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जैव-विविधता समृद्ध और हिमस्खलन के लिहाज़ से संवेदनशील क्षेत्र में बन रहे हेलीपैड पर उठते सवाल

“हमारा पूरा गांव इस हेलीपैड का विरोध कर रहा है। यह जगह हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, थार, काला भालू, हिमालयी लोमड़ी जैसे वन्य जीवों का निवास स्थान है। हिमालयी पक्षी मोनाल का प्रजनन क्षेत्र भी है। मोनाल पक्षी यहां बड़ी संख्या में रहते हैं। इसके अलावा ब्रह्मकमल, ब्लू पॉपी, वज्रदंती समेत कई दुर्लभ वनस्पतियां यहां पायी जाती हैं”।
Hemkund yatra
हेमकुंड यात्रा मार्ग पर बनाए जा रहे हेलीपैड का पर्यावरण कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं

चमोली में हेमकुंड साहिब के नज़दीक नंदा देवी नेशनल पार्क से लगे संरक्षित वन क्षेत्र में रेस्क्यू हेलीपैड के निर्माण से स्थानीय लोग नाराज़ है। एक जुलाई को जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नाम का ज्ञापन सौंपा। जिसमें कहा गया कि नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के उच्च हिमालयी क्षेत्र में हेलीपैड का निर्माण पर्यावरणीय मानकों के खिलाफ़ है। ग्रामीणों की नाराजगी है कि बेहद संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बन रहा हेलीपैड यहां की जैव-विविधता को प्रभावित करेगा।

चमोली में 71 जगहें हेलीपैड के तौर पर चिन्हित हैं। यहां हेलीपैड पहले से मौजूद हैं या हेलिकॉप्टर उतारे जा सकते हैं। जोशीमठ के पुलना-भ्यूंडार गांव के संरक्षित वन क्षेत्र में 220 लाख की लागत से 1800 वर्ग मीटर क्षेत्र में हेलीपैड निर्माण किया जा रहा है। यहां से करीब 5 किलोमीटर दूर घांघरिया क्षेत्र में हवाई सेवा पहले से उपलब्ध है। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती कहते हैं कि आपात स्थिति में इस्तेमाल के लिए घांघरिया हेलीपैड का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे में भी वर्षों पहले हेलीपैड बनाया गया था। जो अब भी मौजूद है।

हेलीपैड के विरोध में स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन

इकोसेंसेटिव ज़ोन में हेलीपैड!

हेलीपैड के लिए निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। अतुल सती बताते हैं, “मैंने फेसबुक-ट्विटर इस हेलीपैड को लेकर विरोधस्वरूप पोस्ट डाली और वन विभाग को भी शेयर किया। जिसके बाद वन विभाग ने वहां काम कर रहे 40-50 मज़दूरों को भगा दिया। इको-सेंसेटिव ज़ोन में रात में रुकने या आग जलाने की अनुमति नहीं है। वहां कार्य कर रहे मज़दूरों को वहां रोका गया था और आग जलाई जा रही थी। मेरी पोस्ट का संज्ञान लेते हुए वन विभाग ने वहां कार्य रुकवा दिया। लेकिन अगले दिन राज्य के मुख्य सचिव एसएस संधु का दौरा हुआ। जिसके बाद हेलीपैड का निर्माण कार्य फिर शुरू हो गया।"

3 जून 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव विहार समेत सभी संरक्षित वन के कम से कम एक किलोमीटर के दायरे को इको सेंसेटिव ज़ोन के तौर पर चिन्हित किया जाना चाहिए। जहां किसी भी तरह के स्थायी निर्माण को अनुमति नहीं दी जा सकती।

वन्यजीवों के हैबिटेट में हेलिकॉप्टर!

हेलीपैड निर्माण के लिए क्षेत्र के संरक्षण के लिए गठित इको डेवलपमेंट कमेटी और वन पंचायत से भी नियम के मुताबिक सलाह या अनापत्ति नहीं ली गई। पुलना-भ्यूंडार गांव की इको डेवलपमेंट कमेटी के अध्यक्ष चंद्रशेखर चौहान कहते हैं, “हमारा पूरा गांव इस हेलीपैड का विरोध कर रहा है। यह जगह हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, थार, काला भालू, हिमालयी लोमड़ी जैसे वन्य जीवों का निवास स्थान हैं। हिमालयी पक्षी मोनाल का प्रजनन क्षेत्र भी है। मोनाल पक्षी यहां बड़ी संख्या में रहते हैं। इसके अलावा ब्रह्मकमल, ब्लू पॉपी, वज्रदंती समेत कई दुर्लभ वनस्पतियां यहां पायी जाती हैं।"

समुद्रतल से तकरीबन 3 हज़ार मीटर ऊंचाई पर बसी इस जगह पर आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर से जून तक बर्फ़ रहती है। चंद्रशेखर कहते हैं कि ये हेलीपैड अमूमन जून, अगस्त और सितंबर महीने में ही काम करेगा। सर्दियों में पूरा क्षेत्र बर्फ़ से ढका रहता है। जून तक ये बर्फ़ पिघलती है। फिर बारिश शुरू हो जाती है। चौहान आगे कहते हैं, “चारधाम यात्रा के दौरान भी हमने देखा कि हेलिकॉप्टर गांव से 250-300 मीटर की ऊंचाई तक ही उड़ाए जा रहे थे। जबकि नियम 600 मीटर से ऊपर है। हेलीकॉप्टर से होने वाले वाइब्रेशन और शोर का असर वन्यजीवों पर पड़ता है।" 

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के उप वन संरक्षक नंदा वल्लभ शर्मा बताते हैं “हेलीपैड के लिए 1800 वर्ग मीटर ज़मीन वन विभाग ने हस्तांतरित की है। 2013 की आपदा को देखते हुए वर्ष 2016 में ही यहां इमरजेंसी की स्थिति में हेलीपैड बनाने का कार्य प्रस्तावित था। हेमकुंड की खड़ी चढ़ाई है। यात्रा के दौरान यहां चट्टान से यात्रियों के गिरने की घटनाएं होती हैं। ऐसे मुश्किल हालात में हेलीपैड इस्तेमाल होगा”।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में निर्माण कार्य न कराए जाने की सलाह दी है

हेमकुंड साहिब यात्रा मार्ग पर हिमस्खलन का ख़तरा

वहीं वैज्ञानिक आगाह करते हैं कि जैव-विविधता के लिहाज से बेहद समृद्ध और संकटग्रस्त प्राणियों का ये हैबिटेट हिमस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। पिछले वर्ष आई चमोली आपदा के बाद देहरादून में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने अटालकोटी से हेमकुंड साहिब मार्ग का वैज्ञानिक अध्ययन किया। ये अध्ययन रिपोर्ट इसी वर्ष अप्रैल में प्रकाशित हुई है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन और मानव जनित वजहों से उच्च हिमालयी क्षेत्र में हिमस्खलन जैसी आपदाएं बढ़ी हैं। चमोली में हर साल ही इस तरह की आपदाएं आती हैं। पिछले वर्ष 23 अप्रैल 2021 को गिर्थी गंगा घाटी में हिमस्खलन से 16 मौतें हुई थी जबकि 384 लोगों को रेस्क्यू किया गया था। फिर 2 अक्टूबर 2021 को माउंट त्रिशूल पर हुए हिमस्खलन में 7 लोग मारे गए थे। इसी वर्ष 18 अप्रैल को अटालकोडी में हुए हिमस्खलन में घांघरिया (समुद्र तल से 3120 मीटर ऊंचाई) से हेमकुंड साहिब (4200 मीटर) के बीच ट्रेक रूट नष्ट हो गया।

रिपोर्ट में लिखा गया है कि इस क्षेत्र में तापमान बढ़ने, हवा के वेग और पहाड़ की सीधी ढलान पर हिमस्खलन की आशंकाएं अधिक हैं। आपदाएं कम करने के लिए इस क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण को नियंत्रित किया जाना बहुत जरूरी है, जिससे पहाड़ियों की ढलान के कोण (angle) में बदलाव आए। 

वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ कलाचंद सैन और वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता की इस रिपोर्ट में सलाह ली गई है कि भौगोलिक तौर पर बेहद संवेदनशील क्षेत्र में हेमकुंड तक जाने के लिए रोपवे सबसे सुरक्षित और बेहतर उपाय है। 

हेमकुंड साहिब यात्रा मार्ग पर रोपवे भी प्रस्तावित है। जिस पर जल्द कार्य शुरू होना है। पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती कहते हैं, “जब यहां रोपवे बनना ही है और नजदीक में हेलीपैड भी बना हुआ है तो हवाई सेवा की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। जिस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने पर्यटक दुनियाभर से यहां आते हैं, उसके सौंदर्य-शांति को नष्ट करना राज्य के पर्यटन के लिए भी घातक होगा।"

चमोली ज़िलाधिकारी हिमांशु खुराना ने शनिवार को हेलीपैड निर्माण कार्य का निरीक्षण किया और तेजी लाने के निर्देश दिए

पर्यटन बढ़ाने के लिए बढ़ा रहे हेली सेवाएं

एयर कनेक्टिविटी और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार राज्यभर में हेलीपोर्ट्स और हेलीपैड बनाने के काम में तेजी ला रही है। इसके लिए राज्य के सभी 13 जनपदों में ज़मीन चिन्हित की जा रही है। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को हिमालय दर्शन कराया जा सके।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!

वहीं, चमोली के ज़िलाधिकारी हिमांशु खुराना हेलीपैड के निर्माण से नाराज़ लोगों से तो नहीं मिले, लेकिन शनिवार को उन्होंने निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया और कार्य जल्द से जल्द पूरा करने के लिए मज़दूरों की संख्या बढ़ाने के निर्देश दिए।

आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनने के लिए उत्तराखंड विकास के उन्हीं मॉडल को अपना रहा है जो देश के ज्यादातर हिस्सों में है। लेकिन संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बसे, लगातार आपदाओं से घिरे और जलवायु परिवर्तन की मुश्किलें झेल रहे उत्तराखंड के लिए पर्यावरण को दरकिनार कर निकाली गई विकास की राह अधिक घातक हो सकती है।

(देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह)

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