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संघर्ष रंग लाया: उत्तराखंड के एक दर्जन वन टोंगिया गांव बनेंगे राजस्व ग्राम, प्रक्रिया शुरू

आजादी के सात दशक बाद भी देवभूमि उत्तराखंड के टोंगिया वन गांव में ग्रामीण सड़क, बिजली-पानी की मूलभूत और शिक्षा स्वास्थ्य और यातायात जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
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फाइल फ़ोटो।

उत्तराखंड से अच्छी खबर है कि बालकुआंरी, चांडी, हरिपुर और पुरुषोत्तम नगर सहित उत्तराखंड के एक दर्जन टोंगिया वन गांवों को जल्द ही राजस्व ग्राम का दर्जा मिलने जा रहा है। वन अधिकार अधिनियम- 2006 के प्रावधानों के तहत, इन टोंगिया गांवों को राजस्व ग्राम बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। शासन ने राजस्व विभाग को नोडल विभाग नामित करते हुए हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल जिलों के कलेक्टरों को एक समय सीमा के भीतर प्रस्ताव तैयार कर, कार्यवाही के निर्देश दिए हैं। इससे प्रदेश के हजारों टोंगिया परिवारों को भी राजस्व ग्राम की तरह नागरिक सुविधाएं मुहैया हो सकेंगी।

आजादी के सात दशक बाद भी देवभूमि उत्तराखंड के टोंगिया वन गांव में ग्रामीण सड़क, बिजली-पानी की मूलभूत और शिक्षा स्वास्थ्य और यातायात जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। यहां तक कि राजस्व ग्राम की सूची में नहीं होने के चलते यहां के लोगों को आज तक वोट डालने तक का अधिकार नहीं मिला है।

खैर, देर आए, दुरस्त आए की तर्ज पर उत्तराखंड शासन ने राज्य के एक दर्जन टोंगिया वन गांवों को राजस्व ग्राम बनाने की तैयारी शुरू कर दी है और राजस्व विभाग को प्रस्ताव बनाने के लिए प्रशासनिक विभाग नामित कर दिया गया है। इससे पीढ़ियों से इन टोंगिया वन गावों में रहते आ रहे हजारों परिवारों को अच्छे भविष्य की आस जगी है। टोंगिया उन श्रमिकों के गांव हैं जो 1930 के दशक में वनों में पौधरोपण के लिए हिमालयी क्षेत्र में लाए गए थे। राज्य के वन क्षेत्रों के आसपास पीढ़ियों से हजारों परिवार, टोंगिया वन गांवों में निवास करते हैं लेकिन आजादी के अमृतकाल में भी बिजली, पानी, सड़क और शिक्षा- स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। गांव और खेती की जमीनें वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में होने के कारण यहां विधायक निधि, जिला पंचायत निधि या फिर किसी अन्य सरकारी योजना से सड़कें नहीं बनाई जा सकती हैं। यही कारण है कि सैकड़ों साल गुजरने के बाद गांव में एक भी पक्की सड़क नहीं है।

मुख्य सचिव डॉ एसएस संधु ने पिछले दिनों 6 जून को इस बाबत बैठक ली थी। उन्होंने उत्तरप्रदेश में अपनाई गई प्रक्रिया के तहत प्रस्ताव बनाने के निर्देश दिए थे। खास है कि उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर टोंगिया गांवों को राजस्व का दर्जा देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम किया गया है। इसी सब से शुक्रवार को प्रदेश के राजस्व सचिव सचिन कुर्वे ने मुख्य सचिव की बैठक में लिए गए निर्णयों का कार्यवृत्त जारी किया है। जिसके अनुसार देहरादून, नैनीताल और हरिद्वार के जिलाधिकारियों को प्रस्ताव बनाने के निर्देश दिए गए हैं। इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए ग्रामस्तरीय, खंडस्तरीय और जिलास्तरीय समितियों का गठन होगा। तीन से चार महीने के भीतर शासन को प्रस्ताव तैयार कर भेजे जाएंगे। इन प्रस्ताव पर मंथन करने के बाद शासन इन्हें केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजेगा।

प्रमुख सचिव, वन आरके सुधांशु के भी अनुसार, वन विभाग की ओर से टोंगिया वन गांवों के संबंध में सभी जानकारियां व जरूरी सूचनाएं जिलाधिकारियों को दे दी गई हैं। राजस्व विभाग को प्रशासनिक विभाग बनाया गया है। अब उसके स्तर पर प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।

खास है कि राज्य के वन क्षेत्रों के आसपास पीढ़ियों से हजारों परिवार वन टोंगिया गांवों में निवास करते हैं। वन संरक्षण अधिनियम की वजह से इन गांवों में बुनियादी सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं। बिजली, पानी, शिक्षा, सड़क आदि की सुविधा के लिए टोंगिया गांवों में निवासरत लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दशकों से वे राजस्व गांवों का दर्जा मांग रहे हैं।

इन गावों को मिलेगा राजस्व का दर्जा

स्थानीय प्रशासन और मीडिया के अनुसार, राजस्व ग्राम के मानक पूरा करने वाले टोंगिया गांव में देहरादून जिले के चार गांव सत्ती वाला, दलीप नगर, बालकुंवारी व चांडी है तो हरिद्वार के हरिपुर, पुरुषोत्तमनगर, कमलानगर, रसूलपुर और टीरा टोंगिया पांच वन टोंगिया गांव शामिल हैं। नैनीताल जिले के लेटी, चोपड़ा व रामपुर तीन वन टोंगिया गांव भी मानक पर खरे पाए गए हैं। जबकि बग्गा-54 टोंगिया ग्राम मानकों को पूरा न करने के कारण उपयुक्त नहीं पाया गया है। 

राजाजी राष्ट्रीय पार्क के अंदर स्थित हजारा टोंगिया को पहले किया जाएगा विस्थापित

हरिद्वार डीएम धीराज सिंह गर्ब्याल के अनुसार, हरिद्वार जिले में 6 टोंगिया गांव है जिनमें से हरिपुर, पुरुषोत्तम नगर और कमला नगर हरिद्वार वन प्रभाग के तहत आते हैं तथा टीरा टोंगिया, हजारा टोंगिया और रसूलपुर वन टोंगिया राजाजी राष्ट्रीय पार्क के तहत आते हैं। इनमें टीरा और रसूलपुर टोंगिया पार्क के बाहर स्थित है तथा हजारा टोंगिया गांव पार्क के अंदर आता है। फिलहाल इन पांचों टोंगिया को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया जाना है। इसके लिए ग्राम स्तरीय वनाधिकार समिति को 15 दिन में प्रस्ताव देने के लिए कहा गया है। बाकी हजारा वन टोंगिया गांव राजाजी राष्ट्रीय पार्क के तहत आता हैं जिसको पार्क से बाहर विस्थापित किया जाना है। उसके बाद ही हजारा टोंगिया को राजस्व ग्राम का दर्जा दिए जाने की कार्यवाही की जाएगी।

लंबे संघर्ष के बाद जीत से लोगों में खुशी: मुन्नीलाल

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय संगठन सचिव मुन्नीलाल जी कहते हैं कि लंबे संघर्ष के बाद जीत मिली है। लिहाजा लोगों में खुशी का माहौल है। हजारा टोंगिया की बाबत मुन्नीलाल जी बताते हैं कि वनाधिकार कानून के तहत हजारा टोंगिया को भी राजस्व का दर्जा मिलना है लेकिन यह अभी भी लोगों के ऊपर निर्भर है कि उन्हें पार्क के अंदर ही राजस्व ग्राम का दर्जा चाहिए या फिर पार्क से बाहर विस्थापित होने के बाद। कहा कि इस बाबत लोगों से बातचीत की जा रही हैं। खास यह है कि हजारा टोंगिया के लोगों ने खुद से ही पार्क से बाहर विस्थापन की मांग की थी। 

समितियों का होगा गठन

हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल के तीनों जिलाधिकारियों को ताकीद किया गया है कि वे वनाधिकार अधिनियम-2006, भारत सरकार की अधिसूचना 2008, संशोधित अधिसूचना 2012, व केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत ग्राम स्तरीय वनाधिकार, खंडस्तरीय समिति व जिलास्तरीय समिति का गठन करेंगे। प्रस्ताव तैयार कर दो माह के भीतर खंड स्तरीय समिति को प्रस्तुत करना होगा। समितियों का प्रभागीय वनाधिकारी व समाज कल्याण अधिकारी आवश्यक निगरानी करेंगे। जिलाधिकारी पूरा पर्यवेक्षण करेंगे। एक माह में जिलास्तरीय समिति को प्रस्ताव देना होगा। जिला स्तरीय वनाधिकार समिति एक महीने के भीतर प्रस्ताव तैयार कर राजस्व परिषद को भेजेगी।

क्या हैं टोंगिया गांव

टोंगिया उन श्रमिकों के गांव हैं जो 1930 में वनों में पौधरोपण के लिए हिमालयी क्षेत्र में लाए गए थे। आजादी से पहले इन श्रमिकों को वनों में स्थित गांवों को कई तरह की सुविधाएं भी हासिल थीं। 1980 के आसपास वन संरक्षण अधिनियम बनने के बाद इनके अधिकार खत्म हो गए और ये गांव भी संरक्षित वनों में घिर कर रह गए। जबकि पड़ोसी राज्य यूपी ने सहारनपुर से लेकर लखीमपुर और बहराइच तक सूबे में कई दर्जन टोंगिया गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया है। 

स्थानीय टोंगिया ग्रामीणों के अनुसार, ब्रिटिश शासनकाल में हिमालयी क्षेत्रों में प्लांटेशन के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से श्रमिकों को लाया गया था। इन श्रमिकों में उनके पूर्वज भी थे, जिनको इस क्षेत्र में पौधे लगाने और पेड़ बनने तक परवरिश की जिम्मेदारी दी गई थी। जंगल बनाने के लिए प्लांटेशन की व्यवस्था को टोंगिया नाम से पहचान मिली। अंग्रेजों ने उनके पूर्वजों को यहीं बसा दिया था। उनको प्रति परिवार लगभग 12-12 बीघा भूमि दी गई थी, जिस पर खेती करते आ रहे हैं। वर्ष 1980 तक उन लोगों ने प्लांटेशन किया। यह वन क्षेत्र राजाजी राष्ट्रीय पार्क क्षेत्र के अधीन आ गया।

ये फायदा मिलेगा टोंगिया गांवों को 

राशनकार्ड, बिजली, पानी, शौचालय, स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा सहित सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलने का काम होगा। अफसरों के अनुसार, हम प्रदेश के टोंगिया गांवों को राजस्व ग्राम बनाने जा रहे हैं। इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है। इससे हजारों लोगों को फायदा होगा और उन्हें राजस्व गांवों के समान नागरिक सुविधाएं मिल पाएंगी।

टिहरी बांध विस्थापितों को भी दिया जा चुका है तोहफा

प्रदेश सरकार ने हाल ही में देहरादून और हरिद्वार में 9 गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया था। वन भूमि का भू उपयोग परिवर्तन पहले होने के कारण इन गांवों को राजस्व ग्राम घोषित करने में सरकार को कोई खास परेशानी भी नहीं हुई।

साभार : सबरंग 

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