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“हड़ताल का कौन ज़िम्मेदार-भारत सरकार, भारत सरकार”

“इस दो दिन कि हड़ताल ने देश की सरकारों को बता दिया है कि मज़दूर के बिना आप देश नहीं चला सकते हैं। मज़दूर विरोधी सरकार को जाना होगा, इसी का ऐलान करने के लिए देश भर के करोड़ो मज़दूर सड़क पर उतरे।”

#WorkersStrikeBack

8-9 जनवरी की आम हड़ताल कई मायनो में ऐतिहासिक रही, इसमें 20 करोड़ से भी ज़्यादा मज़दूर-कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। ये आज़ाद भारत की दूसरी दो दिन की हड़ताल थी। इससे पहले फरवरी 2013 में दो दिन की हड़ताल हुई थी परन्तु उसमें इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों कि भागीदारी नहीं हुई थी। इसबार की हड़ताल में देश के एक करोड़ से अधिक स्कीम वर्कर के साथ असंगठित क्षेत्र के मजदूर शामिल हुए। इसके साथ किसान मजदूरों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इस दौरान कई जगह मजदूरों की पुलिस से सीधी झड़प हुई। कई जगह तो मजदूरों को गंभीर चोटे भी आईं। कई राज्यों में सरकारों ने मजदूरों को एस्मा  लगाकर डराने कि कोशिश भी की लेकिन इसके बावजूद इस हड़ताल में करोड़ों की संख्या में भागीदारी इस हड़ताल की सफलता को बताता है।

मज़दूरों की 12 सूत्री मांगें थी, जिसको लेकर मजदूर देश भर में सड़कों पर उतरा था। इन सभी मांगों को लेकर पूरे देश में 7 जनवरी के रात 12 बजे से ही कामबंदी शुरू हो गई थी। हड़ताल को कामयाब बनाने के लिए अलग-अलग राज्यों में रैली और गेट मीटिंग का आयोजन किया गया। कई जगह रेल रोको, सड़क रोको आन्दोलन हुए। भारी संख्या में महिला स्कीम वर्कर और कामगारों ने भी हिस्सा लिया। आज भी देश के तमाम औद्योगिक क्षेत्र बंद रहे और अलग राज्यों में रैली और विरोध प्रदर्शन किया।

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(नरेला में आज सुबह हड़ताल कि फ़ोटो)

इस हड़ताल के अंतिम दिन सभी दस ट्रेड यूनियन और फेडरेशन के केन्द्रीय नेतृत्व में आज दिल्ली के मंडी हाउस से संसद तक मार्च किया गया जिसमे सरकार को चेतावनी दी गई कि वो मजदूर विरोधी नीति को लाना बंद करे नहीं तो मजदूर अपना हक लड़कर लेना जनता है। यूनियन के नेताओं ने कहा कि यह तो केवल झांकी थी। अगर सरकार नहीं मानी  तो इससे बड़े और आन्दोलन होंगे।

हम मजदूर भाई भाई-लेकर रहेंगे पाई-पाई, जो हम से टकराएगा-वो चूर चूर हो जाएगामज़दूर एकता ज़िंदाबादमोदी न योगी, देश पर राज करेगा मजदूर किसान, इंकलाब जिंदाबादहड़ताल का कौन जिम्मेदार-भारत सरकार, भारत सरकारहर ज़ोर-जुल्म के टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है..आज दिल्ली में रैली की शुरुआत इन गगनभेदी नारों से हुई। मंडी हाउस से संसद मार्ग तक का रास्ता इन्हीं नारों से गूंजता रहा। रैली में अलग क्षेत्र के मज़दूर शामिल हुए और उन सभी की मुख्य समस्याएं लगभग एक समान थी। कुछ अलग मांगें भी थीं।

रेलवे कर्मचारी

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उत्तरी रेलवे कर्मचारी यूनियन के नेता एस कुमार ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा की रेलवे में  नौकरी में अप्रेंटिस को प्राथमिकता दी जाती थी,परन्तु अब इसको तबाह करने की कोशिश हो रही है, जिससे इसके तहत ट्रेनिंग पा चुके नौजावन को नौकरी नहीं मिल रही है। इसको लेकर हमारा विरोध है।

पुरानी पेंशन  

कर्मचारियों की दूसरी सबसे अहम मांग है पुरानी पेंशन की बहाली। सरकार की नए पेंशन नीति का विरोध केवल रेलवे कर्मचारी ही नहीं बल्कि सभी निगमों के कर्मचारी कर रहे हैं। उनके मुताबिक इस नई नीति के तहत कर्मचारी की पेंशन सुनिश्चित नहीं है, जो पहले निश्चित होती थी। अब उनके पैसों को सरकार शेयर मार्केट में लगा रही हैउस पर फायदा हो या नुकसान वो कर्मचारी का होगा। यानी इसमें बड़ा जोखिम है। इसी को लेकर सभी कर्मचारी इसका विरोध कर रहे।

निजीकरण

देश का सबसे ज्यादा नौकरी पैदा करने वाला क्षेत्र रेलवे है, परन्तु सरकार इसको भी बर्बाद करना चाह रही है। रेलवे को पूंजीपतियों को बेचा जा रहा है। रेलवे कर्मचारियों का कहना था कि सरकार ने कई स्टेशनों को बेचने का काम शुरू भी कर दिया है और वो हर तरह से अपने पूंजीपति मित्रों को फायदा पहुंचाना चाहती है।

बैंक कर्मचारी- बीमा कर्मचारी

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अमित जो एक बैंक कर्मचारी हैं उन्होंने बताया कि लगातार जिस तरह से बैंकों में छंटनी हो रही है, उससे सभी अस्थायी कर्मचारियों की नौकरी पर तो संकट है ही, साथ ही अभी जो कर्मचारी काम कर रहे हैं, उनपर भी काम का दबाव बढ़ रहा है। इसके साथ ही सरकार लगतार बैंको का मर्जर/विलय कर रही है, उससे भी कर्मचारियों में भय का माहौल है।

डीटीसी कर्मचारी

आज के रैली में डीटीसी के कर्मचारी भी शामिल हुए। इनका कहना था कि केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों ने इन्हें ठगा है। सबने पहले पक्का करने का वादा किया परन्तु किसी ने भी पूरा नहीं किया।

निर्माण मजदूर

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इस रैली में आये निर्माण मजदूरों का कहना था कि सरकार हमेशा ही प्रदूषण के नाम पर उनपर हमला करती है। इसके साथ ही लगातर श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर श्रम कानूनों को खत्म किया जा रहा है। निर्माण मज़दूर कहते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार निर्माण मजदूरों के लिए बने कानूनों को खत्म करने में लगी हुई है।

सफाई कर्मचारी  

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इस रैली में आये सफाई कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें न तो न्यूनतम वेतन मिलता है, न समय पर वेतन मिलता है। इसके साथ ही उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है। आज देश में हाथ से मैला उठाना गैरक़ानूनी है, मगर फिर भी हमें सीवर में बिना किसी सुरक्षा इंतज़ाम के उतार दिया जाता है। इसके चलते न जाने कितने मजदूरों ने अपनी जान गंवाई है।

जल बोर्ड के कर्मचारी

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अशोक कुमार जो दिल्ली जल बोर्ड कर्मचारी यूनियन के महासचिव हैं उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि  दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारी कर्मचारियों के फंड के पैसे का कोई हिसाब नहीं दे रहे, जो संदेह पैदा करता है। वो आगे कहते हैं जो कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं उन्हें उनकी भविष्य निधि में कितना धन जमा हुआ और उस पर कितना ब्याज है, इसका कोई हिसाब नहीं दिया जा रहाबल्कि दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारी कर्मचारियों को एक अंदाजे से कुछ रकम दे रहे हैं और कई कर्मचारियों को तो किसी भी प्रकार का कोई भुगतान नहीं किया जा रहा है

सीटू के महासचिव तपन सेन ने इस हड़ताल को सफल बताते हुए न्यूज़क्लिक से कहा की ये जो हड़ताल का दूसरा दिन है इसमें इसका दायर और बढ़ा है, जो मजदूर इसमें कल शामिल नहीं हो पाए थे, वो भी इसमें आज शामिल हुए। उन्होंने कहा की ये हड़ताल केवल मजदूर के लिए नही है बल्कि देश के हित में है।

 

भाकपा-माले की पोलित ब्यूरो सदस्य और ऐपवा की महासचिव कविता कृष्णन ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने कल सवर्ण जाति के लोग जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं उनके लिए भी आरक्षण कि बात की है और उन्होंने जो गरीब के लिए दायरा तैयार किया है उसके मुताबिक 8 लाख सलाना कमाने वाला गरीब होगा लेकिन दो दिनों से 20 करोड़ मजदूर अपने लिए 18 हज़ार  रुपये न्यूनतम वेतन मांग रहा है जो कि सालाना 2 लाख 16 हज़ार होता है, वो तो सरकर दे नहीं रही है।

आगे वो कहती हैं कि इस हड़ताल ने देश को मजदूरों का महत्व बता दिया है कि अगर वो काम न करे तो देश पूरी तरह से ठप्प पड़ जाएगा।

सीपीएम की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने कहा कि केंद्र कि मोदी सरकार लगातर श्रम कानूनों को सुधार के नाम पर कमज़ोर कर रही है। ये सरकार श्रम कानूनों को खत्म करने में लगी हुई है और लगातार पूंजीपति के हक़ में फिक्स टर्म जैसा मज़दूर विरोधी कानून बना रही है, जिसमें मजदूर एक तरह का गुलाम बनकर रह जाएगा। उसे किसी भी प्रकार का श्रम कानून का लाभ नहीं मिलेगा।

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आगे वो कहती हैं कि इस दो दिन कि हड़ताल ने देश की सरकारों को बता दिया है कि मज़दूर के बिना आप देश नहीं चला सकते हैं। मज़दूर विरोधी सरकार को जाना होगा, इसी का ऐलान करने के लिए देश भर के करोड़ो मज़दूर सड़क पर उतरे। 

 

 

 

 

 


 

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