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संकट के जाल में फंसते परंपरागत मछुआरे

मछुआरों का कहना है कि विभिन्न स्थानों पर मछली पकड़ने के घाट स्थापित किए जाने चाहिए। वहीं, मछली पकड़ने पर प्रतिबंध की अवधि को बढ़ाया जाना चाहिए। इसके अलावा मछली पकड़ने वाली बस्तियों की समस्याओं को दूर करने के लिए एक नीति तैयार हो।
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पिछले दो वर्षों में मछली उत्पादन कम होने से मछली की कीमत दो गुना तक बढ़ गई है। तस्वीरें: दीपक गवांडे और गिरजा राणे।

21 नवंबर को 'विश्व मछुआरा दिवस' मनाया गया था। लेकिन, इस मौके पर मछुआरों की समस्याओं को नज़रअंदाज कर दिया गया, जबकि महाराष्ट्र के कोंकण की समुद्री पट्टी पर मछली पकड़ने के मौसम की शुरुआत के साढ़े तीन महीने बीत जाने के बावजूद मछलियों को उत्पादन अपेक्षा से काफी कम हुआ है। हालत यह है कि आधी से ज्यादा नावें किनारे पर ही खड़ी हैं। मछली उत्पादन में कमी का सीधा असर परंपरागत मछुआरों की जिंदगी पर पड़ रहा है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है।

समुद्र में मछली पकड़ने वाली एक बड़ी नाव से लगभग 50-60 परिवारों को सीधे और परोक्ष रूप से रोजगार मिलता रहा है। नदियों से लेकर समुद्र तट से जुड़ी इस तरह की कई दूसरी गतिविधियां से भी मछुआरों की रोजी-रोटी चलती रही है। लेकिन, परिस्थितियां कुछ ऐसी हैं कि मछुआरे खुद संकट के जाल में फंसते नजर आ रहे हैं। हालांकि, मछलियां पकड़ना समुद्री तट के लोगों के लिए आय का एक मुख्य जरिया तो है ही, लेकिन इस संकट का असर मछलियां खाने वाली आबादी पर भी पड़ेगा।

केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान का कहना है कि 2019 में महाराष्ट्र के बंदरगाहों पर लाई जाने मछलियों की संख्या 32 प्रतिशत की घट गईं। मछली उत्पादन घटने के पीछे एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन बताया जा रहा है। वर्ष 1951 और 2015 के बीच भूमध्यरेखीय क्षेत्र में हिंद महासागर की सतह के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई। वहीं, साल 2020-21 में अरब सागर में दो बार तूफान भी आए।

परंपरागत मछुआरों पर बढ़ गया खर्च

तकनीक और आधुनिकता के दौर में मछली पकड़ने के मशीनीकृत तरीके बढ़े हैं, जिससे मछलियों की संख्या भी कम हो रही है, यह मशीनें और जालें कई बार प्रतिबंधित क्षेत्रों में भी इस्तेमाल में लाई जा रही हैं, जिसका असर उन परंपरागत मछुआरों पर पड़ रहा है, जो परंपरागत तरीके से मछलियां पकड़ते रहे हैं। इनके लिए परंपरांगत तरीके से मछलियां पकड़ने के अवसर कम होते जा रहे हैं।

वहीं, हर साल की तरह इस साल भी मछली पकड़ने की शुरुआत 1 अगस्त से हुई और पहले दौर से ही मछलियों का उत्पादन तुलनात्मक रूप से कम हुआ। मछुआरे बताते हैं कि गहरे समुद्र में 10-12 दिनों तक की मछलियां पकड़ने वाली यात्रा में सवा से डेढ़ लाख रुपए का खर्च आता है। लेकिन, मछलियां पकड़ने वाली यात्रा की लागत के मुकाबले मछलियों का उत्पादन घट रहा है, जिससे परंपरागत मछुआरे कई बार कम फायदे में रहते हैं या फिर उन्हें उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ जाता है। यही वजह है कि मुंबई के समुद्री तट से लगे पालघर जिले में इस साल मछली पकड़ने वाली समुद्री नावों में 50 से 60 प्रतिशत तो किनारे पर ही लंगर डाले खड़ी हैं। दरअसल, मछुआरे वित्तीय नुकसान से बचने के लिए कम से कम और सोच-समझकर फेरियां लगा रहे हैं।

परंपरागत मछुआरों को अब समुद्र तट के आसपास मछलियां कम मिलती हैं। इसलिए, इन मछुआरों को अपनी नाव लेकर लंबा सफर करना पड़ रहा है। तीस से चालीस किलोमीटर समुद्र में जाने पर उनका खर्च बढ़ जाता है। जो मछुआरे परंपरागत तरह से मछलियां पकड़ते रहे हैं उनके लिए यह खर्च उठाना मुश्किल हो रहा है।

हालांकि, मछुआरों को शासन स्तर पर डीजल रिफंड दिया जाता है। लेकिन, पालघर जिले के मछुआरों की शिकायत है कि उन्हें अभी तक डीजल रिफंड के रूप में 16 करोड़ रुपए नहीं मिले हैं। वहीं, कई जगहों पर मछली पकड़ने के बंदरगाह भी नहीं हैं। इसलिए, मछुआरों को समुद्री नावों से सामग्री लोड करने और मछली को उतारने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा मछुआरों की कालोनी में मानसून के मौसम यानी ठीक सीजन के समय घरों में पानी रिसता है। इससे उनके काम में बाधा पड़ जाती है। मछलियां पकड़ने वाले कई गांवों में तूफान आश्रय केंद्र तथा रोकथाम प्रणाली स्थापित नहीं है, जिसके कारण भी मछुआरे समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

डीजल की कीमत बढ़ रही है, वहीं ट्रॉलरों की मदद से मछली पकड़ी जा रही है और 'पर्स सीन' वाले जालों का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे समुद्री तटों की जैव विविधता भी संकट में है। दूसरी तरफ, जलवायु परिवर्तन ने इस संकट को जटिल बना दिया है।

पिछले दो वर्षों में मछली उत्पादन कम होने से मछली की कीमत दो गुना तक बढ़ गई है। तस्वीरें: दीपक गवांडे और गिरजा राणे।

खतरे में मछुआरों की बस्तियां

इसी तरह, समुद्र तट पर पर्यटन व होटल क्षेत्र को बढ़ावा देने के नाम पर कई मछुआरों व उनकी बस्तियों को उनके मूल स्थान से हटाया गया है। वहीं, तट रक्षा व विकास परामर्श समिति की रिपोर्ट कहती है कि भारत के तट क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा समुद्री कटाव से प्रभावित होने लगा था। इस बढ़ते कटाव के चलते मछुआरों की बस्तियां उजड़ रही हैं। कई मछुआरों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है और वे कुछ दूरी पर नए सिरे से अपनी बस्तियां बना रहे हैं, लेकिन एक समय आता है कि कटाव के कारण फिर उन्हीं बस्तियों पर संकट आ जाता है।

दूसरी तरफ, इस संकट के चलते प्रभावितों का दायरा भी बढ़ रहा है। दरअसल, मछलियों को पकड़ने की आजीविका और इससे संबंधित गतिविधियां रोजगार की एक बड़ी श्रृंखला बनाती हैं और इससे एक भरा पूरा उद्योग तैयार होता है। इसी उद्योग पर एक बड़ी आबादी निर्भर है। रोजगार की यह श्रृंखला मछलियों को पकड़ने वाले जाल बनाने और उन्हें ठीक करने वाले कारीगरों से शुरू होती है, बहुत सारे लोग नावों पर बर्फ और बहुत सारी सामग्री लोड करते हैं, फिर बहुत सारे लोग पकड़ी गई मछलियों को छांटते हैं, फिर इन्हें थोक बाजार में ले जाने वाले लोगों का कारोबार भी है, वहां से मछलियां खुदरा बाजार में लाई जाती हैं तो उनका भी धंधा चलता है। इसके अलावा बहुत सारे लोग सूखी मछलियां बेचते हैं। इस प्रकार, जैसा कि कहा गया है कि एक समुद्री नाव से 50-60 परिवारों को सीधे और परोक्ष रूप से रोजगार मिलता है। लेकिन, मछलियों का उत्पादन घटा है इसलिए ये सभी क्षेत्र के लोग प्रभावित हुए हैं। इतना ही नहीं, नाव की मरम्मत और ईंधन के लिए लिए गए कर्ज की अदायगी न होने से मछुआरे कर्ज में डूब गए हैं।

देखा जाए तो मछली के जाल की मरम्मत का काम करके एक दिन में 500-600 रुपए कमाने वाले कारीगरों की आमदनी कम हुई है। वहीं, मछली पकड़ने के बाद उन्हें बाजार तक लाने और बेचने के काम में ज्यादातर महिलाएं जुड़ी हुई हैं। जाहिर है कि यदि मछली उत्पादन घट रहा है तो महिलाओं की आमदनी पर सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। पालघर जिले के सातपाटी समुद्री अंचल में मछली पकड़ने वाली नौकाओं के मालिकों पर फिलहाल 9 करोड़ रुपये का कर्ज है। बता दें कि महाराष्ट्र की समुद्री तटरेखा साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबी है। वहीं, पूरे देश में समुद्री तट किनारे मछली बेचने के कारोबार में 28 लाख लोग हैं।

मछुआरे की उम्मीदें

मछुआरों का कहना है कि विभिन्न स्थानों पर मछली पकड़ने के घाट स्थापित किए जाने चाहिए। वहीं, मछली पकड़ने पर प्रतिबंध की अवधि को बढ़ाया जाना चाहिए। इसके अलावा मछली पकड़ने वाली बस्तियों की समस्याओं को दूर करने के लिए एक नीति तैयार हो। मछुआरे समुद्री कटाव को रोकने के लिए तटबंध बनाने और नावों के जीर्णोद्धार तथा मशीनीकरण के लिए आसान ऋण प्रदान करने की भी मांग कर रहे हैं। मछुआरों का कहना है कि यदि इन उपायों को लागू किया गया तो मछलियां जीवित रहेंगी और मछुआरे भी जीवित रहेंगे। ये मछुआरे समुद्र में मछलियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए विशेषज्ञों और समितियों द्वारा अनुशंसित सुझावों के सख्त कार्यान्वयन की उम्मीद कर रहे हैं।

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