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यूरोपीय संघ दुनियाभर के लोगों के स्वास्थ्य से बढ़कर कॉर्पोरेट मुनाफे को प्राथमिकता देता है 

अपनी आबादी के अधिकांश हिस्से का टीकाकरण हो जाने के बावजूद कोविड-19 संबंधित उत्पादों पर पेटेंट छूट को लेकर अनिच्छा दिखाते हुए यूरोपीय संघ के नेतृत्व ने एक बार फिर से बिग फार्मा का पक्ष लिया है और वैक्सीन पर रंगभेद नीति को चिरस्थायी बनाये रखा है।
European Union
17-18 फरवरी को यूरोपीय संघ एवं अफ्रीकी संघ का शिखर सम्मेलन हुआ।

जैसा कि अफ्रीकी संघ और यूरोपीय संघ (ईयू-एयू शिखर सम्मेलन) के बीच की शिखर वार्ता 18 फरवरी को संपन्न हो गई है, उसके बावजूद कोविड-19 उत्पादों के लिए समान पहुँच को सुनिश्चित करने के प्रति यूरोपीय संघ की निष्ठा अंधकारमय बनी हुई है। जहाँ एक ओर यूरोपीय आयोग की अध्यक्षा, उर्सुला वान डेर लेयेन ने अपने बयान में कहा कि दोनों संघों के बीच में ट्रिप्स छूट को लेकर बेहद सकारात्मक चर्चा हुई, वहीँ दूसरी तरफ इस बैठक में महामारी के दौरान बौद्धिक संपदा अधिकारों पर एक समझौते तक पहुँचने को लेकर एक उबाऊ बयानबाजी और एक नई समय सीमा से अधिक कुछ नहीं हुआ। वान डेर  लेयेन ने यह भी कहा, “हम समान लक्ष्य साझा करते हैं। लेकिन उस लक्ष्य तक पहुँचने के हमारे रास्ते अलग-अलग हैं।” 

जबकि वास्तविकता में ऐसा प्रतीत होता है कि अफ्रीकी संघ और यूरोपीय संघ के लक्ष्य एक दूसरे से बेहद भिन्न हैं। जहाँ विभिन्न अफ्रीकी मुल्कों से आये हुए प्रतिनिधियों ने प्रमुख कोविड-19 उत्पादों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों के खात्मे का समर्थन को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया, वहीँ यूरोपीय संघ के राजनीतिज्ञों ने जहाँ तक संभव हो सकता था, अपनी सारी उर्जा को ट्रिप्स छूट को स्थगित करने और वैश्विक उत्तर की दवा निर्माता कंपनियों के मुनाफों की रक्षा करने पर केंद्रित रखा।

ईयू-एयू शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या के अवसर पर, सार्वजनिक स्वास्थ्य आंदोलनों के द्वारा इस पर नए सिरे से जोर दिए जाने की वजह से वैक्सीन रंगभेद का मुद्दा और इसमें यूरोपीय संघ की भूमिका एक बार फिर से सुर्ख़ियों में आ गई है। कार्यकर्ताओं ने फ़्रांस पर, जो कि वर्तमान में यूरोपीय परिषद की अध्यक्षता कर रहा है, और इस क्षेत्र की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, जर्मनी पर साझेदारी के बारे में सिर्फ बतकही करने से कहीं अधिक करने के लिए दबाव बनाने के लिए अभियान शुरू कर दिया है। 

कार्यकर्ताओं ने इंगित किया कि यूरोपीय संघ में शामिल सरकारों की वैक्सीन निर्माताओं को गरीब देशों के साथ अपनी तकनीक और संसाधनों को साझा करने के लिए प्रेरित करने की अनिच्छा, और मुनाफा कमाने पर उनके एकमात्र ध्यान केंद्रित करने के चलते, अफ्रीका एवं अन्य जगहों पर लाखों की संख्या में लोगों के जीवन के लिए आसन्न खतरों का सामना करना पड़ रहा है। इसके नतीज़े में, ओमिक्रॉन जैसे नए वैरिएंट की वजह से दुनिया के बाकी हिस्सों में लोगों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। अमीर देशों को इस बात को समझने की जरूरत है कि वैक्सीन कवरेज के मामले में उनके और गरीब देशों के बीच की खाई अंततः समूचे उद्देश्य को ही निष्फल बना देगी।

इतना भर काफी नहीं 

दुनियाभर के लगभग एक सौ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के द्वारा हस्ताक्षरित इमैनुएल मैक्रॉन को एक याचिका, कोवाक्स जैसी वैश्विक पहल के लगभग दो वर्षों के बाद भी गरीब और अमीर देशों के बीच में वैक्सीन आपूर्ति में विशालकाय अंतर को रेखांकित करती है। डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक, वर्ष 2021 के अंत तक गरीब देशों में प्रति 100 लोगों पर औसतन 7.1 खुराक की तुलना में अमीर देशों में प्रति 100 लोगों पर 155 खुराक हासिल हुई थी।

याचिका में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि कोवाक्स पहल, जिसे यूरोपीय संघ और वैक्सीन निर्माताओं के द्वारा पेटेंट्स हटाने के विकल्प के तौर पर बढ़ावा दिया गया, और सभी को वैक्सीन का निर्माण करने की अनुमति देता है, जैसा कि भारत और दक्षिण अफ्रीका के द्वारा 2020 में ही इसके लिए मांग की गई थी, अपने जनादेश को पूरा कर पाने में विफल साबित हुई है। यह वर्ष 2021 तक 1.8 अरब खुराक के वादे को पूरा कर पाने में विफल रहा है और अपने कुल वायदे के लगभग आधे को ही पूरा कर पाया है। भेजी गई खुराकों के एक बड़े हिस्से की एक्सपायरी डेट लगभग समाप्ति पर थी, जो उन्हें व्यर्थ बना देते हैं।

हकीकत तो यह है कि दो साल बीत जाने के बाद भी, बहुसंख्यक गरीब देशों और विशेषकर अफ्रीकी देश आज भी अपने लोगों के लिए पर्याप्त टीके हासिल करने में असमर्थ रहे हैं। परिणामस्वरूप, इस महाद्वीप की कुल 1.3 अरब आबादी में से सिर्फ 12% लोगों का ही पूर्ण टीकाकरण संभव हो सका है। यूरोपीय संघ में टीकाकरण की औसत दर 71% से अधिक है। यह यूरोपीय संघ के “वैक्सीन रंगभेद” को बनाये रखने के आरोपों को बल प्रदान करता है, जैसा कि पिछले वर्ष दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सायरिल रामफोसा ने दावा किया था। 

टीकाकरण में अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई को कम करने के लिए, सार्वजनिक स्वस्थ्य आंदोलनों ने टीका उत्पादन पर पेटेंट छूट दिए जाने की अपनी मांगों को दुहराया है जो “पेटेंट के जरिये 20 वर्षों तक उत्पादन का एकाधिकार प्रदान करता है” को समाप्त कर देगा, जो गरीब देशों में “बेहद ऊँची कीमतों और टीकों और उपचार की कमी की मुख्य वजह बना हुआ है।” वे ऐसे समय पर नवाचार को हतोत्साहित किये जाने के तर्कों पर प्रश्न खड़े करते हैं जब टीकों के लिए ज्ञान को “भारी सार्वजनिक निवेश के जरिये हासिल किया गया है।”

इन पेटेंटों का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि वे एक ऐसे समय में वैक्सीन निर्माता कंपनियों के शेयरधारकों के लिए प्रति सेकंड 1000 अमेरिकी डॉलर की भारी-भरकम कमाई की व्यवस्था में लगी हुई हैं, जब रोजाना तकरीबन 10,000 की संख्या में लोग टीकों और समुचित उपचार की कमी की वजह से मर रहे हैं।

यूरोपीय संघ की हीला-हवाली 

यूरोपीय संसद ने पेटेंट को हटाने की मांग को तीन बार मंजूरी दे रखी है और यहाँ तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इसकी सिफारिश करता है। हालाँकि, यूरोपीय संघ का नेतृत्व ऐसा करने में इस वजह से अनिक्च्छुक बना हुआ है क्योंकि वे अपने निगमों के द्वारा बनाये जा रहे मोटे मुनाफे में कोई बाधा नहीं डालना चाहते हैं। इसके बजाय, यूरोपीय संघ गरीब देशों और मुख्यतया अफ्रीका के साथ खुराक को साझा करने के बारे में बात कर रहा है।

यूरोपीय संघ ने अफ्रीका को कुल 14.5 करोड़ डोज दान में दे देने का दावा किया है और महाद्वीप में टीके की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए 1 अरब यूरो देने का वादा किया है। इसकी ओर से स्वैच्छिक लाइसेंसिंग का वादा करने के अलावा गर्मियों तक महाद्वीप के साथ कम से कम 45 करोड़ खुराक साझा करने का भी वादा किया जा रहा है। इसका कुल लुब्बोलुआब यह है कि यदि वैक्सीन निर्माता वैक्सीन बनाने की तकनीक को साझा करने के लिए सहमत हो जाते हैं तो यह सब कर पाना संभव है। 

वॉन डेर लेयेन ने दावा किया है कि वे अफ्रीकी देशों के चिकित्सा कर्मियों को खुराक देने में प्रशिक्षित करने में मदद करने के लिए और 12.5 करोड़ यूरो दिए जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह यूरोपीय संघ के द्वारा पहले से ही 30 करोड़ यूरो की प्रतिबद्धता के अतिरिक्त है। 

इस बीच यूरोपीय संघ ने यह दावा करते हुए कि आपूर्ति की अब कोई समस्या नहीं है, अफ्रीकी देशों पर टीकों को खपाने में विफलता के लिए दोषी ठहाराया है। संक्षेप में कहें तो यह वैक्सीन उत्पादन के ज्ञान और संसाधनों को साझा करने को छोड़कर कुछ भी करेगा। 

फ़्रांस और जर्मनी में नई सरकार, इन दोनों ने पेटेंट में राहत को सुलभ बनाने पर विचार करने से इंकार कर दिया है। जबकि जर्मन ग्रीन पार्टी की नई वित्त मंत्री रोबर्ट हबेक के सत्ता में आने से पहले कम से कम इस बारे में बात की जा रही थी। वे अब टीके की कमी को दूर करने के लिए कुछ अन्य उपायों के बारे में बातें कर रहे हैं, जिस पर कार्यकर्ताओं का दावा है कि इसका कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ने जा रहा है।

इसके बजाय बायोएनटेक ने, जो जर्मनी में पहली बार टीके की खुराक वितरित करने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है, ने इस वर्ष के मध्य तक अफ्रीका में टीकों का उत्पादन शुरू करने के लिए एक कारखाना लगाने की घोषणा की है। इसकी वजह से और विलंब होगा और अफ्रीकी देशों को प्रत्येक खुराक के लिए इस कंपनी के द्वारा तय की गई मनमानी कीमतों को चुकाना पड़ेगा।

हाबेक के अपने दीर्घकालिक प्रतिबद्धता से पीछे हटने पर अफ़सोस व्यक्त करते हुए जर्मनी की जन स्वास्थ्य आंदोलन (पीएचएम) की क्रिस्टियन फिशर ने कहा है कि वे सरकार पर पेटेंट हटाने के लिए निरंतर दबाव डालती रहेंगी जो कि उनके काम का केंद्र बिंदु बना रहने वाला है।

कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई को पाटने और वैक्सीन रंगभेद को खत्म करने और ओमिक्रोन जैसे नए-नए वैरिएंट की संभावनाओं को कम करने के लिए मात्र 9.4 अरब अमेरिकी डॉलर की जरूरत है जिससे 8 अरब खुराक का उत्पादन किया जा सकता है। यह टीका निर्माताओं को किये गए 30 अरब डॉलर के भुगतान की तुलना में कुछ भी नहीं है। लेकिन यूरोपीय संघ के नेतृत्व को यह सामान्य गणित नहीं नजर आता है। ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने कॉर्पोरेट मालिकों के प्रति वफादार बने रहने का फैसला कर लिया है, न कि उन लोगों के प्रति जिनके प्रति वे फिक्रमंद होने का दावा करते हैं।  

साभार : पीपल्स डिस्पैच

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