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जारी रहेगी पारंपरिक खुदरा की कीमत पर ई-कॉमर्स की विस्फोटक वृद्धि

भारत में ई कॉमर्स में 2020 की महामारी के पहले वर्ष में 8% की वृद्धि हुई और 2021 में 30% की वृद्धि हुई, जिस वर्ष कोविड-19 की जानलेवा दूसरी लहर देखी गई थी।
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खुदरा व्यापार (retail business) में ई-कॉमर्स उन कुछ क्षेत्रों में से एक है, जहां महामारी के दौरान विकास में नाटकीय वृद्धि देखी गई। कुल खुदरा बिक्री में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में लगभग 5 गुना बढ़ गई है।

साधारण शब्दों में कहें तो, भारत में ई कॉमर्स में 2020 की महामारी के पहले वर्ष में 8% की वृद्धि हुई और 2021 में 30% की वृद्धि हुई, जिस वर्ष कोविड-19 की जानलेवा दूसरी लहर देखी गई थी ।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि न केवल भारत के लिए, बल्कि लगभग सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए कुल खुदरा बिक्री में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी भी प्रभावशाली ढंग से बढ़ी। 2015 से 2019 यानि महामारी-पूर्व के वर्षों में पंजीकृत कुल खुदरा बिक्री के हिस्से के बतौर ई-कॉमर्स की औसत वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि और प्रमुख विश्व अर्थव्यवस्थाओं में 2020 (पहले महामारी वर्ष) के दौरान दर्ज की गई वृद्धि दर में उछाल मैकिन्स अध्ययन में दिए गए आंकड़ों के अनुसार इस प्रकार है:

यूनाइटेड किंगडम 1.3% और 5.7% जो 4.5 गुना वृद्धि है;

चीन 3% और 4.8% जो 1.6 गुना वृद्धि थी;

संयुक्त राज्य अमेरिका 1.4% और 4.6% जो 3.3 गुना वृद्धि थी;

स्पेन 0.6% और 2.8% जो 4.7 गुना वृद्धि थी;

जर्मनी 0.8% और 1.8%, और हालांकि यह मामूली था, विकास दर में 2.3 गुना वृद्धि हुई;

भारत 0.7% से 1.6% जो 2.1 गुना वृद्धि थी;

फ्रांस 0.6% से 1.2%, दो गुना वृद्धि है; और

जापान 0.6% से 1.1% जो 1.8 गुना की वृद्धि थी।

महामारी से पहले की तुलना में ई-कामर्स 2-5 गुना तेज़ी से बढ़ा है

इस प्रकार, कुल खुदरा बिक्री में ई-कॉमर्स की बढ़ती हिस्सेदारी एक वैश्विक प्रवृत्ति बन गई थी। इसे ई-कॉमर्स फर्मों द्वारा पारंपरिक खुदरा दुकानों के विस्थापन के रूप में भी समझा जा सकता है। या, कम से कम, यह ई-कॉमर्स फर्मों द्वारा पारंपरिक खुदरा स्टोर्स के कारोबार में वृद्धि को हथियाने का प्रतीक है।

सरकारों द्वारा लगाए गए कठोर पूर्ण लॉकडाउन के कारण, घरों में कैद जनता के लिए, विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं की जरूरत को पूरा करने के लिए ई-कॉमर्स एकमात्र विकल्प बन गया। खाने-पीने की चीजों से लेकर घर-घर तक दवाईयों की सप्लाई, किताबों से लेकर कपड़ों तक- सभी जरूरी सामान ऑनलाइन ऑर्डर किए गए। पिछले दो दशकों में महामारी से पहले हुई दूरसंचार क्रांति ने इसे सुगम भी बनाया।

जब लगभग सभी अन्य उद्योगों में बड़े पैमाने पर नौकरियां घट रही थीं, ई-कॉमर्स ही था, जिसने महामारी के दौरान सबसे अधिक रोजगार उत्पन्न किया। इसने प्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मियों के रोजगार में वृद्धि को भी पीछे छोड़ दिया। अकेले अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट ने 2020 में लगभग 1.5 लाख कर्मचारियों को काम पर रखा। भारत ने आईटी क्षेत्र सहित किसी भी अन्य क्षेत्र में एक वर्ष में रोजगार का इतनी तेजी से विस्तार कभी नहीं देखा गया।

वर्दीधारी मजदूर, शहरों में बेहतर कमाई करने मोटरसाइकिलों पर शहरी सड़कों पर दौड़ते हुए, पारंपरिक फेरीवालों से कहीं आगे निकल गए। न केवल डिलीवरी वर्कर्स, ई-कॉमर्स फर्मों ने माल के परिवहन, वेयरहाउसिंग और पैकिंग जैसी आपूर्ति श्रृंखला सेवाओं, ग्राहक देखभाल सेवाओं और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम रखरखाव और ऑनलाइन नियंत्रण कक्ष में रोज़गार का व्यापक विस्तार किया। विस्तारित कार्यबल में विभिन्न कौशल स्तर थे। दुपहिया वाहन चलाने की क्षमता के अलावा, डिलीवरी कर्मियों को अधिक कौशल की आवश्यकता नहीं थी। फिर भी, उन्हें गैर-ई-कॉमर्स प्रतिष्ठानों में उनके समकक्षों की तुलना में बेहतर भुगतान किया गया। ई-कॉमर्स न केवल शहरी बेरोजगारी बल्कि उपनगरीय क्षेत्रों में ग्रामीण युवाओं में बेरोजगारी को दूर करने के मामले में एक वरदान साबित हुआ।

2021 के उत्तरार्ध में, कोविड -19 की दूसरी लहर कम होने लगी। लगभग पूर्ण टीकाकरण के चलते, 2022 के शुरुआती महीनों में, थर्ड वेव और ओमाइक्रोन संस्करण में वृद्धि का खतरा गंभीर नहीं निकला। हालांकि कोविड -19 समाप्त नहीं हुआ था, लगभग सामान्य स्थिति बहाल हो गई थी।

इसलिए, 2022 की शुरुआत में, एक सवाल व्यापार जगत पर हावी हो गया: क्या ई-कॉमर्स उद्योग तथाकथित महामारी-पश्चात के युग में समान उच्च विकास बनाए रखने में सक्षम होगा या क्या महामारी के दौरान विकास में जो नाटकीय वृद्धि हुई थी वह एक विचलन थी जो जल्द ही समाप्त हो जाएगी और चीजें-महामारी- पूर्व "सामान्य" पर वापस आ जाएंगी?

विशेष रूप से, ई-कॉमर्स फर्मों के उन सभी नव-नियोजित लाखों श्रमिकों का क्या होगा- चाहे वे नौकरियों में बने रहें या महामारी के बाद के समय में ई-कॉमर्स के विस्तार में कमी आने के बाद उन्हें बंद कर दिया जाएगा?

मत और भविष्यवाणियां ई-कॉमर्स उद्योग के भीतर भिन्न थीं। आखिरकार, ई-कॉमर्स बिक्री कुल खुदरा बिक्री का 7% है, भारत स्पेन और फ्रांस जैसे ई-कॉमर्स में कम पहुंच वाले मुल्कों में एक है। हालांकि, यूनाइटेड किंगडम, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं, जहां कुल खुदरा बिक्री के प्रतिशत के बतौर ई-कॉमर्स बिक्री क्रमशः 24%, 27% और 20% तक पहुंच गई थी, ने दिखाया कि भारत, जहां ई-कॉमर्स की पैठ उनके तीसरे स्तर की है, अभी भी विस्तार के लिए पर्याप्त जगह रखता है ।

महामारी के बाद के वर्षों में ई-कॉमर्स के विस्तार की संभावना- बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप स्टडी से निष्कर्ष

बिजनेस कंसल्टेंसी बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) और रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (RAI) द्वारा अप्रैल 2022 के तीसरे सप्ताह में पेश की गई एक हालिया रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि कोविड-19 के ढलने के बाद भी ई-कॉमर्स का विस्फोटक विस्तार अगले कुछ वर्षों तक जारी रहेगा। 80 पन्नों की इस रिपोर्ट का शीर्षक “रेसिंग टुवर्ड्स नेक्स्ट वेव ऑफ रिटेल इन इंडिया” है।

 अध्ययन के पांच प्रमुख निष्कर्ष हैं:

1) एकीकृत खुदरा सेवा के कारण खपत के ऑनलाइन और ऑफलाइन चैनलों के बीच की सीमाएं कम हो रही हैं;

2) बड़ी खुदरा कम्पनियां, अपने ग्राहक मूल्य (ग्राहक शक्ति) को बढ़ाने के लिए, पारंपरिक तरीकों और उभरते ई-कॉमर्स मॉडल दोनों का लाभ उठा रहे हैं, ताकि वे अपनी पसंद के खुदरा दुकानों से अपनी पसंद के सामान और ब्रांड वितरित कर सकें;

3) कड़ी प्रतिस्पर्धा और ग्राहक आधार को बनाए रखने और विस्तार करने की आवश्यकता के चलते, अधिग्रहण और साझेदारी आदि के माध्यम से मेगा सिस्टम (पढ़ें-एकाधिकार) उभर रहे हैं;

4) ग्राहक व्यवहार और पसंद के आधार पर एक विशाल व्यक्तिगत डेटाबेस विकसित करके ग्राहक सेवा में वैयक्तिकरण (personalization) विश्व स्तर पर एक अद्वितीय विपणन अनुभव को सक्षम बनाता है; और

5) ब्रांड और ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियां ग्राहकों को इन-स्टोर खरीदारी का अनुभव ऑनलाइन देने के लिए प्रौद्योगिकी और डिजिटल सामग्री का उपयोग कर रही हैं।

क्तिगत डेटा सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर बढ़ती चिंता

बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट गोपनीयता पर संकेत भर देती है और इस मुद्दे की गहराई में जाने से बड़ी सावधानी से बचती है। "परिपक्व भौगोलिक" (mature geographies) (विकसित देशों में पढ़े गए) रुझानों के आधार पर उभरती प्राथमिकताओं को सूचीबद्ध करते हुए यह कहते है कि उपभोक्ता अद्वितीय व पसंद-अनुरूप सामान या सेवा चाहते हैं, और रिपोर्ट मान रही है कि गोपनीयता और डेटा सुरक्षा के बारे में चिंताओं के बावजूद इसके लिए अधिक और बेहतर गुणवत्ता वाले डेटा उपलब्ध हैं। मोदी सरकार ने 11 दिसंबर 2022 को ही संसद में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक पेश किया, लेकिन उसे पारित करने का समय उन्हें न मिला और भारत में डेटा संरक्षण कानून अभी भी अधर में लटका हुआ है। आलोचकों ने कॉरपोरेट्स द्वारा दुरुपयोग के खिलाफ नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा रक्षा करने के मामले में बिल की अक्षमता की निंदा की है। हालाँकि, आपराधिक प्रक्रिया (संशोधन) विधेयक, जो पुलिस को नागरिकों के बायोमेट्रिक और अन्य व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने का अधिकार देता है, 28 मार्च 2022 को संसद में पेश किया गया था और मोदी सरकार ने 4 अप्रैल 2022 को बिना किसी विस्तृत चर्चा के इसे पारित करने के लिए जल्दबाजी की। 

ई-कॉमर्स दिग्गज पारंपरिक खुदरा व्यवसायों के अधीन हैं

ई-कॉमर्स केवल उपभोक्ता सामग्रियों की डोरस्टेप डिलीवरी की बात नहीं है। यह केवल पारंपरिक ‘रोड-एंड’ किराना स्टोर और पारंपरिक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और मॉल के लिए विनाशकारी नहीं साबित हुआ। इसके बजाय, ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों ने पारंपरिक खुदरा स्टोरों को शामिल करना शुरू कर दिया है। घर के लोगों को बाहर निकलने की जरूरत नहीं है और अमेज़ॉन या वॉलमार्ट (फ्लिपकार्ट) जैसे वैश्विक ई-कॉमर्स दिग्गजों की मध्यस्थता  से घर पर डिलीवरी के लिए ‘रोड-एंड’ शॉप से किराना वस्तुओं की डिलीवरी का ऑर्डर दे सकते हैं। अगली गली के भोजनालय से Zomato या Swiggy के जरिए खाना मंगवाया जा सकता है। ई-कॉमर्स के दिग्गजों ने पारंपरिक खुदरा स्टोरों को केवल अपने हितों  की सेवा करने के लिए निगल लिया। एक पारंपरिक स्टोर से पास के ग्राहक को ऑर्डर किया गया सामान बेचने के लिए, ई-कॉमर्स प्रमुख अब मोटा कमीशन लेगा। इससे भी बदतर, वे तय करेंगे कि उनका कमीशन कितना होगा, पारंपरिक स्टोर या उपभोक्ता नहीं।

आरएसएस का संगठित खुदरा क्षेत्र में एफडीआई का विरोध अब इतिहास बन चुका है

शुरू में आरएसएस, और उसके सहयोगी स्वदेशी ब्रिगेड, भाजपा और संघ परिवार के पारंपरिक सामाजिक आधार, छोटे पारंपरिक व्यापारियों और दुकानदारों के हितों की रक्षा के लिए खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति का विरोध कर रहे थे। जब निर्मला सीतारमण ने मल्टीब्रांड रिटेल में भी एफडीआई की अनुमति देने पर पुनर्विचार करने का आह्वान किया, और मोदी सरकार ने मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई की अनुमति देने के अपने फैसले की घोषणा की, तो मोहन भागवत ने खुद 15 मई 2015 को राजनाथ सिंह से व्यक्तिगत रूप से कहा, “खुदरा में एफडीआई हमें किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है!" लेकिन मोदी ने दुनिया के नंबर 1 खुदरा एकाधिकार वॉलमार्ट को भारतीय लेबल फ्लिपकार्ट के माध्यम से पिछले दरवाजे से प्रवेश करने की अनुमति दे दी। न तो मोदी को इसकी राजनीतिक कीमत की परवाह थी और न ही मोहन भागवत, जो उनके बॉस हैं, मोदी पर राजनीतिक दबाव बना सके। नागपुर में अपने गुरु की बात सुनने के बजाय मोदी-शाह मुंबई में अंबानी-टाटा की बात सुनना पसंद करते हैं!

लेकिन मोदी जनता के समक्ष नाटक करने में माहिर हैं। उनकी सरकार ने राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के माध्यम से अगस्त 2021 में केवल वॉलमार्ट के फ्लिपकार्ट को 10,600 रुपये का कोर रिकवरी नोटिस जारी किया, लेकिन अमेज़ॉन को नहीं, हालांकि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दोनों को एकाधिकार गैर-प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण (monopolistic non-competitive pricing) का दोषी पाया। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने इसकी आलोचना की थी। उस नोटिस से कुछ नहीं निकला और अदालत की आलोचना पर कोई अनुवर्ती कार्रवाई नहीं हुई। जब ई-कॉमर्स बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्वतंत्र शासन की आलोचना हुई, तो "राष्ट्रवादी" सरकार ने फिर से अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट को नोटिस भेजे। करीब से जांच करने पर, यह बेचे गए उत्पादों पर जानकारी प्रदर्शित नहीं करने के एक तुच्छ मुद्दे के लिए था। $420 बिलियन की संपत्ति वाले अमेज़ॉन को 25,000 रुपये के सांकेतिक जुर्माने के साथ छोड़ दिया गया! और फिर ‘महान’ भागवत जी से और कुछ नहीं सुना गया । यह आपके लिए राष्ट्रवाद का केसरिया ब्रांड है!

 संगठित खुदरा कारोबार में उभरते एकाधिकार

बड़ी कंपनियों द्वारा छोटे फर्मों को लंबवत रूप से एकीकृत करके पूंजी के केंद्रीकरण के अलावा, खुदरा उद्योग पहले से ही एक मजबूत एकाधिकार का प्रत्यक्षदर्शी है। अमेज़ॉन और वॉलमार्ट (अपनी भारतीय सहायक फ्लिपकार्ट के माध्यम से) ई-कॉमर्स बाजार का 90% नियंत्रित करते हैं। रिलायंस रिटेल के माध्यम से मुकेश अंबानी के रिलायंस समूह और टाटा रिटेल के माध्यम से टाटा का प्रवेश परिदृश्य को निश्चित ही बदलेगा, लेकिन ई-कॉमर्स क्षेत्र को युद्धरत इजारेदार व्यापारिक घरानों का कुरुक्षेत्र बनाने के बाद ही ।

अपने मार्केट शेयर का विस्तार करने के लिए छोटी फर्मों के उन्मत्त अधिग्रहण के माध्यम से नए प्रवेशकों और मजबूत दिग्गजों के बीच युद्ध होता है। फ्यूचर्स रिटेल को संभालने के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज का 25,000 करोड़ रुपये का सौदा भारत के सबसे बड़े विलय और अधिग्रहण (एम एंड ए) सौदे में से एक था। नवीनतम एचडीएफसी विलय हाल के दिनों में इससे भी बड़ा सौदा है। रिलायंस समूह द्वारा फ्यूचर्स रिटेल के अधिग्रहण ने उसे एक मजबूत पायदान पर रखा होगा तभी वह वैश्विक प्रमुख अमेज़ॉन और वॉलमार्ट दोनों को चुनौति दे सका। लेकिन रिलायंस ग्रुप का, फ्यूचर्स ग्रुप, जो कि प्रसिद्ध बिग बाजार का मालिक है, के साथ प्रस्तावित सौदा, अदालत के एक प्रतिकूल फैसले और रिलायंस ग्रुप पर फ्यूचर्स ग्रुप की भारी देनदारियों के संभावित खतरे के बाद विफ़ल हो गया। समझदारी से मुकेश अंबानी ने सौदे से किनारा कर लिया। भले ही उन्होंने सौदे को रद्द कर दिया हो, मुकेश अंबानी ने फ्यूचर्स ग्रुप के 947 अपमार्केट स्टोर को सौदा रद्द करने की शर्तों के अनुसार हथिया लिया है।

इसके अलावा, वह प्रतिदिन आला  (niche) खुदरा बाजारों में उपस्थिति रखने वाली लगभग एक छोटी फर्म को प्राप्त करने में व्यस्त है, जैसे फ़ाइंड, पर्पल पांडा फ़ैशन, क्लोविया, ग्रैब ( एक राइड-हेलिंग और डिलीवरी फर्म), रेवेरी ( एक बेड और गद्दा फर्म), हेमलीज़ जैसे टॉय रिटेलर, नेटमेड्स (एक फार्मास्युटिकल रिटेलर), अर्बन लैडर (एक फर्नीचर और इंटीरियर डेकोर फर्म), मिल्कबास्केट (एक दूध और किराना रिटेलर), जिवामे (एक लॉन्जरी चेन-स्टोर), पोर्टिको (एक कंपनी जो होम स्टाइल सॉल्यूशंस प्रदान करती है), डंज़ो (एक ऑनलाइन मीट , पान और सब्जी विक्रेता), कोयंबटूर में श्री कन्नन डिपार्टमेंटल स्टोर, इरोड में जयसूर्या  कलानिकेतन (एक डिजाइनर सिल्कवियर फर्म), अब्राहम एंड ठाकोर (एक लक्जरी फैशन हाउस), पोर्टिको, जो बिस्तर और स्नान उत्पाद बेचने वाले क्रिएटिव ग्रुप हैं, नोएडा स्थित AddVerb, जो रिटेल वेयरहाउसेज़ को रोबोटिक्स और ऑटोमेशन समाधान प्रदान करता है तथा चीन स्थित लिथियम वर्क्स, जो लिथियम आयन बैटरी फर्म है, आदि, ताकि वह खुदरा विपणन के सभी आला क्षेत्रों में अपना एकाधिकार फैला सके।

इसके अलावा, मुकेश अंबानी ने रितु कुमार, रितिका, मनीष मल्होत्रा, अनामिका खन्ना की एके-ओके, जेनेसिस कलर्स, जो फैशन ब्रांड सत्य पॉल का मालिक है, लग्जरी डिजाइनर राघवेंद्र राठौर की फ्यूचर 101 डिज़ाइन, डिज़ाइनर राहुल मिश्रा जैसे अपमार्केट फैशन लेबल्स स्टार्ट-अप्स में हिस्सेदारी हासिल की है।

5 जी के बाद होगा रिलायंस का चौतरफा एकाधिकार

रिलायंस जियो, जो पहले से ही एक दूरसंचार एकाधिकार कम्पनी है, 5G सेवाओं के प्रतिपादन में शीर्ष तीन या चार एकाधिकार में से एक के रूप में उभरेगा, इसके अलावा ऑनलाइन खुदरा वाणिज्य, डिजिटल मनी ट्रांसफर, ऑनलाइन लर्निंग, टेलीहेल्थ, संगीत की ऑनलाइन स्ट्रीमिंग, वीडियो और फिल्में और अन्य मनोरंजन, आदि होंगे । रिलायंस ग्रुप ने एंबिबे, (लर्निंग एडटेक फर्म), हैप्टिक, (संवादी चैट प्लेटफॉर्म कंपनी), सावन (म्यूजिक-स्ट्रीमिंग कंपनी), टेसेरैक्ट (डिजिटल एसेट इनोवेटर और स्केलिंग-अप फर्म), डेन नेटवर्क्स और हैथवे केबल्स डायरेक्ट-टू -होम (DTH) और केबल टीवी सेवा में हिस्सेदारी हासिल की है। इनके अलावा हैं NowFloats Technologies (एक सॉफ्टवेयर और तकनीकी सेवा फर्म), Radisys, (दूरसंचार सेवाओं में उपयोग की जाने वाली डिजिटल तकनीक में विशेषज्ञता वाली एक फर्म), Just Dial.Com (एक इंटरनेट सेवा कंपनी), इत्यादि। उद्योग जगत की रिपोर्ट से पता चलता है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज दर्जनों अन्य फर्मों के साथ बातचीत कर रही है। मुकेश अंबानी इन सभी अधिग्रहणों के लिए पहले ही एक लाख करोड़ से अधिक खर्च कर चुके हैं और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और वित्तीय संस्थान उन्हें पैसा उधार देने के लिए कतार में हैं। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी कोष और परिसंपत्ति प्रबंधन दिग्गज भी रिलायंस समूह में पैसा डाल रहे हैं। 

मीडिया रिपोर्टें पहले से ही आने वाले दिनों में भारत में एक बड़े खुदरा युद्ध छिड़ने की आशंका जता रही हैं। दो सबसे बड़े भारतीय इजारेदार व्यवसायी, अंबानी और टाटा, और वैश्विक एकाधिकार अमेज़ॉन और वॉलमार्ट, जो वैश्विक निगमों में पहले और तीसरे स्थान पर हैं, भारत में एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा में हैं।यही सबसे अधिक स्वागत योग्य बात है, क्योंकि इससे उपभोक्ताओं को लाभ होगा !

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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