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Forest Right Act: उत्तराखंड के हरिद्वार-नैनीताल जिले के तीन-तीन वन टोंगिया गांव बने राजस्व गांव

उत्तराखंड के हरिद्वार और नैनीताल जिले के तीन-तीन वन टोंगिया गावों को राजस्व ग्राम का दर्जा मिल ही गया। इसी हफ्ते राज्यपाल के हस्ताक्षर के साथ ही उत्तराखंड के छह टोंगिया गांव, करीब सात दशक बाद राजस्व ग्राम घोषित हुए हैं।
Forest Right Act
फ़ोटो साभार : डाउन टू अर्थ

आखिरकार, उत्तराखंड के हरिद्वार और नैनीताल जिले के तीन-तीन वन टोंगिया गावों को राजस्व ग्राम का दर्जा मिल ही गया। इसी हफ्ते राज्यपाल के हस्ताक्षर के साथ ही उत्तराखंड के छह टोंगिया गांव, करीब सात दशक बाद राजस्व ग्राम घोषित हुए हैं। हरिद्वार की बात करें तो जिले के पुरुषोत्तम नगर, कमला नगर और हरिपुर टोंगिया को राजस्व का दर्जा मिला है जबकि नैनीताल जिले के लेटी, चोपड़ा और रामपुर तीन टोंगिया गांवों को राजस्व गांव का दर्जा मिला है। इससे अब इन गांवों के दिन बहुरने की उम्मीद जगी है। अभी तक भूमि के मालिकाना हक सहित मूलभूत सुविधाओं से वंचित इन गांवों के हजारों परिवारों को अब, अन्य राजस्व गावों की तरह सड़क बिजली पानी की मूलभूत सुविधाएं मिलने का काम हो सकेगा।

आजादी के सात दशक बाद भी देवभूमि उत्तराखंड के इन टोंगिया वन गावों में ग्रामीण सड़क, बिजली-पानी की मूलभूत और शिक्षा स्वास्थ्य और यातायात जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम चले आ रहे हैं, वंचित हैं। यहां तक कि राजस्व ग्राम नहीं होने से यहां लोगों को वोट डालने तक के अधिकार नहीं थे। 
 
ब्रिटिशकाल में वन विभाग की ओर से पेड़ों के प्लांटेशन के लिए लोगों को लाकर, वन क्षेत्रों में बसाया गया था। यहां ये लोग साल दर साल एक प्लांटेशन से दूसरे प्लांटेशन तक जंगल खड़ा करते रहे। लेकिन वन भूमि पर बसी इनकी बस्तियों (टोंगिया गावों) को कभी राजस्व गांव का दर्जा नहीं दिया गया।

इसके चलते इन गांवों के लोग स्कूल, अस्पताल, सड़क, बिजली जैसी मूलभूत जरूरतों के बिना जिंदगी गुजार रहे थे। साथ ही इनकी पंचायत चुनाव में भी भागीदारी करने पर रोक थी। न इनका परिवार रजिस्टर होता था और न ही इनके अन्य प्रमाणपत्र बन पाते थे। वन भूमि पर काबिज होने के कारण यह लोग कई सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं ले पाते थे। विकास की दौड़ में पिछड़ रहे इन टोंगिया गांवों को मुख्यधारा में लाने के लिए राजस्व गांव का दर्जा दिए जाने की मांग लंबे समय से चल रही थी।

2006 में ऐतिहासिक वनाधिकार कानून आने के बाद ही इनके सपनों को मूर्त रूप मिलना शुरू हो सका है। अब राजस्व का दर्जा मिलने से पीढ़ियों से इन टोंगिया गावों में रहते आ रहे हजारों परिवारों को अपने अच्छे भविष्य की आस जगी है। 

यूपी की तर्ज पर राजस्व दर्जे की मांग 

खास है कि हरिद्वार से लगे सहारनपुर जिले में 2018 में ही तीन कालूवाला, सोढ़ीनगर और भगवतपुर टोंगिया गांव को राजस्व गांव का दर्जा मिल गया था। इसी आधार पर उत्तराखंड के टोंगिया काश्तकार भी राजस्व दर्जे की मांग कर रहे थे। लोगों का संघर्ष रंग लाया और इसी साल अगस्त माह में हरिद्वार जिला प्रशासन की कवायद परवान चढ़ी तो वन क्षेत्र में बसी इन टोंगिया बस्तियों को राजस्व ग्राम का दर्जा हासिल होने का रास्ता खुला। इन टोंगिया वन ग्रामों में पुरुषोत्तम नगर, कमला नगर, हरिपुर टोंगिया शामिल है। 

इसी अगस्त माह में डीएम एवं जिला स्तरीय वनाधिकार समिति के अध्यक्ष धीरज सिंह गर्ब्याल की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में इन टोंगिया वन ग्रामों- पुरुषोत्तम नगर, कमला नगर, हरिपुर टोंगिया को राजस्व ग्राम की श्रेणी में शामिल किए जाने के सम्बन्ध में चर्चा हुई और समिति ने उपखण्ड स्तरीय वनाधिकार समिति द्वारा टोंगिया वन ग्रामों को राजस्व ग्राम बनाए जाने के सम्बन्ध में उपलब्ध कराए गए प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया और राजस्व ग्राम घोषित करने के संबंध में शासन को प्रस्ताव अग्रेसित किया गया।

जिलाधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल के अनुसार, इन टोंगिया वन ग्रामों में पुरुषोत्तम नगर, जिसकी कुल आवंटित भूमि 45.45 हेक्टेयर, कुल मूल परिवारों की संख्या 78 तथा ग्राम परिवार रजिस्टर के अनुसार जनसंख्या 1137 है। कमला नगर, जिसकी कुल आवंटित भूमि 15.65 हेक्टेयर, कुल परिवारों की संख्या 30 व जनसंख्या 396 है। इसी प्रकार हरिपुर टोंगिया, जिसकी कुल आवंटित भूमि 74.87 हेक्टेयर, कुल मूल परिवारों की संख्या 255 तथा कुल जनसंख्या 2300 है, को शासन द्वारा राजस्व दर्जा प्राप्त होने पर सभी प्रकार की सुविधायें प्राप्त होनी प्रारम्भ हो जाएंगी। इससे इन ग्रामों की 3833 की जनसंख्या लाभान्वित होगी।

नैनीताल के हजारों परिवारों की भी दिवाली

दूसरी ओर, इसी हफ्ते उत्तराखंड के राज्यपाल ने नैनीताल की रामनगर तहसील के लेटी, चोपड़ा, रामपुर गांवों को राजस्व गांव बनाने को स्वीकृति प्रदान कर दी है तो पूरे क्षेत्र में खुशी का आलम है। लोगों का कहना है कि 76 वर्ष से इंतजार कर रहे टोंगिया ग्रामवासियों के लिए यह राहत वाली खबर है और उनके संघर्षों की जीत है। उत्तराखंड में अभी भी बड़ी संख्या वन भूमि पर बसे गांव ऐसे हैं जो अभी भी राजस्व ग्राम बनाए जाने की बाट जोह रहे हैं। 

उत्तराखंड के वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष तरुण जोशी बताते हैं कि यूपी की तर्ज पर हरिद्वार नैनीताल के 6 टोंगिया गावों को राजस्व का दर्जा मिला है जो इन गावों में रहे हजारों परिवारों के लिए बहुत खुशी की बात है। लेकिन उत्तराखंड में सैंकड़ों वन गांव है जिन्हें भी वनाधिकार कानून FRA के तहत राजस्व का दर्जा दिया जाना है। अभी टोंगिया गावों का हुआ है तो उम्मीद है जल्द ही सभी वन बस्तियों को राजस्व दर्जा मिल सकेगा। 

लंबे संघर्ष के बाद मिला हक: अशोक चौधरी 

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी कहते हैं कि यह लोगों के लंबे संघर्ष की जीत है। यूनियन की ओर से भी अन्य साथी- संगठनों के साथ मिलकर, अधिकारों के लिए निरंतर दबाव बनाया जाता रहा है। नतीजा सामने है। संघर्ष रंग लाया और दशकों से वंचित लोगों को उनका हक मिलने का काम हुआ है। लोगों की जिंदगी में आजादी और विकास की नई रोशनी आईं है। उम्मीद है कि बाकी के टोंगिया और वन गावों को भी जल्द राजस्व का दर्जा और लोगों के अधिकारों को मान्यता मिलने का काम होगा और दशकों से अलग थलग वनों में जीवन बसर करते आ रहे इन वंचित दलित-आदिवासी समुदायों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने का काम हो सकेगा।

जानिए, क्या हैं टोंगिया गांव

टोंगिया उन श्रमिकों के गांव हैं जो 1930 में वनों में पौधरोपण के लिए हिमालयी क्षेत्र में लाए गए थे। आजादी से पहले इन श्रमिकों को वनों में स्थित गांवों को कई तरह की सुविधाएं भी हासिल थीं। 1980 के आसपास वन संरक्षण अधिनियम बनने के बाद इनके अधिकार खत्म हो गए और ये गांव भी संरक्षित वनों में घिर कर रह गए। 2006 में वनाधिकार  कानून आने के बाद, इन टोंगिया गांवों को राजस्व ग्राम बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई और इन्हें (टोंगिया काश्तकार परिवारों को) अपने अच्छे भविष्य की आस जगी है।

पीढ़ियों से राज्य के वन क्षेत्रों के अंदर व आसपास वन टोंगिया गांवों में रह रहे ये हजारों परिवार, आजादी के अमृतकाल में भी बिजली-पानी सड़क और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। गांव और खेती की जमीनें वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में होने के कारण यहां विधायक निधि, जिला पंचायत निधि या फिर किसी अन्य सरकारी योजना से सड़कें नहीं बनाई जा सकती हैं। यही कारण है कि सैकड़ों साल गुजरने के बाद इन गावों में पक्की सड़क तक नहीं है।

 साभार : सबरंग 

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