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गोवा के समुद्री तटों पर जलवायु परिवर्तन का ख़तरा

रिपोर्ट के अनुसार गोवा के तापमान में इस सदी की शुरुआत से लेकर अब तक यानी 1901 से 2018 तक 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज़ की गई है। तापमान में वृद्धि का ज्यादातर हिस्सा 1990 से 2018 के बीच रहा है। यानी पिछले तीन दशकों में ज्यादा वृद्धि दर्ज़ की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2030 तक गोवा का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
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गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटि बोर्ड ने वर्ष 2020-2030 के लिए गोवा में जलवायु परिवर्तन पर स्टेट एक्शन प्लान जारी किया है। इस रिपोर्ट में गोवा में जलवायु परिवर्तन के ट्रेंड और ख़तरों की तरफ इशारा किया गया है। बाढ़ का विश्लेषण, तापमान में वृद्धि, भारी वर्षा में बढ़ोतरी और समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी आदि का विश्लेषण रिपोर्ट में शामिल है। रिपोर्ट में गोवा में जलवायु परिवर्तन के बारे में जो प्रभाव और ट्रेंड बताए गये हैं, वो काफी चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा ख़तरा कोल्वा से लेकर वागातोर तक, 30 किलोमीटर तक फैली कोस्टल बैल्ट पर है।

कोल्वा से लेकर वागातोर तक के समुद्री तट होंगे सबसे ज्यादा प्रभावित

गोवा एक तटीय प्रदेश है और मुख्यतः पर्यटन पर निर्भर है। गोवा के चार प्रमुख तटीय ब्लॉक हैं बारदेज़, सैलसेट, मुरगांव और तिस्वाडी। गोवा की लगभग 80% आबादी इन्हीं चार तटीय तालुका में बसती है। ये चार तालुका गोवा और यहां की आबादी के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण है। गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा ख़तरा इन्ही चार तटीय तालुका पर है। ये चार तटीय तालुका मुख्य तौर पर गोवा की आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी हैं। रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि इन चार तालुका में रहने वाले लोगों का जीवन यापन सबसे ज्यादा ख़तरे में है। इन चार तालुका में फैले 30 किमी समुद्री तट पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। कोल्वा बीच से लेकर मोरजीम बीच तक का समुद्री तट इससे बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। इसमें गोवा की मशहूर कांडोलिम, बागा, कालंगुट, अंजुना और वागातोर बीच भी शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार गोवा अपने सबसे खूबसूरत समुद्री तटों को लगभग खोने की स्थिति में है।   

भारी वर्षा और समुद्र के स्तर में वृद्धि का ख़तरा

बाढ़ संवेदनशीलता विश्लेषण से पता चला है कि गोवा के इन चार तालुका की लगभग 15% भूमि 15 मीटर की ऊंचाई से नीचे है। यानी हाइ रिस्क पर है। भारी वर्षा और समुद्र के स्तर में वृद्धि दोनों ही स्थितों में ये इन चारों तालुका की कुल 15% ज़मीन पानी में समा सकती है। अनुमान है कि समुद्र के स्तर में वृद्धि से भूमी का इरोजन होगा और समुद्री तट सिकुड़ते जाएंगे। इससे ना सिर्फ समुद्र किनारे बसी आबादी और पर्यटन इंफ्रास्ट्रक्चर पानी में समा सकता है बल्कि समुद्र के किनारे मिलने वाले खूबसूरत शंख, सिप्पी और मछलियां गायब हो सकती हैं।  

गौरतलब है कि एक तरफ जहां सामान्य वर्षा जलवायु और पर्यावरण के लिए वरदान है, वहीं भारी वर्षा विनाश का रूप धारण कर सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले सालों में प्रदेश में भारी वर्षा में बढ़ोतरी हुई है। 1901 से लेकर 2015 तक गोवा में वर्षा में 68% की वृद्धि दर्ज़ की गई है। खासतौर पर 1970 के बाद से वर्षा में गुणात्मक इजाफा हुआ है। जिसकी वजह से गोवा की जलवायु पर प्रतिकूल असर पड़ा है। 1901 से लेकर 2015 तक के आंकड़े बताते हैं कि गोवा में हल्की और मध्यम वर्षा में कमी आई है, जबकि भारी वर्षा में 100% तक की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है।

तापमान में वृद्धि

गोवा का तापमान भी लगातार बढ़ रहा है। तापमान में इस वृद्धि को रिपोर्ट में भी दर्ज़ किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार गोवा के तापमान में इस सदी की शुरुआत से लेकर अब तक यानी 1901 से 2018 तक 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज़ की गई है। तापमान में वृद्धि का ज्यादातर हिस्सा 1990 से 2018 के बीच रहा है। यानी पिछले तीन दशकों में ज्यादा वृद्धि दर्ज़ की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2030 तक गोवा का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। यानी गोवा के तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस वृद्धि में लगभग सौ साल लगे हैं। जबकि अब मात्र डेढ़ दशक में दो डिग्री सेल्सियस वृद्धि का अनुमान है। ये बताता है कि स्थिति कितनी से बिगड़ रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2040 तक गोवा में लू चलने की संभावनाएं हैं।

रिपोर्ट में जो आंकड़े दिये गये हैं वो भयानक है। गोवा के बारे में इस तरह की कल्पनाएं करने तक से रूह सिहर जाती है। दुख की बात है कि गोवा के खूबसूरत समुद्री तट गायब होने के कगार है। तापमान में वृद्धि और बाढ़ की स्थिति प्रदेश को पूरी तरह लीलने को तैयार बैठी है। लेकिन क्या सरकार इन ख़तरों को लेकर पर्याप्त तौर पर गंभीर है। जिस देश के प्रधानमंत्री क्लाइमेट चेंज को नकार कर कहते हों कि क्लाइमेट चेंज नहीं है, असल में हम बूढ़े हो रहे हैं, उस देश में ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति और भी डरावनी हो जाती है। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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