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एससी/एसटी योजनाओं के लिए फ़ंड: कम आवंटन, अपर्याप्त ख़र्च

वित्त मंत्रालय के दिशानिर्देशों के ख़िलाफ़ सरकार द्वारा एससी/एसटी योजनाओं के लिए आवंटन और वास्तविक ख़र्च को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि ये इन समुदायों के मुद्दों को संबोधित नहीं कर पाएंगे।
एससी/एसटी

वित्तीय वर्ष 2014-15 और 2019-20 के बीच, मोदी सरकार ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के कल्याण के लिए 7.51 लाख करोड़ रुपये का आवंटन नहीं किया। यह अंतर आवश्यक धनराशि का 79.16 प्रतिशत है।
तो, दूसरे शब्दों में कहे तो, एससी और एसटी समुदायों के कल्याण के लिए आवश्यक राशि का केवल 20.8 प्रतिशत का ही उपयोग किया जा रहा है।

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने 2014 के घोषणापत्र में, "सामाजिक न्याय और सामाजिक सदभाव" के बारे में बात की थी और शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका के लिए समान अवसर का एक पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टसम) बनाने की प्रतिबद्धता जताई थी। लेकिन केंद्र में भाजपा के कार्यकाल पूरा होने के बाद, हम देख सकते हैं कि ये वादे केवल एक जुमला बन कर रहे गए हैं।

इस लेख में, हम मोदी सरकार के पहले के कार्यकाल के बजट दस्तावेज़ों के साथ-साथ 2019-20 के बजट का भी विश्लेषण करेंगे, जिसमें हमने फ़िलहाल तीन मापदंडों पर ध्यान केंद्रित किया है: आवश्यक आवंटन और सरकार का आवंटन, वास्तविक ख़र्च और आवंटन के बीच का अंतर, और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए योजनाओं का लाभ।

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आवश्यक आवंटन और वास्तविक आवंटन में विशाल अंतर:

विशेष हस्तक्षेप के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए नीतिगत के हस्तक्षेप के माध्यम से लाभ सुनिश्चित करने के लिए, योजना आयोग ने, 1970 के दशक के दौरान, अनुसूचित जन जाति और अनुसुचित जाति के लिए उप योजनाएँ (टीएसपी) (एससीपी) विशेष घटक योजना पेश की थी।

बाद में एससीपी का नाम बदलकर अनुसूचित जाति उप योजना (एससीएसपी) कर दिया गया। एससीएसपी और टीएसपी के पीछे मुख्य उद्देश्य समुदायों के विकास के लिए उनकी आबादी के अनुपात के अनुसार धनराशि को उपलब्ध कराना और उसे उनके कल्याण पर खर्च करना था। विकास करने और बेहतर उपयोग के लिए, 2006 में केंद्र सरकार द्वारा आवंटित निधियों का लेप्स न हो और वे ग़ैर-परिवर्तनीय रहें, का इंतज़ाम किया गया था।

हालांकि, 2017-18 में योजना और ग़ैर-योजना बजट के विलय के बाद से, एससीएसपी और टीएसपी को अब क्रमशः अनुसूचित जातियों के कल्याण हेतु आवंटन यानी एडब्ल्यूएससी के लिए और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु आवंटन (एडब्ल्यूएसटी) के नाम पर संदर्भित किया जाता है।

2014-15 से 2018-19 तक दलितों और आदिवासियों के लिए बजट अनुमानों पर दलित मानवाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान (NCDHR) के विश्लेषण के अनुसार, आवश्यक आवंटन की गणना नीतिगत दिशानिर्देशों के आधार पर की जाती है। और 2019-20 के लिए, आवश्यक राशि की गणना नए दिशानिर्देशों के आधार पर की गई है, जिसमें मंत्रालयों या विभागों को [सीएस + सीएसएस [केंद्र सरकार की योजनाएं + केंद्र प्रायोजित योजनाओं] का एक निर्धारित अनुपात एससी और एसटी योजना के बजट के रूप में निर्धारित किया गया है।

इन दिशानिर्देशों के पुलिंदे के आधार पर, 2014-15 से 2019-20 के लिए आवश्यक राशि एससी समुदायो के लिए 6.20 लाख करोड़ रुपये बनती है, जबकि सरकार का कुल आवंटन मात्र 3.10 लाख करोड़ रुपये है। जो सी.एस.+सी.एस.एस. का कुल परिव्यय का केवल 8 प्रतिशत बैठता है और जिसे एससी समुदाय के लिए निर्धारित करने के लिए निर्देश दिया गया है। जबकि एससी समुदाय की कुल आबादी लगभग 16 प्रतिशत है।

एसटी के लिए, आवश्यक आवंटन [2014-15 और 2019-20 के बीच] 3.28 लाख करोड़ रुपये था, जबकि सरकार ने 2 लाख करोड़ रुपये ही आवंटित किए थे, जो कि आवश्यकता का 61 प्रतिशत है। यह आवंटन सी.एस.+ सी.एस.एस. के लिए कुल परिव्यय का केवल 5.12 प्रतिशत है, जबकि आदिवासी कि कुल जनसंख्या का 8 प्रतिशत है।

वास्तविक ख़र्च काफ़ी कम

सबसे पहले तो अपर्याप्त धनराशि आवंटित की गई फिर मोदी सरकार आवंटित राशि खर्च करने में भी विफल हो रही है। सरकार एससी के लिए आवंटित राशि का केवल 2.07 लाख करोड़ रुपये ही ख़र्च करने में कामयाब रही, जो आवश्यक राशि का 43.2 प्रतिशत है, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए ख़र्च आवश्यक राशि का 54 प्रतिशत रहा है।

वर्ष 2019-20 के बजट में, पिछले वर्ष के बजट की तुलना में एस.सी. और एस.टी. के लिए आवंटन में वृद्धि हुई है। हालांकि, यह आवंटन वास्तविक आवश्यकता से बहुत पीछे है।

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लक्षित योजनाओं के लिए बजट आवंटन और कुल अंतर

केंद्र सरकार की तरफ़ से प्रमुख आवंटन ग़ैर-लक्षित योजनाओं के तहत आता है और अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए बनी योजनाओं का केवल 37.35 प्रतिशत बैठता है जबकि अनुसूचित जनजातियों को लक्षित योजनाओं के लिए 40.7 आवंटन जाता है। ग़ैर-लक्षित योजनाएं वास्तव में वे सामान्य योजनाएं होती हैं, जिनमें एस.सी,/एस.टी.बजट योजनाओं का एक मुखौटा होता है, यानी वह आवंटन सीधे इन समुदायों पर ख़र्च नहीं किया जाता है। वे इन समुदायों को लाभ पहुंचाने वाली एस.सी,/एस.टी. योजनाओं के योग्य नहीं हैं। 2019-20 के बजट में, अनुसूचित जाति के लिए 329 योजनाओं में से, 233 योजनाएँ ग़ैर-लक्षित हैं और वह भी इन समुदाय को लाभ देने की कोई भी व्यापक रणनीति के बिना चलती रहती हैं। इसी तरह, एसटी के लिए 338 योजनाओं में से केवल 71 में प्रत्यक्ष लाभ देने की क्षमता रखती है, जबकि उनमें से बाक़ी सामान्य हैं।

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तालिका में सं. 2 में, हमने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण के लिए आवंटन में कुल अंतर की गणना की है - 2014-15 से 2019-20 तक 7.51 लाख करोड़ रुपये आवंटित होने थे। इस आंकड़े में आवंटन में वह अंतर शामिल है, जो 4.38 लाख करोड़ रूपए है+ग़ैर-लक्षित योजनाओं के लिए आवंटन है जो 3.13 लाख करोड़ रुपये है।

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अगर हम वित्त मंत्रालय के दिशानिर्देशों का सरकार के इन आवंटन और वास्तविक व्यय के साथ तुलना करते हैं, तो ये ख़र्च एससी/एसटी समुदायों के मुद्दों को हल नहीं कर पाएंगे।

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