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यूक्रेन युद्ध को लेकर यूरोप के देशों के बीच बढ़ रही है तकरार

यूक्रेन में आए भू-राजनीतिक भूकंप ने पूरे यूरोप में ज़लज़ला पैदा कर दिया है और अब हर देश अपनी हालत और भूमिका का मूल्यांकन कर रहा है।
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यूक्रेन में रूस के साथ अमरीका का जो छद्म-युद्ध चल रहा है उसने यूरोपीयन यूनियन के आंतरिक संतुलन में महत्वपूर्ण बदलाव पैदा कर दिया है। वे देश जो युद्ध भूमि के करीबी पड़ोसी हैं – यानि पूर्वी यूरोप के देश और बाल्टिक राष्ट्र - पुराने यूरोप के देशों की तुलना में युद्ध में शामिल होने की अधिक भावना दिखा रहे हैं। इन नए यूरोपीय देशों/लोगों का एक कठिन इतिहास रहा है जो उन्हें स्पष्ट रूप से 'रूसी-विरोधी' रास्ते पर लाकर खड़ा कर देता है।

रूस के मनिचियन डर ने उन्हें पश्चिमी यूरोप में उनके कुदरती सहयोगियों की तुलना में अमेरिका और ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन के करीब ला दिया है। पोलैंड, न्यू यूरोप की सबसे शक्तिशाली इकाई है, जो रक्षा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है, जो इसे यूरोप में अग्रणी सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है।

2022 में, पोलैंड ने दक्षिण कोरिया के साथ हथियारों की खरीद पर आरके अनुबंध किया था: जिसमें 15 बिलियन यूरो के कीमत के भारी युद्धक टैंक (फ्रांस से चार गुना अधिक), तोपखाना, लड़ाकू जेट शामिल हैं। वारसॉ ने पिछले महीने 500 मिलियन यूरो में फ्रांस से दो अवलोकन उपग्रह खरीदने के एक अनुबंध पर भी हस्ताक्षर किए हैं। पोलैंड यूरोपीय मामलों में अपने महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित है।

दूसरी तरफ, जर्मनी, जो यूरोप का पावरहाउस है, उसके लिए युद्ध खासतौर पर एक संवेदनशील मुद्दा है और यह यह निरंतर अजीब स्थिति में फंस गया है। जर्मनी की नाज़ी विरासत, और रूसी गैस पर उसकी चुनी हुई निर्भरता और यूक्रेन को पहले हथियार देने की अनिच्छा और बाद में भारी टैंक डिलीवरी के मुद्दे ने आज उसे पीड़ा में डाल दिया है।

बहरहाल, जर्मनी ने 27 फरवरी को घोषणा करके यूक्रेन में रूसी विशेष सैन्य अभियान को उस वक़्त चेतावनी दे डाली जब उसने नीतिगत बदलावों के माध्यम से अपने आर्थिक उत्पादन के 2 प्रतिशत से अधिक की सैन्य खर्च में वृद्धि की घोषणा की। चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ की सरकार ने अपने 2022 के बजट से सैन्य निवेश के लिए 100 बिलियन यूरो की आपूर्ति करने का निर्णय लिया है। जबकि 2021 में जर्मनी का पूरा रक्षा बजट तुलनात्मक रूप से 47 बिलियन यूरो ही था।)

याद रखें कि, राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने जून में कहा था कि यूक्रेन में रूस के ऑपरेशन ने फ्रांस को "एक युद्ध अर्थव्यवस्था" में धकेल दिया है और उन्हे इस युद्ध के काफी लंबे समय तक चलने की उम्मीद है। उन्होंने सप्ताह के अंत में घोषणा की कि वे संसद से 2024-2030 की अवधि के लिए 400 अरब यूरो का नया बजट स्वीकृत करने को कहेंगे, जो 2019-2025 के लिए मात्र 295 अरब यूरो था। 

नए बजट का उद्देश्य, नए और उभरते संभावित खतरों के मद्देनज़र, फ्रांस की सेना का आधुनिकीकरण करना है, इस बाबत मैक्रॉन ने शुक्रवार को कहा कि, “सशस्त्र बलों में सुधार करने के बाद, हम उन्हें बदलने जा रहे हैं। हमें इसे बेहतर बनाने और अलग तरीके से करने की जरूरत है।"

निश्चित रूप से, यूक्रेन में भू-राजनीतिक भूकंप ने पूरे यूरोप में ज़लज़ला पैदा कर दिया है  और हर देश अपनी स्थिति और भूमिका का मूल्यांकन कर रहा है। हालाँकि कोई भी देश अपनी यूरोपीय प्रतिबद्धता पर सवाल नहीं उठा रहा है, लेकिन भटकाव की भावना स्पष्ट है। स्कोल्ज़ ने दो महीने पहले फॉरेन अफेयर्स पत्रिका में एक निबंध में लिखा था कि जर्मनी को ज़िम्मेदारी लेने के मामले में यह ऐतिहासिक "टर्निंग पॉइंट" का समय था।

फिर, शुक्रवार को मैक्रॉन और स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ ने संयुक्त सहयोग की एक नई संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसे सामान्य रणनीतिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए एक ऐतिहासिक मित्रता संधि के रूप में वर्णित किया गया है। उन्होंने पायरेनीज़ पर्वत (जिसे  पर्यावरणीय कारणों से फ़्रांस ने अवरुद्ध कर दिया था) के माध्यम से प्रस्तावित मिडकेट  गैस पाइपलाइन पर बने तनाव को पीछे छोड़ने का निर्णय लिया है।

लेकिन दोनों देशों की अलग-अलग प्रेरणाएँ भी हैं। फ्रांस, राष्ट्रपति बाइडेन के इंफलेशन रिडक्शन एक्ट के माध्यम से अमेरिकी कंपनियों को अरबों डॉलर की सब्सिडी देने के मामले को लेकर अमेरिका के साथ विवाद बढ़ा सकता है और यूरोपीय समर्थन हासिल कर सकता है, जिसका उद्देश्य हरित संक्रमण को निधि देना है। और स्पेन शायद यूरोपीय शक्ति के केंद्र में एक अधिक प्रमुख खिलाड़ी बनने का लक्ष्य रखता है, जो यह अनुमान लगा रहा है कि फ्रांस के साथ उसका मज़बुत गठबंधन इसमें उसकी मदद करेगा।

हालाँकि, रविवार को मैक्रॉन 1961 के फ्रेंको-जर्मन सुलह की 60 वीं वर्षगांठ मना रहे थे, और पेरिस में स्कोल्ज़ के साथ एक शिखर सम्मेलन में शामिल थे, जिसके साथ संयुक्त मंत्रिपरिषद बैठक हुई, जो पेरिस-बर्लिन धुरी को मजबूत करने के उद्देश्य के साथ-साथ यूक्रेन में संघर्ष शुरू होने तक यूरोपीयन यूनियन की अध्यक्षता करते थे। देखना यह है कि क्या वह उस अकड़ को पुनः हासिल कर सकता है। 

फ़्रांस और जर्मनी, यूक्रेन युद्ध के लिए तैयार नहीं थे, जबकि पूर्वी मोर्चे के देश मास्को के प्रति अधिक सतर्क थे और उन्होंने तुरंत दांव को समझ लिया था। इस विसंगति की राजनीतिक लागत अभी तक मात्रात्मक नहीं है। इस बीच, यूरोप में शक्ति संतुलन बदल गया है, और यह स्पष्ट नहीं है कि फ्रांस और जर्मनी एक नया संतुलन बनाने में सफल होंगे या नहीं।

वर्तमान में, स्कोल्ज़ पर मित्र राष्ट्रों का दबाव बढ़ रहा है कि वे जर्मन निर्मित लेपार्ड 2  युद्धक टैंकों को यूक्रेन भेजें, या अन्य देशों को अपने स्वयं के स्टॉक से फिर से निर्यात करने की अनुमति दें। अमेरिका मुक बनाकर इसका पीछे से नेतृत्व कर रहा है।

जबकि वाशिंगटन, जर्मन-रूसी मेल-मिलाप के ताबूत पर अंतिम कील ठोंकने और फ्रेंको-जर्मन धुरी को बाधित करने के प्रति दृढ़ संकल्पित है, ताकि बाइडेन के हिंसक सब्सिडी कानून का संयुक्त रूप से एक यूरोपीय प्रतिक्रिया के ज़रिए जवाब दिया जा सके और यूरोपीय उद्योग की रक्षा के रास्ते को तैयार किए जा सकें। आर्थिक दांव बहुत अधिक हैं, अमेरिकी सब्सिडी के लालच में, यूरोपीय उद्योग के अमेरिका में स्थानांतरित होने की संभावना बढ़ रही है।

फ्रांस और जर्मनी को गहरा संदेह है कि वाशिंगटन हरित निवेश योजना में सार्थक बदलाव करेगा। मुद्दा "यूरोप का आदर्श है जो एकजुट है और अपनी नियति के पूर्ण नियंत्रण में है," जैसा कि मैक्रॉन ने आज पेरिस में सोरबोन में आयोजित समारोह में स्कोल्ज़ के साथ कहा था। शोल्ज़ ने भी बदले में कहा कि, "आज हम यूरोप की संप्रभुता को मजबूत करने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर प्रयास कर रहे हैं।" उन्होंने कभी न खत्म होने वाली आपसी मित्रता की पुष्टि की।

वास्तव में, पोलैंड ने जर्मनी पर आज अपनी बंदूकें तान दीं, जबकि मैक्रॉन और स्कोल्ज़ यूरोप की सुरक्षा, ऊर्जा और अन्य चुनौतियों पर वार्ता के साथ अपने गठबंधन को मजबूत करने के लिए पेरिस में एलिसी संधि के 60 साल पूरे होने का जश्न मना रहे थे।

और पोलिश प्रधानमंत्री मोरावीकी ने बेहद कठोर भाषा में स्कोल्ज़ को फटकार लगाई और धमकी दी कि, यदि जर्मनी ने लेपार्ड 2 टैंकों के हस्तांतरण के लिए सहमति नहीं दी तो वह यूरोपीय देशों अलग ए एक "छोटा गठबंधन" बनाएगा। मोरावीकी ने गरज कर कहा: "यूक्रेन और यूरोप इस युद्ध को जीतेंगे - जर्मनी के साथ या उसके बिना।"

उन्होंने स्कोल्ज़ पर "जर्मन राष्ट्र की क्षमता के अनुसार कार्य नहीं करने" और "अन्य देशों के कार्यों" को कम आंकने या तोड़फोड़ करने का आरोप लगाया। मोरावीकी ने बेकाबू गुस्से में हंगामा खड़ा किया: "वे (जर्मन राजनेता) उदार अनुबंधों के साथ रूसी भालू को गिरवी रखने की उम्मीद करते थे। उस नीति ने उन्हें दिवालिया कर दिया और आज तक जर्मनी को अपनी गलती स्वीकार करने में कठिनाई हो रही है। वांडेल डर्च हैंडेल युगीन त्रुटि का पर्याय बन गया है।

यूक्रेन में रूसी ऑपरेशन की पहली वर्षगांठ में अभी भी 36 घंटे बाकी हैं। लेकिन युद्ध यूरोप तक फैल गया है। जैसा कि रूस लगातार सैन्य रूप से मजबूत है और हार का भूत अमेरिका और नाटो को परेशान कर रहा है, इससे पोलैंड पागल हो रहा है। हालांकि, पोलैंड के लिए पश्चिमी यूक्रेन में अपने "खोए हुए इलाके" को पुनः हासिल करने का महत्वपूर्ण मोड आ रहा है, अगर यूक्रेन हार जाता है - हालांकि स्टालिन ने पोलैंड को पूर्वी जर्मन भूमि का 40,000 वर्ग मील से अधिक का हिस्सा देकर बड़ा मुआवजा दिया था।

यूरोप के पोलिश के प्रतिशोधवाद के पक्ष में जाने की संभावना कम है, विशेष रूप से जर्मनी तो ऐसा नहीं करेगा। इन व्यापक राजनीतिक युद्धाभ्यासों को युद्ध की नई दुनिया के अनुकूल होने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है और शायद यूरोप को उसके बाद आने वाले युद्धों के प्रति तैयार होने के नज़रिये से भी देखा जा सकता है।

एम॰के॰ भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

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