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कांच की खिड़कियों से हर साल मरते हैं अरबों पक्षी, वैज्ञानिक इस समस्या से निजात पाने के लिए कर रहे हैं काम

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाले लोग, सरकारों और इमारतों के मालिकों को इमारतों में उन बदलावों को करने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनके ज़रिए पक्षियों को इन इमारतों में टकराने से रोका जा सके। विश्लेषकों का कहना है कि पूरी समस्या का समाधान बेहद आसान है।
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कांच की इमारतें कई प्रवासी पक्षियों के रास्ते को बाधित करते हुए, उनकी जान गंवाने की वजह बनती हैं।

वॉल स्ट्रीट के पास स्थित एक ऑफ़िस टॉवर के आसपास लगी हुईं लकड़ियों की बैंच के नीचे अपने मोबाइल का फ्लैशलाइट् जलाते हुए दिव्या अनंतराम कुछ देखने की कोशिश करती हैं। इस वक़्त न्यूयॉर्क की सड़कों पर सिर्फ़ जल्दी उठने वाले ही दिखाई दे रहे हैं। लेकिन दिव्या कहती हैं कि उन्हें अपनी साप्ताहिक खोज और राहत मिशन के लिए इतनी सुबह उठना जरूरी है।

दरअसल दिव्या कुख़्यात पक्षी हत्यारी, शीशे से सुसज्जित ऊंची इमारतों के पीड़ित पक्षियों की खोज कर रही हैँ। जब दिन की रोशनी आ जाएगी, तब सफ़ाईकर्मी फुटपाथ को साफ़ कर देंगे, और मारे गए पक्षियों के सबूत मिट जाएंगे।

अनंतराम एनवायसी आउडुबॉन की स्वयंसेवी हैं, जो एक शहरी संरक्षण समूह है. यह समूह खिड़कियों से टकराकर जान गंवाने वाले पक्षियों की निगरानी करता है। दिव्या अपने तय किए गए रास्ते पर हर एक कोना देखती हैं, ताकि एक भी ऐसा पक्षी ना छूट जाए, जिसे वो बचा सकती हों। अपने रास्ते के आखिर में दिव्या को दो ऊंची इमारतों को जोड़ने वाले, कांच के इस्तेमाल से बने ओवरपास के नीचे एक पक्षी मृत मिलता है। 

दिव्या का सोचना है कि यह "अमेरिकन वुडकॉक" है, जो एक आम प्रवासी पक्षी है, इसकी लंबी चोंच होती है। हर बसंत में वुडकॉक, अलबामा और दूसरे खाड़ी तटीय इलाकों के गर्म मौसम में ठंडे महीने बिताने के बाद न्यूयॉर्क से गुजरते हैं। पक्षी का शरीर अकड़ा हुआ है, इसका मतलब है कि इसकी मौत अभी-अभी हुई है। अनंतरामन कहती हैं, "इसकी आंखें अब भी काफ़ी साफ़ हैं- यह कुछ मिनट पहले हुई घटना ही है।" इसके बाद वे फोटो लेती हैं, और अपने अंगूठे से पक्षी की पलकें बंद कर देती हैं. फिर पक्षी के शव को वे पीछे टांगने वाले अपने गुलाबी बस्ते में रख लेती हैं।

एक अरब पक्षी और गिनती अब भी जारी

एनवायसी आउडुबॉन का अनुमान है कि हर साल 90,000 से लेकर 2,30,000 तक पक्षी न्यूयॉर्क की इमारतों से टकराते हैं। शहर की चमचमाती इमारतें, उड़ने वाले पक्षियों के लिए ख़तरनाक बाधा हैं। खासकर बसंत और प्रवास के महीनों के अंतिम दौर में यह ज़्यादा घातक साबित होती हैं।

न्यूयॉर्क, दक्षिण अमेरिका से होने वाले प्रवास के रास्ते में आता है, जहां कई सारे पक्षी अपनी सर्दियां बिताने के लिए जाते हैं। चूंकि पक्षी सितारों को देखते हुए अपना रास्ता पहचानते हैं, ऐसे में रात में जलने वाली लाइट उन्हें आकर्षित करती हैं और वे रास्ते से भटकते हैं। उनका अनुमान होता है कि वे सितारे के प्रकाश की तरफ उड़ रहे होते हैं, ऐसे में पक्षी अपना रास्ता बदलकर एक अंजान महानगर में पहुंच जाते हैं।

एनवायसी आउडुबॉन की बॉयोलॉजिस्ट कैटलिन पार्किंस कहती हैं, "पक्षी किसी पेड़ की छाया नहीं देखते, उनके लिए यह पेड़ ही होता है। वे ऊपर उड़ते हैं, वे अपनी उड़ान को बहुत तेज कर सकते हैं और तुरंत जान भी गंवा सकते हैं।"

पक्षियों के टकराने पर ज़्यादातर शोध अमेरिका में ही हुआ है। 1990 के दशक में मशहूर पक्षी विज्ञानी डेनियल क्लेम ने अनुमान लगाया कि अमेरिका में हर साल यह इमारतें एक अरब पक्षियों की मौत के लिए जिम्मेदार होती हैं। लेकिन कांच की खिड़कियां पूरी दुनिया में पक्षियों के लिए मौत का जाल साबित हो रही हैं।

डेनियल क्लेम कहते हैं, "जहां भी पक्षी और कांच एकसाथ पाए जाते हैं, वहां कांच, पक्षियों के लिए ख़तरा होते हैँ। उन्हें यह ख़तरनाक, जानलेवा चीज समझ नहीं आती।" डेनियल कहते हैं कि पक्षियों को स्काईस्क्रैपर्स (गगनचुंबी इमारतें) के बज़ाए निचली और मध्यम ऊंचाई की इमारतों से ज़्यादा ख़तरा है।

क्लेम अब पेंसिलवेनिया के मुह्लेंबर्ग कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं। उनका मानना है कि खिड़कियों से पक्षियों का टकराव पक्षियों के संरक्षण के लिए बुनियादी मुद्दा है। वह कहते हैं, "मैं इमारतों से पक्षियों के टकराने को उनके आवास के खात्मे के बाद दूसरा सबसे बड़ा ख़तरा मानता हूं। सबसे ज़्यादा भयावह यह है कि इन खिड़कियों से टकराने के बाद हर तरह के पक्षियों को जान गंवानी पड़ती है। ये पक्षियों की आबादी में सबसे ज़्यादा स्वस्थ्य पक्षियों की जान लेते हैं। दरअसल, स्वस्थ्य प्रजनन करने वाले पक्षियों को छोड़िए, हम किसी भी पक्षी की जान जाने का खामियाजा नहीं उठा सकते।

एक अंतरराष्ट्रीय समस्या

हाल के सालों में संरक्षण समूहों और वैज्ञानिकों ने इस मुद्दे को उठाया है। चीन में खिड़कियों से पक्षियों के टकराने वाले मुद्दे की निगरानी कर रहे दो समूहों में से एक का नेतृत्व बिनबिन ली करती हैं। वे ड्यूक कुंशन यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान की सहायक प्रोफ़ेसर हैं और उन्होंने अमेरिका में स्थित ड्यूक से पीएचडी की है। वहां उनकी मुलाकात, यूनिवर्सिटी के पक्षी टकराव प्रोजेक्ट में मुख्य शोधार्थी से हुई।

वह कहती हैं, "पहले मुझे लगा कि यह ड्यूक या सिर्फ़ इस राज्य की समस्या बस है- मैं इसके चीन में होने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।" लेकिन जब वे वापस लौटीं, तो उन्हें कैंपस में एक महीने के भीतर तीन मृत पक्षियों की जानकारी मिली।  

अब कुछ छात्रों के साथ मिलकर सुझोऊ में स्थित कैंपस के भीतर टकराकर जान गंवाने वाले पक्षियों की गिनती करती हैं। उन्होंने बताया कि कई पीड़ित कांच के बरामदे के नीचे मिलते हैं, जैसा अनंतरामन ने न्यूयॉर्क में वुडकॉक के मामले में पाया था।

ली ने इस समस्या की साफ़ तस्वीर देखने के लिए एक राष्ट्रीय सर्वे शुरू किया। चीन के भीतर से तीन बड़े प्रवासी रास्ते गुजरते हैं। लेकिन इन रास्तों पर जान गंवाने वाले पक्षियों के आंकड़े अब भी सीमित हैं। "हमने पाया कि पक्षियों का टकराना अब भी चीन में बहुत पहचाना गया मामला नहीं है, यहां तक कि अकादमिक जगत में भी इसके बारे में बहुत जानकारी नहीं है।"

"सिर्फ कांच बदलिए और लाइट बंद कर दीजिए"

कोस्टारिका में रोज़ मारिए मेनाचो को अपने प्रोफ़ेसरों को राजी करना पड़ा था कि वे एक पीएचडी छात्रा के तौर पर पक्षियों के टकराने की घटनाओं की जांच कर सकें। "उन्हें इस विषय के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, उन्हें नहीं पता था कि यह एक वास्तविक समस्या भी है। यहां तक कि मुझे भी यह बताते हुए थोड़ी शर्म आती थी कि मैं इस समस्या का अध्ययन कर रही हूं। मुझे थोड़ी शर्म इसलिए भी आ रही थी क्योंकि मुझे लगता था कि यह बड़ी समस्या नहीं है। 

कटिबंधों में इस समस्या के स्तर को समझने के लिए अब वे 500 स्वयंसेवियों के साथ काम करती हैं। कुछ लोग इन पक्षियों के शवों को फ्रीजर में संरक्षित कर लेते हैं, तो कुछ दूसरे लोग उन्हें रिपोर्ट्स और फोटो भेजते हैं। वे कहती हैं, "सिर्फ़ प्रवासी पक्षी ही इमारतों से नहीं टकराते हैं।" उनके स्वयंसेवियों ने रंग-बिरंगे क्वेटज़ाल्स और लंबी चोंच वाले टूकेनों को भी मृत पाया है, यह दोनों ही स्थानीय पक्षियों की प्रजातियां हैं।

बॉयोलॉजिस्ट पार्किंस कहती हैं, "पहले से ही आवास के ह्रास, मौसम परिवर्तन, कीटनाशकों और अन्य समस्याओं का सामना करने रहे पक्षियों में टकराने के बाद कई जानें चली जाती हैं। जबकि इसका निदान बेहद आसान है- सिर्फ़ कांच को बदल दीजिए और लाइट को बंद कर दीजिए।"

पार्किंस और उनकी टीम ने जो आंकड़े इकट्ठा किए हैं, उनके ज़रिए वे कांच की इमारतों के मालिकों को समझाने में लगी हैं। आमतौर पर उन्हें किसी तरह के कांच को बदलने की जरूरत नहीं होती। एक विशेष परत, कांच को कम परावर्तक बना सकती है, इससे इमारत के भीतर के माहौल को ठंडा और गर्म करने में लगने वाली ऊर्जा भी बचती है। खिड़कियों पर निशानदेही करने से पक्षी ढांचे को देख सकते हैं। उदाहरण के लिए, जेविटास कंवेंशन सेंटर में जब पक्षी के हिसाब का बदलाव किया, तो स्वयंसेवियों ने पाया कि इमारत के आसपास जान गंवाने वाले पक्षियों की संख्या में 90 फ़ीसदी की तक कमी आ गई है।

जनवरी में न्यूयॉर्क शहर ने एक विधेयक पारित किया, जिसके तहत प्रवास के मौसम में सार्वजनिक इमारतों में लाइट को रात के वक़्त बंद रखा जाना है। पिछले साल के बाद, अब आगे बनने वाली नई इमारतों के लिए आर्किटेक्ट को पक्षी सहायक बदलाव इमारतों में करने होंगे, इनमें कांच के ऊपर अल्ट्रावॉयलेट लेप भी शामिल है, जो पक्षियों को दिखता है, लेकिन इंसानों को नहीं।

नए नियम अच्छी शुरुआत हैं

मैनहैट्टन के दक्षिणी इलाके में स्थित एक बेहद बड़े कार्यालय और शॉपिंग सेंटर- ब्रुकफील्ड प्लेस के आसपास की सड़क के किनारे रॉब कूवर एक छोटे पक्षी की जांच कर रहे हैं। अब भी दिन की रोशनी आना बाकी है, लेकिन वे आधे घंटे पहले से ही मृत पक्षियों की जांच करने में जुट चुके हैं।

वे सावधानी से कुर्सियों के एक जमावड़े के पीछे देखते हैं। इन कुर्सियों का थोड़ी देर बाद एक कॉफ़ी की दुकान में इस्तेमाल किया जाएगा। रॉब कूवर दो बार झुककर मृत पक्षी की तस्वीर ले चुके हैं। अब उन्होंने हाथों में रबर के दस्ताने पहन लिए हैं और अपने बस्ते से प्लास्टिक का थैला निकाल लिया है, जिसमें पक्षी के इस मृत शरीर को वे संरक्षित करने जा रहे हैं। 

कूवर ने एक बार, सिर्फ़ एक सुबह ही 27 मृत पक्षी खोजे थे। उन्हीं के एक साथी स्वयंसेवी ने जब पिछले सितंबर में, सिर्फ़ एक घंटे में वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के आसपास 226 मृत पक्षी खोजे थे, तो यह अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बनी थीं।

वह कहते हैं, "इन पक्षियों के शव निराश करने वाले हैं।" कई बार कूवर को घायल पक्षी मिल जाता है, तो वे उसे पक्षी अभ्यारण्य लेकर चले जाते हैं। जबकि शवों को वे फ्रीजर में तब तक के लिए रख देते हैं, जब तक उन्हें इन शवों को संरक्षण समूह के मुख्यालय ले जाने का वक़्त नहीं मिलता। मुख्यालय में इन शवों को इकट्ठा किया जाता है, और कुछ शवों को म्यूज़ियमों को सौंप दिया जाता है। वह आगे कहते हैं, "महामारी के पहले मैं अपने काम के बाद जाता था और उनके शवों को ऑफ़िस के फ्रीज़र में रख देता था, किसी ने इसपर कभी गौर नहीं किया।"

अमेरिका और कनाडा में स्वयंसेवी कई समुदायों के माध्यम से सक्रिय हैं। स्थानीय सरकारों द्वारा इमारतों से पक्षियों को बचाने के लिए बनाए जाने वाले कानूनों की संख्या भी बढ़ रही है। गैर लाभकारी संगठन "अमेरिकन बर्ड कंजर्वेंसी" के मुताबिक़ न्यूयॉर्क का कानून, इस तरह के अधिनियमों में सबसे प्रभावी संस्करणों में से एक है। पक्षियों के टकराव का आधा शताब्दी तक अध्ययन करने के बाद अब डेनियल क्लेम खुश हैं। आखिरकार उन्हें वह जागरुकता बढ़ती हुई नज़र आ रही है, जिसकी वे उम्मीद कर रहे थे।

वह कहते हैं, "मौसम परिवर्तन भी एक बहुत गंभीर मुद्दा है- कोई भी इससे भटकाव नहीं चाहता। लेकिन यह बहुत जटिल है और हमें लोगों को ज़िम्मेदारी से काम करने के लिए तैयार करने में कुछ वक़्त लगेगा।" वह आगे कहते हैं, "लेकिन पक्षियों का टकराना ऐसी चीज है, जिसका हल हम कल ही कर सकते हैं। यह बहुत जटिल नहीं है। हमें बस इच्छाशक्ति की जरूरत है।"

संपादन: रूबी रसेल

Courtesy : DW

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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