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एक सालगिरह जिसे पश्चिम शायद भूलना चाहेगा

आधुनिक इतिहास के इतिहास की एक युगांतकारी वर्षगांठ, लेनिनग्राद की घेराबंदी, अगले 10 दिनों में आ रही है जो रूसी लोगों के लिए आज भी एक ज़िंदा यादगार बनी हुई है।
West
द्वितीय विश्व युद्ध में लेनिनग्राद की घेराबंदी को तोड़ने वाली लड़ाई की 75वीं वर्षगांठ पर, लोग पिस्कारियोवस्कॉय कब्रिस्तान में फूल चढ़ाने के लिए बर्फबारी के बीच मातृभूमि स्मारक की ओर चल रहे हैं जहां पीड़ितों को दफनाया गया था, सेंट पीटर्सबर्ग, रूस, 26 जनवरी, 2019।

अगले दस दिनों में आधुनिक इतिहास के इतिहास की एक युगांतकारी वर्षगांठ आने वाली है जो रूसी लोगों के लिए आज भी एक ज़िंदा मिसाल/यादगार बनी हुई है। लेनिनग्राद की घेराबंदी, यकीनन द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे भीषण प्रकरण था जो 900 दिनों तक चला। अंततः सोवियत लाल सेना ने अस्सी साल पहले 27 जनवरी, 1944 को इसे तोड़ दिया था।

इस घेराबंदी की गाज़ 30 लाख से अधिक लोगों पर पड़ी थी जिनमें से लगभग आधे लोगों की मृत्यु हो गई और इनमें भी अधिकांश लोगों की मृत्यु पहले छह महीनों में ही तब हो गई थी जब तापमान शून्य से 30 डिग्री नीचे गिर गया था। यह एक सर्वनाशकारी घटना थी। नागरिक भूख, बीमारी और ठंड से मर गए थे। फिर भी यह एक वीरतापूर्ण लड़ाई/जीत थी। लेनिनग्राद के निवासियों ने कभी भी आत्मसमर्पण करने की कोशिश नहीं की भले ही राशन ब्रेड के साथ मिश्रित चूरे के कुछ स्लाइस ही मिल पाते थे। यहां तक कि निवासियों ने गोंद और चूहों तक को खाया जबकि शहर में पानी, बिजली, ईंधन या परिवहन की सुविधा नहीं थी और रोजाना गोलाबारी झेल रहे थे।

22 जून, 1941 को जर्मन सेनाओं ने रूसी सीमाएं पार कर लीं थीं। छह सप्ताह के भीतर, वेहरमाच की आर्मी नॉर्थ ग्रुप यानि तीसरे राईक की सशस्त्र सेना, एक भयंकर हमले के ज़रिए लेनिनग्राद के भीतर 50 किमी अंदर तक घुस गई थी और सोवियत इलाके में 650 किमी आगे तक बढ़ गई थी।

एक महीने बाद, जर्मनों ने शहर को लगभग पूरी तरह घेर लिया था, केवल शहर के पूर्व में लेक लाडोगा के पार एक खतरनाक मार्ग लेनिनग्राद के बाकी हिस्से को जोड़ता था। लेकिन जर्मन आगे नहीं बढ़ सके और 900 दिन बाद उनकी वापसी शुरू हुई।

बाइबिल के समय के बाद से देखा जाए तो लेनिनग्राद की महाकाव्य घेराबंदी किसी भी शहर की सबसे लंबे समय तक सहन की जाने वाली घेराबंदी थी और समान रूप से, इस लड़ाई में नागरिक खुद नायक बन गए थे – वे कलाकार, संगीतकार, लेखक, सैनिक और नाविक और आम नागरिक थे जिन्होंने दृढ़तापूर्वक लोहे को अपनी आत्मा में घुसने से रोक दिया था। सोवियत संघ के सामने आत्मसमर्पण की संभावना से भयभीत होकर, नाजियों ने पश्चिमी मित्र सेनाओं के सामने हथियार डालना पसंद किया लेकिन यूरोप में मित्र देशों की अभियान सेना के सर्वोच्च कमांडर जनरल ड्वाइट आइजनहावर ने आदेश दिया कि जीत का सम्मान सोवियत संघ की लाल सेना को दिया जाना चाहिए।

इसमें आधुनिक समय में युद्ध और शांति का सबसे बड़ा विरोधाभास निहित है। आज, लेनिनग्राद की घेराबंदी की सालगिरह, निश्चित रूप से, एक ऐसा अवसर बन गई है जिसे अमेरिका और उसके कई यूरोपीय सहयोगी याद नहीं रखना चाहेंगे। फिर भी, इसकी समकालीन प्रासंगिकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

नाज़ी नेतृत्व का लक्ष्य लेनिनग्राद की पूरी आबादी को भुखमरी के ज़रिए ख़त्म करना था। भूख से मौत जर्मन राईक की ओर से जानबूझकर किया गया कार्य था। जोसेफ गोएबल्स के शब्दों में, एडॉल्फ हिटलर का इरादा "मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग जैसे शहरों को मिटा देना था।" यह "आवश्यक" था, उन्होंने जुलाई 1941 में लिखा था, "क्योंकि अगर हम रूस को उसके अलग-अलग हिस्सों में विभाजित करना चाहते हैं," तो इसका "अब कोई आध्यात्मिक, राजनीतिक या आर्थिक केंद्र नहीं होना चाहिए।"

हिटलर ने खुद सितंबर 1941 में घोषणा की थी कि, "हमें इस अस्तित्ववादी युद्ध में महानगरीय आबादी के एक भी हिस्से को बनाए रखने में कोई दिलचस्पी नहीं है।" शहर के आत्मसमर्पण की किसी भी बात को "अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए क्योंकि आबादी को रखने और खिलाने की समस्या को हम हल नहीं कर सकते हैं।"

सीधे शब्दों में कहें तो, लेनिनग्राद की आबादी को भूख से मरने के लिए छोड़ दिया गया था - वेहरमाच द्वारा बंदी बनाए गए लाखों सोवियत युद्धबंदियों की तरह रह रहे थे। इतिहासकार जोर्ग गैंज़ेनमुलर ने बाद में लिखा था कि सामूहिक हत्या का यह रूप बर्लिन के लिए लागत प्रभावी था क्योंकि, यह "केवल कुछ न करके भी नरसंहार" को अंजाम देना था।

"कुछ न करके भी नरसंहार करना"! वे भयावह शब्द आज पश्चिम के "नरक जैसे लगाए गए प्रतिबंधों" पर भी लागू होते हैं जिसमें रूस को "मिटाने" और शानदार संसाधनों के साथ उसके विशाल भूभाग से पांच नए राज्य बनाने का एक गुप्त एजेंडा है जिसे औद्योगिक दुनिया के अधीन किया जा सकता है।

सभी विडंबनाओं की जननी यह है कि जर्मनी आज भी रूसी संघ को कमजोर करने और घुटनों पर लाने के लिए "कुछ न करके नरसंहार" की रणनीति में सबसे आगे है। रूस को मिटाने के उस असफल प्रयास में भारी भूमिका निभाने के लिए बाइडेन प्रशासन तीन जर्मन राजनेताओं की एक तिकड़ी पर निर्भर है – वे ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ के शीर्ष नौकरशाह उर्सुला वॉन डेर लेयेन, जर्मन चांसलर ओलाफ शुल्ज़ और विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक हैं।

स्पैनिश-अमेरिकी दार्शनिक, निबंधकार, कवि और उपन्यासकार जॉर्ज सैंटायना ने एक बार कहा था, "जो लोग अतीत को याद नहीं कर सकते, वे इसे दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं।" इसी तरह धुर दक्षिणपंथ पनपता है।

जर्मनी और अन्य जगहों पर युवा पीढ़ी फासीवाद के इतिहास के प्रति उदासीन होती जा रही है। चौथे राईक का विचार अभूतपूर्व रूप से विकसित हो चुका है और वर्तमान में यूरोप में सामान्यीकरण के एक नए चरण का अनुभव कर रहा है। पश्चिमी दुनिया में उथल-पुथल भरी राजनीति आज उसे पृष्ठभूमि प्रदान कर रही है।

द फोर्थ राईक: द स्पेक्टर ऑफ नाज़ीज़म फ्रॉम वर्ल्ड वॉर II टू द प्रेजेंट, के लेखक, इतिहासकार और यहूदी अध्ययन के प्रोफेसर गेवरियल रोसेनफेल्ड ने लिखा है कि "फोर्थ राईक के सायरन कॉल को म्यूट करने का एकमात्र तरीका इसके पूरे इतिहास की जानकारी लेना है।" हालांकि नकली 'तथ्यों' और जानबूझकर दुष्प्रचार की हमारी वर्तमान दुनिया में ऐतिहासिक सत्य के बारे में आम सहमति बनाना कठिन होता जा रहा है, लेकिन हमारे पास इसे आगे बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

राजनीतिक हिंसा का औचित्य उत्कृष्ट रूप से फासीवादी है। पिछले सप्ताह, हमने हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में एक मनमोहक दृश्य देखा जो हमें याद दिलाता है कि हम अब फासीवाद के कानूनी चरण में हैं। यदि नाज़ियों ने यहूदी-बोल्शेविज्म को अपने निर्मित शत्रु के रूप में इस्तेमाल किया, तो इज़राइल हमास का हौवा खड़ा करके वही काम कर रहा है। फासीवाद आंतरिक शत्रुओं द्वारा कथित राष्ट्रीय अपमान की कहानी पेश करता नज़र आ रहा है।

इस बीच, जो बात भूल जा रही है वह यह कि इज़राइल में दशकों से फासीवादी सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन बढ़ा है। अन्य फासीवादी आंदोलनों की तरह, यह आंतरिक विरोधाभासों से भरा हुआ है लेकिन इस आंदोलन में अब प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के रूप में एक उत्कृष्ट सत्तावादी नेता हैं जिन्होंने इसे आकार दिया है और इसे बढ़ाया है और यह तय किया हुआ है कि राजनीति में उनके समय में इसे सामान्य कर दिया जाए।

संभावना इस बात की अधिक है कि कुछ ही दिनों में आईसीजे गाज़ा में असहाय फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए इज़राइल को किसी प्रकार का अंतरिम आदेश/निषेधाज्ञा देगा। लेकिन नेतन्याहू अब जिस फासीवादी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं वह उनसे पहले ही हो चुका है और आगे भी जीवित रहेगा।

ये ऐसी ताकतें हैं जो यहूदी इतिहास में गहरी जड़ें जमा चुकी विचारधाराओं को बढ़ावा देती हैं। हो सकता है कि वे एक काल्पनिक गौरवशाली और धार्मिक राष्ट्रीय अतीत का बचाव कर रहे हों लेकिन यह सोचना एक गंभीर गलती होगी कि वे अंततः जीत नहीं सकते।

रूसी इस घरेलू सच्चाई को यूक्रेन में कठिन तरीके से सीख रहे हैं, जहां "डी-नाज़िफिकेशन" उनके विशेष सैन्य अभियान में सबसे कमजोर कड़ी साबित हो रहा है इसकी भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए कीव में यूक्रेनी नव-नाजी समूहों के साथ जर्मनी के गठबंधन का पता लगाया जा सकता है। 2014 के तख्तापलट से पहले, जो अमेरिका को खुशी-खुशी विरासत में मिला था वह उसे आसानी से जाने देगा।

एम॰के॰ भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

सौजन्यइंडियन पंचलाइन

मूल अंग्रेजी लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

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