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गुजरात में कब थमेगा ​दलितों पर अत्याचार का ये अंतहीन सिलसिला?

गुजरात के बोताड़ जिले में दलित उप-सरपंच की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई है। सौराष्ट्र क्षेत्र में ही एक महीने से कम समय में दलितों की हत्या की यह तीसरी घटना है।
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गुजरात के बोताड़ जिले में बुधवार को दलित सरपंच के पति 51 वर्षीय मांजीभाई सोलंकी की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। वह खुद भी ग्राम पंचायत के सदस्य थे और उप सरपंच के रूप में कार्य करते थे। इस मामले में पुलिस ने आठ लोगों को गिरफ्तार किया है। 

प्राथमिकी में नौ आरोपियों के नाम हैं, उनमें से आठ की गिरफ्तारी हो गई है लेकिन सोलंकी के परिवार ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल से शव लेने से इनकार किया है। परिजनों का कहना है कि सरकार को पहले उनकी मांग स्वीकार करनी चाहिए। 

सोलंकी के बेटे की मांग है कि सरकार उन्हें हर समय पुलिस सुरक्षा मुहैया कराए और उनके तथा उनके एक रिश्तेदार को बंदूक रखने का लाइसेंस दे। यही नहीं वह चार अन्य मामलों के साथ अपने पिता के इस मामले को भी अहमदाबाद अदालत में भेजे जाने की मांग कर रहे हैं।

वैसे यह गुजरात में दलितों पर हो रहे अत्याचार का इकलौता उदाहरण नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सौराष्ट्र क्षेत्र में ही एक महीने से कम समय में दलितों की हत्या की यह तीसरी घटना है। इन सारे मामलों में कथित तौर पर आरोपी उच्च जातियों के हैं। 

गौरतलब है कि हत्या के अलावा दलित उत्पीड़न की खबरें गुजरात में बहुत आम हैं। इसी महीने की शुरुआत में गुजरात के बनासकांठा में एक मोबाइल फोन को लेकर शुरू हुए विवाद के बाद दलित युवक को पेड़ से बांधकर उसके साथ मारपीट की गई। 

पिछले महीने गुजरात के वडोदरा जिले के पाद्रा तालुका में स्थित महुवड गांव में एक फेसबुक पोस्ट को लेकर कथित तौर पर उच्च जाति के 200 से 300 लोगों की भीड़ के एक दलित दंपति के घर पर हमला कर दिया था। दलित युवक ने फेसबुक पोस्ट में कथित तौर पर लिखा था कि सरकार दलितों की शादी समारोह के लिए गांव के मंदिर का दलितों द्वारा इस्तेमाल करने की मंजूरी नहीं देती। 

पिछले महीने ही गुजरात के मेहसाणा जिले के एक गांव में दलित व्यक्ति के अपनी शादी में घोड़ी पर बैठने का खामियाजा पूरे समुदाय को भुगतना पड़ा था। पूरे गांव ने अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया था। 

उससे भी पहले गुजरात के पाटन जिले की चाणस्मा तालुका में एक 17 वर्षीय दलित युवक को पेड़ से बांधकर पीटने का मामला सामने आया था। 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले इस युवक को दो लोगों ने चाणस्मा के गोराड गांव में पेड़ से बांधकर उसके साथ मारपीट की थी। चाणस्मा में दर्ज एफआईआर के अनुसार मेहसाणा का रहने वाला नितिन (परिवर्तित नाम) 18 मार्च को अपनी 12वीं की बोर्ड परीक्षा देने गया था, जब यह घटना हुई थी। 

इससे पहले पिछली साल गांधीनगर के मनसा तालुका के परसा गांव में घोड़ी पर सवार दलित दूल्हे की बारात को रोक दिया गया था। 

इससे पहले गुजरात के अहमदाबाद जिले के एक पंचायत के दफ्तर में कुर्सी पर बैठने को लेकर भीड़ ने एक दलित महिला पर कथित रूप से हमला किया था। इससे पहले साबरकांठा ज़िले में मूंछ रखने पर दलित युवक की पिटाई कर दी गई थी। 

फिलहाल हम यहां पर उन घटनाओं का जिक्र कर रहे हैं जिन्हें मीडिया में रिपोर्ट कर लिया जाता है। इन घटनाओं के पैटर्न को देखने के बाद यह बात साफ दिखती है कि किस तरह दलितों को उनकी जाति की वजह से हिंसा का शिकार होना पड़ा है। 

आपको बता दें कि गुजरात के ऊना में 2016 में तीन दलित युवकों को गोरक्षकों ने इसलिए बुरी तरह पीटा था क्योंकि वे एक मरी हुई गाय की खाल उतार रहे थे। इसके बाद पूरे राज्य में दलितों ने एकजुट होकर आंदोलन छेड़ दिया था। इस दौरान संबंधित मामले में इंसाफ की मांग को लेकर इस समुदाय के लोगों ने मरे जानवरों को उठाने और उनकी खाल उतारने के अपने पुश्तैनी काम-धंधे का बहिष्कार कर दिया था। 

गुजरात में दलितों की स्थिति

दलितों पर अत्याचार के मामलों में गुजरात पांच सबसे बुरे राज्यों में से एक है। इसी साल मार्च में गुजरात विधानसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में सरकार की ओर से बताया गया है कि साल 2013 और 2017 के बीच अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराधों में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वहीं अनुसूचित जनजातियों के ख़िलाफ़ अपराधों में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

गुजरात सरकार की ओर से बताया गया है कि साल 2013 से 2017 के बीच एससी व एसटी एक्ट के तहत कुल 6,185 मामले दर्ज हुए। दी गई जानकारी के अनुसार साल 2013 में 1,147 मामले दर्ज किए गए थे जो 33 फीसदी बढ़कर साल 2017 में 1,515 हो गए।

पिछले साल मार्च महीने तक दलितों के खिलाफ अपराध के 414 मामले सामने आए जिनमें से सबसे अधिक मामले अहमदाबाद में थे। अहमदाबाद में 49 मामले दर्ज होने के बाद जूनागढ़ में 34 और भावनगर में 25 मामले दर्ज हुए हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराधों में भी तेजी आई है। साल 2013 से 2017 के बीच पांच सालों के दौरान अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध के मामलों की संख्या 55 फीसदी बढ़कर 1,310 पहुंच गई है। साल 2018 के शुरुआती तीन महीनों में भी एसटी समुदाय के खिलाफ अपराध के 89 मामले दर्ज हुए हैं। इसमें से सबसे अधिक मामले भरूच (14) में दर्ज हुए। भरूच के बाद वडोदरा में 11 व पंचमहल में 10 मामले दर्ज हुए है।

जवाबदेही किसकी? 
      
जहां तक संविधान की बात है तो उसमें दलितों का उत्पीड़न रोकने के लिए कई कठोर प्रावधान हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर नियम-कानूनों को लागू करने में कई तरह की खामियां हैं। सिर्फ गुजरात ही नहीं पूरे भारत का यही हाल है। एक तरफ जहां अत्याचार के मामले बढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ कॉनविक्शन रेट घट रहा है। 

भारत में 2005 में अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के मामलों की संख्या 26,127 थी तो वहीं 2015 में ये बढ़कर 45,003 तक पहुंच गई। वहीं दूसरी तरफ आरोप सिद्ध होने की दर (कॉनविक्शन रेट) 30 प्रतिशत से घटकर 28 प्रतिशत हो गई है। इस मामले में गुजरात का रिकॉर्ड काफी बुरा है। यहां 2015 के दौरान 949 मामलों में आरोपपत्र दाखिल हुए थे लेकिन इनमें से सिर्फ 11 मामलों में ही आरोप साबित हो पाए। 

इस पूरी प्रक्रिया में गुजरात की बीजेपी सरकार का रवैया हैरान करने वाला है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक अभी वहां 32 गांवों में दलितों की सुरक्षा के लिए पुलिस की तैनाती की गई है। अब मुख्यमंत्री विजय रुपाणी 'सामाजिक समरसता' नाम का कैंपेन चलाकर इन गांवों से पु​लिस सुरक्षा हटाने का प्रयास कर रहे हैं। 

उनका यह प्रयास सराहनीय है लेकिन सवाल यह है कि इसमें इतनी देरी क्यों की जा रही है? लंबे समय से राज्य की सत्ता पर काबिज बीजेपी सरकार आखिर क्यों लोकतांत्रिक मूल्यों को सामाजिक चेतना का हिस्सा नहीं बनाती? आखिर गुजरात में क्यों लगातार ऐसी परिस्थितियां निर्मित की जाती रही, जिनके चलते दलितों पर हाथ उठाना ‘सबसे आसान’ बना रहे? 

एक बात सभी को समझनी होगी। 21वीं सदी के भारत में यह शर्मनाक बात है कि दलित पहचान को कलंक समझा जाए और दलितों को उनकी जाति की वजह से हिंसा का शिकार होना पड़े।

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