संकट में जर्मनी, फरवरी में होंगे चुनाव

फरवरी 2025 में जर्मनी में संघीय चुनाव होंगे। चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के पतन के बाद ये चुनाव जरूरी था। शोल्ज़ सरकार का पतन जर्मनी और यूरोपीय संघ को प्रभावित करने वाले एक गहरे संकट का प्रतीक है।
1980 के दशक में, अमेरिका के नेतृत्व में प्लाजा समझौते ने जर्मनी के विकास पथ पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, क्योंकि इसके कारण अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष डॉयचे मार्क का कीमत बढ़ गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सोवियत संघ की भूमिका फीकी पड़ने के साथ ही जर्मनी के आगे के विकास को सक्षम करने के लिए यूएसए सरकार की राजनीतिक मजबूरियां कम जरूरी हो गईं।
इसके अलावा, विश्व अर्थव्यवस्था एक आरक्षित मुद्रा के रूप में सोने पर आधारित अमेरिकी डॉलर वाली प्रणाली से पेट्रोडॉलर के साथ आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर वाली दूसरी प्रणाली में परिवर्तित हो गई। पूंजी नियंत्रण रहित इस नई प्रणाली के तहत जर्मनी और बाद में यूरोपीय संघ को राजकोषीय नीति पर लगाम लगाने की आवश्यकता थी, ताकि डॉयचे मार्क और बाद में यूरो की कीमत अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष उचित रूप से स्थिर रह सके। इसका यह भी मतलब था कि जर्मनी में राजकोषीय नीति का इस्तेमाल अब आर्थिक विकास को महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाने के लिए नहीं किया जा सकता था, जैसा कि पहले संभव था।
नतीजतन, जर्मन अर्थव्यवस्था को चार कारकों के आधार पर पुनर्गठित किया गया। पहला, पूर्वी जर्मनी में विशेष रूप से मजदूरी और श्रम उत्पादकता के अनुपात में गिरावट आई। मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता में यह वृद्धि, जिसका घरेलू मांग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता था, कई कारकों के कारण कुछ हद तक टाली गई। दूसरा, जर्मन विनिर्माण कम लागत वाली रूसी ऊर्जा पर भरोसा करने में सक्षम था, जिसने घरेलू मांग से समझौता किए बिना इसकी मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाया। तीसरा, जर्मन बड़े व्यवसाय ने आंशिक रूप से अपना उत्पादन चीन में स्थानांतरित कर दिया और समय के साथ चीन भी जर्मन फर्मों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार के रूप में उभरा। चौथा, यूरोपीय संघ के अन्य देशों को जर्मन निर्यात, साथ ही पूर्वी यूरोप के कुछ देशों में कुछ विनिर्माण के स्थानांतरण ने मांग और मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता दोनों को बढ़ावा दिया।
हालांकि, जैसे ही अमेरिका ने चीन को रोकने और रूस की सुरक्षा पर अतिक्रमण करने की कोशिश शुरू की, जर्मन आर्थिक विकास के पीछे ये चौगुना व्यवस्था बिखरने लगी।
हालांकि शुरू में जर्मनी अनिच्छुक था लेकिन अमेरिका द्वारा चीन और रूस के साथ इसके रणनीतिक संघर्ष में शामिल होने के लिए बाध्य था। सबसे पहले, अमेरिका के दबाव में चीन को जर्मन उच्च प्रौद्योगिकी निर्यात प्रतिबंधित होने लगे। इसके अलावा, अमेरिका के निर्देश के कारण जर्मनी को चीनी निर्यात एक बार फिर अलग-अलग तरीके से प्रतिबंधित हो गया। आखिर में, नॉर्डस्ट्रीम पाइपलाइन को नष्ट करने के साथ-साथ रूसी ऊर्जा के आयात के संबंध में तेजी से प्रतिबंधात्मक नीतियों को अपनाने के कारण अमेरिका ने जर्मनी और यूरोप को रूसी ऊर्जा की आपूर्ति को प्रतिबंधित कर दिया। इसे आंशिक रूप से जर्मनी और यूरोप को उच्च मूल्य वाले अमेरिकी ऊर्जा निर्यात द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।
इन निर्णयों ने जर्मन और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं पर विनाशकारी परिणाम डाले हैं। जर्मन विनिर्माण अप्रतिस्पर्धी हो गया है जिससे वि-औद्योगीकरण हो रहा है। नीति निर्माताओं द्वारा आंशिक रूप से समर्थित जर्मन बड़े व्यवसाय ने इस संकट का तीन तरह से जवाब दिया है। सबसे पहले, उद्यम की कीमत पर ज्यादा वित्तीयकरण। दूसरा, मुख्य रूप से अपने उत्पादन का ज्यादा हिस्सा चीन में स्थानांतरित करना। तीसरा और कम महत्वपूर्ण था उत्पादन को अमेरिका में स्थानांतरित करना। तीसरा निर्णय अमेरिका की औद्योगिक नीति से प्रेरित है जो जर्मनी में विनिर्माण की कीमत पर अमेरिका में विनिर्माण का पक्षधर है।
जर्मनी के चल रहे विऔद्योगीकरण से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले छोटे और मध्यम उद्यम (मिटेलस्टैंड) हैं जिनके पास विदेश जाने या बड़े व्यवसायों की तरह वित्तीयकरण का विकल्प नहीं है। जर्मनी में मूल्य प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए मजदूरी कम करने के चल रहे प्रयासों के सफल होने की संभावना नहीं है क्योंकि अन्य सहायक कारक जर्मन नीति विकल्पों के कारण काम करना बंद कर रहे हैं जो अभी भी अमेरिका से काफी प्रभावित हैं।
जर्मनी में राजनीतिक चर्चा खासकर रूस और चीन को बदनाम करने और वर्तमान में देश को प्रभावित करने वाली परेशानियों के लिए गैर-यूरोपीय प्रवासियों को दोषी ठहराने में लगी हुई है। हालांकि यह नव-फासीवादी ज़ेनोफोबिया केवल वास्तविक समस्या को अस्पष्ट करता है जिसके द्वारा यूएसए आंशिक सफलता के साथ, जर्मनी और यूरोप को एक विशेष आर्थिक क्षेत्र में बदलने की कोशिश कर रहा है, जो आंशिक रूप से यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने अपने उपनिवेशों के साथ किया था।
हालांकि जर्मनी में कुछ राजनीतिक ताकतें हैं जो न केवल समझती हैं बल्कि श्रमिकों और छोटे और मध्यम उद्यमों पर केंद्रित आर्थिक नवीनीकरण की आवश्यकता को सार्वजनिक रूप से व्यक्त भी करती हैं।
यह नवीनीकरण रणनीतिक स्वायत्तता के बिना संभव नहीं है। यह अनिवार्य रूप से पहले चरण के रूप में जर्मन और यूरोपीय फर्मों को वैश्विक उत्पादन नेटवर्क में पारस्परिक रूप से लाभकारी आधार पर ग्लोबल साउथ (चीनी और रूसी सहित) फर्मों के साथ काम करना शामिल है।
जहां तक इस तरह के नवीनीकरण की संभावना का सवाल है, जर्मनी में राजनीतिक मुख्यधारा के बीच अंतर करने की आवश्यकता है जिसमें क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन और क्रिश्चियन सोशल यूनियन का गठबंधन, जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, ग्रीन पार्टी, फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी आदि, द नियो- फासिस्ट अल्टर्नेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) और लेफ्ट विंग सहरा वैगनक्नेच अलायंस - रीजन एंड जस्टिस (बीएसडब्ल्यू) शामिल हैं।
मुख्यधारा के राजनीतिक दल जो ज्यादातर महानगरीय नवउदारवादियों से बने हैं, रणनीतिक स्वायत्तता के लिए राजनीतिक मामला बनाने में असमर्थ और अनिच्छुक हैं।
नियो-फासिस्ट एएफडी के इटैलियन नियो-फासिस्ट पार्टी ब्रदर्स ऑफ इटली (एफडीएल) के जैसा होने की संभावना है, जिसके नेता जियोर्जियो मेलोनी 2022 से प्रधानमंत्री हैं। रणनीतिक स्वायत्तता के बारे में उनके सभी चुनाव-पूर्व बयान इटली के प्रधानमंत्री बनने के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका के साम्राज्यवादी आधिपत्य के सामने निरर्थक हो गए। इसके बजाय उन्होंने और उनकी सरकार ने अपने नव-फासीवादी एजेंडे के राजनीतिक रूप से व्यवहार्य हिस्से पर दोगुना जोर दिया है यानी कामकाजी लोगों के विभिन्न वर्गों के वेतन पर एक अलग दबाव डालना। इसी तरह, रूसी ऊर्जा के साथ फिर से जुड़ने के बारे में नीतिगत मामलों में नियो-फासिस्ट एएफडी के प्रस्ताव केवल मध्यस्थता की प्रक्रिया होने की संभावना है, जिसके जरिए से रूस और चीन के बीच दरार पैदा करने की कोशिश करने के लिए यूएसए की आने वाली सरकार के प्रयास आगे बढ़ सकते हैं। इसके अलावा, एएफडी द्वारा अगली सरकार बनाने की संभावना नहीं है, लेकिन इसके नव-फासीवादी जेनोफोबिया को मुख्यधारा में लाने से मुख्यधारा के राजनीतिक दलों द्वारा अगली सरकार बनाने की संभावना बढ़ जाएगी, जिससे जर्मनी में काम करने वाले लोगों के विभिन्न वर्गों के वेतन में और अधिक कमी आएगी।
बीएसडब्ल्यू रणनीतिक स्वायत्तता के लिए एक राजनीतिक मामला पेश करता है, जिससे एक ऐसी रणनीति संभव होती है जो वेतन या छोटे और मध्यम उद्यमों को कम नहीं करती है। हालांकि, बीएसडब्ल्यू के लिए एक पूर्ण राजनीतिक विकल्प के रूप में उभरने के लिए एक आवश्यक शर्त वामपंथियों की एकता है, जिसके लिए आगामी चुनावों से परे राजनीतिक-संगठनात्मक कार्य की आवश्यकता होगी।
जर्मनी का भविष्य और इसलिए उसके मौजूदा संकट से बाहर निकलने का रास्ता सिर्फ अगले महीने होने वाले चुनावों से तय नहीं होगा। लेकिन वर्तमान में जर्मनी को जो समस्याएं घेर रही हैं, उनका राजनीतिक रूप से स्पष्ट करना एक बेहतर भविष्य हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण शुरुआत होगी।
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर हैं।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
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