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कृषि विधेयकों के विरोध में किसानों का सड़क रोको, रेल रोको आंदोलन 

विभिन्न किसान संगठनों द्वारा किए गए आह्वान पर मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और एनसीआर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए।
कृषि विधेयकों के विरोध में किसानों का सड़क रोको, रेल रोको आंदोलन 
भारतीय किसान यूनियन की लीडरशिप में- किसानों ने एकता उग्रहान, जो पंजाब के बादल गांव में एसएडी (SAD) अध्यक्ष सुखबीर बादल और उनकी पत्नी और पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल की हवेली है की घेराबंदी की। सौजन्य- स्पेशल अरेंजमेंट

नई दिल्ली: संसद के चल रहे मानसून सत्र के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा कृषि से जुड़े विधेयकों को संसद के पटल पर रखने के खिलाफ भारत के कई हिस्सों में किसानों ने अपनी आवाज को जोर-शोर से बुलंद करना शुरू कर दिया हैं। पिछले कुछ दिनों से किसान सड़कों पर उतर रहे हैं और देश भर में हड़ताल, रास्ता रोको और 'रेल रोको' के जरिए अपना विरोध प्रदर्शन तेज कर रहे है।

हरियाणा में, 19 किसान संगठनों ने राज्य के प्रत्येक जिले में तीन घंटे- यानि दोपहर 12 बजे से लेकर 3 बजे तक, 20 सितंबर से राष्ट्रीय राजमार्गों को रोकने की चेतावनी दी है, अगर तथाकथित कृषि सुधार विधेयकों को खारिज करने की उनकी मांग नहीं मानी जाती है। किसानों को 30,000 आढ़तियों (कमीशन एजेंटों) का भी समर्थन हासिल है, जिन्होंने 18 सितंबर से शुरू होने वाली अनिश्चित काल हड़ताल में शामिल होने और राज्य की सभी कृषि उपज मंडी समिति (एपीएमसी) मंडियों में काम को रोकने की कसम खाई है।

पंजाब में, कम से कम 10 किसान संगठनों ने, इसी तरह की मांगों को उठाते हुए, 25 सितंबर को राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया है। यह निर्णय बुधवार को लिया गया था, जब एक दिन पहले तीन में से एक फार्म बिल को लोकसभा की मंजूरी मिल गई थी। भारत बंद के दौरान सभी कारोबार, सड़क और रेल यातायात बंद रहेगा।

उसी तारीख (यानि 25 सितंबर को) पर, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) ने देशव्यापी प्रतिरोध का आह्वान किया है- जो 250 किसान संगठनों की संघर्ष समिति है। रैलियों के आह्वान की वजह से दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा के कुछ हिस्सों में स्थानीय आर्थिक गतिविधियों के रुकने की संभावना है।

राजस्थान में, राज्य भर की 247 एपीएमसी मंडियां 21 सितंबर को एक दिवसीय हड़ताल पर जाएंगी।

मोदी सरकार जब से तीन कृषि व्यापार अध्यादेशों को अमल में लाई है तब से ही देश भर में विरोध-प्रदर्शनों की बाढ़ सी आई आ गई है- इस पर केंद्र की प्रतिक्रिया 'हमेशा सामान्य' सी लगती है, जिसे लेकर किसान की नाराजगी बढ़ी है, क्योंकि वे इन बिलों को कॉर्पोरेट हितों की सेवा करने वाले बिल मानते हैं और जो उनके मिल रहे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को खतरा हैं।

अध्यादेशों की जगह, ये तीन बिल- किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन  सम्झौता और कृषि सेवा विधेयक, 2020; किसानों की उपज का व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020; और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 हैं- जिन्हे सोमवार को संसद में पेश किया गया था, विपक्ष शासित राज्य सरकारों और शिरोमणि अकाली दल (SAD) जो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के एक घटक  हैं के विरोध दर्ज करने के बावजूद बिलों को पेश किया गया। 

अध्यादेश जिन्हे राष्ट्रपति ने प्रख्यापित किया था को संसद में छः सप्ताह के भीतर पुनः अनुमोदित किया जाना चाहिए अन्यथा ये अपने आप खारिज हो जाएंगे।

पंजाब  से सतनाम सिंह पन्नू, जो किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं ने न्यूज़क्लिक को बताया कि प्रस्तावित सुधारों को पंजाब के लोगों ने पूरी तरह से खारिज कर दिया हैं। ये “बिल किसानों के हित में नहीं हैं और इसलिए, हम इनका विरोध कर रहे हैं। कानून में कोई भी बदलाव लाने से पहले केंद्र को पहले किसान संगठन के साथ परामर्श करना चाहिए था- हालांकि, सरकार ने ऐसा करना जरूरी नहीं समझा, ”उन्होंने कहा।

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी राज्यपाल को ज्ञापन सौंपकर इन कानूनों को रोकने के लिए उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की है।

मंगलवार को 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर दिया गया, जिसमें खाद्यान्न के स्टॉक को कीमतें पर से पाबंदी हटाने के प्रावधान की बात की जा सकती है, उसे भी लोकसभा की बहस के बाद पारित कर दिया गया है। 

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने कथित तौर पर सत्तारूढ़ सरकार पर जमाखोरी को वैध बनाने का आरोप लगाया है। अन्य विपक्षी सदस्यों ने भी मांग की है कि इसे संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा जाए।

बाकी के बिल- जिनमें से एक मंडी प्रणाली के बाहर किसानों की उपज के व्यापार की अनुमति देता है; जबकि, दूसरा अनुबंध खेती के लिए रूपरेखा पेश करता हैं- गुरुवार को बहस-विचार और पारित करने के लिए पेश होंगे।

भारतीय किसान यूनियन (BKU) के गरदेव सिंह ने केंद्र सरकार पर राज्य विषयक सूची के तहत आने वाले मुद्दों और निर्णय लेने की प्रक्रिया को "केंद्रीकृत" करने का आरोप लगाया। उन्होंने पंजाब के बादल गाँव से न्यूज़क्लिक से बात की, जहाँ उनके संगठन के सैकड़ों किसानों ने एसएडी के अध्यक्ष सुखबीर बादल और उनकी पत्नी और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल की कोठी (हवेली) की घेराबंदी की हुई थी, जिसे 15 से 20 सितंबर तक जारी रहना है।  

“एसएडी ने किसानों को बेवकूफ बनाया है और अब किसानों के विरोध के बाद यू-टर्न ले रही है। अगर पार्टी किसानों के हितों की रक्षा के लिए गंभीर है, तो इसे बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ लेना चाहिए, सिंह ने कहा'

हरपाल सिंह, बीकेयू के हरियाणा राज्य सचिव ने कहा: "अध्यादेशों का उद्देश्य किसानों को मजदूरों में बदलना है- जिन्हें आने वाले वर्षों में कृषि कंपनियों की आवश्यकताओं के अनुसार उत्पादन करने में लगाया जाएगा।"

"एक छोटे किसान के बारे में सोचो- जिसके पास कोई सौदेबाजी की ताक़त नहीं है- वह एक निजी कंपनी के साथ अनुबंध करेगा। कंपनी के लाभ के मद्देनजर उसे अपने हित से समझौता करन पड़ेगा। सरकार उस छोटे किसान को क्या सुरक्षा प्रदान करेगी?” उन्होने कहा।

हरियाणा 

इसके अलावा, सरकार बिजली के वितरण में निजी भागीदारी को भी आमंत्रित कर रही है, जिससे उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि देश भर में वर्तमान में किसानों मिल रही सब्सिडी भी फुर हो जाएगी।

हरियाणा राज्य अनाज मंडी आढ़तिया एसोसिएशन के उपाध्यक्ष हर्ष गिरधर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस तरह के कृषि सुधार से अनाज मंडियों का पतन होगा- खासकर तब जब मंडी प्रणाली के बाहर कृषि उपज के व्यापार पर कोई कर नहीं लगता है।

उनकी चिंताओं को राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यपार संघ के रतन लाल ने भी साझा किया, जो एपीएमसी में पदाधिकारियों की एक संयुक्त संस्था है, और कहा कि वर्तमान में राज्य सरकार को मंडी शुल्क और ग्रामीण विकास उपकर के रूप में राजस्व मिलता है।

मंडियों से व्यापार को खत्म करने से कमीशन एजेंट और उनके साथ लाखों मजदूर तबाह हो जाएंगे, गिरधर ने दावा किया कि इससे "ग्रामीण क्षेत्रों में नाराजगी और अशांति फैलेगी।"

हन्नान मोल्लाह, अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के महासचिव ने केंद्र सरकार के “उदासीन” रवैये पर नाराज़गी जताई और “और विरोध नहीं बल्कि प्रतिरोध” का आह्वान किया।

"कोई भी विरोध शासन की लोकतांत्रिक स्थापना में चिंताओं को जताने का जरिया होता है,  हालांकि, जब शासन की प्रकृति और सरकार फासीवादी मोड़ लेने लगती है, जो लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व भी नहीं करती है, तो इस तरह के नियमों का विरोध करना आवश्यक हो जाता है," मोल्ला ने कहा, जो एआईकेएससीसी (AIKSCC) कार्यकारी समूह के सदस्य भी हैं।

मोल्ला के मुताबिक आने वाले दिनों में किसानों का विरोध ओर तेज होगा। "ये किसानों की आजीविका पर हमला है, वे विरोध क्यों नहीं करेंगे।"

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Farmers Plan Strikes, Road Blockades, ‘Rail Roko’ Protests Against 3 Agri Bills

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