गढ़वाल विवि का 180 सुरक्षा कर्मियों और सफाई कर्मियों को हटाने का आदेश, छात्रों ने किया विरोध
निजी कंपनियों, असंगठित क्षेत्रों, आउटसोर्स के माध्यम से काम कर रहे हजारों लोग लगातार भय और अनिश्चितता के साये में जी रहे हैं। किसी रोज़ वे काम पर पहुंचेंगे और उन्हें बताया जाएगा कि आज उनके कार्य का आखिरी दिन है, उनकी सेवाएं समाप्त की जाती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ पौड़ी के हेमवती नंदन बहुगुणा श्रीनगर विश्वविद्यालय में आउटसोर्स के माध्यम से कार्य कर रहे 180 सुरक्षा और सफाई कर्मियों के साथ।
गढ़वाल विश्वविद्यालय प्रशासन ने 150 सुरक्षा कर्मियों और 30 सफाई कर्मचारियों को हटाने का आदेश जारी किया। इनमें से अधिकतर लोग पिछले 17-18 वर्षों से नौकरी कर रहे थे। उन्हें बताया गया कि जेम यानी गवरमेंट इलेक्ट्रॉनिक मार्केट के ज़रिये एसआईएस नाम की नई कंपनी को टेंडर मिल गया है। पुरानी कंपनी कोर टेंडर प्रक्रिया में बाहर हो गई। नई कंपनी अपने हिसाब से कर्मचारियों की भर्ती करेगी।
छात्रों का कहना है कि पुराने कर्मचारियों को हटाने के लिए षडयंत्र रचा गया है। इस मुद्दे पर श्रीनगर विश्वविद्यालय के सभी छात्र संगठन आइसा, एनएसयूआई, एबीवीपी,एसएफआई के साथ स्थानीय छात्र संगठन जय हो और आर्यन भी एक साथ खड़े हुए। छात्रों ने पुराने कर्मचारियों को रखे जाने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। 22 अप्रैल को विश्वविद्यालय में धरना प्रदर्शन किया गया।
छात्रों की तरफ़ से विवि प्रशासन को दिया गया मांगपत्र
आइसा के अतुल सती का कहना है कि हमारी विश्वविद्यालय प्रशासन से एक वार्ता हुई। जिसमें कुलसचिव एके झा के साथ शहर के कोतवाल नरेंद्र बिष्ट, एसएसआई और 4 एसआई समेत उनकी पूरी टीम मौजूद थी। छात्रों के साथ हुई इस बातचीत में समझौता किया गया कि जो कर्मचारी आउटसोर्स के माध्यम से पहले से कार्यरत हैं, उन्हीं को फिर से रखा जाएगा।
अतुल सती बताते हैं कि अगले दिन प्रेस के माध्यम से कुलसचिव ने कहा कि उन्हें बंधक बनाकर जबरन सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराए गए, वे उस आदेश को नहीं मानते हैं। छात्रों पर कुलसचिव से मारपीट और गालीगलौज के आरोप लगाए। वो कहते हैं कि उस पूरी बातचीत के दौरान शहर कोतवाल अपनी टीम के साथ मौजूद थे। ऐसे में उन्हें बंधक कैसे बनाया जा सकता है। कुलसचिव ने इस मामले में 14 छात्रों और दो कर्मचारियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दी। इसके अलावा सौ से अधिक अन्य छात्रों पर मुकदमा दर्ज कराया। इस घटना के बाद कुलसचिव ने अपने लिए पांच बाउंसर रख लिए। छात्र सवाल उठा रहे हैं कि बाउंसर रखने के लिए कहां से पैसा आ रहा है। अधिकारियों के आलीशान खर्चों के लिए कहां से पैसे आ रहे हैं। इसके उलट गरीब आदमी की रोटी के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन फंड की कमी का रोना रोता है।
एचएनबी गढ़वाल विश्वविदायलय के पास पिछले दो सालों से कोई स्थायी कुलपति नहीं है। कार्यवाहक कुलपति अन्नपूर्णा नौटियाल का कहना है कि ये कर्मचारी विश्वविद्यालय के नहीं हैं बल्कि आउटसोर्स एजेंसी के हैं। इसलिये विश्वविद्यालय का इससे कोई लेना-देना नहीं है, ये कंपनी का मामला है। वे कहती हैं कि सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी पर अब पूर्व सैनिकों की भर्ती की जाएगी।
इसके अलावा कार्यवाहक कुलपति फंड की कमी की बात कहती हैं। वे बताती हैं कि जो भी मानव संसाधन हम आउटसोर्स करते हैं वो सब इन्टर्नल रिसीट से होता है। जो फीस के ज़रिये इकट्ठा किया जाता है। उनके मुताबिक इन्टर्नल रिसीट घट गई है, क्योंकि सरकार ने 52 कॉलेज को गढ़वाल विश्वविद्यालय से अ-सम्बद्ध कर दिया है। इससे फीस आनी कम हो गई है। अन्नपूर्णा नौटियाल कहती हैं किर हम फीस नहीं बढ़ा सकते, फीस बढ़ाने पर छात्र आंदोलन करते हैं। तो इस तरह उनके पास विश्वविद्यालय की आमदनी बढ़ाने का कोई ज़रिया नहीं है। इसलिए यही विकल्प है कि कर्मचारियों की संख्या को कम करें। जो कार्य पहले 180 कर्मचारी कर रहे थे, वो कार्य अब 120 कर्मचारियों से लिया जाएगा।
लेकिन कार्यवाहक कुलपति की बातों में विरोधाभास है। विश्वविद्यालय छात्रसंघ के कार्यकारी अध्यक्ष अंकित उछोली कहते हैं कि नई कंपनी 21 हजार रुपये के वेतन पर पूर्व सैनिकों की भर्ती कर रही है। पुराने कर्मचारी इससे करीब आधे वेतन पर कार्य कर रहे हैं। अंकित कहते हैं कि पैसा कमाने के लिए विश्वविद्यालय ने बीएड और एमएससी के फॉर्म की कीमत पिछले वर्ष की तुलना में लगभग दोगुनी कर दी है। वे बताते हैं कि करीब चार-पांच महीने भी विश्वविद्यालय ने फंड की कमी की बात कह कर इन कर्मचारियों को हटाने की कोशिश की थी। उस समय भी छात्रों ने दबाव बनाया तो कर्मचारियों को वापस रख लिया गया। एक बार फिर वे यही कर रहे हैं।
सुरक्षा और सफाई कर्मचारियों को वापस कार्य पर रखने के साथ छात्रों ने अपने मुद्दों को भी 15 सूत्रीय मांगपत्र में जोड़ा है।
मधु देवी गढ़वाल विश्वविद्यालय में सुरक्षा गार्ड के पद पर पिछले सात वर्ष से कार्य कर रही थीं। उनका वेतन 12 हजार रुपये था। वो बताती हैं कि 27 अप्रैल को सुबह छह बजे काम पर पहुंची। करीब 11 बजे कुलसचिव के दफ्तर से उन्हें बताया गया कि 26 अप्रैल से उनकी सेवाएं समाप्त हो गई हैं।
मधु देवी
मधु के तीन बच्चे हैं। दो लड़के कॉलेज में हैं और तीसरी लड़की 11वीं कक्षा में। उनके पति दूसरी जगह सुरक्षा गार्ड के पद पर 6 हजार के वेतन पर कार्य करते हैं। अचानक नौकरी छूटने से परिवार आर्थिक संकट में घिर गया है। वे रोते हुए कहती हैं कि इस महंगाई के दौर में क्या खाएंगे, बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे।
संगीता देवी की स्थिति और भी मुश्किल है। उनके पति साथ नहीं रहते, न ही परिवार का खर्च उठाते हैं। संगीता के दो बच्चे हैं, दोनों स्कूल जाते हैं। वे घर की अकेली कमाऊ सदस्य थीं। विश्वविद्यालय के गर्ल्स हॉस्टल में सुरक्षा गार्ड के तौर पर तैनात थीं। उनका वेतन 12 हज़ार रुपये से कुछ अधिक था। वो भी अब रोज विश्वविद्यालय के गेट पर धरना देने जा रही हैं। वो बताती हैं कि पिछले वर्ष नवंबर में उन्हें विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसी तरह बाहर कर दिया था। लेकिन धरना-प्रदर्शन के कुछ रोज़ बाद वापस रख लिया गया, ये कहकर कि एक महीने बाद अपने लिए कहीं और कार्य ढूंढ़ लें।
छात्र कहते हैं कि एक अप्रैल से सफाई कर्मचारी नहीं आ रहे हैं जिससे कैंपस के साथ हॉस्टल की स्थिति खराब हो गई है। अब सुरक्षा गार्ड भी नहीं हैं जिससे हॉस्टल में बिना सिक्योरिटी के छात्राएं रह रही हैं।
सीपीआई-एमएल के नेता इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि "मैं भी चौकीदार" नारा जब राजनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है तब चौकीदारों के हक में खड़े होने वालों पर मुकदमा होना भी गजब है। वे कहते हैं कि चार दिन पहले विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने चौकीदारों को बहाल करने की मांग लिखित रूप से मान ली थी, लेकिन चार दिन बाद उन्हीं कुलसचिव ने छात्र नेताओं पर मुकदमा दर्ज करवा दिया।
छात्रसंघ के कार्यकारी अध्यक्ष अंकित उछोली का कहना है कि जब तक कर्मचारियों को वापस नहीं लिया जाता, ये आंदोलन खत्म नहीं होगा। छात्रों ने 29 अप्रैल से गढ़वाल विश्वविद्यालय के तीनों कैंपस श्रीनगर, पौड़ी और टिहरी में बंद का एलान किया है।
श्रीनगर में हटाए गए कर्मचारी अब उसी दरवाजे के बाहर धरने पर बैठे हैं, जिनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कल तक उनके कंधे पर थी।
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