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गुजरात: सरकारी आंकड़ों से कहीं ज़्यादा है कोरोना से मरने वालों की संख्या!

सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार अपने ही हलफनामे से झूठी साबित हुई है। अब सरकार ने खुद आधिकारिक तौर पर इस बात को स्वीकार कर लिया है कि राज्य में कोरोना से मरने वालों की जितनी गिनती की गई थी, असली संख्या उससे कहीं ज्यादा है।
covid deaths

इस साल मई महीने में कोरोना महामारी जब अपने चरम पर थी, तब गुजराती अख़बार दिव्य भास्कर ने राज्य में कोरोना से हुई मौतों को लेकर एक रिपोर्ट छापी थी। इस रिपोर्ट में तमाम सरकारी दावों से इतर कोविड काल में लोगों की मौत का एक डेटा था, जो गुजरात सरकार पर लगभग 61,000 कोविड मौतें छिपाने का आरोप भी लगा रहा था। हालांकि तब मुख्यमंत्री विजय रुपाणी कोरोना से होने वाली मौतों को छिपाने के आरोपों से इनकार कर चुके थे। उन्होंने कहा था कि नियमों के तहत कोरोना से होने वाली मौतों को दर्ज किया जा रहा है।

लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने इस बात को खुद आधिकारिक तौर पर स्वीकर कर लिया है कि राज्य में कोरोना से मरने वालों की जितनी गिनती की गई थी, असली संख्या उससे कहीं ज्यादा है। इससे पहले राज्य सरकार के आंकड़े के अनुसार 10,092 लोगों की मौत कोरोना से हुई थी। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आख़िर कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़ों को लेकर अबतक सरकार झूठ क्यों बोलती आई है।

अब इस नए आंकड़े से पूरे देश में कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा दो फीसदी बढ़ गया है। भारत में अब कोविड-19 से मरने वालों की कुल संख्या 4.85 लाख हो गई है।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के अनुसार गुजरात के आधिकारिक हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक राज्य में कोरोना से 10,099 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन राज्य सरकार ने सोमवार, 13 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसे मुआवजे के लिए लगभग तीस हजार से अधिक आवेदन मिले हैं। यह सभी आवेदन कोविड से मरने वालों के निकट संबंधियों के हैं। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया कि इनमें से ज्यादातर आवेदनों को स्वीकार भी कर लिया गया है। यानी हेल्थ बुलेटिन में दिए गए आंकड़ें से कहीं ज्यादा मौतें राज्य में हुई हैं। अब सरकार के यह मान लेने से ये आशंकाएं बढ़ गई हैं कि देश में जितनी मौतों की जानकारी दी गई थी असली आंकड़ा उससे कहीं ज्यादा है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को गुजरात सरकार के वकील ने कहा कि राज्य में कोविड से जान गंवाने वालों के परिजनों को कुल 19,964 मामलों में मुआवजे की मंजूरी दी गई है। वकील ने कहा कि राज्य के ऑनलाइन पोर्टल को नौ दिसंबर तक मुआवजे के लिए 34,637 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं।

वकील ने जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की दो-न्यायाधीशों की पीठ को यह भी बताया कि राज्य ने पहले ही डीबीटी योजना के माध्यम से 14,215 मामलों में मुआवजा बांट दिया है। अब इस हलफनामे को देखें तो राज्य में कुल 19,964 लोगों की मौत कोरोना से हुई है, जिन्हें मुआवजा दे दिया गया है, या इसकी मंजूरी मिल गई है।

मालूम हो कि कई मीडिया संगठन शवदाह गृहों और श्मशानघाटों से मिली जानकारी के आधार पर पहले ही दावा कर चुके थे कि गुजरात समेत कई राज्यों ने अप्रैल से जून के बीच आई दूसरी लहर के दौरान मरने वालों का सही आंकड़ा नहीं दिया है। अदालतों की सख्ती के बाद आपदा असल में कितनी बड़ी थी इसका पता लगाने के लिए कई राज्यों को दोबारा जांच के आदेश दिए हैं।

अस्पतालों में बिस्तरों और ऑक्सीजन की भारी कमी की वजह से कई लोगों की घर पर ही मृत्यु हो गई और संभव है कि ये मौतें आधिकारिक आंकड़ों में शामिल न हो पाई हों। वैसे कई मीडिया रिपोर्ट्स में गुजरात सरकार को मिले इन आवेदनों की संख्या 40,000 से ज्यादा बताई जा रही है। राज्य सरकार की कोविड मुआवजा नीति के तहत इन सभी परिवारों को 50,000 रुपए दिए जाएंगे।

विपक्ष का क्या कहना है?

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का कहना है कि उसके अनुमान के अनुसार असली संख्या इससे भी ज्यादा है। गुजरात कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मनीष दोशी ने बताया कि पार्टी के अपने सर्वेक्षणों में मरने वालों की संख्या कम से कम 55,000 पाई गई है।

दोशी ने आगे कहा, "हम शुरू से कह रहे हैं कि गुजरात सरकार कोविड-19 के मामले और मौतों को कम कर के बता रही है। मुआवजा गुजरात का राजस्व मंत्रालय दे रहा है। राजस्व मंत्री राजेंद्र त्रिवेदी ने टिप्पणी के लिए किए गए अनुरोध का जवाब नहीं दिया।"

गौरतलब है दिव्य भास्कर ने राज्य में कोरोना से हुई मौतों को लेकर जो रिपोर्ट छापी थी, उसमें राज्य के अलग-अलग जिला और नगर पंचायत की तरफ से जारी डेथ सर्टिफिकेट का डेटा दिया गया था। डेटा तमाम सरकारी दावों से इतर कोविड काल में लोगों की मौत की एक अलग ही कहानी बयां कर रहा था। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद गुजरात सरकार पर लगभग 61,000 कोविड मौतें छिपाने का आरोप भी लगा था।

सरकारी आंकड़ें और जनता का भ्रम

इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया था कि राज्य में पिछले साल की तुलना में इस साल एक मार्च से 10 मई के बीच लगभग 65,000 अधिक मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुए हैं, जबकि सरकार ने कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा तब 4,200 बताया था। ऐसे में सवाल उठ रहे थे कि लगभग 61,000 अन्य मौतें कैसे हुईं? क्या ये मौतें कोरोना से हुई थी, जिन्हें सरकार छिपा रही थी? इससे पहले भी कई मीडिया संस्थान इस सच को उजागर कर चुके हैं कि राज्य में कोविड से होने वाली मौतों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक है।

इसे भी पढ़ें: गुजरात: ‘विकास मॉडल’ नहीं ‘बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था’, सरकार पर कोविड मौतें छिपाने का आरोप!

इससे पहले न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी अपनी रिपोर्ट में गुजरात के अलग-अलग श्मशान घाटों में काम करने वाले लोगों के हवाले से बताया था कि राज्य में कोविड से मरने वालों का आंकड़ा सरकारी आंकड़े से चार से पांच गुना अधिक है। अब अगर दिव्य भास्कर की रिपोर्ट पर नजर डालें तो असल आंकड़ा चार से पांच गुना नहीं, बल्कि 10 से 15 गुना तक था। हालांकि तब गुजरात सरकार कोरोना से होने वाली मौतों को छिपाने के आरोपों से इनकार कर रही थी।

हाईकोर्ट की लगातार फटकार के बावजूद गुजरात सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही थी। आलम ये था कि कोरोना से होने वाली मौतों के लिए श्मशान घाटों और शवदाह गृहों पर लाइनें लग रही थी। लोकल गुजराती अखबार लगातार आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में कोविड से होने वाली मौतों को ज्यादा बता रहे थे। विपक्ष सरकार से सवाल कर रहा था और सरकार टाल-मटोल करने में व्यस्त थी। लेकिन अब जब खुद सरकार अपने आंकड़ों के खेल में फेल हो गई है तो, इसकी जवाबदेही तो बनती है कि आख़िर सरकार ने लोगों के सामने अबतक सही आंकड़ें क्यों नहीं रखे, क्या ये सरकार द्वारा उसकी विफलता छुपाने का प्रयास था या सरकार जानबूझकर लोगों को गुमराह करने में लगी थी।

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