुआ है और वे मुंबई की बायकुला जेल में बंद है।

गोंजाल्विस एक ट्रेड यूनियनवादी, एक्टिविस्ट और अकादमिक हैं, जबकि फरेरा एक एक्टिविस्ट और वकील हैं। दोनों को 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी थी।

पिछली सुनवाई के दौरान, 11 जुलाई को, बेंच ने नोट किया था कि जगताप की जमानत याचिका पर निर्णय, उस समय गोंसाल्वेस और फरेरा की नियमित जमानत पर आरक्षित फैसले को सुनाने के बाद लिया जाएगा।

आज, न्यायमूर्ति बोस ने उन निर्णयों का उल्लेख किया और कहा कि जमानत एक "फॉर्मूले" के आधार पर दी गई थी। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि सवाल यह है कि क्या जगताप की याचिका "उस फॉर्मूले में फिट बैठती है"।

अनुरोध करने पर पीठ ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी को जवाबी हलफनामा दायर करने का समय दिया है। एजेंसी को 14 सितंबर तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।  

गोंसाल्वेस और फरेरा को जमानत देने का क्या औचित्य था?

दोनों को जमानत देते समय, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने यह सुनिश्चित करने के लिए साक्ष्यों का सतही तौर पर किए गए विश्लेषण की गहराई से जांच की थी और समझने की कोशिश की थी कि क्या यह मानने का उचित आधार मौजूद हैं कि आरोप प्रथम दृष्टया सच हैं, जैसा कि यूएपीए की धारा 43डी(5) में प्रावधान है। 

खंडपीठ ने कहा था कि आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ अभियोगात्मक साक्ष्य के तौर पर गायब हुई सामग्री उनकी निरंतर हिरासत को उचित नहीं ठहरा सकती है।

खासतौर पर, जमानत के फैसले में कहा गया है कि अन्य सह-अभियुक्त व्यक्तियों से बरामद पत्र, गवाह के बयान, या केवल भड़काऊ साहित्य का कब्ज़ा, भले ही यह हिंसा का प्रचार करता हो या लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को उखाड़ फेंकने को बढ़ावा देता हो, यह साबित नहीं करता है कि दो आरोपी यूएपीए की परिभाषा के तहत आतंकवादी कृत्यों में शामिल थे।

फैसले में कहा गया है कि किसी भी संगठन की आतंकवादी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के इरादे को साबित करने वाला कोई सबूत नहीं है।

विशेष रूप से, पांच साल की लंबी कैद के संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 21 को बरकरार रखते हुए, अदालत ने फैसला किया कि लगाए गए आरोप उनकी निरंतर हिरासत को का कपि आधार नहीं बनाते हैं।

'फॉर्मूले' का व्यापक अनुप्रयोग

झारखंड उच्च न्यायालय में 2017 में दिवंगत फादर स्टेन स्वामी द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल), अन्य आरोपी व्यक्तियों की लंबी कैद को समाप्त करने की दिशा में एक मार्ग के रूप में काम कर सकती है, भीमा कोरेगांव मामले के साथ-साथ ऐसे कई मामलों में जिन्हें हिरासत में रखा गया है या समान आधार पर जमानत से इनकार कर दिया गया है।

जनहित याचिका, जो 2012 और 2016 के बीच किए गए शोध और जांच का परिणाम है, ने झारखंड की जेलों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्यों की लंबे समय तक हिरासत की रूपरेखा तैयार किया है।

याचिका में इस बात की संभावना पर प्रकाश डाला गया है कि कई मामलों में अंततः ठोस और मजबूत सबूतों के अभाव में बरी कर दिया जा सकता है, साथ ही डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997) में निर्धारित गिरफ्तारी और गिरफ्तारी के बाद की प्रक्रिया का पालन न करने के कारण भी बरी कर दिया जा सकता है।

याचिका में झारखंड में विचाराधीन कैदियों पर गहन और व्यापक तथ्य-खोज जांच करने और मामलों की वर्तमान स्थिति को रिकॉर्ड करने के लिए एक जांच आयोग के गठन की मांग की गई है।

इस प्रकार, स्वामी की जनहित याचिका के अनुरूप, शायद गोंसाल्वेस और फरेरा के जमानत फैसले को व्यापक रूप से लागू करने की सुविधा देने वाले व्यापक दिशानिर्देश यह उन्हे सुनिश्चित करने के लिए आगे का रास्ता बन सकता है, कि यूएपीए के तहत समान आधार पर जेल में बंद हजारों लोगों को जमानत देकर न्याय दिया जा सकता है।

जगताप के मामले की पृष्ठभूमि

14 फरवरी, 2022 को एक राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने भीमा कोरेगांव मामले में जगताप और तीन अन्य सह-अभियुक्तों को जमानत देने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि आरोपियों ने देश में अशांति पैदा करने के लिए "गंभीर साजिश" रची थी।

17 अक्टूबर, 2022 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी, जो राष्ट्रीय जांच एजेंसी, अधिनियम, दिनांक 14 फरवरी, 2022 के तहत एक विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसके तहत उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।

उच्च न्यायालय के अनुसार, जगताप एल्गार परिषद कार्यक्रम आयोजित करके और प्रतिबंधित संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के प्रमुख सदस्यों के साथ जुड़कर एक "आतंकवादी कृत्य" में शामिल था।

भीमा कोरेगांव मामले में अभी सुनवाई शुरू होनी बाकी है। अभियोजन पक्ष ने 5,000 पृष्ठों से अधिक का आरोपपत्र दायर किया है और कम से कम 200 गवाहों से जिरह करने का इरादा रखता है। कई आरोपी व्यक्ति बिना किसी मुकदमे के न्यायिक हिरासत में लगभग पांच साल बिता चुके हैं।

तीन आरोपी व्यक्ति, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव और आनंद तेलतुंबडे अब तक जमानत हासिल करने में कामयाब रहे हैं। फादर स्टेन स्वामी का, जो सह-अभियुक्त थे, सात महीने से अधिक की कैद के बाद जून 2021 में हिरासत में कोविड के कारण निधन हो गया था।

डिजिटल फोरेंसिक पर काम करने वाकी एक अग्रणी, स्वतंत्र विशेषज्ञ फर्म, आर्सेनल कंसल्टिंग की एक जांच से पता चला है कि डिजिटल साक्ष्य को प्लांट करने के लिए परिष्कृत मैलवेयर का इस्तेमाल किया गया था, जो मामले के दो आरोपी व्यक्तियों गैडलिंग और विल्सन के उपकरणों पर अभियोजन पक्ष के मामले का आधार बनता है।

आर्सेनल के निष्कर्ष 2021 में चार रिपोर्टों में प्रकाशित हुए थे।

सारा थानावाला द लीफलेट में एक स्टाफ लेखिका हैं।

सौजन्य: द लीफ़लेट 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest